Thursday, February 25, 2021

1857 REBELLION AMARVEER THAKUR JHURI SINGH - IMMORTAL RAJPUTS


झूरी सिंह ने चार अंग्रेज अधिकारियों का किया था सर कलम, अंग्रेज अधिकारियों की हत्या के बाद मिर्जापुर पहाड़ी की तरफ भाग गए थे अंग्रेज
भदोही. देश की आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले कई ऐसे बलिदानी है जिनका नाम लेते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। ऐसे ही महानायकों में 1857 की क्रांति के शहीद झूरी सिंह है जिन्होंने भदोही से ऐसी क्रांति की बिगुल फूंकी की अंग्रेज उनके नाम से डर से जाते थे। झांसी से रानी लक्ष्मीबाई ,बलिया से मंगल पाण्डेय ने तलवार उठाई, वहीँ भदोही के झूरी सिंह ने क्रांति का बिगुल फूंका था।


एक समय था की झूरी ने कई क्रांतिकारियों की सेना को शरण भी दी थी। इस क्रांतिकारी ने रिचर्ड म्‍योर सहित चार अंग्रेजों का सर कलम कर दिया था जिसके बाद अंग्रेज भदोही से भागकर मिर्जापुर पहाड़ी पर पहुंच गए थे।


नाना साहब की सेना को दिया था शरण

शहीद झूरी सिंह के पांचवें वंशज के रामेश्वर सिंह बताते हैं कि 1857 की क्रांति में झूरी सिंह एक ऐसा नाम था कि अंग्रेज सुनते ही कांपने लगते थे। यह वही झूरी सिंह है जिन्होंने नाना साहब की सेना को उस समय शरण दी जब उनको अंग्रेजो ने घेर लिया था जब यह सूचना अग्रेजों को मिली तो उन्होंने झूरी सिंह के सहयोगी उतवंत सिंह को मार डाला। उस समय रिचर्ड म्योर मिर्जापुर वाराणसी सहित भदोही में नील की खेती की देख रेख करता था, जिसका मुख्यालय ज्ञानपुर स्थित पाली गांव था।

चार अंग्रेजों को किया था सर कलम:
अंग्रेज उस समय यहाँ के किसानों की जमीन पर जबरन नील की खेती करवाते थे। नील की खेती से अग्रेजों को बहुत ही बड़ा लाभ होता था पर यहाँ के किसान के सामने रोजी रोटी का संकट गहराने लगा था। झूरी सिंह ने अवैध नील की खेती का विरोध किया झूरी सिंह के बड़े भाई ने क्रूर अंग्रेज अफसर रिचर्ड म्योर को मारने का जिम्मा लिया। अग्रेजों को यह पता चलने पर उन्होंने झूरी सिंह के बड़े भाई को फांसी दे दी और झूरी सिंह पर एक हजार रूपये का इनाम रख दिया। क्रूर रिचर्ड म्योर को मारने के लिए झूरी सिंह और उनके सहयोगियों के साथ मिलकर घेरा बंदी कर रिचर्ड म्योर सहित चार अंग्रेज अफसरों का सर कलम कर दिया, जिसके बाद पूरा अग्रेजो का शासन हिल गया था।


झूरी सिंह को धोखे से दी गई थी फांसी
यूरोपीय इतिहासकार जेक्सन ने लिखा है की 10 जून 1857 को भदोही में क्रांति ने बहुत ही व्यापक रूप लिया। क्रांति इतनी तेज हुई की अग्रेज सिपाही मिर्जापुर पहाड़ी की तरफ भाग गए थे। जिसके बाद झूरी सिंह को पकड़ने के लिए मेजर वार नेट , मेजर साइमन ,पी वाकर ,मिस्टर टकर और हेग की एक टीम बनाई गयी थी। अंग्रेजों ने झूरी सिंह के परऊपुर गाँव में कहर ढा दिया और धोखे से झूरी सिंह को पकड़ कर गोपोगंज में फांसी पर लटका दिया।  झूरी सिंह को फांसी देने के बाद यह ऐलान किया गया की कोई उनके शव को पेड़ से नही उतरेगा यह उन्होंने इसलिए किया की कोई और झूरी सिंह जैसा कदम न उठाये। झूरी सिंह के गांव के कई साथियो को काला पानी की सजा भी दी गयी थी। एक लेखक ने कुछ लाईने भी लिखी क्वझूरी सिंह का लहू मिला है ,परऊपुर की माटी में। राणा का साहस लेता , अंगड़ाई हल्दी घाटी में।

शहीद झूरी सिंह के गांव को अब भी है विकास का इंतजार
गांव के लोगों का कहना है कि झूरी सिंह द्वारा किये गए कार्य और उनकी क़ुरबानी को पूरा जिला ही नहीं बल्कि पूरा देश लोहा मानता है पर आज वही झूरी सिंह गुमनामी के अंधेरे में है।  झूरी सिंह का गाँव परऊपुर जहा उनका जन्म हुआ और जहां से उन्होंने क्रांति का मशाल जलाया था आज यह गांव विकास की राह देख रहा है।  शिक्षा,रोजगार ,स्वास्थ्य सेवा सहित तमाम मूलभूल आधारभूत समस्याओ से अभावग्रस्त है।



उनकी इकलौते स्मारक जो पूर्व मुख्यमंत्री वी.पी.सिंह द्वारा बनवाया थी जिसका उद्घाटन पूर्व मुख्य मंत्री वी पी ने किया था उस पर आज कोई पुष्प अर्पित करने वाला कोई नही है जिसका दुःख गाँव वासियों के साथ पुरे जिले को लोगों को है।  उनके वंशजों का कहना है हमको देश के कौने कौने में होने वाले महोत्सव में पुरस्कृत कर सम्मानित किया जाता है लेकिन हम और हमारा गांव जिस सम्मान का प्यासा है वह हमे नही मिल रहा है।


परऊपुर को क्रांति ग्राम बनाने की मांग
शहीद झूरी सिंह और उनके साथियों ने जो क़ुरबानी दी उसको न तो सरकार के नुमइंदे याद करते है न वह जिन्हें हमने कुर्सी दी।  आज गांव के बच्चे दो किलोमीटर दूर पढ़ने जाते है ,रोजगार न होने की वजह से नौजवान दूसरे प्रदेशों में काम करते है और तो और ज्ञानपुर से दुर्गागंज सड़क मार्ग का नाम झूरी सिंह मार्ग रखा गया था उसे भी बदल दिया गया है। गांव के लोगो और झूरी सिंह के वंशजों के मांग है की परऊपुर गांव को क्रांति ग्राम बनाया जाए।


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