नाके भूमितले फणीश-भवने सिद्धि: सदा सेविता।यासंख्ये प्रबलारिवृन्द हरणी, दुर्गेव दुर्गावती ।।
रानी दुर्गावती सुंदर, निर्भय, चेहरे पर तेज, स्वभाव से दयालु, स्वाभिमान से ओतप्रोत, प्रजापालक, प्रणपालक, हाजिरजवाबी, धार्मिक, बहादुर, तीर-बन्दूक की अचूक निशानेबाज़, हाथियों की शौकीन, हिंसक जीव-जंतुओं के आखेट की प्रबल इच्छुक, कुशल प्रशासक, राज्य प्रबंध में निपुण व एक योग्य माँ थीं। रानी दुर्गावती अपने विशाल राज्य के हर जागीरदार को उसके नाम से जानती थीं। रानी ने आदिवासी जातियों से मधुर संबंध बनाए रखे और राज्य के पहाड़ी इलाकों समेत चप्पे-चप्पे से परिचित थीं।
रानी दुर्गावती जी के पिता :- रानी दुर्गावती के पिता महोबा के पास राठ के चंदेल राजा शालिवाहन थे, परन्तु विंसेट स्मिथ, केशवचंद्र मिश्र आदि इतिहासकारों ने कालिंजर के राजा कीरत सिंह को रानी दुर्गावती का पिता होना लिखा है। कुतुबउद्दीन एबक के आक्रमण के समय चंदेल राजपूतों ने महोबा छोड़कर कालिंजर में अपना राज कायम किया, लेकिन चंदेलों की एक शाखा महोबा में ही रही और इसी शाखा में राजा शालिवाहन हुए। कालिंजर में स्थापित चंदेल शाखा 15वीं सदी तक बनी रही, तत्पश्चात वहां भी राजा शालिवाहन का अधिकार हो गया।
रानी दुर्गावती की बहन :- कुछ इतिहासकारों ने कमलावती को रानी दुर्गावती की बहन होना लिखा है, जबकि कुछ का मानना है कि ये रानी दुर्गावती की सगी बहन नहीं थी। रानी दुर्गावती के ससुर :- राजा संग्रामशाह :- ये अमन दास नाम से भी जाने जाते थे। इनके अधिकार में 52 दुर्ग थे। सास :- रानी पद्मावती।
पति :- राजा दलपतिशाह :- राजा संग्रामशाह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दलपतिशाह गद्दी पर बैठे। इनका विवाह रानी दुर्गावती से हुआ। ये सिंगोरगढ़ (दमोह) में रहा करते थे। रानी दुर्गावती के गुरु :- रानी दुर्गावती के गुरु गोस्वामी विट्ठलदास जी थे, जो वल्लभ संप्रदाय के संपादक वल्लभाचार्य के पुत्र थे। रानी दुर्गावती ने इनको 108 गांव दान में दिए थे, जो गोस्वामी जी ने तेलंग ब्राह्मणों में बांट दिए। ये मेवाड़ की महारानी अजबदे बाई जी के भी गुरु थे।
प्रिय हाथी :- रानी दुर्गावती के प्रिय हाथी का नाम सरमन था, जो उस राज्य के सभी हाथियों में सर्वश्रेष्ठ था। युद्ध के समय रानी दुर्गावती इसी हाथी पर सवार हुआ करती थीं। आश्रित लेखक :- रानी दुर्गावती के दरबारी विद्वान पदमनाथ भट्टाचार्य ने ‘दुर्गावती विलास’ नामक रचना की।
रानी दुर्गावती जी के हाथी सरमन की प्रतिमा
रानी दुर्गावती का व्यक्तित्व :-
5 अक्टूबर, 1524 ई. – रानी दुर्गावती का जन्म :- रानी दुर्गावती का जन्म कालिंजर दुर्ग में दुर्गाअष्टमी के दिन होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। हालांकि इनके जन्म का एक अन्य चर्चित किस्सा कुछ इस तरह है :-
चंदेल राजा शालिवाहन की कोई संतान नहीं थी। कालिंजर दुर्ग में दुर्गादेवी का एक मंदिर था। तो लोगों में उस वक़्त एक धारणा थी कि जो कोई भी निसंतान जोड़ा मंदिर जाकर अपनी होने वाली पहली संतान को दुर्गादेवी की गोद में समर्पित करने का संकल्प लेता है, उसे संतान अवश्य होती है।
अर्थात् पहली संतान को मढ़िया में रखकर द्वार हमेशा के लिए बंद कर दिया जाता है और उस शिशु का दम घुट जाता है। राजा शालिवाहन ने अपनी रानी के साथ मंदिर जाकर संकल्प किया और उन्हें कुछ समय बाद पुत्री के रूप में पहली संतान हुई। जिसे राजा ने संकल्प करने से कई बार मना किया, लेकिन रानी नहीं मानी। राजा द्वारा मना करते-करते कई साल गुजर गए और रानी दुर्गावती बड़ी हो गईं और उनके रूप व गुण की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी।
बहरहाल, सत्य जो भी हो, मुगल सल्तनत को चुनौती देने के लिए एक महान वीरांगना जन्म ले चुकी थी। रानी दुर्गावती जी का जीवन शुरू से ही संघर्षमय रहा।
1541 ई. में गोंडवाना के राजा संग्रामशाह का देहांत हुआ और उनके पुत्र दलपतिशाह गोंडवाना के शासक बने। दलपतिशाह के छोटे भाई चंद्रशाही नाराज़ होकर महाराष्ट्र चले गए, जहां उन्होंने चंद्रपुर में अपना राज कायम किया।
1542 ई. – रानी दुर्गावती का विवाह :- रानी दुर्गावती गोंडवाना के शासक राजा दलपतिशाह से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन इस विवाह के लिए उनके पिता राजा शालिवाहन राजी नहीं हुए और उन्होंने एक स्वयंवर रखा, जिसमें दलपतिशाह को न्यौता नहीं भेजा। रानी दुर्गावती भागकर विवाह करने के पक्ष में नहीं थीं, इसलिए उन्होंने दलपतिशाह को पत्र लिखा, जिसमें कहा कि वे अपने पराक्रम और वैभव से स्वयं को साबित करते हुए मेरा हरण करे।
रानी दर्गावती जी
स्वयंवर के अवसर पर राजा दलपतिशाह ने 12 हजार की फौज समेत हमला किया और विरोधी पक्षों पर जोर जमाते हुए कुछ को पराजित कर दिया। फौज की कमी के चलते राजा शालिवाहन भी कुछ न कर सके और दलपतिशाह रानी दुर्गावती को साथ ले गए। रानी दुर्गावती का विवाह 18 वर्ष की उम्र में 25 वर्षीय दलपतिशाह के साथ हुआ।
1543 ई. में राजा दलपतिशाह व रानी दुर्गावती के पुत्र वीर नारायण का जन्म हुआ। 1546 ई. में गढ़ा राज्य के प्रतापगढ़ पड़रिया के ज़मींदार ने विरोध किया, तो राजा दलपतिशाह ने उसे हटाकर श्यामचंद्र को वहां की ज़मींदारी सौंपी। राजा दलपतिशाह ने अपनी राजधानी गढ़ा से सिंगोरगढ़ स्थापित कर ली।
राजा दलपतिशाह ने उमर खां रूहिल्ला नामक आक्रांता को पराजित किया। राजा दलपतिशाह के शासनकाल में आधारसिंह का योगदान महत्वपूर्ण रहा। 1548 ई. में राजा दलपतिशाह का देहांत हो गया। इनका शासनकाल मात्र 7 वर्ष रहा। इस समय उनके पुत्र वीर नारायण मात्र 5 वर्ष के थे।
आधार कायस्थ और मान ब्राह्मण की सलाह से राज्य की बागडोर रानी दुर्गावती ने संभाली और वीर नारायण को राजा की पदवी दे दी। रानी दुर्गावती का देवर चंद्रशाही मौके का फायदा उठाकर गोंडवाना का उत्तराधिकारी बनने के इरादे से आया, लेकिन प्रजा के विरोध के कारण उसे भागकर चांदा में शरण लेनी पड़ी।
रानी दुर्गावती ने सिंगौरगढ़ के स्थान पर चौरागढ़ (वर्तमान मध्य प्रदेश में स्थित) को राजधानी बनाई। सतपुड़ा पर्वत के शिखर पर स्थित चौरागढ़ दुर्ग बहुत मजबूत था।
मियानां आक्रमण :- होशंगाबाद के मियानां अफगानों के सरदार महंत खां की मौत के बाद नेतृत्वविहीन अफगानों के दल ने गढ़ कटंगा पर एक रानी का राज होने की ख़बर सुनकर बिना विचारे गढ़ा पर हमला कर दिया। रानी दुर्गावती की सेना ने मियानां अफगानों को बुरी तरह पराजित किया।
