सौराष्ट्र मे कइ शासकोने अपने नेक टेक और धर्म से शासन कर प्रजामे अपने नाम को अमर किया है, एक एसे शासक हुए पुरे सौराष्ट्र पर जीनकी सत्ता चलती थी, जुनागढ के उपरकोट के किल्ले मे जिनकी राजगद्दी थी, वो थे चुडासमा राजवी रा’ डियास।
पाटणपति राजा दुर्लभसेन सोलंकी ने जुनागढ पर आक्रमण कीया। कइ साल घेरा रखने के बावजुद भी जब उस से उपरकोट का किल्ला जीत नही शका, सोलंकीने अपने दशोंदी चारण को बुलाया, दुर्लभसेन सोलंकी यह जानता था की रा’ डियास बहुत बडा दानी है, वे कीसी याचक को कभी निराश नही करेगा. अपने चारण को कीसी भी तरह से रा’ डियास का सर दान मे ले आने को कहा। उस समय युद्ध गंभीर कीतना हो लेकिन चारण कीसी भी पक्ष मे बिना रोकटोक जा शकते थे। रा’ डियास सोलंकी ओ का सामना करने हेतु सभा भर कर बेठे थे, वहां चारण आया, राजपुत सभा को रंग देकर दुहा-छंद की बिरदावली शुरु की, राजपुतो की प्रशस्ति के छप्पय छंद का आह्वान किया।
“धरा शीश सो धरे मरे
पण टेक ना मुके
भागे सो नही लडे शुरपद
कदी ना चुके
निराधार को देख दिये
आधार आपबल
अडग वचन उच्चार
स्नेह में करे नही छल
परस्त्रीया संग भेटे नही
धरत ध्यान अवधूत को
कवि समज भेद पिंगल कहे
यही धर्म राजपुत को”
एक एक दुहे पर रा’ डियास को शुरातन चडता जा रहा है, चारण की प्रशस्ति पुरी होते ही रा’ कुछ भी मांगने को कहते है, और चारण उसी समय का लाभ लेते हुए रा’ से उनका सिर दान में मंाग लेता हे, सारी सभा चकित हो जाती है, लेकिन रा’ के मुख पर एक दिव्य तेज सा स्मित रहता है, रा’ डियास एक पल का भी विलंब कीये बीना कमर पर बांधी ताती तलवार को छोड, गरदन पर तलवार चलाने से पहेले कहेते है, ” आज इस चारणने मुजे इतिहास मे अपना नाम अमर रखने का मोका दीया है, आज अगर मेरे हजार सर होते तो में हजारो सर का दान करता” और रा’ डियास ने चारण को अपने सर का दान दिया।
रा’ डियास की रानीयो ने जौहर कीया, लेकीन सोमलदे परमार नामकी रानी सगर्भा थी, इस लीए वे किल्ले से भाग जाती है, एक पुत्र को जन्म देती है, और उस पुत्र को जीवीत रखने हेतु अपनी वालबाइ नामकी दासी को पुत्र “नवघण” को सोंपकर कहेती है, ” आडीदर बोडिदर गांव मे जाकर वहा देवायत बोदर को कहना ये बालक को बडा करे और जुनागढ की गद्दी पर बीठाये” रानी सोमलदे ने देवायत बोदर को धर्म भाइ बनाया था, दासी छुपते-छुपाते बाल नवघण को आडीदर बोडिदर के आहीर देवायत के यहां ले आती है और सोमलदे का संदेशा देती देती है।
देवायत बोदर नवघण को आहीराणी को सोंपां और कहा: भगवान मुरलीधरने आज अपने को राजभक्ति दीखाने का अवसर दीया है, और आज से अपने तीन बालक है। आहीराणी ने अपनी बेटी जाहल का दुध छुडा दीया और नवघण को स्तनपान कराया, तीनो बच्चे नवघण, देवायत का बेटा उगा और बेटी जाहल को आहीराणी सोनबाइ मां का प्यार देने लगी, तीनो बच्चे एक साथ बडे होने लगे, पांच साल के हो गये, लेकिन एक देवायत से जलने वाला आहीर सोलंकीओ के पास जाकर फरियाद कर देता है: आपके दुश्मन रा’डियास का बेटा अभी जीवीत है, और देवायत के यहां बडा हो रहा है।
सोलंकीओ की समुद्र जेसी फोज ने आडीदर बोडीदर को घेर लीया। आहीर समाज को इकट्ठा कर एक एक आहीर से कठोरता से पुछा गया : सच बताओ ! क्या डियास का बेटा नवघण देवायत के घर मे पाला जा रहा है?
