Wednesday, July 5, 2017

जब हिन्दू वीरांगना ‘किरण देवी’ से तुर्क लुटेरे जलालुदीन अकबर को मांगनी पडी अपने प्राणों की भीख

This incident referred to in former prime minister of india Atal Bihari Vajpayee ji's poem :-
'हिंदू तन मन, हिंदू जीवन'
'मैं वीरपुत्र मेरी जननी के जगती में जौहर अपार
अकबर के पुत्रों से पूछो क्या याद उन्हें मीना बझार...'



राजपूत पुरुष जीतनी अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे उतनी ही प्रसिद्ध थी राजपूती महिलायें। इतिहास में अनेक ऐसी कहानियां है जो इनकी वीरता व अदम्य साहस को प्रमाणित करती है। आज हम आपको एक ऐसी ही ऐतिहासिक कहानी बताएँगे जब एक राजपूत वीरांगना ‘किरण देवी’ ने तुर्क लुटेरे जलालुुुह्दी अकबर को अपने प्राणों की भीख मांगने पर मजबूर कर दिया था !


अकबर प्रतिवर्ष देहली में नौरोज के मेले का आयोजन करता था, जिसमें वह सुंदर युवतियों को खोजता था, और उनसे अपने शरीर की भूख शांत करता है। एक बार अकबर नौरोज के मेले में बुरका पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर ही रहा था, कि उसकी नजर मेले में घूम रही किरणदेवी पर जा पडी।


वह किरणदेवी के रमणीय रूप पर मोहित हो गया। किरणदेवी मेवाड के कुुँवर जगमाल की बहन थी(पुष्टि नही) और उसका विवाह बीकानेर के प्रसिद्ध राजपूत वंश में उत्पन्न पृथ्वीराज राठौर के बड़े भाई के साथ हुआ था।




महाराज पृथ्वीराज बीकानेर का विवाह जेसलमेर के महारावल हरराज की पुत्री चांपादे ओर लालादे के साथ हुआ था ना कि महाराज शक्तिसिंह की पुत्री के साथ ,  ओर ना हि महाराज शक्ति सिंह जी की किरणवती नामक कोई पुत्री थी।

जलालुदीन अकबर ने बाद में किरणदेवी का पता लगा लिया कि, यह तो अपने ही सेवक की बीबी है, तो उसने उनके पति को जंग पर भेज दिया और किरण देवी को अपनी दूतियों के द्वारा, बहाने से महल में आने का निमंत्रण दिया।

अब किरणदेवी पहुंची अकबर के महल में, तो स्वागत तो होना ही था और इन शब्दो में हुआ, ‘‘हम तुम्हें अपनी बेगम बनाना चाहते हैं !’’ कहता हुआ अकबर आगे बढा, तो किरणदेवी पीछे को हटी…अकबर आगे बढते गया और किरणदेवी उल्टे पांव पीछे हटती गयी…परंतु कब तक हटती पीछे…उसकी कमर दीवार से जा लगी।

‘बचकर कहाँ जाओगी,’ अकबर मुस्कुराया, ‘ऐसा मौका फिर कब मिलेगा, तुम्हारी जगह झोंपडे में नहीं हमारा ही महल में है’

‘हे भगवान’, किरणदेवी ने मन-ही-मन में सोचा, ‘इस राक्षस से अपनी इज्जत कैसे बचाऊँ ?’ ‘हे धरती माता, किसी म्लेच्छ के हाथों अपवित्र होने से पहले मुझे सीता की तरह अपनी गोद में ले लो !’ व्यथा से कहते हुए उसकी आँखों से अश्रूधारा बहने लगी और निसहाय बनी धरती की ओर देखने लगी, तभी उसकी नजर कालीन पर पडी। उसने कालीन का किनारा पकडकर उसे जोरदार झटका दिया।

उसके ऐसा करते ही अकबर जो कालीन पर चल रहा था, पैर उलझने पर वह पीछे सरपट गिर पड गया, ‘या अल्लाह !’ उसके इतना कहते ही किरणदेवी को संभलने का मौका मिल गया और वह उछल कर अकबर की छाती पर जा बैठी और अपनी आंगी से कटार निकाल कर उसे अकबर की गर्दन पर रखकर बोली, अब बोलो शहंशाह, तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है ? किसी स्त्री से अपनी हवस मिटाने की या कुछ और ?’’ एकांत महल में गर्दन से सटी कटार को और क्रोध में दहाडती किरणदेवी को देखकर अकबर भयभीत हो गया।



एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में लिखा है ….

‘‘सिंहनी-सी झपट, दपट चढी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट ! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर ! आज राजपूतानी से पाला पडा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख ! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है !”

