Friday, September 18, 2020

YADUKUL PARAMVEER YODHA BHANJI DAL JADEJA / BATTLE OF MAJEVADI, JUNAGADH AND TAMACHAN - IMMORTAL RAJPUTS

राजपूत एक वीर स्वाभिमानी और बलिदानी कौम जिनकी वीरता के दुश्मन भी कायल थे, जिनके जीते जी दुश्मन राजपूत राज्यो की प्रजा को छु तक नही पाये अपने रक्त से मातृभूमि को लाल करने वाले जिनके सिर कटने पर भी धड़ लड़ लड़ कर झुंझार हो गए।


वक़्त विक्रम सम्वंत १६३३ (१५७६ ईस्वी)। मेवाड़,गोंडवाना के साथ साथ गुजरात भी उस वक़्त मुगलो से लोहा ले रहा था। गुजरात में स्वयं बादशाह अकबर और उसके सेनापति कमान संभाले थे।
अकबर ने जूनागढ़ रियासत पर १५७६ ईस्वी में आक्रमण करना चाहा तो वहा के नवाब ने पडोसी राज्य नवानगर (जामनगर) के राजपूत राजा जाम सताजी जडेजा से सहायता मांगी। क्षत्रिय धर्म के अनुरूप महाराजा ने पडोसी राज्य जूनागढ़ की सहायता के लिए अपने ३०,००० योद्धाओ को भेजा जिसका नेतत्व कर रहे थे नवानगर के सेनापति वीर योद्धा भानजी जाडेजा।


सभी राजपूत योद्धा देवी दर्शन और तलवार शास्त्र पूजा कर जूनागढ़ की और सहायता के लिये निकले लेकिन माँ भवानी को कुछ और ही मंजूर था। उस दिन जूनागढ़ के नवाब ने अकबर की स्वधर्मी विशाल सेना के सामने लड़ने से इंकार कर दिया और आत्मसमर्पण के लिए तैयार हो गया। उसने नवानगर के सेनापति वीर भानजी दाल जडेजा को वापस अपने राज्य लौट जाने को कहा। इस पर भान जी और उनके वीर राजपूत योद्धा अत्यंत क्रोधित हुए और भान जी जडेजा ने सीधे सीधे जूनागढ़ नवाब को राजपूती तेवर में कहा "क्षत्रिय युद्ध के लिए निकलता है या तो वो जीतकर लौटेगा या फिर रण भूमि में वीर गति को प्राप्त होकर"

वहा सभी वीर जानते थे की जूनागढ़ के बाद नवानगर पर आक्रमण होगा इसलिये सभी वीरो ने फैसला किया की वे बिना युद्ध किये नही लौटेंगे।

अकबर की सेना लाखो में थी और उन्होंने मजेवाड़ी गाँव के मैदान में अपना डेरा जमा रखा था। इस युद्ध में जैसाजी वजीर भी भानजी के साथ में थे। बादशाह की सेना के पास कई तोपे थी जो सबसे खतरनाक बात थी। इसीलिये जैसाजी ने भानजी को सुझाव दिया की तोपो को निष्क्रीय करना बहुत जरुरी है और कहा की ये काम आप ही कर सकते हो। अतः भान जी जाडेजा ने मुगलो के तरीके से ही कूटनीति का उपयोग करते हुए अपने चुनिंदा राजपूत योद्धाओ को साथ लेकर तोपो को निष्क्रिय करने के लिये आधी रात को धावा बोलने का निर्णय लिया। सभी योद्धा आपस में गले मिले फिर अपने इष्ट का स्मरण कर शत्रु छावनी की ओर निकल पड़े। वहॉ पहुँचकर एक एक कर तोपो में नागफनी की कीले ठोक कर उन्हें निष्क्रीय करने लगे। मुगलो को पता चलने पर बहुत संघर्ष हुआ जिसमे अनेक योद्धा घायल और वीरगती को प्राप्त हुए लेकिन सभी तोपो को निष्क्रिय करने में सफल हुए। इतने में जसा जी पूरी सेना के साथ आ गए और आधी रात को ही भीषण युद्ध शुरू हो गया।

