Tuesday, May 31, 2016

PARAMVEER CAPTAIN GURBACHAN SINGH SALARIA - IMMORTAL RAJPUTS


An Ode To The Only UN Peacekeeper Awarded The Param Vir Chakra!



देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखते हुए हमारे अनगिनत वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहूति देकर देश के गौरव को बढ़ाया है। शहीदों की इस फेहरिस्त में एक नाम शहीद कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया का भी आता है, जिन्होने विदेशी धरती यानी अफ्रीका के कांगो में भारत द्वारा भेजी गई शांति सेना का नेतृत्व करते हुए न सिर्फ 40 विद्रोहियों को मार गिराया बल्कि खुद शहादत का जाम पीते हुए भारत गणतंत्र के पहले परमवीर चक्र विजेता होने का गौरव प्राप्त किया। (हालांकि उनसे पहले सोमनाथ शर्मा, जादुनाथ सिंह, रामा रंघोबा राणे, पीरू सिंह शेखावत और करम सिंह को यह सम्मान मिल चुका था, लेकिन उन्हें जिस काल १९४७-४८ के लिए यह सम्मान मिला, उस वक्त भारत में अपना संविधान लागू नहीं हुआ था।) इनकी बहादुरी का सम्मान करते हुए देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधा कृष्णन ने इन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।

पिता के बहादुरी के किस्से सुन बने फौजी:


गुरबचन सिंह सलारिया का जन्म २९ नवम्बर १९३५ को शकरगढ़ के जनवल गांव में हुआ था। यह स्थान अब पाकिस्तान में है। इनके पिता मुंशी राम सलारिया भी फौजी थे और ब्रिटिश-इंडियन आर्मी के डोगरा स्क्वेड्रन, हडसन हाउस में नियुक्त थे। इनकी मां धन देवी एक साहसी महिला थीं तथा बहुत सुचारू रूप से गृहस्थी चलाते हुए बच्चों का भविष्य बनाने में लगी रहती थीं। पिता के बहादुरी के किस्सों ने गुरबचन सिंह सालारिया को भी फौजी जिंदगी के प्रति आकृष्ट किया। इसी आकर्षण के कारण गुरबचन ने १९४६ में बैंगलोर के किंग जार्ज रॉयल मिलिट्री कॉलेज में प्रवेश लिया। अगस्त १९४७ में उनका स्थानांतरण उसी कॉलेज की जालंधर शाखा में हो गया।


१९५३ में वह नेशनल डिफेंस अकेडमी में पहुंच गए और वहां से पास होकर कारपोरल रैंक लेकर सेना में आ गए। वहां भी उन्होंने अपनी छवि वैसी ही बनाई जैसी स्कूल में थी यानी आत्म सम्मान के प्रति बेहद सचेत सैनिक माने गए। एक बार इन्हें एक छात्र ने तंग करने की कोशिश की। वह एक तगड़ा सा दिखने वाला लड़का था, लेकिन इसी बात पर गुरबचन सिंह ने उसे बॉक्सिंग के लिए चुनौती दे डाली। मुकाबला तय हो गया। सबको यही लग रहा था कि गुरबचन सिंह हार जाएंगे, लेकिन रिंग के अंदर उतरकर जिस मुस्तैदी से गुरबचन सिंह ने मुक्कों की बरसात की, उनके आगे वह कुशल प्रतिद्वंद्वी भी ठहर नहीं पाया और जीत गुरबचन सिंह की हुई। एक बार एक बेचारा लड़का कुएं में गिर गया, गुरबचन सिंह वहीं थे। उन्हें बच्चे पर तरस आया और वह उसे बचाने को कुएं में कूदने को तैयार हो गए, जबकि उन्हें खुद भी तैरना नहीं आता था। खैर उनके साथियों ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया।