लेकिन स्वामीभ्कती के रंग मे रंगा पुरा आहीर समाज सिर्फ इतना जवाब देता है की: हमे पता नही है। देवायत बोदर के पास सोलंकी आते है, देवायत से कहेते है: राज के सामने तुम पटेलो ने उठकर दुश्मन बन रहे हो यह अच्छी बात नही, सच सच बताओ क्या नवघण तुम्हारे यहां बडा हो रहा है?
देवायत समज गया की जरुर कोइ आदमी दगा कर गया है, इस लीए देवायतने कबुल कर लीया, देवायत ने कहा : हां राजन! नवघण मेरे ही घर पर है, मेरे ही घर बडा हो रहा है। वहां बेठे सारे आहीरो को एकबार तो देवायत का सर धड से अलग कर देने को तैयार हो गये, लेकीन चारो तरफ सोलंकी की समशेरोने उन्हे घेर रखा था।
सोलंकी सरदार: तो आपा देवायत, सोलंकीओ की शक्ति से क्या आप परिचित नही हो?
क्या आप जानते नही हो की राज के शत्रु को शरण देने से आप का क्या हाल हो शकता है?
देवायत: राजन, में तो आप लोगो के प्रति मेरी राजभक्ति दिखाने के लीए नवघण को मेरे घर पाल रहा हुं, जब वो बडा हो जाता तो में खुद आकर उसे आपके पास छोड जाता, अब आप आ गये हो तो में घर पर पत्र लीख देता हु, आहीराणी को पत्र देते ही वे आपको नवघण सोंप देगी।
देवायत ने पत्र लीखा, आहीराणी, सोलंकीओ का जो शत्रु अपने घर पर इतने दिनो से पल रहा है, उसे इन आये हुए राजसैनीको के साथ भेज देना, रा’ रखकर बात करना, सौराष्ट्र और गुजरात की भाषा एक है किंतु उनकी बोलने की शैली अलग है। पत्र के अंत मे जो लीखा था “रा’ रखकर बात करना” उसका मतलब सैनीको के साथ खुद देवायत का बेटा उगा को भेजना है, नवघण को नही भेजना है। सोलंकीओने पत्र पढा पर उन्हे उस बात का पता नही चला। आहीराणी ने अपने बेटे उगा को राजसी वस्त्र पहनाये, आभूषणो से सुसज्ज कर के सैनीको के साथ भेज दीया। सोलंकी सरदारो ने देवायत के सामने ही उगा को नवघण समज कर सर धड से अलग कर दीया। कींतु देवायत के मुख पर एक भी दु:ख का भाव नही आया। देवायत के इर्षालुने फीर से सोलंकीओ को सुचना दी, ये अभी जो मरा वो नवघण नही बल्की उगा है, खुद देवायत ने अपनी ही संतान उगा को नवघण बनाकर आप से धोखा कीया है।
सोलंकी ओने उस बात की पुष्टि करने हेतु आहीराणी को म्रुतक की आंखो पर से चलने को कहा, अगर आहीराणी की आंखोसे एक भी आंसु गीरा या चहेरे हावभावमें कोइ भी परिवर्तन आया तो मरने वाला उगा था, नही तो मरने वाला नवघण ही था एसा मानते। आहीराणी को सभामें बुलाया गया और आहीराणी सोनबाइने आंखमें से एक भी आंसु गीराये बीना आंखो पर से चली गइ। साबीत हो गया की मरने वाला नवघण ही था। सोलंकी ओ ने देवायत को सन्मान दीया।
जब नवघण बीस साल का हो गया, एक ही मुष्टीका के प्रहार से हाथी के कुंभास्थल को तोड दे एसा जवांमर्द बन गया।
देवायतने अपनी बेटी जाहल का विवाह सासतीया नाम के आहीर से कीया। विवाह मे पुरे सौराष्ट्र के आहीर समाज को आमंत्रीत कीया। और देवायतने आये हुए सभी महेमानो से देवायत ने सत्य बताया की: उस दीन जो सोलंकीओ के हाथो मारा गया वो मेरा बेटा था, असली नवघण अभी जीवीत है। नवघण की मां, मेरी धर्मबहन रोज मुजे सपनो में पुछती है की नवघण को गद्दी पर बीठाने में अभी कीतना समय है?
