पाणी जिम बहियो रगत, बलिदानी बीरोह।बृज प्रयाग सूं पण बड़ी, हल्दीघाटी नमोह।।
अर्थात जल के समान बलिदानी वीरों का रक्त प्रवाहित हुआ, वह धरती बृज और प्रयाग से भी अधिक पवित्र है।
हल्दीघाटी की इस माटी को शत शत नमन
मुगलों के लिए काल राजपूत शूरवीर हल्दिघाटी के भीम सरदारगढ के भीम सिंह डोडिया जी!
सरदारगढ़ रो शूरवीर , डोडियो सरदार ।मुग़ल मोकळा मारिया , छोड़ी नह तलवार ।।
जय राजपूताना _/\_जय मेवाड़ _/\_
फौजी जमावट"
* मेवाड़ी फौज की हरावल -
सबसे आगे हाकिम खां सूर ने हरावल का नेतृत्व किया। इनके साथ हरावल में
सलूम्बर के रावत कृष्णदास चुण्डावत,
देवगढ़ के रावत सांगा चुण्डावत,
सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया,
बदनोर के राव रामदास राठौड़ भी थे
* मुगल फौज की हरावल -
सबसे आगे सैयद हाशिम अपने 80 सबसे मजबूत सिपाहियों के साथ था
उसके साथ हरावल में राजा जगन्नाथ कछवाहा, मोहम्मद रफी बदख्शी, ख्वाजा गयासुद्दीन अली, आसफ खां आदि थे |
मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी भी हरावल के खास सैन्य में था |
* मुगल फौज का दायां पक्ष व मेवाड़ी फौज का बायां पक्ष :-
मुगल फौज के एक तरफ सैयद अहमद व बारहा के भाई थे,
जिनके सामने मेवाड़ी सेना में बायीं तरफ तीनों मानसिंह जी (
बड़ी सादड़ी के झाला मान अपने 150 सैनिकों के साथ,
देलवाड़ा के मानसिंह झाला व
महाराणा के मामा जालौर के मानसिंह सोनगरा) थे*
मुगल फौज का बायां पक्ष व मेवाड़ी फौज का दायां पक्ष :-
मुगल फौज के दूसरी तरफ
गाजी खां बदख्शी, शैखजादा, काजी खां, राजा लूणकरण थे(इन सभी की अपनी-अपनी फौजी टुकड़ी थी, जिनमें हल्दीघाटी मुहाने पर काजी खां की फौजी टुकड़ी तैनात थी)
इनके सामने मेवाड़ी सेना में दायीं तरफ
राजा रामशाह तोमर
अपने पुत्रों व 300 तोमर साथियों के साथ थे |
* मुगल फौज का मध्य भाग :-
मुगल फौज के बीचों बीच मानसिंह कछवाहों की भारी जमात के साथ था | मानसिंह मर्दाना नाम के हाथी पर सवार था | मानसिंह के ठीक आगे बहलोल खां नामी उजबेक तैनात था |
* मेवाड़ी फौज का मध्य भाग :-
मेवाड़ी सेना के बीचों बीच महाराणा प्रताप थे |
महाराणा प्रताप के साथ
भामाशाह कावडिया,
ताराचन्द कावडिया,
प्रताप सिंह तोमर आदि थे |
प्रताप सिंह तोमर शुरुआत में घोड़े पर सवार थे व इस युद्ध में हाथियों के दारोगा थे,
जो कि युद्ध के आखिरी वक्त में प्रसिद्ध रामप्रसाद नामी हाथी पर सवार हुए थे |
* चन्दावल :-
मुगल फौज में सबसे पीछे चन्दावल में
माधोसिंह कछवाहा, मेहतर खां वगैरह थे
मेवाड़ी सेना में सबसे पीछे
भीलू राणा पूंजा सोलंकी के नेतृत्व में
पुरोहित गोपीनाथ,
महता रत्नचन्द,
पुरोहित जगन्नाथ,
महासहानी जगन्नाथ,
जैसा बारहठ आदि थे
* मुगल फौज में सबसे मजबूत टुकड़ी
सैयद अहमद व बारहा के भाईयों की थी और
मेवाड़ी फौज में सबसे मजबूत टुकड़ी
तोमर वंश की थी, जो आखिर तक टिकी रही
राणा री हुंकार ~
.
"कण-कण चंदन हल्दीघाटी,
हाथां म शोभै भाला ।
निज भौम रुखाली शीश दवें,
रज शूरवीर मतवाळा ।।
आषाढ़ बदी 7 वि. सं. 1633 को प्रातः काल राणा प्रताप की सेना द्वारा हल्दीघाटी से बाहर निकलकर मुगल सेना पर आक्रमण करने के साथ मेवाड़ - मुगल युद्ध (हल्दीघाटी युद्ध) का आरंभ हुआ।
"21 जून, 1576 ई.