एलिजाबेथ विला में सौंपा दायित्व:-


यह बात है उस वक्त की जब बेल्जियम के कांगो छोड़ने के बाद कांगो में शीत-युद्ध जैसी स्थितियां उत्पन्न होने लगीं। संयुक्त राष्ट्र ने इस परिस्थिति को संभालने हेतु भारत की मदद लेने का फैसला लिया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के इस अभियान के लिए लगभग तीन हजार जवानों को वहां भेजा, जिसमें से कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया भी एक थे। 3/1 गोरखा राइफल्स के कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया को संयुक्त राष्ट्र के सैन्य प्रतिनिधि के रूप में एलिजाबेथ विला में दायित्व सौंपा गया था। 24 नवम्बर 1961 को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने यह प्रस्ताव पास किया था कि संयुक्त राष्ट्र की सेना कांगो के पक्ष में हस्तक्षेप करे और आवश्यकता पड़ने पर बल प्रयोग करके भी विदेशी व्यवसायियों पर अंकुश लगाए।


संयुक्त राष्ट्र के इस निर्णय से शोम्बे के व्यापारी आदि भड़क उठे और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की सेनाओं के मार्ग में बाधा डालने का उपक्रम शुरू कर दिया। संयुक्त राष्ट्र के दो वरिष्ठ अधिकारी उनके केंद्र में आ गए। उन्हें पीटा गया। 3/1 गोरखा राइफल्स के मेजर अजीत सिंह को भी उन्होंने पकड़ लिया था और उनके ड्राइवर की हत्या कर दी थी। इन विदेशी व्यापारियों का मंसूबा यह था कि वह एलिजाबेथ विला के मोड़ से आगे का सारा संवाद तंत्र तथा रास्ता काट देंगे और फिर संयुक्त राष्ट्र की सैन्य टुकडिय़ों से निपटेंगे।


हमले के लिए चुना दोपहर का समय:


५ दिसम्बर १९६१ को एलिजाबेथ विला के रास्ते इस तरह बाधित कर दिए गए थे कि संयुक्त राष्ट्र के सैन्य दलों का आगे जाना एकदम असम्भव हो गया था। करीब ९ बजे ३/१ गोरखा राइफल्स को यह आदेश दिए गए कि वह एयरपोर्ट के पास के एलिजाबेथ विला के गोल चक्कर का रास्ता साफ करे। इस रास्ते पर विरोधियों के करीब डेढ़ सौ सशस्त्र पुलिस वाले रास्ते को रोकते हुए तैनात थे। योजना यह बनी कि ३/१ गोरखा राइफल्स की चार्ली कम्पनी आयरिश टैंक के दस्ते के साथ अवरोधकों पर हमला करेगी। इस कम्पनी की अगुवाई मेजर गोविन्द शर्मा कर रहे थे। कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया एयरपोर्ट साइट से आयारिश टैंक दस्ते के साथ धावा बोलेंगे इस तरह अवरोधकों को पीछे हटकर हमला करने का मौका न मिल सकेगा। कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया की ए कम्पनी के कुछ जवान रिजर्व में रखे जाएंगे। गुरबचन सिंह सलारिया ने इस कार्रवाई के लिए दोपहर का समय तय किया, जिस समय उन सशस्त्र पुलिसबालों को हमले की जरा भी उम्मीद न हो। गोविन्द शर्मा तथा गुरबचन सिंह दोनों के बीच इस योजना पर सहमति बन गई।


दुश्मन के ४० जवानों को किया ढेर:

कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया ५ दिसम्बर १९६१ को एलिजाबेथ विला के गोल चक्कर पर दोपहर की ताक में बैठे थे कि उन्हें हमला करके उस सशस्त्र पुलिसवालों के व्यूह को तोडऩा है, ताकि फौजें आगे बढ़ सकें। इस बीच गुरबचन सिंह सलारिया अपनी टुकड़ी के साथ अपने तयशुदा ठिकाने पर पहुंचने में कामयाब हो गई। उन्होंने ठीक समय पर अपनी रॉकेट लांचर टीम की मदद से रॉकेट दाग कर दुश्मन की दोनों सशस्त्र कारें नष्ट कर दीं। यही ठीक समय था जब वह सशस्त्र पुलिस के सिपाहियों को तितर-बितर कर सकते थे। उन्हें लगा कि देर करने पर दुश्मन को फिर से संगठित होने का मौका मिल जाएगा। ऐसी नौबत न आने देने के लिए कमर तुरंत कस ली। 


उनके पास केवल सोलह सैनिक थे, जबकि सामने दुश्मन के सौ जवान थे। फिर भी, उनका दल दुश्मन पर टूट पड़ा। आमने-सामने मुठभेड़ होने लगी, जिसमें गोरखा पलटन की खुखरी ने तहलका मचाना शुरू कर दिया। दुश्मन के सौ में से चालीस जवान वहीं ढेर हो गए। दुश्मन के बीच खलबली मच गई और वह बौखला उठा, तभी गुरबचन सिंह गोलियों का निशाना बन गए।


२६ की उम्र में हुए शहीद:


संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना के साथ कांगो के पक्ष में बेल्जियम के विरुद्ध बहादुरी पूर्वक प्राण न्योछावर करने वाले योद्धाओं में कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया का नाम लिया जाता है, जिन्हें 5

५ दिसम्बर १९६१ को एलिजाबेथ विला में लड़ते हुए अद्भुत पराक्रम दिखाने के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया। वह उस समय सिर्फ २६ वर्ष के थे।


PVC Captain Gurbachan Singh Salaria




Captain Gurbachan was an Indian Army officer and the only United Nations Peacekeeper to receive the Param Vir Chakra The First of Republic of India.


Captain Gurbachan Singh Salaria was an Indian Army officer and the only United Nations Peacekeeper to receive the Param Vir Chakra, India's highest military honour.

This is a story of his valour and supreme sacrifice.


His Early Life


Born on 29 November in 1935, Gurbachan was the second of five children born to Munshi Ram and Dhan Devi, from the Salaria Rajput family. Munshi Ramji was a part of the Dogra Squadron of the Hodson's Horse in the British Indian Army. so Gurbachan grew up listening to his tales, and the passion for the military way of life was instilled in him at a very young age. Captain Salaria was mesmerised when he heard the stories of soldiers’ valour and courage from his father. He had decided what he wanted to become after growing up.

A Young Indian Soldier


After the Partition, Salaria's family moved to India and settled in Jangal village in the Gurdaspur district of Punjab.

After passing school, he joined the illustrious King George Royal Indian Military College (Now known as Rashtriya Military School) Bangalore in 1946 and later moved to the King George Royal Military College Jalandhar (Now Rashtriya Military School  Chail in Himachal Pradesh). Capt Gurbachan then went on to join the 9th batch of National Defence Academy at Khadakwasla and subsequently the Indian Military Academy and later become First Param Vir Chakra won by an NDA alumni.


In 1954, he was commissioned into the 2nd battalion of the 3 Gorkha Rifles, where he was given the nickname of ‘Khan Saheb’ from his commanding officer, for his cropped haircut and upturned moustache! 

In 1960, he was, however, transferred to the 3rd battalion of 1 Gorkha Rifles, the same regiment that would get deployed as India’s aid to the UN Peacekeeping Force in Congo.

Assigned to Katanga, which was among the high-tension areas, Gurbachan’s regiment fought against the Katangese troops (gendarmes) under Operation Unokat, after multiple attempts of reconciliation failed between the state and local rebels.

The Congo Crisis and Mission UNOC



In June 1960, the Republic of the Congo became independent from Belgium. But during the first week of July, a mutiny broke out in the Congolese Army and violence erupted between black and white civilians. Belgium sent troops to protect fleeing whites and two areas of the country, Katanga and South Kasai, subsequently seceded with Belgian support. The Congolese government asked the United Nations (UN) for help, and on 14 July 1960, the organisation responded by establishing the United Nations Operation in the Congo.