मुगलो का नेतृत्व मिर्ज़ा खान कर रहा था। उस रात राजपूत सेना द्वारा हजारो मुगलो को काटा गया और मिर्जा खान युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ा हुआ। सुबह तक युद्ध चला और मुग़ल सेना अपना सामान छोड़ भाग खड़ी हुयी। युद्ध में भान जी ने बहुत से मुग़ल मनसबदारो को काट डाला और हजारो मुग़ल सैनिक मारे गए।

बादशाह अकबर जो की सेना से कुछ किमी की दुरी पर था वो भी उसी सुबह अपने विश्वसनीय लोगो के साथ काठियावाड़ छोड़ भाग खड़ा हुआ।

नवानगर की सेना ने मुगलो का २० कोस तक पीछा किया और जो हाथ आये वो काटे गए। अंततः भान जी दाल जडेजा ने मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से ५२ हाथी, ३५३० घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में लिया।

उस के बाद राजपूती फ़ौज सीधे जूनागढ़ गयी वहा के नवाब को कायरता के लिये सबक सिखाने के लिए। जूनागढ़ के किले के दरवाजे भी उखाड दिए गए और ये दरवाजे आज जामनगर में खम्बालिया दरवाजे के नाम से जाने जाते है जो आज भी वहा लगे हुए है।
बाद में जूनागढ़ के नवाब को शर्मिंदगी और पछतावा हुआ। उसने नवानगर महाराजा साताजी से क्षमा मांगी और दंड स्वरूप् जूनागढ़ रियासत के चुरू ,भार सहित २४ गांव और जोधपुर परगना (काठियावाड़ वाला)नवानगर रियासत को दिए।

कुछ समय बाद बदला लेने की मंशा से अकबर फिर आया और इस बार उसे "तामाचान की लड़ाई" में फिर हार का मुँह देखना पड़ा।
इस युद्ध का वर्णन गुजरात के इतिहास के बहुत से ग्रंथो में है जैसे नर पटाधर नीपजे, सौराष्ट्र नु इतिहास जिसे लिखा है शम्भूप्रसाद देसाई ने। इसके अलावा Bombay Gezzetarium published by Govt of Bombay, साथ ही विभा विलास में, यदु वन्स प्रकाश जो की मवदान जी रतनु ने लिखी है आदि में इस शौर्य गाथा का वर्णन है।

तामाचान की लड़ाई

ऊपर हमने देखा की कैसे मजेवड़ी के मैदान में सम्वत १६३३ में जाडेजा राजपुतो ने भान जी दल जाडेजा और जैसा जी वजीर के नेत्रत्व में मुग़ल लश्कर को पस्त कर दिया था |भान जी दाल जडेजा ने मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से ५२ हाथी, ३५३० घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में लिया था और मुगल सेनापति मिर्जा खान तथा अकबर सौराष्ट्र से भाग खड़े हुए थे. सरदार मिर्ज़ा खान ने अहमदाबाद जाकर सूबेदार शाहबुदीन अहमद खान को बताया की किस तरह जाम साहिब की फ़ौज ने उनके लश्कर का बुरी तरह नाश कर दिया और वो अपनी जान बचाकर वहा से भाग निकला | खुद अकबर भी इस हार से बहुत नाराज था | अब मुगल सेना नवानगर को नष्ट करने के प्रयोजन पर लग गई और जल्दी ही कुछ वर्ष बाद सम्वत 1639 में शाहबुदीन ने खुरम नामके सरदार को एक प्रचंड सैन्य के साथ जामनगर पर चढाई करने के लिए भेजा |

मुग़ल सूबे का बड़ा लश्कर जामनगर(नवानगर) के ऊपर आक्रमण करने के लिए आ रहा हे ये बात जाम श्री सताजी साहिब को पता चलते ही उन्होंने जेसा वजीर और कुंवर अजाजी को एक बड़ा लश्कर लेकर उनके सामने युद्ध करने के लिए चल पडे | इस सैन्य में पाटवी कुंवर अजाजी,कुंवर जसाजी,जेसा वजीर, भाराजी, रणमलजी, वेरोजी, भानजी दल, तोगाजी सोढा ये सब भी थे | जाम साहिब सताजी अपने सेना को लेकर तमाचन के गाव के पादर मे उंड नदी ने के किनारे आके अपनी सैन्य छावनी रखी | मुग़ल फ़ौज भी सामने गोलिटा नामके गाव के पास आ कर रुक गई |

