इस ऐतिहासिक घटना के महानायक जिनका इतिहास की किताबों में मिल पाए, ये लगभग नामुमकिन है। भारत-पाकिस्तान का युद्ध जो १९७१ में बांग्लादेश को लेकर लड़ा गया था।
उसी युद्ध के दो महानायकों में से एक, जो पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात और पाकिस्तान के सिंह प्रान्त के बाहुबली और डकैत कहे जाने वाले और गरीबों व मज़लूमो के ‘रॉबिन हुड’ बलवंत सिंह बाखासर जी। राजस्थान के बाड़मेर जिले के बाखासर में चौहानों की नाडोला उप शाखा में हुआ| उनका नाम बलवंत सिंह चौहान था लेकिन राजपूतों में अपने गाँव का नाम भी अपने गौत्र के स्थान पर प्रयोग करने का चलन है इसी कारण वे बलवंत सिंह बाखासर के नाम से जाने जाते थे। ठाकुर बाखासर का प्रारंभिक जीवन बाड़मेर, कच्छ (गुजरात) और पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में गुजरा| इसलिए आप इन क्षेत्रों के चप्पे चप्पे से भली-भांति परिचित थे| ठाकुर बलवंत सिंह का विवाह कच्छ (गुजरात) के विजेपासर गाँव में जाडेजा राजपूतों के ठिकाने में हुआ|
भारत की आज़ादी के उपरान्त बाड़मेर सीमा पर दोनों देशों की सीमा खुली हुई होने के कारण सिंध प्रान्त के मुसलमान भारत के बाड़मेर व अन्य सीमान्त इलाकों में आकर लूट-मार किया करते थे इसी के कारण बलवंत सिंह से यौवन की दहलीज़ पर कदम रखने के साथ ही हाथ में बन्दूक थाम ली थी |
बाखासर बलवंत सिंह सांचोर मेले को भय से मुक्त रखने के लिए अपने ऊंट पर बैठ कर पहरा दिया करते थे, बाड़मेर सांचोर और उत्तरी गुजरात, कच्छ और रण क्षेत्र में आज भी लोग बलवंत सिंह बाखासर की वीरता और अन्य गुणों का बखान करते हुए अनेक गीत और भजन गाते हैं। ६० से ७० तक के दशक में पश्चिमी राजस्थान में बलवंत सिंह बाखासर एक कुख्यात डकैत के रूप में चर्चित थे। उन पर लूट और हत्या सहित अनेक केस दर्ज थे।
उस दौर में सिंध के मुस्लिम लुटेरों का आतंक व्याप्त था वहीँ दूसरी ओर बलवंत सिंह बाखासर इन लुटेरों और सरकारी खजानों से माल लूट कर सारा धन बाड़मेर, गुजरात और सिंध प्रान्त के गरीब और बेसहारा लोगों में बाँट दिया करते थे और ग्रामीणों की हर संभव मदद को सदा तैयार रहते थे। जिसके चलते सांचोर (बाड़मेर), उत्तरी गुजरात के वाव थराद एवं बॉर्डर पर बसे गाँव वालों की नज़रों में वे रॉबिन हुड या किसी मसीहा से कम नहीं थे| बलवंत सिंह जब भी किसी गाँव में रुकते तो गाँव के निवासी ही उनके लिए सभी प्रबंध करते थे और वक़्त के साथ बलवंत का नाम मशहूर होता गया। सिंध के लुटेरे बलवंत सिंह बाखासर के नाम से ही कांपने लगे थे| तत्कालीन प्रशासन भी उनसे हमेशा खौफ़ खाने लगा था।
गौ वंश की रक्षा कर हुए चर्चित बलवंत सिंह बाखासर-
एक बार बलवंत सिंह को यह ख़बर मिली कि मीठी पाकिस्तान के सिन्धी मुस्लिम लुटेरे १०० से अधिक गायों को यहाँ से सिंध ले जा रहे हैं | सूचना मिलने के साथ ही बलवंत सिंह बाखासर अपने घोड़े पर सवार होकर बिजली की गति से लुटेरों के पास जा पहुंचे और अकेले ही ८ लुटेरों को मौत की नींद सुला दिया।
उनके रौद्र रूप को देख कर बाकी बचे लुटेरे गायों को छोड़कर भाग खड़े हुए और बलवंत सिंह अकेले ही सभी गायों को मुक्त कराकर वापस ले आये।
कुख्यात लुटेरों का काल बने बलवंत बाखासर-
चौहटन (बाड़मेर) का मो. हुसैन एक लुटेरा था जिस पर स्मगलिंग के भी संगीन इलज़ाम थे, इसे ठाकुर बलवंत सिंह बाखासर ने मार गिराया और ऐसे ही मो. हयात खान नाम के लुटेरे को भी बाखासर जी ने काल के गाल में पहुंचा दिया था।
३ दिसम्बर, १९७१ को पाकिस्तान के हमले के साथ हुई युद्ध की शुरुआत-