इनमें से कई अफगान भाग निकले और बचे-खुचे अफगानों ने रानी की अधीनता स्वीकार की और सेना में भर्ती हो गए। शमशेर खां मियानां, मियां मिकारी, खान जहां आदि रानी दुर्गावती की फौज में प्रमुख अधिकारियों में से थे।
1556 ई. – रघुनंदन राय की नाराजगी :- राजपुरोहित महेश ठाकुर हमेशा रानी दुर्गावती को पुराण सुनाया करते थे, लेकिन एक दिन किसी कारण से नहीं आ पाए, तो उन्होंने अपने शिष्य रघुनंदन राय को भेज दिया। रानी को रघुनंदन राय की भाषा क्लिष्ट लगी और रानी ने कुछ आक्षेप किया।
इस बात से नाराज होकर रघुनंदन राय बस्तर के राजा के यहां चले गए, जहां उन्हें 7 हाथी देकर सम्मानित किया गया। रघुनंदन राय ने वापिस लौटकर एक हाथी रानी दुर्गावती को भेंट किया व शेष हाथी अपने गुरु महेश ठाकुर को दान कर दिए। रघुनंदन राय अकबर के पास चले गए, जहां अकबर ने उनको मिथिला की जागीर दी।
बाज बहादुर का पहला हमला :- यह घटना 1556 से 1561 ई. के बीच की है। मालवा के बाज बहादुर ने गोंडवाना पर हमला किया। रानी दुर्गावती ने बाज बहादुर को बुरी तरह परास्त किया। इस लड़ाई में बाज बहादुर का चाचा फतह खां मारा गया।
बाज बहादुर का दूसरा हमला :- तारीख-ए-फरिश्ता में फरिश्ता लिखता है कि “रानी दुर्गावती से पहली दफ़ा शिकस्त खाकर बाज बहादुर सारंगपुर लौट आया और उसने गढ़ा पर हमला करने का इरादा किया। गढ़ा में कदम रखते ही उसे रानी दुर्गावती की फौज से लोहा लेना पड़ा। एक दर्रे के सिरे पर रानी की फौज से टक्कर हुई, जिसमें बाज बहादुर भाग निकला। लड़ाई की शुरुआत में ही बाज बहादुर की फौज घेर ली गई। उसकी फौज के बहुत से आदमी रानी ने बंदी बना लिए और बहुत से मौत के घाट उतार दिए। बाज बहादुर भागते हुए सारंगपुर पहुंचा। इस हार से बाज बहादुर ने खुद को बहुत ज़लील महसूस किया और खुद को हरम में कैद कर लिया। वह कई दिनों तक अपनी रानियों के बीच हरम में बैठा रहा।”
1562 ई. – रानी दुर्गावती के राज्य के आसपास मुगलों को आधिपत्य :- अकबर की धाय माँ माहम अनगा के बेटे आधम खां ने रानी दुर्गावती के शत्रु बाज बहादुर को पराजित किया। बाज बहादुर की प्रिय रानी रूपमती ने ज़हर खाकर आत्महत्या की।
बाज बहादुर भागकर मेवाड़ नरेश महाराणा उदयसिंह की शरण में चला गया। मालवा पर अकबर का अधिकार हुआ और रानी दुर्गावती के राज्य के आसपास मुगलों का आधिपत्य प्रारंभ हुआ।
1562-63 ई. – अकबर द्वारा रानी दुर्गावती का राज छीनने हेतु पहला कूटनीतिक प्रयास :- विशाल मुगल सल्तनत में मुगल बादशाह अकबर को रानी दुर्गावती के विस्तृत प्रदेश की स्वतंत्रता सहन नहीं हुई। इसके अतिरिक्त यह भी मान्यता है कि वह रानी दुर्गावती की सुंदरता के किस्से सुनने के बाद उन्हें पाना चाहता था।
रानी दुर्गावती जी का जन्म स्थान कालिंजर दुर्ग
अकबर ने गोप महापात्र और नरहरि महापात्र को दूत बनाकर रानी दुर्गावती के दरबार में भेजा। आधार कायस्थ ने आदर सहित इन्हें दरबार के भीतर बुलाया। इन दूतों ने आगरा लौटकर अकबर को रानी के राजकाज के बारे में बताया।
अकबर का दूसरा कूटनीतिक प्रयास :- अकबर ने आधार कायस्थ को मुगल दरबार में आमंत्रित किया और रानी से मुगल अधीनता स्वीकार करवाने का प्रस्ताव रखा। आधार कायस्थ ने अकबर के प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए कहा कि “हमारा प्रदेश स्वर्ण से संपन्न है, लेकिन शत्रुओं के लिए हमसे अधिक कटु और कोई नहीं।”
1562-63 ई. – अपने कूटनीतिक प्रयासों की विफलता से अकबर समझ चुका था कि रानी दुर्गावती एक स्वाभिमानी शासिका थीं, इसलिए उसने जान बुझकर रानी को एक पत्र भेजा, जिसमें रानी के प्रिय हाथी सरमन व मंत्री आधार कायस्थ की मांग की गई।
उस समय कोई भी शासक अन्य शासक पर सीधा हमला नहीं कर सकता था, क्योंकि इससे जनता व उच्च पदाधिकारियों में अपनी छवि खराब होने की संभावना रहती थी। हमले के लिए किसी न किसी कारण का होना जरूरी था, चाहे कारण छोटा ही क्यों न हो। रानी दुर्गावती ने अकबर की मांग ठुकरा दी, जिससे अकबर को गोंडवाना पर हमला करने का बहाना मिल गया।
1563 ई. – गोंडवाना के सम्बन्ध रतनपुर राज्य से ठीक नहीं थे, इसलिए रतनपुर के राजा कल्याण सहाय ने आगरा जाकर रानी दुर्गावती के खिलाफ़ अकबर के कान भरे।
सिंगौरगढ़ के अवशेष, जहां रानी दुर्गावती नववधू के रूप में आई थीं
1564 ई. – अबुल फज़ल लिखता है कि “गढ़ कटंगा पर दुर्गावती नाम की एक रानी का राज है, जो अपनी बहादुरी, अक्लमंदी और दरियादिली के लिए मशहूर है। बहुत सी काबिलियत की वजह से सत्तर हज़ार गांवों जितने बड़े इलाके में रानी का बोलबाला है। रानी दुर्गावती बन्दूक और तीर से अपने अचूक निशाने के लिए भी मशहूर है।”
अबुल फ़ज़ल आगे लिखता है कि “रानी को जहां कहीं शेर के होने की पुख्ता ख़बर मिल जाती है, तो वो जब तक उसे अपने तेज तर्रार निशाने से मार ना दे, तब तक पानी का एक घूंट नहीं पीती। अक्सर लड़ाइयों वगैरह में दिखाई गई उसकी बहादुरी हिंदुस्तान भर में मशहूर है। पर उसने एक गलती कर दी, उसने अपने चापलूसों की भीड़ और खुद की काबिलियत पर घमंड करते हुए शहंशाह के हुज़ूर में ना आने की गुस्ताखी कर दी।”
मुगल बादशाह अकबर के सिपहसालार आसफ खां ने गढ़ कटंगा के पास स्थित पन्ना का दुर्ग जीत लिया और रानी दुर्गावती के इलाके में अपने कुछ अक्लमंद व्यापारी भेजे, जिनको रानी के ख़ज़ाने व आय-व्यय वगैरह का पता लगाने का जिम्मा सौंपा था। जब आसफ खां को गोंडवाना की अथाह धन संपदा का पता चला, तो उसने बादशाह की इजाजत लेकर गोंडवाना पर विजय पाने का इरादा किया। रानी दुर्गावती अक्सर मंडला में पड़ाव डाला करती थीं।
23 जून, 1564 ई. – नराई नाले का युद्ध :- अकबर ने आसफ खां को 10,000 घुड़सवारों व हज़ारों की पैदल फौज के साथ नीचे लिखे सिपहसालारों समेत भेजा :- मुईद अली खां, मुहम्मद मुराद खां, वज़ीर खां, बाबाई काकशाल, नगेजर बहादुर, आक मुहम्मद आदि।
रानी दुर्गावती की कुल फौज में 20,000 घुड़सवार व 1,500 हाथी थे, लेकिन ये फौज रानी दुर्गावती ने अपने इलाके में दूर-दूर तक फैला रखी थी, इसलिए जिस समय बादशाही फौज अचानक गोंडवाना में प्रवेश कर गई, उस समय रानी के साथ महज़ 500 सैनिक थे।