मुग़ल फ़ौज के जासूसों ने सूबेदार को कहा की जाम साहिब के लश्कर में तोपे और वीर योद्धाओ का भारी मात्रा में ज़ोर हे, इसिलिए अगर समाधान हो सके तो अच्छा रहेगा | ये बात सुनकर खुरम भी अंदर से डर गया और उसने जाम सताजी को पत्र लिखा:-
“ साहेब आप तो अनामी है, आपके सब भाई, कुंवर और उमराव भी युद्ध से पीछे हठ करे ऐसे कायर नहीं हे | हम तो बादशाह के नोकर होने की वजह से बादशाह जहा हुकुम करे वह हमको जाना पड़ता हे, उनके आदेश के कारण हम यहाँ आए हुए है, पर हमारी इज्जत रहे ये अब आपके हाथ में है |”
इस पत्र को पढ़ते ही जाम साहेब ने जेसा वजीर से सलाह मशवरा करने के बाद जवाब भेजा की “ आप लोग एक मंजिल पीछे हट जाइए” ये जवाब मिलते ही खुरम ने दुसरे दिन सुबह होते ही पड़धरी गाव की दिशा में कुच की , वो एक मंजिल पीछे हट गया | ये देखकर जाम साहिब ने जाम साहिब ने उसे कुछ पोशाक-सोगात देकर उसे कुछ किए बिना अपने लश्कर को लेकर जामनगर की और रवाना हो गए | ये देखते ही कुंवर जसाजी ने जाम साहिब से कहा की हुकुम अगर आपकी अनुमति हो तो हम यहाँ पे थोड़े दिन रुकना चाहते हे | इस बात को कबुल करके जाम साहिब ने भारोजी, महेरामनजी, भानजी दल, जेसो वजीर और तोगाजी सोढा इन सब सरदारों के साथ २०,००० के सैन्य को वह पे रुकने दिया और खुद जामनगर की तरफ रवाना हो गए | कुंवर जसाजी ने तमाचन के पादर में अपना डेरा जमकर वहा पर खाने-पीने की बड़ी मिजबानी करने की तयारी करने लगे |

कुंवर जाम श्री जसा जी


इस तरफ खुरम का जासूस ये सब देख रहा था | उसने फ़ौरन जाकर खुरम को बताया की जाम साहिब का लश्कर जामनगर जा चूका हे, यहाँ पर सिर्फ २०,००० का सैन्य हे | ये सब लोग मेजबानी में शराब की महफ़िल में व्यस्त हे, ये सही समय हे उनपे आक्रमण करने का | बाद में हम कुंवर को पकडके जाम साहिब को बोलेंगे की मजेवाडी के युद्ध में हुए हमारे नुकशान की भरपाई करो हमारा सामान वापस दो वरना हम आपके कुंवर को मुसलमान बना देंगे | इससे हमारी इज्जत भी रहेंगी और अहमदाबाद जाकर शाहबुदीन सूबेदार और बादशाह को भी खुश कर देंगे |

इस बात को सुनने के बाद खुरम तैयार होकर अपने शस्त्र के साथ हाथी पर बैठा अपनी तोपों को आगे बढाया अपने सैन्य और घुड़सवार को लेकर तमाचन की तरफ चल पड़ा |

इस बात की जाम साहिब की छावनी में किसी को भनक तक नहीं थी | वह पर सभी आनंद-प्रमोद में मस्त थे | वही परअचानक आसमान में धुल उडती देख जेसा वजीर ने अपने चुनिदा सैनिको को आदेश दिया की “ये धुल किसकी हे पता करके आओ, मुझे लगता हे इन तुर्कों ने हमसे दगा किया हे | सैनिक तुरंत खबर लेके आए की खुरम की फ़ौज हमारे तरफ आगे बढ़ रही हे | इस बात को सुनते ही जेसा वजीर ने कुंवर जसाजी को कहा की “ आप जामनगर को पधारिए हम आपके सेवक यहाँ पे युद्ध करेंगे” कुंवर जेसाजी ने जवाब दिया की “ इस समय अगर में पीठ दिखा कर चला गया तो में राजपुत नहीं रहूँगा, जितना हारना सब उपरवाले के हाथ में है, पर रणमैदान छोड़ कर चला जाना क्षात्र-धर्मं के खिलाफ है |”