भारत के साथ पाकिस्तान के सम्बन्ध आरम्भ से ही तनावपूर्ण रहे है पाक १९६५ की हार से तिलमिलाया बैठा था और उसने ३ दिसम्बर को एक बार फिर भारत पर हमला कर दिया। जवाबी कार्रवाई करने के लिए १० पैरा बटालियन को आवश्यकता थी एक ऐसे आदमी की जो बाड़मेर के रेगिस्तान और पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के छाछरो तक के चप्पे चप्पे से परिचित हो और बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेट कर्नल महाराज भवानी सिंह की तलाश आकर पूरी हुई ठाकुर बलवंत सिंह बाखासर जी पर|
जयपुर महाराजा भवानी सिंह ने देश हित के लिए बाखासर से मांगी मदद-
लेफ्टिनेट कर्नल भवानी सिंह को ज्ञात हुआ कि बलवंत सिंह बाखासर अकेला ऐसा शख्स है जो सेना के लिए सहायक हो सकता है।
भवानी सिंह ने बाखासर से देश रक्षा के लिए मदद मांगी और कहा कि आप की सहायता भारत के सेना रेगिस्तानी भूल भुलैया में ही फंस कर रह जायेगी केवल तुम ही एक ऐसे व्यक्ति हो जो इस समय मेरी मदद करके भारत की जीत सुनिश्चित कर सकते हो और बलवंत सिंह ने हामी भर दी। बाखासर ने भारत की सेना को गुप्त रास्तों से बड़ी ही ख़ामोशी के साथ ७ दिसम्बर को पाकिस्तान के सिंध प्रांत के तहसील मुख्यालय छाछरो पहुँचाया दिया जहाँ पर पाक रेंजर्स का मुख्यालय था।
बलवंत सिंह बाखासर बड़ी चतुराई से भारत की सेना को रण क्षेत्र के रास्ते वहाँ लाये जिससे पाक रेंजर्स धोखा खा गए और ये समझ बैठे कि हमारी सेना मदद के लिए आ पहुंची है। इससे पहले कि पाक सेना के रेंजर्स ये समझ पाते कि ये पाकिस्तान की सेना है या नहीं, उससे पहले ही लेफ्टिनेट कर्नल भवानी सिंह के नेतृत्व में १० पैरा स्पेशल बटालियन ने पाक रेंजर्स को संभलने का मौका दिये बगैर अंधाधुंध धावा बोल दिया।
जिसमे अनेक पाक सैनिक मारे गए और शेष पोस्ट छोड़ कर भाग खड़े हुए और ७ दिसम्बर, १९७१ सुबह ३ बजे ही छाछरो पर भारत का कब्ज़ा हो गया।
भारत की सेना छाछरो पर कब्ज़ा करके ही नहीं रुकी, वह आगे बढ़ी मगर सामने पाकिस्तान का तोपखाना था और भारत की सेना का आगे बढ़ना संभव नहीं था।
लेफ्टिनेट कर्नल भवानी सिंह ने बाखासर पर विश्वास जताया और उन्होंने बलवंत सिंह बाखासर को सेना की एक बटालियन और ४ जोंगा जीपें भी सौंप दी।
बलवंत सिंह बाखासर यहाँ सेना की अगुवाई कर रहे थे उन्होंने और भवानी सिंह ने मिलकर एक योजना बनाई और जोंगा जीपों के साइलेंसर हटा दिए जिससे रात के अँधेरे में पाक सेना को भ्रम हुआ कि भारत की टैंक रेजिमेंट ने हमला बोल दिया है और जोंगा में लगी MMG और LMG से ही पाकिस्तान तोपखाने को तहस नहस कर दिया। भारतीय सेना ने लगभग १७ पाक सैनिकों को बंदी बना लिया था और उनसे भारी मात्र में अस्ला-बारूद अपने कब्जे में लिया।
हिन्दुस्तान की सेना ने ७ दिसम्बर, १९७१ से १० दिसम्बर, ७१ तक ४ दिन में ही सिंध प्रान्त के छाछरो व अमरकोट सहित ३६०० वर्ग किमी।
इलाके पर अपना कब्ज़ा जमा लिया और वापस बाड़मेर लौट आई इस दौरान सिंध प्रांत में बलवंत सिंह बाखासर की लोकप्रियता देख कर भारतीय सेना दंग रह गई क्योंकि बाखासर को देखने के लिये पाक के सुदूर हिस्सों से ग्रामीण कई किमी. पैदल चल कर आये थे।
भारतीय सरकार ने बलवंत सिंह बाखासर की देशभक्ति की भावना और सेना की उनके द्वारा की गई सहायता के लिए आभार जताते हुए उनके खिलाफ चल रहे सभी केसों को खत्म कर दिया था और दो हथियारों के लिए आल इंडिया लाइसेंस भी दिया था। अभी इनके पोत्र रतन सिंह जी बाखासर अहमदाबाद में रह रहे है।
बाड़मेर का बाखासर इलाके गुजरात के कच्छ भुज से सटा हुआ है। ऐसे में बाड़मेर जैसलमेर और कच्च भुज क्षेत्र में डाकू बलवंत सिंह की बहादुरी के चर्चे आज भी होते हैं। बलवंत सिंह की छवि यहां डाकू नहीं बल्कि रॉबिन हुड की है कि आज भी राजस्थान ,गुजरात,कच्छ और रण क्षेत्र इनकी वीरता के वीर रस भजन आज तक गाए जाते है।
This modern Robinhood had played crucial role in the victory of India in the western theatre during 1971 war