लेकीन आहीरो आज समय आ गया है, आज जुनागढ का तख्त पलटेगा, आप सभी की सहायता से में अपने पुत्र की म्रुत्यु का प्रतिशोध लुंगा।
वहां उपस्थित सभी आहीरोने जाहल की शादी का आमंत्रण देने आये है एसा कहकर उपरकोट किल्ले मे प्रवेश कर गये, और योजना के मुताबीक अंदर जाते ही सोलंकीओ को संहार करने लगे। नवघण अपने ‘झपडा’ नाम के घोडे पर बैठ कर उपरकोट की दीवालो पर से तीरदांजी कर रहे सोलंकी सैनीको का नाश करने लगा. सोलंकी ओ को हार माननी पडी।
देवायत ने नवघण (इ.स. १०२५-१०४४) को गद्दी पर बीठाकर अपने रक्त से तीलक कीया। बहन जाहल के विवाहमें एक भाइ हर फर्ज अदा की, और बहन को कुछ भी मांगने को कहा, जमीन चाहीये तो जमीन, पुरा राज्य ताहीये तो पुरा राज्य और अगर बहन को सर चाहीये तो सिर दान भी दुंगा।
मगर जाहल ने कहा: नही भाइ, मुजे अभी कुछ नही चाहीये, कभी जरुरत पडी तो आप से मांग लुंगी…
बहन को विदा कर नवघण को गद्दी पर बीठाने के लीए जीतने भी आहीरोने सहायता की उनको योग्य भेट-सोगाद देकर नवघण ने आभार वियक्त कीया। फिर इतने अरसे मे कइ रजवाडे जुनागढ से जुदा हो गये थे, नवघण ने उन पर चडाइ कर के प्रथम उन्हे फिर से अपने राज्य विस्तारमे समा लीया, और पुन: पुरे सौराष्ट्र प्रांत को एक कर अपना राज्य विस्तार बनाया। प्रजा के हित के काम कीये।
कींतु सौराष्ट्र में अकाल पडा। बारीश हुइ नही, सारे नदि नाळे सुख गये। सारे मालधारी अपने गाय-भेंसो को लेकर सिंध आदि प्रांतोमे बसने चले गये।
रा’ नवघण पच्चीस साल का युवान, दोनो भुजाओ में अद्भुत बल, उसे अपने बल का प्रयोग कीये बीना रात को नींद नही आती एसा रणप्रेमी बन गया। सौराष्ट्र प्रांत में अपने दुश्मनो को एक एक करके खत्म कीये, गीर के जंगल में जाकर शेर का शीकार करता…
एक दिन एक भीखारी जेसा दीखने वाला आदमी उपरकोट के मुख्यद्वार पर बार बार आ रहा है, उसने पहेरेगीर से कहा : मुजे अंदर जाने दो, मुजे रा’ से मीलना है, मुजे उनका काम है।
लेकिन पहेरेदारो ने पागल समज कर भगा दीया। वो आदमी बहुत चिंतीत था. तुरंत वो रावल और हीरण नदी के संगमस्थान के पास गया, और वहां से घास तोडकर उसकी गठरी बांध ले आया, रा’ की घोडार के पास आ खडा हुआ, रा’ नवघण के घोडो का ध्यान रखने वाले आकर उस से घास खरीदने लगे, वो आदमी जानता था की रा’ को अपने सभी घोडो मे ‘झपडा’ नामका घोडा अति प्रीय है. और सप्ताह में एक दिन रा’ नवघण झपडा को देखने आते है, उस दीन रा’ से मुलाकात हो शकती है। इस लीये वो आदमी हररोज घास लाकर वहां बैठता था। रा’ नवघण अपने पसंदीदा झपडा घोडे को देखने आये, तभी वो आदमी आगे आकर रा’ के हाथ मे एक खत देता है। खत पढते ही रा’ की आंखोमें आसु आ जाते।
वो व्यक्ति जीसने रा’ को खत दीया, और जीसे पहेरेदारोने किल्लेमे प्रवेश नही करने दीया था, वो जाहल का पति सासतीया था।
खत मे लीखा था,
“मांडव अमारे म्हालतो बांधव दीधेल बोल।
आज कर कापडानी कोर जाहल ने जुनाणाधणी।।”
( हे बांधव, मेरे विवाह समय आपने मुजे वचन दीया था, कुछ भी मांगने को कहा था लेकीन हे जुनागढ के पति, मेने उस समय कुछ नही मांगा था लेकीन आज आप अपना वचन पुरा कर मेरी रक्षा करो।)
