अंग्रेजो ने दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को बन्दी बना लिया और मुगलो का जम कर कत्लेआम किया । सल्तनत खत्म होने से मुगल सेना कई टुकड़ो में बिखर गयी और देश के कई हिस्सों में जान बचा कर छुप गयी । पेट भरने के लिए कोई रोजगार उन्हें आता नही था क्योंकि मुगल सदैव चोरी लूटपाट और बलात्कार जेसे गन्दे और घ्रणित कार्यो में ही व्यस्त रहे इसलिए वो छोटे गिरोह बना कर लूटपाट करने लगे।
बीकानेर रियासत में न्याय प्रिय राजा गंगा सिंह जी का शासन था जिन्होंने गंग नहर(सबसे बड़ी नहर) का निर्माण करवाया जिसको कांग्रेस सरकार ने इन्दिरा गांधी नहर नाम देकर हड़प लिया बनवाई थी।
उन्ही की रियासत के गाँव आसलसर के जागीरदार श्री दीप सिंह जी शेखावत की वीरता और गौ और धर्म रक्षा के चर्चे सब और होते थे ।
"तीज" का त्यौहार चल रहा था और गाँव की सब महिलाये और बच्चियां गांव से 2 किलोमीटर दूर गाँव के तालाब पर गणगौर पूजने को गयी हुई थी और तालाब के समीप ही गांव की गाये भी चर रही थी उसी समय धूल का गुबार सा उठता सा नजर आया और कोई समझ पाता उससे पहले ही करीब 150 घुड़सवारों ने गायों को घेर कर ले जाना शुरू कर दिया । चारो तरफ भगदड़ मच गयी और सब महिलाये गाँव की और दौड़ी , उन गौओ में से एक उन मुगल लुटेरो का घेरा तोड़ कर भाग निकली तो एक मुसलमान ने भाला फेक मारा जो गाय की पीठ में घुस गया पर गाय रुकी नही और गाँव की और सरपट भागी।
दोपहर का वक्त था और आसल सर के जागीरदार दीप सिंह जी भोजन करने बेठे ही थे की गाय माता की करुण रंभाने की आवाज सुनी , वो तुरन्त उठे और देखते ही समझ गए की मुसलमानो का ही कृत्य है उन्होंने गाँव के ढोली राणा को नगारा बजाने का आदेश दिया जिससे की गाँव के वीर लोग युद्ध के लिए तैयार हो सके पर सयोंगवश सब लोग खेतो में काम पर गए हुए थे , केवल पांच लोग इकट्ठे हुये और वो पाँच थे दीप सिंह जी के सगे भाई।
सब ने शस्त्र और कवच पहने और घोड़ो पर सवार हुई तभी दो बीकानेर रियासत के सिपाही जो की छुटी पर घर जा रहे थे वो भी आ गए , दीप सिंह जी उनको कहा की आप लोग परिवार से मिलने छुट्टी लेकर जा रहे हो ,आप जाइये ,पर वो वीर कायम सिंह चौहान जी के वंशज नही माने और बोले हमने बीकानेर रियासत का नमक खाया है हम ऐसे नही जा सकते | युद के लिए रवाना होते ही सामने एक और वीर पुरुष चेतन जी जाट भी मिले वो भी युद्ध के लिए साथ हो लिए। इस तरह आठ "8" योद्धा 150 मुसलमान सेनिको से लड़ने निकल पड़े और उनके साथ युद्ध का नगाड़ा बजाने वाले ढोली राणा जी भी।
मुस्लिम सेना की टुकड़ी के चाल धीमी पड़ चुकी थी क्योंकि गायो को घेर कर चलना था । और उनका पीछा कर रहे जागीरदार दीप सिंह जी ने जल्दी ही उन मुगल सेनिको को "धाम चला" नामक धोरे पर रोक लिया , मुस्लिम टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे मुखिया को इस बात का अंदाज नही था की कोई इतनी जल्दी अवरोध भी सामने आ सकता है ? उसे आश्चर्य और घबराहट दोनों महसूस हुई , आश्चर्य इस बात का की केवल आठ 8 लोग 150 अति प्रशिक्षित सैनिको से लड़ने आ गए और घबराहट इस बात की कि उसने आसल सर के जागीरदार दीप सिंह जी की वीरता के चर्चे सुने थे, उस मुसलमान टुकड़ी के मुखिया ने प्रस्ताव रखा की इस लूट में दो गाँवों की गाये शामिल है अजितसर और आसलसर , आप आसलसर गाँव की गाय वापस ले जाए और हमे निकलने दे पर धर्म और गौ रक्षक श्री दीप सिंह जी शेखावत ने बिलकुल मना कर दिया और कहा की "" ऐ मलेच्छ दुष्ट , ये गाय हमारी माता के सम्मान पूजनीय है कोई व्यपार की वस्तु नही ,तू सभी गौ माताओ को यही छोडेगा और तू भी अपने प्राण यही त्यागेगा ये मेरा वचन है " मुगल टुकड़ी के मुखिया का मुँह ये जवाब सुनकर खुला ही रह गया और फिर क्रोधित होकर बोला की "मार डालो सबको"।
आठो वीरो ने जबरदस्त हमला किया जो मुसलमानो ने सोचा भी नही था कई घण्टे युद्ध चला और 150 मुसलमानो की टुकड़ी की लाशें जमीन पर आठ वीर योद्धाओ ने बिछा थी।
सभी गऊ माता को गाँव की और रवाना करवा दिया और गंभीर घायल सभी वीर पास में ही खेजड़ी के पेड़ के निचे अपने घावों की मरहमपट्टी करने लगे और गाँव की ही एक बच्ची को बोल कर पीने का पानी मंगवाया ,.| सूर्य देव रेगिस्तान की धरती को अपने तेज से तपा रहे थे और धरती पर मौजूद धर्म रक्षक देव अपने धर्म से।।