Thakur Balwant Singh Nadola Chauhan was a native of Bakhasar village in Barmer district of Rajasthan. After the partition of the country, bandits from Sindh province of newly carved Pakistan often raided the border villages of our side of the landscape and carried away the livestock, aided by poorly organised guard of the border then.
Thakur Balwant Singh decided to fend the livelihood of his people by resorting to similar methods deployed by the marauders. He chased bandits right into their territories, recovering loot, killing the culprits & soothing helpless. In a couple of decades his name was synonymous to terror among banditry of the neighbouring country, compelling them to give up targeting Indian territory for their pastime.
The populace on either side, however, was greatly relieved; in return arranging facilities for his camping.
During the 1971 war when a bandit not only fought against the enemy along with the Indian Army, but also captured over 100 villages of Pakistan.
Thakur Balwant Singh Chauhan Bakhasar, a dacoit, resident of village Bakhasar in Barmer district of Rajasthan had captured over a hundred villages of Pakistan in the 1971 Indo-Pak war. During the Indo-Pak war in 1971, the Barmer region on the Rajasthan border was being commanded by Colonel Bhavani Singh, who with his troops had reached the Bakhasar area. However, due to the Thar Desert on the battlefield, it was not easy for the Indian Army to find easy routes to move forward like Pakistan.
It was at this moment when Colonel Maharaja Bhavani Singh ji remembered Balwant Singh Bakhasar, the dacoit of Bakhasar, and asked him for help. Bandit Balwant Singh was a dreaded dacoit at that time, well-known in the100-km radius on both sides of the Indo-Pak border. Well versed with the border, Balwant Singh knew all possible roads and trails made in the sea of sand as he also used to travel to Chhochro region of Pakistan. When asked for help by Colonel Bhavani Singh during the ongoing war between Indo-Pak, While demonstrating patriotism and utmost bravery, dacoit Balwant Singh took up arms to march towards Pakistan and along with the army marched towards Pakistan.
The Indian Army handed over a battalion and 4 Jonga Jeeps to bandit Balwant Singh. This battalion did not have tanks, but in front, was a tank regiment of Pakistan. However, Balwant Singh and the battalion acted cleverly and took out the silencers of the Jonga Jeep so that the Pakistani Army would believe that the Indian Army was moving with tanks. At the same time, Balwant Singh and the Indian Army giving a major blow to Pakistan took over 100 villages in the vicinity, including Pakistan’s Chhachro checkpoint.
Displaying such indomitable courage in the 1971 war, Balwant Singh became a hero before the country. The Rajasthan government not only withdrew all the cases of murder, robbery, dacoity lodged against Balwant Singh but also licensed two weapons to him apt for the soldierly acts he performed.
Since then, the image of Balwant Singh in and around the Bakhsar area of Barmer which is adjacent to Kutch Bhuj in Gujarat is not that of a robber but “Robin Hood”.