Two Indian infantry brigades composed of 467 officers, 401 JCOs and 11,354 jawans participated in this peacekeeping mission. A flight of six Canberra Bomber aircrafts of the Indian Airforce were also deployed.

Indian peacekeepers in Congo.



Captain’s Supreme Sacrifice


Things turned intense on December 5, 1961, when the Gorkha regiment was given the task of clearing the roadblock caused by the gendarmes between the Katanga command headquarters and the Elisabethville airfield. On 5 December 1961, the 3rd battalion of 1st Gorkha Rifles when was tasked to clear a roadblock by rebels on the way to Élizabethville Airport at a strategic roundabout. The plan was to launch the first attack by Charlie Company, led by Major Govind Sharma. Captain Salaria, with a platoon from Alpha Company, stationed close to the airport road was supposed to block the rebels and attack them if required. The rest of Alpha Company was kept in reserve.

Captain Salaria and his troops reached the specified location with their armoured personnel carriers. They were positioned around 1,500 yards from the target. His rocket launcher team was soon able to get close enough to the rebels' armoured cars to destroy them. This unforeseen move left the Katangese confused and disorganised. Salaria felt that it was prudent to attack before the rebels reorganised.

“I am going in for attack. I am certain I will win.”Captain Gurbachan’s last words over the radio to another officer

This rifle and helmet marks the spot where Captain Salaria died.

With a small force of 19 he fought against a rebel force of 90 armed men. He charged towards them, engaging in a hand-to-hand kukri assault whilst shouting the Gorkha war cry, "Jai Mahakali, Ayo Gorkhali." Salaria and his men killed 40 rebels. Captain Gurbachan was shot twice in the neck but that did not deter his spirit. The rebels soon disintegrated.

His second-in-command rushed him to the airport hospital in an armoured personnel carrier. However, the captain succumbed to his injuries.

His sacrifice didn’t go in vain, and he was conferred with the Param Vir Chakra posthumously, making him the only defence personnel from both the NDA and UN Peacekeeping Force to earn such an honour.


Param Vir Chakra


For his valour and supreme sacrifice, he posthumously received the Param Vir Chakra, the highest military honour in India.

Here is an excerpt from the citation:

“Captain Salaria killed 40 of the enemy and knocked out the two armoured cars. This unexpected bold action completely demoralised the enemy who fled despite their numerical superiority and protected positions. Captain Salaria was wounded in his neck by a burst of automatic fire but continued to fight till he collapsed due to profuse bleeding. Captain Salaria’s gallant action prevented any enemy movement of the enemy force towards the main battle scene and thus contributed very largely to the success of the main battalion’s action at the roundabout and prevented the encirclement of UN Headquarters in Elizabethville. Captain Salaria subsequently died of his wounds.”


Captain Gurbachan’s supreme sacrifice is etched in history.

The Shipping Corporation of India Ltd (SCI), named fifteen of her Crude Oil Tankers in honour of the Param Vir Chakra recipients. The crude oil tanker named  “Capt. Gurbachan Singh Salaria, PVC” was delivered to SCI on 26-10-1984.


The courageous story of Capt Salaria was immortalized in the 1988 television serial, “Param Vir Chakra” by Chetan Anand. His role was essayed by the actor Brando Bakshi.


A square in NDA has been named as “Salaria Square” in his honour.

A stadium and a park have been set up by 14 Gurkha Training Centre at Subathu in Himachal Pradesh as a tribute to Capt Salaria.

The Army Postal Service issued a special cover on 05 Dec 1992 to honour him.

On his 81st birth anniversary, we pay tribute to Captain Gurbachan Singh Salaria and remember the brave young soldier, whose commitment to duty was of a greater priority than his own life.


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