अबुल फज़ल लिखता है “रानी के सेनापति आधार कायस्थ ने उससे कहा कि मुगल फौज से जीतना मुश्किल लग रहा है, इस खातिर बादशाही मातहती कुबूल कर लीजिए। इसके जवाब में रानी ने गरजकर कहा कि बदनामी भरी ज़िंदगी से तो इज्जत की मौत बेहतर है।”
अबुल फज़ल आगे लिखता है कि “अचानक बादशाही फौज की चढ़ाई के चलते रानी के पास 500 राजपूत ही थे, पर रानी दुर्गावती बादशाही फौज की सोच से चार कदम आगे थी। उसने फौरन ख़बर भिजवाकर जल्दबाज़ी में जैसे-तैसे 2000 राजपूत और कबीले के लोग इकट्ठे किए और बहादुरी से लड़ने के लिए उतारू हुई, पर उसके खैरख्वाहों ने उसे जल्दबाज़ी करने से रोका।”
अपने सामंतों की सलाह मानकर रानी दुर्गावती ने तुरंत हमला न करके तैयारी के साथ हमला करना उचित समझा। रानी दुर्गावती अपनी फौज समेत अपने राज्य की पश्चिमी पहाड़ियों में गईं और उत्तरी पहाड़ियों से बाहर निकलीं।
रानी ने अपना पड़ाव अपने राज्य के पूर्वी भाग में स्थित नराई में डाला। नराई एक ऐसा मुश्किल स्थान था, जहां पहुंचना और वहां से बाहर निकलना मुगलों के लिए मुश्किल था। नराई चारों तरफ से ऊंची पहाड़ियों के बीच में स्थित था, जहां एक तरफ गौर नाम की एक नदी बह रही थी व दूसरी तरफ नर्मदा।
आसफ खां ने दमोह में पड़ाव डाला और रानी का पता लगाने के लिए फौजी टुकड़ियां भेजी, लेकिन रानी का कोई पता नहीं चल पाया। आसफ खां ने गढ़ कटंगा की बस्तियों को जलाना व लूटमार करना शुरू किया, जिससे रानी का पता लगाने में वो कामयाब रहा।
आसफ खां ने खुद ना जाकर अपनी आधी से ज्यादा फौज नायर बहादुर और अक मुहम्मद के नेतृत्व में भेज दी व खुद तोपों के साथ बाद में रवाना हुआ। रानी दुर्गावती के पास इस समय तक 5000 की सेना इकट्ठी हो चुकी थी, जिनमें बैस, बाघेला राजपूत, कुछ चुनिंदा राजपूत वीरांगनाएँ, गौड़ व कबीले के आदिवासी सैनिक थे।
अकबर के सेनापति आसफ़ खां के नेतृत्व में मुगल सेना द्वारा रानी दुर्गावती के प्रदेश में प्रवेश के बाद रानी के सामन्तों ने रानी को सलाह दी कि मुगल फौज इसी और आ रही है, इस खातिर किसी दूसरे स्थान पर चले जाना उचित होगा। रानी ने कहा “विजय या वीरगति”।
मुगल फौज नराई से कुछ ही दूर थी, तो रानी ने हाथियों के फौजदार अर्जन दास बैस को लड़ने भेजा, जो कि बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। नराई तक पहुंचने का रास्ता संकरा था।
अबुल फज़ल लिखता है “रानी दुर्गावती ने ज़िरहबख़्तर पहना और हाथी पर सवार हुई। रानी ने अपनी फौज से कहा कि जल्दबाज़ी ना करें, जब मुगल फौज संकरे रास्तों से यहां तक आए, उसके बाद हम सब अलग-अलग तरफ से उन पर टूट पड़ेंगे। एक बेहतरीन जंग शुरू हुई और दोनों तरफ से कई लोग मारे गए। 300 मुगल मारे गए और रानी ने इस लड़ाई में जीत हासिल की। रानी ने भगोड़ों का पीछा किया।” (अबुल फज़ल रानी दुर्गावती की बहादुरी का कायल था, ये पहला मौका है जब अबुल फज़ल ने मुगल सेना के लिए ‘भगोड़े’ जैसा शब्द प्रयोग किया।)
रानी दुर्गावती जी के गढ़ मदन महल का भीतरी दृश्य
मुगल फौज भागकर कुछ दूरी पर ठहर गई और अगले दिन फिर हमला करने का विचार किया। रानी दुर्गावती ने अपने साथियों से कहा कि हम आज रात को ही मुगल फौज पर हमला करेंगे, यदि अभी हमला नहीं किया तो कल आसफ खां तोपों के साथ यहां तक आ जाएगा और फिर उन्हें हराना मुश्किल हो जाएगा।
रानी के इस प्रस्ताव को अधिकतर साथियों ने खारिज कर दिया, जिस वजह से रानी फिर अपने निवास की तरफ लौट गईं। अगले दिन सुबह वही हुआ जो रानी ने सोचा था। आसफ खां के नेतृत्व में तोपों से लैस मुगल फौज ने संकरे पहाड़ी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी। अबुल फज़ल लिखता है कि “रानी दुर्गावती के सामंतों में एक भी ऐसा नहीं था, जो रानी की बहादुरी और अक्लमंदी की बराबरी कर सके।”
24 जून, 1564 ई. – रानी दुर्गावती का देहांत :- अबुल फ़ज़ल ने युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी मुगलों से युद्ध का हाल सुनकर रानी दुर्गावती के देहांत का सजीव वर्णन किया है। अबुल फ़ज़ल अकबरनामा में लिखता है कि “रानी दुर्गावती अपने बुलंद और उत्सुक हाथी पर बैठी, जो कि उसके सभी जानवरों में सबसे बेहतर था, उसका नाम सरमन था। रानी ने हाथियों को अपने सैनिकों में बांटा और लड़ने को तैयार हुई।”
रानी दुर्गावती के पुत्र वीर नारायण की वीरता के बारे में अबुल फ़ज़ल लिखता है कि “मुगल फौज को तीरों और बंदूकों से लेकर खंजर और तलवारों से होने वाले हमलों से बचकर संकरा रास्ता पार करना पड़ा। रानी के बेटे राजा बीर सा ने बड़ी बहादुरी से बर्ताव किया। शम्स खां मियां और मुबारक खां बिलोच ने बहादुरी दिखाई। दिन के तीसरे पहर तक भी लड़ाई चलती रही। राजा बीर सा ने बादशाही फौज को 3 बार खदेड़ा, पर तीसरी बार वह सख्त ज़ख़्मी हुआ।
अबुल फ़ज़ल आगे लिखता है कि “रानी दुर्गावती ने फौरन अपने खास सिपाहियों को भेजा, ताकि उसे लड़ाई से बाहर निकाला जाए। रानी की तरफ से बहुत से बहादुर मारे गए और बीर सा के साथ बहुत से सैनिक लड़ाई छोड़कर निकल गए, जिस वजह से रानी के पास महज़ 300 सैनिक बचे, लेकिन इससे रानी के बर्ताव में कोई कमज़ोरी नहीं आई और वो अपने बचे खुचे बहादुर साथियों के साथ लड़ती रही।”
रानी दुर्गावती के ज़ख्मी होने का अबुल फ़ज़ल ने सजीव वर्णन किया है। वह लिखता है कि “एक सख्त तीर रानी की दायीं आंख में लगा और रानी ने बड़ी बहादुरी से बिना घबराए तीर को निकाल फेंका, पर तीर का नुकीला हिस्सा टूट गया और आंख में ही अटक गया। तभी एक और तीर रानी की गर्दन पर लगा, रानी ने इसे भी निकाल फेंका, पर बहुत ज्यादा दर्द के चलते उस पर बेहोशी छाने लगी।”
तीरों से ज़ख्मी रानी दुर्गावती की मुगलकालीन पेंटिंग
रानी दुर्गावती के इर्द-गिर्द खड़े मुगल सिपहसालारों के बयान पर अबुल फ़ज़ल ने लिखा है कि “रानी ने इस हालत में भी सूझबूझ से काम लिया और अपने हाथी के ठीक आगे वाले हाथी पर सवार आधार कायस्थ को आवाज़ लगाई और कहा कि ‘मैंने तुम्हें अपनी सेना में अहम पद पर रखा और वो कर्ज़ चुकाने का दिन आज है, भगवान के लिए मना मत करना क्योंकि मेरे लिए भी इज्जत से मरने का मौका आज ही है, मैं अपने दुश्मनों के हाथों में नहीं पड़ना चाहती, इस खातिर तुम एक वफादार सेवक की तरह अपनी कटार से मुझे ख़त्म कर दो’।”