“नवघण तमणे नेह थानोरव ठरीया नही।
बालक बाळ्यप ले अणधाव्या उझर्या अमे।।”
( हे वीर, आप पर प्रेम होने से मेरी माता ने मुजे स्तनपान छुडाकर, मेरे भाग का दुध आपको पीलाया था, और मे बीना दुध पीये ही बडी हुइ, आज उस दुध की खातिर मेरी रक्षा करो।)
“तु आडो में आपियो उगा मायलो वीर।
समज्यो मांय शरीर नवघण नवसोरठधणी।।”
( हे सौराष्ट्र के भुप, आपके प्राणो की खातीर, मेरे पिता ने मेरे भाइ उगा का बलीदान दीया, पर आप अपने पुरे अंग को समज कर मेरी रक्षा करो)
“कुवे कादव आवीया नदीये खुट्या नीर।
सोरठ सडताणो पड्यो वरतवा आव्या वीर।।”
( हे वीर, सोरठ(सौराष्ट्र) में कुए खाली हो गये है, नदीओ का पानी सुख गया है, अकाल होने के कारण मे परिवार के साथ सोरठ से बाहर हु, मेरी रक्षा करो)
“नही मोसाळे मावलो नही माडीजायो वीर।
सिंधमां रोकी सुमरे हालवा नो दे हमीर।।”
( भाइ, मेरे मात्रुपक्ष में मेरी सहायता कोइ नही कर शकता, और मेरा कोइ भाइ भी नही है, एसी स्थितीमे में सिंध मे हु, और सिंध का राजा हमीर सुमरा मुज पर मोहीत है, वो मुजे अपनी रानी बनाना चाहता है, मुजे उससे बचाओ)
रा’ नवघण सासतीया से पुछते है, बात क्या हे ? मुजे पुरी बात बताओ।
सासतीया: सोरठ मे अकाल होने के कारण हम सिंधमें चले गये। वहां जाहल नदी से पानी भरने गइ थी, और उसी वक्त वहां से सिंध का राजा हमीर सूमरा ने जाहल को देखा, जाहल का सौंदर्य देखकर वह जाहल पर मोहीत हो गया है, जाहल को प्राप्त करने की उसकी इच्छा है, कामवासना में वह अंधा हो गया है, जाहल ने उस से छ: महीनो के व्रत का बहाना बनाया है, मुजे ये पत्र ले कर आपके पास जाहल ने भेजा। अब केवल एक महीना बचा है, अगर समय रहेते नही पहुंचे तो जाहल आत्महत्या कर लेगी लेकीन हमीर की इच्छा पुरी नही होने देगी।
रा’ नवघण ने तुरंत ही अपनी अस्वसेना तैयार की. पुरे सोरठ के नवयुवान शस्त्रो से सुसज्ज होकर रा’ की धर्मबहन जाहल की लाज बचाने हेतु जुनागढ पहुंच गये।
जेम राणो जेठवो, तेड वाढेर बलाखो,
कनक तेड केसुर, तेड झालो गोपाळो,
सोलंकी अइब, तेड शीलाजीत वाळो,
बाबरीयो रणधीर, तेड गोहील डाढाळो,
वाघेर तेड वीरमदे, काठी हरसुर करणो,
धाखडोने तेड बाळीण, पोहसेन नवघण समधरणा…
रा’ ने सोरठ में उंटसवार दोडाया ओर युद्धमे वीरो को आमंत्रीत कीया।
किरपाण मरदा कसी कम्मर
बदन भीडी बख्तरा
भुजदंड वेगे प्रचंड भाला
तीर बरछी तोमरा
हेमरा नवलाख हुकडे
खंत थी अरी खोडवा
नरपति सजीयो सैन्य नवघण
धरा सिंध धमरोळवा…
समंदर जेसी सेना के साथ नवघण नीकल पडा सिंध को पराजीत कर के बहन जाहल को बचाने…
मार्ग मे एक नेस आता है, रा के पुछने पर साथी बताता हे सांखडा नरा नामके चारण का नेस है।
इतने में एक दिव्य बालीका आकर रा’ के झपडा की लगाम पकड लेती हे, रा’ उन्हे समजाते की आप लगाम छोड दीजीये, घोडा आपको चोट पहुंचा देगा, तब वह बालीका कहती है, ” मे. वरुडी हुं, यह नेस मेरे पिता का है, और आज आप यहां से एसे ही नही जा शकते, आप हमारे महेमान हे, मे आपको सेना सहीत भोजन करा के ही विदाय करुंगी,”
