THAKUR BHIM SINH DODIYA- SAWAI MANSINGH
दूसरा सन्धि प्रस्ताव :-
दूत :- कुंवर मानसिंह कछवाहा (आमेर)जून, 1573 ई.
आमेर के कुंवर मानसिंह ने मुगल फौज समेत डूंगरपुर पर हमला कर रावल आसकरण को पहाड़ियों में खदेड़ दिया | रावल आसकरण के 2 पुत्र बाबा और दुर्गा वीरगति को प्राप्त हुए |मानसिंह डूंगरपुर के रावल आसकरण को पराजित करने के बाद जरुरत से ज्यादा फौज को अजमेर भेजकर खुद अपने कुछ साथियों के साथ महाराणा प्रताप को समझाने उदयपुर पहुंचारावत कृष्णदास चुण्डावत ने महाराणा प्रताप को मानसिंह से न मिलने की सलाह दी, पर महाराणा प्रताप ने मानसिंह से मिलना तय कियाउदयपुर पहुंचकर मानसिंह की मुलाकात महाराणा प्रताप से हुई | मानसिंह ने महाराणा प्रताप को अकबर की अधीनता स्वीकार करने की सलाह दी, जिसे महाराणा ने अस्वीकार किया। महाराणा प्रताप ने मानसिंह के लिए उदयसागर झील के सामने वाले टीले पर भोजन का प्रबन्ध करवाया। महाराणा प्रताप ने बीमारी (अजीर्ण/गिरानी) का बहाना बनाकर स्वयं ना जाकर अपने 14 वर्षीय पुत्र कुंवर अमरसिंह को मानसिंह के साथ भोजन करने भेजा। महाराणा ने सरदारगढ़ के भीमसिंह डोडिया को भी कुंवर अमरसिंह के साथ भेजा।
आमेर के मानसिंह कछवाहा को सन्धि प्रस्ताव खारिज कर लौटाते हुए कुंवर अमरसिंह मेवाड़ व ठाकुर भीमसिंह डोडिया
मानसिंह ने इसे अपना अपमान समझा और भीमसिंह डोडिया की मार्फत (जरिए) महाराणा प्रताप को कहलवाया कि "गिरानी की दवा मैं खूब जानता हूँ, अब तक तो हमने आपकी भलाई चाही थी, पर आगे को होशियार रहना चाहिए"
महाराणा प्रताप जी ने भी डोडिया भीम की मार्फत मानसिंह से कहलवाया कि "जो आप अपनी ताकत से आवेंगे, तो मालपुरे तक पेशवाई की जावेगी और जो अपने फूफा के जोर से आवेंगे, तो जहां मिलेंगे वहां खातिर करेंगे"(पेशवाई व खातिर से महाराणा का अर्थ युद्ध से है व फूफा का अर्थ अकबर से है)।
इसके बाद मानसिंह बिना भोजन किए ही उठ गया व ये कहते हुए जाने लगा कि "अगली बार भोजन करने अवश्य आउंगा"(मानसिंह का भोजन से अर्थ युद्ध से है) तभी भीमसिंह डोडिया व मानसिंह में और तकरार हो गई। भीमसिंह डोडिया ने मानसिंह से कहा कि "जिस हाथी पर चढ़कर तुम आओगे, उसी पर भाला न मारा तो मेरा नाम भी भीमसिंह नहीं। जब लड़ने आओ तब अपने फूफा को लाना मत भूलना" मानसिंह गुस्से में फतेहपुर सीकरी निकल गया और अकबर की माँ हमीदा बानो बेगम से सारा हाल कह सुनाया। इसके बाद मानसिंह अकबर के पास पहुंचा और यही बात कही, तो अकबर ने मानसिंह को तसल्ली दी, पर अकबर इस बात से मन-ही-मन बहुत खुश हुआ।
अबुल फजल लिखता है "मानसिंह राणा को समझाने के लिए डूंगरपुर से उदयपुर गया। उदयपुर राणा का वतन था। वह मानसिंह की खातिरदारी करने उसे अपने घर ले गया। राणा ने अदब के साथ खिलअत पहनी, पर जब मानसिंह ने उसे शाही दरबार में जाने को कहा, तो वह नालियाकती से उजर करने लगा कि बादशाही हुजूर में मेरे जाने का मौका अभी नहीं है"(अबुल फजल ने पूरी बात नहीं लिखी या तो मानसिंह ने ये बदनामी वाली बात पूरी नहीं बतायी होगी या फिर अबुल फजल ने बादशाही बड़प्पन दिखाने के लिए ये बात छुपायी होगी। महाराणा प्रताप बादशाही खिलअत से सख्त नफरत करते थे, इसलिए ये बात गलत साबित होती है। यदि महाराणा ने खिलअत पहनी होती, तो अकबर को शेष 2 सन्धि प्रस्ताव भेजने की जरुरत न पडती)ग्रन्थ वीरविनोद में कविराज श्यामलदास लिखते हैं"मानसिंह के जाने के बाद महाराणा प्रताप ने खाने की चीजें, सोने-चाँदी के बर्तन वगैरह तालाब में फिंकवा दिये। मानसिंह जहां खड़ा था, महाराणा ने वो जगह 2 गज खुदवाकर वहां गंगाजल छिड़कवाया। महाराणा के कहे मुताबिक सब राजपूतों ने स्नान करके कपड़े बदले"
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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