अंत में अबुल फ़ज़ल लिखता है कि “उस वफादार आधार कायस्थ ने रानी से कहा कि ‘मैं कैसे उन हाथों से आपको मौत दे सकता हूं, जिन हाथों ने हमेशा आपसे तोहफे लिए हैं, मैं आपके लिए इतना जरूर कर सकता हूं कि आपको इस मैदान से ज़िंदा बाहर निकाल सकता हूं, क्योंकि मुझे आपके बुलंद हाथी पर पूरा भरोसा है’। रानी ने ये लफ्ज़ सुने तो गुस्से में आकर आधार को धिक्कार कर कहा कि
‘तुमने मेरे लिए इस अपमान को चुना’
रानी ने अपना खंजर निकाला और खुद पर वार करते हुए एक मर्द की तरह ख़त्म हो गई।
बादशाही फौज ने एक बड़ी लड़ाई जीत ली। इस जीत से बादशाही फौज को रानी के 1000 हाथी, बहुत सा खज़ाना और सामान वगैरह हाथ लगा।”
24 जून, 1564 ई. – नराई नाले का भीषण युद्ध :- इतिहासकार विंसेंट स्मिथ लिखता है कि “नराई नाले का युद्ध जहां एक ओर रानी दुर्गावती की कीर्ति का ध्वज पताका फहराता है, वहीं दूसरी ओर अकबर के चरित्र पर गहरा दाग अंकित करता है। ऐसे श्रेष्ठ चरित्र वाली रानी पर अकबर का हमला केवल आक्रमण ही था, जो किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं था। उसके पीछे केवल अकबर की लूट और विजय की मंशा ही थी। बाद में रानी दुर्गावती की समाधि बनाई गई थी, जहां कईं साल बाद कर्नल स्लीमेन ने श्रद्धा स्वरूप सफेद कंकुरिया चढ़ाकर स्वयं को गौरवशाली अनुभव किया।”
रानी दुर्गावती की तरफ से वीरगति पाने वाले योद्धा :- कनुर कल्याण बघेला, खुरचली, खान जहां, डकीत महाराज ब्राह्मण आदि। रानी दुर्गावती ने कुल 16 वर्ष तक शासन किया।
रानी दुर्गावती जी
अगस्त, 1564 ई. – चौरागढ़ का युद्ध व शाका :- अकबर के सेनापति आसफ खां ने इस लड़ाई के 2 माह बाद चौरागढ़ दुर्ग की तरफ कूच किया। इस दुर्ग में बहुत सा खज़ाना गाढ़ रखा था। चौरागढ़ दुर्ग पर रानी दुर्गावती के पुत्र राजा वीर नारायण का अधिकार था।
मुगल फौज किले के बाहर तक पहुंची, तो राजा ने भोज कायस्थ और मियां मिकारी रूमी को दुर्ग के अंदर तैनात किया और रानियों व अन्य स्त्रियों ने जौहर का चयन किया। राजा ने अपनी फौजी टुकड़ी समेत दुर्ग से बाहर निकलकर मुगल फौज पर हमला किया और बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
किले में जौहर हुआ और सभी क्षत्राणियों ने स्वयं को अग्नि में समर्पित किया। 4 दिन बाद मुगलों ने अंदर प्रवेश किया, तो 2 स्त्रियों को जीवित पाया। इनमें से एक रानी दुर्गावती की बहन कमलावती थीं व दूसरी राजा पुरागढ़ की पुत्री रूपमती थी, जिनका विवाह राजा वीर नारायण से होने वाला था। इन दोनों ने डर के मारे जौहर नहीं किया, नतीजतन इन्हें अकबर के शाही हरम में भेज दिया गया।
जो लोग आज भी जौहर प्रथा को कुरीति मानते हैं, उन्हें इस वाकिये से समझना चाहिए कि जौहर कुरीति नहीं, बल्कि उस समय के हिसाब से दिया जाने वाला एक स्वाभिमानी बलिदान था।
चौरागढ़ विजय से आसफ खां को 100 घड़े स्वर्ण से भरे हुए मिले, जिसमें से बहुत कुछ आसफ खां ने अपने पास रख लिया और अकबर तक नहीं पहुंचाया। उसने 1000 हाथियों में से सिर्फ 200 हाथी अकबर तक पहुंचाए।
इस घटना का पता अकबर को बाद में चला। आसफ खां का पीछा किया गया, लेकिन वो भागने में सफल रहा। इस घटना के ठीक 3 वर्ष बाद चित्तौड़गढ़ पर हमले के समय आसफ खां लौट आया और बादशाह से माफ़ी मांगी। रानी दुर्गावती के देवर चंद्रशाही द्वारा मुगल अधीनता स्वीकार करने पर अकबर ने चौरागढ़ का राज उसे सौंप दिया।
रानी दुर्गावती जी की समाधि
रानी दुर्गावती के समय हुए निर्माण कार्य :- रानी ताल :- इस तालाब का निर्माण रानी दुर्गावती ने जबलपुर में करवाया। चेरी ताल :- रानी दुर्गावती की चेरी नामक दासी द्वारा निर्मित तालाब, जो कि रानी ताल के निकट ही स्थित है।
आधार ताल :- जबलपुर से 3 मील दूर उत्तर की ओर स्थित तालाब, जिसका निर्माण मंत्री आधारसिंह ने करवाया। हाथी बाड़ी :- रानी दुर्गावती को हाथियों का बड़ा शौक था। मंडला क्षेत्र के सेमरिया नामक इलाके में हाथी बाड़ी आज भी मौजूद है। रानी दुर्गावती ने हाथी बाड़ी के चारों और खाईयां खुदवा रखी थीं। जंगलों से हाथियों को पकड़कर यहां लाया जाता था व उन्हें पालतू बनाया जाता।
रानी दुर्गावती के नाम से जबलपुर में एक संग्रहालय की स्थापना की गई। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 1983 ई. में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया। भारत सरकार ने 24 जून, 1988 ई. में रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस के सम्मान में उन पर एक डाक टिकट जारी किया।
इसके साथ ही गोंडवाना की इन महान वीरांगना रानी दुर्गावती जी का इतिहास यहीं समाप्त होता है। आशा है इनके जीवन का विस्तृत वर्णन पढ़कर आपने भी गौरव का अनुभव किया होगा। ऐसी महान वीरांगना उस दौर में कोई दूसरी नहीं हुई।
Her name is now more revered than that of any other sovereign this land has ever had. She was killed above 250 years ago, about 12 miles from Jabalpur, while gallantly leading on her troops in their third and last attempt to stem the torrent of Muhammadan invasion.Her tomb is still to be seen where she fell, in a narrow defile between two hills ; and a pair of large rounded stones** which stand near are, according to popular belief, her royal drums turned into stone, which, in the dead of night, are still heard resounding through the woods, and calling the spirits of her warriors from their thousand graves around her.The travellers who pass this solitary spot respectfully place upon the tomb the prettiest specimen they can find of the crystals which abound in the neighbourhood ; and, with so much of kindly feeling had the history of Durgavati inspired me, that I could not resist the temptation of adding one to the number when I visited her tomb some sixteen years ago."
-- Homage to Rani Durgawati
By Sir Williams, December 1835
Major General, British Bengal Army Regiment
Honored 'Knight of the Order of the Bath' by the British Crown** -
Picture and information about this famous pair of rocks is present at the end of this post.
Married at 18.
A mother at 19.
A widow at 24.
A glorious Martyrdom at 40.
PROLOGUE:
In her magnificent rule of 16 years, Rani Durgawati achieved all that a woman could desire in that medieval age and reached the zenith of her popularity, which continues to this day. Her rule in Gondwana* became synonymous with justice, tolerance, beneficence and patriotism. She was an extremely beautiful woman, a heroic Rajputani, a benevolent queen, and an able administrator.She led her armies personally, and was equally adept at riding a horse or an elephant as her war vehicle. The forces of Gondwana always emerged spectacularly victorious against the superior forces of the Surs of Delhi, Baz Bahadur of Malwa, the Afghans of Bengal, and several adversaries of the Deccan.She did not lose even 1 of the 51 wars she fought in her reign of 16 years, and she treated the defeated enemy with generosity, at times bestowing upon them rich gifts and rewards - keeping with the tradition of Rajputs.Her last battle was against "a team of 7 generals" of Mughal Emperor Akbar in 1564.Her battle cry against the Mughal forces underscores her indomitable courage and her willingness to even sacrifice her life for the sake of the independence and self-respect of her homeland:
"~..BETTER TO DIE WITH GLORY, THAN LIVE WITH IGNOMINY.~"
Gondwana is in present-day Madhya Pradesh state of India. During the 16th century, it was a part of Rajputana. The size of her state : east-west 250 miles; north-south 120 miles. She ruled a huge territory. According to Abu'l Fazl - " The east part of this country adjoins Ratanpur, which belongs to Jharkhand, and the west is contiguous to Raisin, which belongs to the province of Malwa in Gujarat. Itslength may be 150koss. On the north is the country of Pannah, and on the south the Deccan. Its width may be 80koss. The country is called Gadha Katanga. It is an extensive tract and is full of forts, and contains populous cities and towns, so that truthful narrators have stated that Gadha Katanga contained 70,000 inhabitedvillages. Among these, Gadha is a large city whilst Katanga is a village. The country has become known by this double name. The capital is the fortress of Chauragarh."
Her Personality:
An Accomplished Warrior -
An Able & Tolerant Administrator -
Patron of Arts
When clad in full armour she rode on to the battle field, the enemy often fled before a shot was fired. To her people, she became a symbol, a cause for which they were prepared to shed the last drop of their blood. According to Abu'l Fazl, she was a good shot with both gun and arrow and enjoyed hunting animals with her gun.Here lay the secret of her power and popularity. The Gonds, an unsophisticated tribe who formed the natives of her kingdom, proud of their bow-and-arrow culture, adored her. Everyone of their 70,000 inhabited villages was at once a bastion of defence and a cog in a hard-hitting war machine.In her prime, she had at her beck and call an army of nearly 70,000 men and 2,500 elephants.
The support which the Gonds gave to Rani Durgawati was very similar to what the Bhil tribals of the Aravalli Hills gave to Maharana Pratap later on.She was great not only in war, but in peace as well. Efficient control and management of production in 23,000 cultivated villages gave the little kingdom self-sufficiency in food and other essential items.Durgawati knew the headman of every village by name.She made it a point to personally look into the grievances of her subjects and give redress, where possible, on the spot.The old and the young virtually worshipped her as a goddess of justice,and frequently made visits to the capital fortress of Chauragarh to steal a glimpse of their Maharani.
Early Life, Lineage and Marriage:
Dedicated to all RW Naari Shakti
Born on 5 Oct 1524 in family of Kirti Singh ruler of Kalinjar (Central India), DURGAVATI, belonged to Chandel dynasty of Rajputs, which had built world famous temples at Khajuraho. Durgawati was only child of Maharaja Kirti Singh.
The 16th-century wars against Baz Bahadur and other rulers in the region weakened Maharaja Kirti Singh authority and drained his coffers.In desperation, he sought an alliance with Raja Aman Das, who possessed neither fabulous riches nor the 'expensive' traditions of a Hindu royal house. The only virtues Raja Aman Das possessed were his self-respect and his word of honour.
Akbarnama (Vol. 2) ~ Henry Beveridge |
The RajGond King Aman Das a.k.a Sangram Shah was the ruler of the Garha Kingdom and his dynasty had risen after the fall of Purabia Rajputs in the region. According to the Akbarnama, Sangram Shah was childless and when he came to know that the wife of his Rajput official 'Gobind Das Kachhwaha', was bearing a child, he requested Gobind Das that the child be given to him and be brought up as Sangram Shah's own if he was a boy.
This King of Gondwana Dalpat Shah, who was by birth a Kachhwaha Rajput, later married a Chandela Rajput Princess Durgavati of Kalinjar, who became the famed Rani Durgavati in 1542.
The couple was blessed with a son in 1543 and named Bir Narayan. Bir Narayan was just five years old when his father died in 1548.Here was a marriage rooted in the compulsions of penury. Mindful of her obligations, Durgawati applied herself to strengthening the economy and military power of Gondwana, and in the process, won the respect and admiration of her people.