रा’ नवघण: आइ, में आज मेरी पुरी सेना के साथ हुं, आपका नेस छोटा हे, मेरी सेना बहुत बडी हे।
आइ के कहना मानकर नवघण को आइ वरुडी पास भोजन के लीए रुकना पडा. लेकीन आइ वरुडी के चमत्कार से रा’ अनजान थे।
आइ वरुडी ने रा’ और पुरी सेना को पंगत में बीठाया. इतनी बडी सेना के लीये थाली थी नही. वरुडी की बहन शव्यदेव पास के बरगद के पेड पर चड गये, और बरगद के पत्तो की थालीया बना दी. आइ वरुडी ने अपनी एक ही कुलडी(एक पात्र) से ३२ पकवान रा’ नवघण को खीलाये. पुरी सेना को एक ही कुलडी से भोजन कराया. पुरी सेना ने कभी इतना स्वादिष्ट भोजन नही खाया था. सभी त्रुप्त हुये।
रा’ नवघण ने आइ वरुडी को हाथ जोडकर नमन कीया।
आइ वरुडी ने कहा: रा’ अगर आप सिंध जाते समय समुद्र के किनारे किनारे चलोगे तो समय पर नही पहुंच पाओगे।
रा’ ने मार्गद्शन मांगा।
आइ वरुडी: रा’ आप समुद्र के कीनारे जाकर मां खोडीयार का स्मरण करना ओर जब आपके भाले पर काली देवचकली आकर बेठे तो मानना आइ खोडीयार आपके साथ है, और आप समुद्र मे अपने घोडे को उतारना, आपको मां खोडीयार सहाय करेगी।
और नवघण ने अपनी सेना के साथ वहां से प्रस्थान कीया सिंध की ओर कच्छ प्रदेश की सीमा पुरी हुयी, आगे समुद्र आ गया। रा’नवघण ने मनोमन आइ खोडीयार का स्मरण कीया, उनसे समुद्र पार करने के लीए सहायता मांगी। इतने मे एक काले रंग की चीडीया जीसे देवचकली कहेते है, कहीं से आइ और रा’ के भाले की नोक पर बैठ गइ। सारी सेना ने एक साथ मां खोडीयार का जयघोष कर गगन को भर दीया। रा’ ने अपने झपडा को पानी मे चलाया, और पुरी सेना ने भी आस्चर्य के साथ समुद्र मे घोडे उतारे. लेकीन मां खोडीयार ने अपनी शक्ति से समुद्र मे भी मार्ग बना दिया। दोनो तरफ पानी की दीवार हो गइ बीच मे से पुरी सेना पसार हो रही थी।
उस तरफ जाहल बार बार सोरठ से आने वाले रास्ते पर नजर कर रही थी, मेरा धर्म भाइ आता होगा। क्युंकी आज हमीर सूमरा की दी गइ अवधी का अंतिम दिवस था. जाहल जगदंबा से प्रार्थना करने लग गइ, सुर्य अस्त होने वाला था।
हमीर सुमरा रात का आनंद लेने उतावला हुआ जा रहा था। नये वस्त्र पहेने, नये आभुषण सजे, कइ प्रकार के अत्तर का छंटकाव कीया।
जाहलने अंतिम बार सोरठ से आते रास्ते पर नजर की, कुछ नही था वहां, बीलकुल शांत वातावरण था उस मार्ग का, जाहलने निराश होकर समंदर की ओर देखा, और खुशी से उस की आंखे भर आयी, समंदर के पानी की दीवाल, बीचमें असंख्य अस्वदल आ रहा हे, ध्यान से जाहल ने देखा, पताका, उस के मुंह से उद्गार नीकले: घणी खम्मा मेरे वीर, वही पताका हे! मेरे देश सोरठ की ही पताका है! मेरा भाइ मेरी आबरु बचाने आ पहुंचा…
रा’ नवघण के सैन्य ने सुमरा हमीर के नगर में प्रवेश पा लीया…
रा’ का सैन्य सिंध के मुसलमानो को गाजर-मुली की तरह काटने लगा…
एसा लग रहा था जेसे भगवान सूर्यनारायण भी इस युद्ध देखने रुक गये हो, और आज जेसे वे भी सुमरा पर क्रोधित हुए हो इस तरह अपने क्रोध को दीखाकर धरती पर सांज का लाल प्रकाश गीराने लगे….