"हल्दीघाटी का युद्ध"*
ये युद्ध सुबह लगभग 9-10 बजे से दोपहर 2-3 बजे तक 5 घन्टे तक चलामानसिंह के फौज जमाने के 3 घण्टे बाद हल्दीघाटी के मुहाने से एक हाथी मेवाड़ का झण्डा लहराता हुआ बाहर निकला और हाथी के पीछे हरावल की कमान सम्भाले हाकिम खां सूर थे | फिर महाराणा प्रताप ने युद्धभूमि में प्रवेश किया |
* महाराणा प्रताप की सेना में भील, राजपूत, लुहार, ब्रामण, अफगान आदि थे
(हालांकि लुहार जाति के लोगों का काम महाराणा प्रताप व मेवाड़ी सेना के लिए हथियार बनाना था, फिर भी कुछ लुहारों ने युद्ध में भाग लिया | ये जाति आज भी घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करती है)
* अबुल फजल लिखता है
"मेवाड़ी फौज मैदान में जंग के मुताबिक सही नहीं जमाई गई थी, पर राणा ने गज़ब की तेजी दिखाते हुए अपनी फौज को जंग के मुताबिक जमा दी | सर झुकाने या जान देने का बाज़ार खुल गया | यहाँ जान सस्ती और इज्जत महंगी थी"
"हाकिम खां सूर और सैयद हाशिम के बीच हरावल की लड़ाई";
मेवाड़ी फौज की हरावल में हाकिम खां सूर के नेतृत्व में रावत कृष्णदास चुण्डावत, ठाकुर भीमसिंह डोडिया, रावत सांगा चुण्डावत, ठाकुर रामदास राठौड़ थे;
महाराणा प्रताप ने सबसे पहले मुगल फौज के हरावल दस्ते पर हमला करने के लिए हाकिम खां सूर को फौजी टुकड़ी समेत आगे भेजा;
पठान हाकिम खां सूर ने अपनी फौजी टुकड़ी को आक्रमण का आदेश देते वक्त कहा "आज देखता हूं दुश्मन फौज का कौनसा सिपाही हाकिम खां के हाथ से उसकी तलवार को अलग करता है, खुदा कसम आज इस पठान की तलवार मरने पर भी हाथ से नहीं छूटेगी";
अबुल फजल लिखता है "दो खूनी समन्दरों की भिड़न्त ने सबको हैरान कर दिया | ज़मीन लाल रंग की लहरों से सन गई";
मेवाड़ की तरफ से हकीम खां सूर मुगल फौज की हरावल से भिड़ गएमुगल फौज की हरावल का नेतृत्व करने वाला सैयद हाशिम घोड़े से गिर गया | सैयद राजू ने उसे फिर घोड़े पर बिठाया |;
युद्ध में भाग लेने वाला मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है"हाकीम खां सूर नामी अफगान ने पहाड़ों से निकलकर हमारी हरावल पर हमला किया | उसके हमले से शाही फौज की हरावल में गड़बड़ी मच गई और हमारी हरावल पूरी तरह पस्त होकर भाग निकली |
शाही फौज की हरावल ने 5-6 कोस तक पीछे मुड़कर भी नहीं देखा, पता नहीं मौत कहाँ से बरस पड़े |
शाही फौज के बाईं तरफ तैनात राजा लूणकरण कछवाहा अपने साथी राजपूतों समेत समेत भेड़ों के झुण्ड की तरह भागकर हरावल के बीच में से निकलकर शाही फौज के दाहिनी तरफ खड़े बहादुर सैयदों के पीछे जाकर छिप गया"
"बदनोर के ठाकुर रामदास राठौड़ का बलिदान"
मुगल फौज की हरावल में केवल जगन्नाथ कछवाहा ही नहीं भागा था
वीर जयमल राठौड़ के पुत्र ठाकुर रामदास राठौड़ जगन्नाथ कछवाहा के साथ मुकाबले में वीरगति को प्राप्त हुए
ठाकुर रामदास राठौड़
जगन्नाथ कछवाहा गम्भीर रुप से घायल हुआ
"अबुल फजल लिखता है "
"जगन्नाथ कछवाहा तकरीबन मरने ही वाला था कि मानसिंह ने आगे बढ़कर उसे बचाया और उसे पीछे ले गया"
"सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया का बलिदान"
मानसिंह जब जगन्नाथ कछवाहा को बचाने आगे आया तब उसका मुकाबला ठाकुर भीमसिंह डोडिया से हुआ
भीमसिंह डोडिया ने प्रतिज्ञा की थी की
"मानसिंह जिस हाथी पर बैठकर आएगा, उसी पर भाला मारुंगा"भीमसिंह डोडिया ने हाथी पर भाला मारा, पर इस मुकाबले में वे वीरगति को प्राप्त हुए इसलिए हल्दीघाटी के युद्ध के लिए कहा गया है कि:-
पाणी जिम बहियो रगत, बलिदानी बीरोह।बृज प्रयाग सूं पण बड़ी, हल्दीघाटी नमोह।।
अर्थात जल के समान बलिदानी वीरों का रक्त प्रवाहित हुआ, वह धरती बृज और प्रयाग से भी अधिक पवित्र है। हल्दीघाटी की इस माटी को शत शत नमन.....
अगले भाग को पढ़ने के लिए नीचे दिए पृष्ट का प्रयोग करें
http://kshatriyahistory1.blogspot.com/2017/01/27.html?m=1
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