The following is a folkLore about Rani Durgawati and Raja Dalpat Rai.People believed theirs was a combination, which matched Lord Ram and his consort Sita, thereby bringing immense prosperity to the kingdom of Gondwana."Kunwar Kunwarni Kal Bhanwari dehi , Nayan labhu sab saadar lehiJai na barni manohar jodi, jo upma kacchhu kaha so thori.!!Ram-Siya sunder prati chaahi, Jagmag maani khamban mahiManhu madan rati dhari bahu rupa, dekhat Ram bhiyahu anupa..!!"Her father-in-law died in 1541. Her husband ruled for just 7 years and died soon after. At the young age of 24, Durgawati was left alone to handle the vast kingdom, and her 5 year old son.By the time her husband died in 1548, she had earned so much respect that the ministers themselves called upon her to don the mantle of regent and assume responsibility on behalf of her son to maintain the independence of the kingdom. On reaching maturity, Bir Narayan left the reins of government in the hands of his popular mother and served under her.*** -
Some interesting details about Chandel Rajputs are given at the end of this post.
Her Qualities and Prowess Impress Akbar:
The ancestors of Raja Dalpat Rai had ruled over Gadha-Katanga since the 12th century without a break. They were not among the richest, but, "were fiercely 'patriotic', and considered the independence of their land as a gift of God to be preserved at any cost". Durgawati identified herself with their aspirations and, during the 16 years of her rule as regent, carved out for herself an everlasting place in the history of the kingdom.
The stories of Durgawati's heroism and dauntless courage, especially in her wars against Baz Bahadur, aroused Akbar's curiosity.Not only did she repeatedly defeat Baz Bahadur in the west, but she was also able to inflict crushing defeats on the dreaded Afghans of Bengal in the east.It should be noted that even the famous andexperienced general of Akbar, Munim Khan, and a team of 12 generals were not able to subjugate the Afghans in 1575. Later, Akbar had to personally march along with re-inforcements.Akbar was impressed. He wanted to meet her — not as an equal but in the capacityof an overlord and bestow upon her the honours and gifts her status warranted. Hewanted her to accept Mughal suzerainty and serve the Mughal Empire. To that end,he sent emissaries to Chauragarh, but to no avail.
Durgawati refused to acknowledge Mughal suzerainty, much less travel to Agra to pay homage to the Mughal Emperor.Durgawati's Refusal to Accept Mughal Suzerainty Infuriates Akbar:Akbar was infuriated. He ordered one of his foremost & favorite generals, Asaf Khan, to mount an invasion on Gondwana and bring the Rani, alive rather than dead, to his court. Asaf Khan served in other important campaigns also, like the 3rd Siege of Chittor. He remained in high favour of Akbar till 1576, when he suffered a reverses in the Haldighati campaign agiainst Maharana Pratap. Akbar, in anger, debarred Asaf Khan along with Raja Man Singh from the Mughal court after the Haldighati battle.
Let us reserve this story for another day.Abu'l Fazl's Praise of Rani Durgawati in Akbarnama:Abu'l Fazl writes in the Akbarnama-"The sovereignty of that country had come to a woman named Durgavati, who wasgenerally known as the Rani.She was distinguished for courage, counsel and munificence, and by virtue of these elect qualities she had brought the whole of that country under her sway. I have heard from experienced men who had been there that 23,000 cultivated villages were in her possession, and that in 12,000 of these she had resident governors. The remainder were subordinate to her, and their headmen were under her control.
She was the daughter of Raja Salbahan of Ratanpur and Mahoba, who was a Chandel Rajput by caste.Rani Durgavati in concurrence with her loyal ministers Adhar Kayath and Man Brahman gave her son the title of Raja and exercised the real authority herself.Sheneglected no point of courage or capacity, and did great things by dint of her far-seeing abilities.She fought wars andhad great contests with Baz Bahadur and the Mianas, andwas always victorious. She had 20,000 good cavalry with her in her battles, and 1000 famous elephants. The treasures equivalent of many of the Rajas were in her hands.She was a good shot with gun and arrow,and continually went a hunting, andshot animals of the chase with her gun. It was her custom that whenever she heard thatatiger had made his appearance, she did not drink water till she had shot him. There are stories current in Hindustan of her feasts and her frays."
Unprovoked Mughal Attack on Rani Durgawati..
To Fight 1 Rani, 7Generals are sent, including the favorite Asaf Khan:The Mughal attack on Rani Durgavati was unprovoked, but Abu'l Fazl gives a futile reason for the attack: " The Rani had one great fault, to wit, she, owing to a crowd of flatterers, became proud of her outward success, anddid not submit herself at the threshold of the Shahinshah. "Akbar knew defeating Rani Durgawati was not an easy task. Hence, he sent 6 othermajor commanders along with Asaf Khan to fight her.
Abu'l Fazl gives the names of those 6 Mughal generals :1. Muib Ali Khan,2. Muammad Murad Khan,3. Wazir Khan,4. Babai Qaqshal,5. Nasir Bahadur,6. Aq Muhammed,The other adversaries of the Rani whom she had defeated earlier were also included in their train. Now all the enemies of Rani Durgavati had joined hands.Badayuni's Twist to the Tale..A Different Reason for the Attack on Rani Durgawati ??Badayuni gives a slightly different reason for Asaf Khan's attack on Rani Durgawati:
"Rani Durgawati, by name, was a lady of great loveliness and grace, and in the prime of her beauty, who held the government of the place.Asaf Khan marched against the district of Gadha-Katanga. This district at that time contained 70,000 inhabited villages, and its metropolis was the fortress of Chauragarh. It is 70 miles west of Jabalpur."
A Chauvinist Asaf KhanResolves to Humiliate Rani Durgawati:
Unlike Akbar, Asaf Khan was narrow-minded in both thought and application. He set out not to subdue Rani Durgawati through tact and persuasion, but to humiliateher on the battlefield. Asaf Khan was the Mughal governor of the neighbouring area of Karra Manikpur, near modern-day city of Allahabad in Uttar Pradesh state of India.A "woman" ruling over such a vast territory in "that medieval age" was an impediment to the unquestioned supremacy of a "man".The numerical superiority of his forces blinded him to the role of diplomacy, and hewent headlong, in command of a massive force of men, horses and elephants, to drub Rani Durgawati into submission. But Asaf Khan, had not yet tasted the mettle Rani Durgawati was made of.
Account ofGondwana's Plunder by Asaf Khan from the Akbarnama:
Asaf Khan did not directly attack the Rani. He started by trying to purchase her soldiers and officers, and by looting and plundering the borders of her kingdom. However, the vigilant Rani came to know of this and punished the ones who were involved in this act of treason.
Writes Abu'l Fazl -"When Asaf Khan was near at hand, he kept open the gates of friendship and intimacy and sent spies and experienced traders into her country and made investigations about her revenue and her expenditure. When he knew the truth about her abundant collections of treasure, and her hidden stores, the desire of lordship over the country entered his mind, and he longed to "embrace the bride of the territories".He began with coquetry and toying, and "put out his hand to touch the down and the mole of the beauty of Gondwana",i.e., he began by attacking and plundering the villages and hamlets on the borders.At length, he in this year by the orders of the Shahinshah, collected 10,000 cavalry and abundant infantry and girded up the loins of endeavour for the conquest of Gaḍha. Muib Ali Khan, Muammad Murad Khan, Wazir Khan, Babai Qaqshal, Nasir Bahadur, Aq Muhammed, and a large number of holders of fiefs in that quarter accompanied him in accordance with the royal order."