सभी लोग खून से लथपथ हो चुके थे और गर्मी और थकान से निढाल हो रहे थे,
आसमान में मानव मांस के भक्षण के आदि हो चुके सेंकडो गिद्द मंडरा रहे थे ., इतने ज्यादा संख्या में मंडरा रहे गीधों को लगभग 5 किलोमीटर दूर मौजूद दूसरी मुस्लिमो की टुकड़ी के मुखिया ने देखा तो किसी अनहोनी की आशंका से सिहर उठा ,उसने दूसरे साथियो को कहा " जरूर कोई खतरनाक युद्ध हुआ है वहां और काफी लोग मारे गए है इसलिए ही इतने गिद्ध आकाश में मंडरा रहे है " उसने तुरन्त उसी दिशा में चलने का आदेश दिया और वहां का द्रश्य देख उसे चक्कर से आ गए, 150 सेनिको की लाशें पड़ी है जिनको गिद्ध खा रहे है और दूर खेजड़ी के नीचे 8 आठ घायल लहू लुहान आराम कर रहे है।
'"अचानक दीप सिंह शेखावत जी को कुछ गड़बड़ का अहसास हुआ और उन्होंने देखा की 150 मुस्लिम सेनिक बिलकुल नजदीक पहुँच चुके है । वो तुरन्त तैयार हुए और अन्य साथियो को भी सचेत किया , सब ने फिर से कवच और हथियार धारण कर लिए और घायल शेर की तरह टूट पड़े ,,
खून की कमी तेज गर्मी और गंभीर घायल वीर योद्धा एक एक कर वीरगति को प्राप्त होने लगे , दीप सिंह जी छोटे सगे भाई रिड़मल सिंह जी और 3 तीन अन्य सगे भाई वीरगति को प्राप्त हुए पर तब तक इन वीरो ने मुगल सेना का बहुत नुकसान कर दिया था ।
"7 " सात लोग वीरगति को प्राप्त कर चुके थे और युद्ध अपनी चरम सीमा पर था , अब जागीरदार दीप सिंह जी अकेले ही अपना युद्ध कोशल दिखा कर मलेछो के दांत खट्टे कर रहे की तभी एक मुगल ने धोखे से वार करके दीप सिंह की गर्दन धड़ से अलग कर दी।
और और मुगल सेना के मुखिया ने जो द्रश्य देखा तो उसकी रूह काँप गयी । दीप सिंह जी धड़ बिना सिर के दोनों हाथो से तलवार चला रहा था धीरे धीरे दूसरी टुकड़ी के 150 मलछ् में से केवल दस ग्यारह मलेच्छ ही जिन्दा बचे थे । बूढ़े मुगल मुखिया ने देखा की धड़ के हाथ नगारे की आवाज के साथ साथ चल रहे है उसने तुरंत जाकर निहथे ढोली राणा जी को मार दिया । ढोली जी के वीरगति को प्राप्त होते ही दीप सिंह का शरीर भी ठंडा पड़ गया।
वो मुग़ल मुखिया अपने सात" 7" आदमियो के साथ जान बचा कर भाग निकला और जाते जाते दीप सिंह जी की सोने की मुठ वाली तलवार ले भागा।
लगभग 100 किलोमीटर दूर बीकानेर रियासत के दूसरे छोर पर भाटियो की जागीरे थी जो अपनी वीरता के लिए जाने पहचाने जाते है। मुगल टुकड़ी के मुखिया ने एक भाटी जागीरदार के गाँव में जाकर खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था मांगी और बदले में सोने की मुठ वाली तलवार देने की पेशकश करी ।। भाटी जागीरदार ने जेसे ही तलवार देखी चेहरे का रंग बदल गया और जोर से चिल्लाये ,,"" अरे मलेछ ये तलवार तो आसलसर जागीरदार दीप सिंह जी की है तेरे पास कैसे आई ?"
मुसलमान टुकड़ी के मुखिया ने डरते डरते पूरी घटना बताई और बोला ठाकुर साहब 300 आदमियो की टुकड़ी को गाजर मूली जेसे काट डाला और हम 10 जने ही जिन्दा बच कर आ सके । भाटी जागीरदार दहाड़ कर गुस्से से बोले अब तुम दस भी मुर्दो में गिने जाओगे और उन्होंने तुरंत उसी तलवार से उन मलेछो के सिर कलम कर दिए ।।
और उस तलवार को ससम्मान आसलसर भिजवा दिया।।
ये सत्य घटना आसलसर गाँव की है और दीप सिंह जी जो इस गाँव के जागीरदार थे आज भी दीपसिंह जी की पूजा सभी समाज के लोग श्रदा से करते है। और हाँ वो "धामचला " धोरा जहाँ युद्ध हुआ वहां आज भी युद्ध की आवाजे आती है और इनकी पत्नी सती के रूप में पूजी जाती है और उनके भी चमत्कार के चर्चे दूर दूर तक है।
आज जो टीवी फिल्मो के माध्यम से दिखाया जाता है किसी भी गाँव के जागीरदार या सामंत सिर्फ शोषण करते थे और कर वसूल करते थे उनके लिए करारा जवाब है । गाँव के मुखिया होते हुए भी इनकी जान बहुत सस्ती हुआ करती थी कैसी भी मुसीबत आये तो मुकाबले में आगे भी ठाकुर ही होते थे। गाँव की औरतो बच्चो गायों और ब्राह्मणों की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहते थे। सत् सत् नमन है ऐसे वीर योद्धाओ को अपनी प्रजा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देते थे।
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