अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामाग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशंरघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत सुमेरु के समान शरीर वाले, दैत्य रूपी वन का ध्वंस करने के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवन पुत्र श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूं।
आश्विनस्यसिते पक्षे स्वात्यां भौमे चतुर्दशी।
मेशलग्नेञ्जनीगभांत् स्वयं जातो हरः शिवः।।
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में, चतुर्दशी तिथि को मंगल के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लगन में माता अंजना के गर्भ से स्वयं भगवान शिव हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए। इस तथ्य के अनुसार सूर्य कन्या राशि में स्थित है एवं चंद्र सूर्य से कम अंशों पर है अर्थात स्वाति नक्षत्र नहीं हो सकता।
शकुलादिमासगणनया आश्विनकृष्ण कार्तिककृष्ण, तुलार्केमेषलग्ने सायंकाले।
अतश्चतुर्दश्यां सायंकाले जन्मोत्सव।।
अर्थात शुक्लादि मास गणनानुसार अश्विन कृष्ण पक्ष एवं कृष्णादि मास गणनानुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष, चतुर्दशी को, तुला के सूर्य में, मेष लग्न में सांयकाल को श्री हनुमान जी का अवतार हुआ। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि हनुमान जी का अवतार मास अश्विन शुक्लादि है न कि कृष्णादि। अतः मास प्रवेश में सूर्य अवश्य कन्या राशि में था, लेकिन मास समाप्ति के समय जब कृष्ण चतुर्दशी थी तब वह तुला के मध्य या उच्चांश पर स्थित था। इसी कारण चंद्रमा भी तुला में स्वाति नक्षत्र में स्थित था।
पंचांगों के अनुसार चैत्र पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र में हनुमान जी की अवतार दिवस मनाई जाती है। लेकिन हनुमान जी की माता अंजना जी को उनकी कठोर तपस्या के पश्चात इस दिन वायु देवता ने पुत्र का वरदान दिया था। उसके कुछ समय पश्चात उन्होंने महाराष्ट्र प्रदेश में नासिक के पास अंजना नेरी पर्वत की एक गुफा में श्री हनुमान जी को जन्म दिया। अतः चैत्र पूर्णिमा उचित रूप में अवतार दिवस नही है।