Account of the Initial Combat from the Akbarnama:
Rani Durgawati was not only a distinguished warrior with guns, sword, and bow and arrow, but also an administrator with a brilliant mind and sound warfare tactics. She knew how, when and where to engage the enemy in attack and nullify the strength of its superiority. Despite having a small number of soldiers in comparison with the Mughals, she did not lose heart.Abu'l Fazl's account, though full of high praise for the Mughal army, does provide aglimpse of the Rani's understanding of military tactics. He writes -"When the news arrived that the victorious royal army{the Mughal army}had reached Damoh, which is one of the important cities of the country - a stone of dispersal fell into the midst of her pride, and her soldiers scattered in order to defend their families.Not more than 500 men remained with her. As soon as she heard of the event, the Rani in her courage proceeded towards the victorious army and, with the rashness which outruns arrogance, went forward to welcome a battle.Adhar, who had charge of her administration, spoke to her like a well-wisher of dominion and unfolded the circumstances of the desertion of the soldiers and of the largeness of the royal army. The Rani replied that the desertion was due to his stupidity, and asked how she, who had for years governed the country, could resolve upon flight?She said -"It was better to die with glory than to live with ignominy.If the just king{Akbar}were here in person, it would have been proper for her to wait upon him.What did that fellow Asaf Khan know of her rank? It was altogether best that she should die bravely."
Rani Durgawati:"Either I Would Conquer or I Would Fall.
"She advanced four stages towards the victorious army. Asaf Khan, who was marching rapidly, halted in Damoh. The Rani had collected 2000 men. Her officers unanimously said that it was noble to determine upon war, but that it was not in accordance with courage and prudence to let fall the thread of deliberation. It was proper to stay in some secure place and to await the reassembling of their forces.
When the Rani heard these words, she moved towards the forest west of Gadha. She then came into another forest north of Gadha, and wandered about slowly in those deserts. At last she came to Narhi which is east of Gadha. It is a place very difficult for ingress or egress. On four sides there are sky-high mountains, and there is a river in front called Gaur. On another side is the furious river, the Narmada. The ravine formed by the passage of the river and by which access is attained to the village is very narrow and awful.Asaf khan, who, on hearing that the Rani was approaching, had halted at Damoh, completely lost news of her, and though he sent out persons to make inquiries, yet, as the country was of an extraordinary nature, he could get no information. At last, he advanced in person to Gadha and proceeded to bring the villages and hamlets into subjection.
When he got news of the Rani, he left a force in Gadha and hastened after the Rani.When the Rani heard of the army's approach, she called together her officers and held a council. She said that if they thought of going to some other place till her forces were collected, it would be proper to go there, but that her own inclination was to fight. How long was she to shelter herself among trees? Whoever liked to gomight do so. They had leave. There was no third issue to her warfare.
She made it clear - "Either she would fall or she would conquer".
At last all her men — there were about 5,000 collected — set their hearts on fighting.Next day the news came that Nasir Muhammad, Aq Muhammad and a large force of gallant men had taken by force the head of the ravine which was the road of access, and that Arjun Das, who was thefaujdarof the elephants (i.e., Rani Durgavati's commander), had bravely lost his life there."
On Rani Durgawati's Call, Gondwana Rises as One Man Against the Mughals :
We saw how, in a short span, Rani Durgawati was successful in gathering and raising her forces from 500 to 2000 to 5000, solely on the basis of her personal confidence and her undying spirit of resistance to the Mughal aggression. Gondwana rose as one man to meet the aggression.
Rani Durgawati's soulful exhortations in the name of self-respect and justice brought tears to the eyes of her listeners, and they all swore to defend the'matra-bhoomi'(motherland) with every resource at their disposal.Her commander Arjun Das fell fighting with a much larger force of Nasir Muhammad and Aq Muhammed. Now, the battle began between the Rani and AsafKhan.
The first day of the battle belonged completely to the Rani. Asaf Khan was routed despite his much larger army.The Rani Enters the BattleAbu'l Fazl's account of the initial engagement of the rival forces (near Jabalpur), from the Akbarnama, makes for a very interesting reading -"The Rani put armour on her breast and a helmet on her head and mounting her stead slowly advanced to encounter the heroes who were eager for battle. She saidto her soldiers : "Do not hasten, let the enemy enter the pass and then we shall fall upon them from all sides and drive them off." It turned out as she anticipated, and there was a great fight. Many on both sides fell to the dust, and 300 Mughals quaffed the wholesome draught of martyrdom.
The Rani was victorious and pursued the fugitives, and emerged from the ravine. At the end of the day, she summoned her chief men and asked what they advised. Each man spoke according to his understanding and courage."
A 'Himalayan Tactical Blunder'* Jeopardizes the Future of Gondwana"
The Rani said we ought to make an attack this night, and finish off the enemy.Otherwise Asaf Khan will come in the morning in person and take possession of the pass, and will fortify it with artillery. The task which is now easy will become difficult.No one agreed to this proposal.At last she yielded to the majority and retreated by the way she had come, and occupied herself in comforting those of her people who had been orphaned.**
When she came to her house, she proposed the night-attack to some of her devoted followers. Not one of them could equal her in courage.When it was morning, what the Rani had foreseen occurred. Asaf Khan came with his artillery and fortified the entrance to the pass, and the victorious army entered the mountains.
The Rani in her eagerness for battle mounted on a lofty and swift elephant which was the best of her animals, and was called Sarman, and came out. She drew up her forces, distributed the elephants and prepared for battle.
"{Note:* - Though i called it a blunder, the generals of the Rani were true to the Rajput traditions of warfare. Fighting after sun-set was not considered ethical according to Rajput customs of warfare. But, in my opinion, such customs should be followedonly with those enemies who ALSO follow the same customs of warfare. Hence, i feel that Rani Durgawati's stand was practical.** - This act of Rani Durgawati taking care of the wounded and theorphaned at night reflects a lot about her magnanimous personality.}
Statue of Rani Durgawati on her favourite elephant - Sarman, with her trusted servant - Adhar Bakhila
Raja Bir Narayan Faces the Mughals Gallantly"After the armies had encountered, the work passed from arrows and muskets to daggers and swords.Raja Bir Narayan, the Rani's son, who was the nominal ruler, behaved bravely, and performed great deeds. Shams Khan Miana*,
and Mubarik Khan Biluc fought bravely. The battle raged till the third watch of the day, so that if it was fully described the account would be a long one. Three times Raja Bir Narayan repulsed the victorious army but the third time he was wounded.
{* - Shams Khan Miana was an old enemy of Rani Durgawati, whom she had defeated along with Baz Bahadur earlier. This time he joined hands with the Mughals to eliminate the Rani.}
When the Rani heard of this, she ordered trusty men to remove him from the battlefield to a place of safety. They obeyed the command and carried him off to a retired place. On this account, a great many left the field of battle, and the Rani's troops were much discomfited. Not more than 300 men remained with her. Butthere was no weakening of the Rani's resolution, and she continued to wage hot war alongside of her own gallant followers.
"The First Arrow Hits the Rani"
An arrow from the bow of fate struck her right temple*, and she courageously drewit out and flung it from her. The point remained in the wound, and would not come out.
"{* - The Persian text said - 'Shaqiqa' . It means the place between the eye and ear.}The Second Arrow Leaves Her Unconscious"
Just then another arrow struck her neck. That, too, she drew out with the hand of courage, but the excessive pain made her swoon. When gradually she recovered her senses, she addressed Adhar, who was of the Bakhila caste and was distinguished for courage and devotion and who was riding in front of her on the elephant."
The wounded Rani asks her servant to kill her because she does not want to fall into the hands of the enemy. The servant offers to rescue her from the battle field. Hearing the thought of "leaving" the battle field, the Rani gets angry and stabs herself.
"She said to him - "I ever laboured to educate and consider you in order that one day you might be of service. Today is a day in which I am overcome in battle, God forbid that I be also overcome in name and honour, and that I fall into the hands of the enemy; act like a faithful servant, and dispose of me by this sharp dagger."His true heart could not do anything so hard-hearted. He said - "How can I bring my hand to do this thing. How can the hand which has held your gifts do such a dreadful deed.