ढाल, तलवार, भाले के खनखनाट चारो और सुनाइ देने लगे, रण के देवता काल भैरव रक्त के पात्र भरने लगे, मारो मारो के हाहाकार चारो तरफ बोलने लगे, रा’ नवघण पुरे रण घुमने लगे, रक्त की धाराए बहने लगी, एक जगह हमीर सुमरा रा’ के सामने आ गया, दोनो बलवान योद्धा थे, एक एक कर दोनो तलवार के प्रहार कर रहे थे, हमीर सुमरा घोडे से गीर गया, रा’ नवघण भी घोडे से उतरकर जमीन पर आ गये, नवघण ने अपने बल का प्रयोग कीया तलवार से जनोइवढ घा कीया, और हमीर सुमरा का शीरच्छेद हुआ।
रा’ नवघण की विजय हुइ, हमीर सुमरा मारा गया, बहन जाहल को लेकर जुनागढ वापस आये…
गझनी ने ई.स १०२६ मे सोमनाथ लुंटा तब नवघण १६ साल का था, उसकी सेना के सेनापति नागर ब्राह्मन श्रीधर और महींधर थे, सोमनाथ को बचाते हुए महीधर की मृत्यु हो गई थी |
Navaghana was an early Chudasama king known only from the ballads and folklore of Saurashtra region of Gujarat, India. His capital was at Vamanasthali (now Vanthali) which he later moved to Junagadh during his last years of reign.
The bardic literature says his father Raa' Dyas was defeated by Patan Raja (probably Chaulukya king) and Navaghana was rescued.
Actually the story spans two generations, Solankis rajmata of gujarat gets insulted in junagad she sends her son king to kill father of raa navghan, the Uparkot fort is too strong, the mother of raa navghan gets pregnant but couldn't give birth due to some dark magic, 9 yr passes And atlast devi khodiyar blesses the queen and she gives birth (nav=9,ghan= years), and king of gujarat still outside fort, but now charan of gujarat kills raa'dyas of junagad in deceit. Mother sends navghan to another family dies on pyre, after few year the subedar of gujarat
Devat Bodar and his story of bravery, sacrifice and endless love towards his motherland!! A true Spirit like of Kshatriya warrior...
Devat Bodar raised Raa Navghan and his own son Uga together till they reached at the age of 12. Someone informed King Solanki that Raa Navghan had been raised by Devat Bodar. Devat Bodar was brought to the king's court and was asked that whether the information is true or not. Devat Bodar understood the situation and replied positively.
The king asked him to bring Raa Navghan. He wrote a famous encrypted message: "રા રાખી ને વાત કરજે આહિરાણી!" meaning "Oh! Ahirani talk but keep Raa!" to his wife Sonal. So his son instead of Raa Navghan is brought to the king, as no one could differentiate between Raa Navghan and Uga.
The King tested him, by asking him to kill Raa Navghan (who was actually Uga) by his own hands. Devat Bodar cut off the head of his son, to prove that to the King that he was not his son but was Ra Navghan.
The King was still not satisfied. So, he asked to bring Devat Bodar's wife Sonal and asked her to remove eyes from the head of dead Uga, keep it on ground, and walk on that eyes, without dropping even one drop of tear from her own eyes. As, it was such a cruel and hard test for a mother, but Sonbai did that, to prove that he was not her son.
Finally, the king came to the conclusion that the person whose head was cut off was Raa Navghan. Within 10 years to this event, Raa Navghan was grown up to attack Solanki.
When Navaghana grew up, he regained the throne. He may have been benefited by weakened Solankis due to invasion of Mahmud Ghazni who attacked desecrated the Somnath temple in 1026 CE. Raa'Navaghana came to power soon after the attack.
