1534 ई.
* गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने इक्रार को तोड़ते हुए दोबारा मांडू से निकलकर मेवाड़ पर चढाई की
बहादुरशाह ने चढाई से पहले ही कहा कि "चित्तौड़ का ये किला फतह कर हम रुमी खां को सौंप देंगे"
रुमी खां बहादुरशाह का सेनापति था
* बहादुरशाह ने हूमायुँ को चित्तौड़ विजय की रुकावट समझकर तातार खां को 40,000 की फौज देकर आगरा रवाना किया
तातार खां 30,000 सैनिकों समेत कत्ल हुआ
* बहादुरशाह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर चढाई की
* हूमायुँ ने बहादुरशाह को खत लिखकर हमले की धमकी दी
बहादुरशाह ने अपने सिपहसालारों से पूछा कि पहले हुमायूं से लड़ें या चित्तौड़ पर कब्जा करें, तो सभी ने कहा कि पहले चित्तौड़ पर कब्जा करना चाहिये, क्योंकि हुमायूं मुसलमान है, इस खातिर वो हिन्दुओं पर चढाई के वक्त हमसे लड़ने नहीं आएगा
बहादुरशाह ने भी हूमायुँ को खत लिखा कि "मैं चित्तौड़ पर चढाई कर हिन्दुओं को पकड़ता हूँ | अगर तुम उनकी मदद करना चाहते हो, तो आकर देखो कि मैं ये किला किस तरह लेता हूँ"
हालांकि हूमायुँ नहीं आया
* महारानी कर्णावती ने मेवाड़ी फौज के उतरे हुए चेहरे देखकर कहा कि "अब तक तो चित्तौड़ सिसोदियों के कब्जे में रहा, परन्तु इस वक्त किला जाने का दिन आया सा मालूम होता है | मैं किला तुम लोगों को सौंपती हूँ, चाहे रखो चाहे जाने दो | विचार करना चाहिए कि कदाचित् किसी पीढ़ी में मालिक बुरा ही हुआ, तो भी जो राज्य परम्परा से चला आता है, उसके हाथ से निकल जाने में तुम लोगों की बड़ी बदनामी होगी"
* मेवाड़ के सर्दारों ने कुंवर विक्रमादित्य व कुंवर उदयसिंह को बूंदी भेज दिया
* बूंदी की तरफ से अर्जुन हाडा 5000 की फौज समेत चित्तौड़ पहुंचे
* देवलिया रावत बाघसिंह :- इन्हें महाराणा का प्रतिनिधि चुना गया और मेवाड़ की तरफ से इस युद्ध का नेतृत्व इन्होंने ही किया | रावत बाघसिंह ने इससे पहले बयाना के युद्ध में महाराणा सांगा का साथ देते हुए बड़ी बहादुरी दिखाई थी | मेवाड़ के महाराणा "दीवान" कहलाते थे, इस खातिर रावत बाघसिंह भी दीवान कहलाए |
रावत बाघसिंह ने सभी सर्दारों से कहा कि "आप सभी ने मुझे अव्वल दर्जे का अधिकार दिया है | मुझको आगे रहकर लड़ना चाहिये, इस खातिर मैं भैरव पोल दरवाजे के बाहर तैनात रहूंगा"
> भैरव पोल के भीतर की तरफ सौलंकी भैरवदास को तैनात किया गया
> राजराणा सज्जा झाला व उनके भतीजे सिंहा झाला को हनुमान पोल पर तैनात किया
> गणेश पोल पर डोडिया भाण को तैनात किया
> रावत नरबद वगैरह बहुत से मुख्य राजपूत सर्दारों को दुर्ग में अलग-अलग जगह तैनात किया
* लकड़ियों की कमी के कारण महारानी कर्णावती ने लगभग 1200 क्षत्राणियों के साथ बारुद के ढेर पर बैठकर आग लगाकर जौहर किया, जो चित्तौड़ व मेवाड़ के इतिहास का दूसरा जौहर कहलाया
(प्रमाण के तौर पर इस जौहर की राख चित्तौड़ में मौजूद थी)
* बहादुरशाह ने तोपों से पाडनपोल, सूरजपोल, लाखोटाबारी पर हमला किया, जिससे किले वालों ने दरवाजे खोल दिये
चित्तौड़ के दूसरे साके में वीरगति को प्राप्त होने वाले मेवाड़ी योद्धा -
* देवलिया के रावत बाघसिंह - मेवाड़ी फौज के नेतृत्वकर्ता रावत बाघसिंह पाडन पोल दरवाजे के बाहर बादशाही फौज द्वारा किए गए तोप के हमले से वीरगति को प्राप्त हुए | पाडन पोल दरवाजे के बाहर रावत बाघसिंह का स्मारक बना हुआ है | रावत बाघसिंह महाराणा मोकल के पौत्र थे |
* देसूरी के सौलंकी भैरवदास - भैरवपोल दरवाजे के बाहर
(इस दरवाजे का नाम पहले कुछ और था, पर भैरवदास के यहां वीरगति पाने के बाद इसका नाम भैरव पोल रखा गया)
* देलवाड़ा के राजराणा सज्जा झाला व उनके भतीजे सिंहा झाला - हनुमान पोल दरवाजे के बाहर
* बड़ी सादड़ी के तीसरे राजराणा असा झाला
* सोनगरा माला बालावत
* अर्जुन हाड़ा - बूंदी के राव सुल्तान की उम्र 9 वर्ष ही थी, जिस वजह से उनकी जगह अर्जुन हाड़ा ने युद्ध में भाग लिया | बादशाही फौज ने बीकाखोह की तरफ सुरंग खोदी और उसमें बारुद भरकर विस्फोट किया, जिससे 45 हाथ दीवार उड़ गई और अर्जुन हाड़ा अपने साथी राजपूतों समेत वीरगति को प्राप्त हुए |
* रावत देवीदास सूजावत
* रावत बाघ सूरचंदोत
* डोडिया भाण - गणेश पोल दरवाजे के बाहर लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए | इनके वंशज सरदारगढ़ में हैं |
* रावत नंगा चुण्डावत - इनके वंशज आमेट व देवगढ़ में हैं |
* रावत पचायण
* राठौड़ उदैदास मोजावत
* बेदला के दूसरे राव साहब संग्रामसिंह चौहान
* सलूम्बर के चौथे रावत साहब दूदा चुण्डावत
* रावत कर्मा चुण्डावत - सलूम्बर रावत दूदा के भाई | इनके वंशज साकरिया खेड़ी, भोपतखेड़ी, शोभजी का खेड़ा, चुण्डावतों की खेड़ी व देवाली में हैं |
* कुंवर सत्ता चुण्डावत - सलूम्बर रावत रतनसिंह के पुत्र व रावत दूदा के भाई
8 मार्च, 1535 ई.
* चित्तौड़ के दूसरे साके की लड़ाई समाप्त हुई
* इसी वर्ष मुगल बादशाह हुमायूं ने बहादुरशाह गुजराती को पराजित किया
* मौके का फायदा उठाकर मेवाड़ी बहादुरों ने चित्तौड़ दुर्ग पर कब्जा किया और फिर से कुंवर विक्रमादित्य को चित्तौड़ की राजगद्दी पर बिठा दिया
No comments:
Post a Comment