This I can do: I can carry you away from this fatal field. I have full confidence in this swift elephant."When the Rani heard these words, which proceeded from soft-heartedness, she grew angry and reproached him, saying, "Do you choose such a disgrace for me?
"Then she drew her dagger, and herself inflicted the blow, and died in virile fashion.A large number of her devoted followers fell in her service, notably Kannur Kalyan Bakhila, Chakarman Kharcali, Jahan Daakit and Maharakhs Brahman Thakur. A great victory was gained."
Account of the Battle by Badayuni:
Badayuni writes in his usual orthodox manner:"Rani Durgawati came against Asaf Khan with 20,000 horse and foot, and 700 powerful elephants, and fought an obstinately contested battle. Many valiant souls on either side, after striving and struggling beyond all limit or measure, at a message from some arrow or pitiless sword, vacated their bodies.
An arrow hit the queen in a mortal part, and when she was on the point of death, she signed to her elephant-driver to put an end to her agony.Nevertheless the tricks of her bad luck did not deliver her from ruffians.Ah yes!—
"Every foul fetid beast, Finds his foul fetid feast:"[and again]:"A Christian's well may not be pure, it's true ; 'Twill do to wash the carcass of a Jew!"Asaf Khan marched against Chauragarh, and the son of the aforesaid queen, afterfighting for his life, joined the queen*. So much treasure fell into the hands of Asaf Khan and his soldiery, that the Creator alone is competent to compute its amount.
* - Badayuni hints sarcastically that the Rani, being a woman, was weaker in comparison to Asaf Khan, a man, and that Raja Bir Narayan joined the company ofsuch 'weak' creatures after his death. This orthodox tone is typical of Badayuni.
"Account of the Battle from Tabaqat-i-Akbari:
I am presenting the scans here :
Her End:Thus died Rani Durgawati —
brave, fearless, and faithful to the end to the norms of chastity set by her dynasty. Her example spurred her followers to perform deeds ofincredible valour.One of them carried her body beyond Asaf Khan's reach despite a virtual wall of steel that surrounded the remnants of the defeated army. Fire reduced her to ashesbefore the Mughals knew where she was.
Aftermath of Death of Rani Durgawati...Jauhar and Saka in Chauragarh :
The battle was not yet over. The son of Rani Durgawati, though badly wounded, would not surrender before the superior numbers of his enemy. Asaf Khan rushed to lay siege to the fort at Chauragarh. When it became clear that the fort could not be held for long, the ladies of the royal family and wives and daughters and other female relatives of the nobles marched solemnly to a pre-arranged enclosure for mass participation in the ceremony of the Rajputs called Jauhar.
To two high-ranking officers of the Raja's court—Bhoj Kaith and Mian Bhikari — was given this grim charge to protect the ladies from the reach of the enemy soldiers till Jauhar was conducted. When the women had taken their assigned places, the pyre was lit. The flames leapt skyward, consuming in a few fateful moments the cream of Gondwana's womanhood. Not a shriek, nor a moan, nor a wail was heard outside.
The belief that their self-immolation would enhance the glory of womanhood sustained their spirits.The remaining of the warriors rode out to sell their lives in the ultimate battle, which, in Rajput tradition is known as Saka. The wounded Bir Narayan put up a 'strong resistance' and died fighting.The gates of the 'arena of death' {place where the Jauhar took place} were opened by Asaf Khan's men. When they entered the area, a miracle had happened.
Two of the prettiest princesses were found alive under a log the raging fires left untouched. One was Kamlawati, sister of Rani Durgawati, and the other Ruprani, a princess of Pargadha who was engaged to be married to Raja Bir Narayan, who had just died fighting. Both were sent to Agra. Akbar was delighted to have them, and gave the pair a place in his women's residential quarters (harem).
azzled by the Rani's Treasure, Asaf Khan Rebels Against Akbar
According to Abul Fazl, a 1000 elephants and a lot of other booty fell into the hands of the imperial forces. The wealth of gold and precious stones in the castle dazzled Asaf Khan's eyes. An underground strong room contained, besides :a. treasures of ancient gold and silver ornaments,b. coined and uncoined gold,c. decorated utensils, jewels, pearls, figures, pictures, jewelled and decorated idols, figures of animals made wholly of gold, and other rarities.d. Among the goods and treasures of Rani Durgawati's kingdom were one hundredjars (deg) full of ashrafis(gold coins) of Khilji period.There were also other things which could not be calculated.The Tajik* in Asaf Khan was stirred, and he decided to keep this vast hoard of riches for himself.* -
A tribe of Central Asias
Driven by his greed for the unimaginable wealth of the Rani, Asaf Khan forgot his loyalty to the Mughal empire and rebelled against Akbar. Some token gifts were sent to Agra in the hope that the known poverty of the region would not make the Emperor suspect his honesty. Akbar was, however, quick to perceive the duplicity of his general. It did not take Akbar long to bring him to the path of obedience.
Legacy of Rani Durgawati:
Rani Durgavati fought all her life to safeguard the independence of her kingdom. She will always be immortal as anepitome of sacrifice and the undying spirit of a woman.She was a rare woman, who faced all odds despite the difficulties infront of her. She was widowed at a young age, with a young child and inherited a kingdom surrounded by hostile neighbours, and her rest is already present in this post.
There are many authorities who have paid homage to this great lady in different manners.a.Her death anniversary,
24th June, is celebrated asBalidan Diwas(Martyrdom Day).b.Rani Durgawati Museum is a museum situated in Jabalpur city in Madhya Pradesh state of India. It houses a fine collection of sculptures, inscriptions and prehistoric relics. The museum is dedicated to the memory of Rani Durgavati.c.In 1983, Jabalpur University was renamed asRani DurgawatiVishvavidyalayainher honour.d.
The Government of India paid its tribute to her by issuing a postal stamp commemorating her death, on 24 June 1988.e.Indian Railways named a train as the Durgavati Express (Jabalpur - Jammutawi) after her.f.In July 2015,
theIndian Coast Guardcommissioned 'ICGSRani Durgavati', an inshore patrol vessel, which was named after this legendary queen.Epilogue:A. Balancing Rocks of Jabalpur
B. Some interesting details about Chandel Rajputs:
Rani Durgawati was from the clan of Chandel Rajputs. They ruled in the area around Bundelkhand which isfamous forthe battle between the last Rajput Emperor of Ajmer and Delhi, Prithviraj Chauhan and Alha-Udhal, in 1182 AD.
Her early ancestor Vidhyadhar Chandel and his father Gandh Chandel were the only rulers of Hindustan who were able to successfully resist the invasions of Muhammed Ghazni in the 11th Century. They fought against him in 1019AD and it was a mutual agreement between both the sides to cease the hostilities.
Chandel Rajputs are credited with the construction of the UNESCO World Heritage Site - the Khajuraho Temples, which are built in accordance with the Hindu and Jain traditions in the periodbetween 950 and 1050 AD.
The Moroccan traveller Ibn Batuta, who visited India in 1335 AD, mentions the destruction of the Khajuraho temples by the rulers of Delhi Sultanate in his accountRiyalat-i-Ibn-Batuta. Of the original 85 temples, only about 20 exist today.
Picture of one such temple is shown below.
References:
This post has been prepared from the English translation of 3 historical accounts. 85% of the post is from Akbarnama. Scans have been included at appropriate places.
1.Akbarnama, Volume - II, Page 323 - 333Calcutta, 19212.
Al-Badouni, Volume - II, Page 66-67Calcutta, 18983.
Tabaqat-i-Akbari, Volume - II, Page 294-296Calcutta, 1936
Rani Durgavati the great.
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