“मुझे माफ कर दो दुर्गा माता,’’ मुगल सम्राट अकबर गिडगिडाया, ‘‘तुम निश्चय ही दुर्गा हो, कोई साधारण नारी नहीं, मैं तुमसे प्राणों की भीख माँगता हूँ। यही मैं मर गया तो यह देश अनाथ हो जाएगा !’ ‘ओह !’ किरणदेवी बोली, ‘‘देश अनाथ हो जाएगा, जब इस देश में म्लेच्छ आक्रांता नहीं आए थे, तब क्या इसके सिर पर किसी के आशीष का हाथ नहीं था ?’’ ‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ अकबर फिर गिडगिडाया, ‘‘पर आज देश की ऐसी स्थिति है कि मुझे कुछ हो गया तो यह बर्बाद हो जाएगा !’’ ‘‘अरे मूर्ख देश को बर्बाद तो तुम कर रहे हो, तुम्हारे जाने से तो यह आबाद हो जाएगा !

‘‘महाराणा जैसे बहुत हैं, अभी यहाँ स्वतंत्रता के उपासक !’’ ‘‘हाँ हैं,’’ वह फिर बोला, ‘‘परंतु आर्य कभी किसी का नमक खाकर नमक हरामी नहीं करते !’’ ‘‘नमक हरामी,’’ किरणदेवी बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो ?’’ ‘‘तुम्हारे पति ने रामायण पर हाथ रखकर मरते समय तक वफादारी का कसम खायी थी और तुमने भी प्रीतिभोज में मेरे यहाँ भोजन किया था, फिर यदि तुम मेरी हत्या कर दोगी तो क्या यह विश्वासघात या नमकहरामी नहीं होगी !’’



विश्वासघाती से विश्वासघात करना कोई अधर्म नहीं राजन,’’ किरणदेवी फिर गरजी, ‘‘तुम कौनसे दूध के धुले हो ?’’ ‘‘हाँ मैं दूध का धुला हुआ नहीं, पर मुझे क्षमा कर दो, हिन्दुओं के धर्म के दस लक्षणों में क्षमा भी एक है, इसलिए तुम्हें तुम्हारे धर्म की कसम, मुझे अपनी गौ समझकर क्षमा कर दो !’’

पापी अपनी तुलना हमारी पवित्र गौ से मत करो,’’ फिर वह थोडी सी नरम पड गयी, ‘‘यदि तुम आज अपनी मौत और मेरी कटारी के बीच में धर्म और गाय को नहीं लाते तो मैं सचमुच तुम्हें मारकर धरती का भार हल्का कर देती !’’ फिर चेतावनी देते हुए बोली, ‘‘आज भले ही सारा भारत तुम्हारे पांवों पर शीश झुकाता हो, किंतु मेवाड का सिसोदिया वंश आज भी अपना सिर उचा किए खडा है। मैं उसी राजवंश की कन्या हूँ।

मेरी धमनियों में बप्पा रावल और राणा सांगा का रक्त बह रहा है। हम राजपूत रमणियाँ अपने प्राणों से अधिक अपनी मर्यादा को मानती हैं और उसके लिए मर भी सकती हैं और मार भी सकती हैं !

यदि तु आज बचना चाहता है तो अपनी माँ और कुरान की सच्ची कसम खाकर प्रतिज्ञा कर कि, आगे से नौरोज मेला नहीं लगाएगा और किसी महिला की इज्जत नहीं लूटेगा। यदि तुझे यह स्वीकार नहीं है, तो मैं अभी तेरे प्राण ले लूंगी, भले ही तूने हिन्दू धर्म और गौ की दुहाई दी हो। मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है !


जलालुदीन अकबर को वास्तव में अनुभव हुआ किन्तु मृत्यु के पाश में जकडा जा चुका है। जीवन और मौत का फासला मिट गया था। उसने माँ की कसम खाकर किरणदेवी की बात को मान लिया, मुझे मेरी माँ की सौगंध, मैं आज से संसार की सब स्त्री जाति को अपनी बेटी समझूँगा और किसी भी स्त्री के सामने आते ही मेरा सिर झुका जाएगा, भले ही कोई नवजात कन्या भी हो और कुरान-ए-पाक की कसम खाकर कहता हूँ कि आज ही नौरोज मेला बंद कराने का फरमान जारी कर दूँगा !”

वीर पतिव्रता किरणदेवी ने दया करके अकबर को छोड दिया और तुरन्त अपने महल में लौट आयी। इस प्रकार एक पतिव्रता और साहसी महिला ने प्राणों की बाजी लगाकर न केवल अपनी इज्जत की रक्षा की, अपितू भविष्य में नारियों को उसकी वासना का शिकार बनने से भी बचा लिया। और उसके बाद वास्तव में नौरोज मेला बंद हो गया। अकबर जैसे सम्राट को भी मेला बंद कर देने के लिए विवश कर देनेवाली इस वीरांगना का साहस प्रशंसनीय है !

महाराज पृथ्वीराज बीकानेर का विवाह जेसलमेर के महारावल हरराज की पुत्री चांपादे ओर लालादे के साथ हुआ था ना कि महाराज शक्तिसिंह की पुत्री के साथ ,  ओर ना हि महाराज शक्ति सिंह जी की किरणवती नामक कोई पुत्री थी 

(संधर्भित पुस्तके – प्रख्यात ऐतिहासिक शोध ग्रंथ: वीर विनोद, उदयपुर से प्रकाशित प्रचंड अग्नि, हिन्दी साहित्य सदन, नई देहली)
लेखिका – फरहाना ताज



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