In 1025 Mahmud Ghazni army entered Gujarat capital Patan without any resistance.He looted city & damaged temples.His army obtained food & water & marched.His army arrived at Modherak (Modhera) which was big city.20000 Rajputs voluntarily gathered there sans leader to resist him.
In Dec. 1025 Mahmud Ghazni who was en route to Somnath was the first time resisted in Gujarat by 20000 volunteer Rajput soldiers at Modhera. Mahmud's army defeated 20000 Hindu Rajput warriors at Modhera. It was an unequal battle.20000 Rajputs sacrificed their lives for Dharma.
In 1025 Mahmud Ghazni won Modhera.Mahmud amazed to see Kund (water pool) surrounded by 1000 temples & sun temple in Modhera.He damaged them. At beginning of Jan.1026, Mahmud's huge army reached Delvada near Una in south Saurashtra via Bhal area.He ordered to destroy Delvada fort.
In January 1026 Mahmud Ghazni's army looted Delvada town near Somnath, killed people & destroyed temples.He marched to Somnath which was 1 day away.On 6-1-1026 Mahmud's huge army reached Somnath after very difficult roadless journey of 80 days from Ghazni(Afghanistan) to Somnath. Mahmud Ghazni army composed of 30000 cavalry,54000 irregular soldiers,10000 Bhishti, cooks, Maulavi,writers,historians,servants & 50000 camels.On Thursday 6-1-1026 Mahmud Ghazni reached Somnath. He ordered to attack Somnath on same day without wasting time as next day was Friday.
On night of Thursday when Mahmud army resting in camp,10000 soldiers of Sorath ruler Raa'Navghan arrived in Somnath under the command of Nagar army chief Mahidhar.
On Friday 7-1-1026 Mahmud prayed Namaz with soldiers & encouraged them by giving emotional lecture & attacked Somnath defence walls. On Friday 7-1-1026 Hindu guards, soldiers, Brahmins succeeded to defend Somnath small fort after a fierce battle till the end of that day war. On Saturday 8-1-1026 Mahmud Ghazni's army again attacked Somnath temple walls & succeeded to enter into fort gate.
On Saturday, 8 January 1026 Ghazni Sultan Mahmud Ghazni with his sons, Amirs,chiefs entered in Somnath temple with his soldiers shouting battle cry 'Allahu Akbar'. He broke Shivlinga & looted Somnath temple. It was 1st Muslim invasion of Somnath. Mahmud Ghazni's army killed the human wall of pilgrims, travellers, priests, Brahmins, employees, old, children, women & monks in the compound of Somnath temple. About 50000 were killed in 3 days on both sides. The temple area filled with corpses. Mahmud Ghazni army looted Somnath temple's gold, silver, jewellery, diamonds, pearls, gem stones, silk worth 100 million Dinar then. Mahmud Ghazni looted treasure of 100 million Dinars/210 million Rupees then.
The Lion of Junagadh, Raa' Navghan ji attacked on Sumra Padshah of Sindh to save His Sister Jahal, and crushed down the army of Sumra in their own Land, Sindh, n Killed Sumra Padshah..!!
Raa'Navghan sister is married to nomad. Who goes to sindh during a famine, The king hamir sumro of sindh sees jahhal and lusts on her she says she will marry him but after 6 months due to her devi vrat, thus buying time for his brother, who after 2-3 miracles(finding aai varudi, walking on water) finally reaches sindh and saves jahhal.
According to bardic tales and folklore, Navaghana reigned from 1026 CE to 1044 CE and he was succeeded by his son Khengara who reigned for 23 years (1144-1167 CE), followed by his son Navaghana. Udayamati, wife of Chaulukya ruler Bhima I, was a daughter of his son Khengara.
The construction of Navghan Kuvo, a stepwell in the Uparkot Fort, is attributed to him. It is considered an oldest example of stepwell in Gujarat by some scholars. Navaghan kuvo or well is a stepwell in Uparkot fort Junagarh Gujarat built in 11th century. The well is named after the Chudasama king Ra Navaghan.
In this stepwell the space of the well were carve out of the stone leaving the structure of the well ( the column ,the wall ) out of the original rock.The whole well is cut out of a single stone.
The stairs that lead down 52 mt to the water level spiral around the well shaft itself.
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