कुंवर जसाजी ने ये कहेकर अपनी फ़ौज को तैयार किया और उंड नदी को पार करते हुए सामने की तरफ आ पहोचे | दोनों तरफ से तोपों और बंदुके चलने लगी और कई सैनिक मरने लगे | ये देखकर बारोट कानदासजी रोह्डीआ ने जेसा वजीर से कहा की “हे वजीर तु सब युद्ध कला जनता हे, फिर भी हमारे लोग यहाँ मर रहे है, और तू कुछ बोल क्यों नहीं रहा ? इस तरह लड़ने से हमारी जीत नहीं होगी, मेरी मानो तो हर हर महादेव का नारा बुलाकर अब केसरिया करने का वक़्त आ गया हे, अपने घोड़े पर बैठकर मुग़ल सेना से भीड़ जाओ , फिर उस तुर्कों की क्या औकाद है हम देखते ही उनका संहार कर डालेंगे” ये सुनकर जेसा वजीर और कुंवर जसाजी, भाणजी दल, मेरामणजी, भाराजी सब हर हर महादेव का नारा लगाकर केसरिया करने को तैयार हो गए | हाथ में भाले लेकर सब मुग़ल सेना से भीड़ पडे तलवारे निकल कर सबको काटने लगे चारो तरफ खून ही दिख रहा था, मांसाहारी पक्षी आसमान में दिखने लगे, पुरा रणमैदान रक्त से लाल हो गया था | इतना बड़ा राजपुतो और मुगलो के बीच में युद्ध हुआ था की देखते ही देखते वह १५,००० लाशो से रणमैदान भर गया | खुरम की फ़ौज के सैनिक डर के मारे भागने लगे | खुरम खुद अपने हाथी में से उतरकर घोड़े पर बैठ के भाग गया | जाम श्री सताजी साहिब के सैन्य ने विसामण नाम के गाव तक मुग़ल फ़ौज का मारते मारते पिछा किया | वहां से वे रुक गए जीत के ढोल बजाते हुए रणमैदान में वापस आ कर बादशाही खजाने तंबू, मुग़ल के नगारे, ३२ हाथी, सेंकडो घोड़े, तोपे, रथ आदि लेकर कुंवर जसाजी के साथ जामनगर पधारे |

इतनी सी छोटी उमर में कुंवर जसाजी का ये अदभुत पराक्रम देखकर जाम सताजी बहुत खुश हो गए | उन्होंने जेसा वजीर, महेरामणजी, भाराजी , भानजी दल तथा तोगाजी सोढा आदि सरदारों को अमूल्य भेट अर्पण की इसके साथ ही जो सैनिक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे उनके परिवार को जागीर में जमीने और अमुक रमक देने का वचन दिया |

जाडेजा राजपुतो ने अपने राजा की गैरहाजरी में भी उनके सरदारों ने सूझ-बूझ का परिचय देकर और अपने से ज्यादा बड़ी मुगल फ़ौज जिससे लड़ने से भी बड़े-बड़े राजा महाराजा डरते थे उसको न केवल हराकर बल्कि रण-मैदान से भगाकर अदम्य शाहस और राजपुती शौर्य का परिचय दिया था |

भूचर मोरी का युद्ध

राजपूत कभी अपने आशरा धर्म को करने में विफल रहता है।

पूर्व गुजरात सुल्तान को बचाने के लिए अकबर की सेना के साथ लड़ा। अहमदाबाद के राजा, मुज़फ्फर शाह .. !! उन्होंने युद्ध एन खो दिया शहीद बन गया क्योंकि जूनागढ़ के नवाब ने जामनगर के जडजास को धोखा दिया ... !!

१५७२ में मुगल सम्राट अकबर ने गुजरात को गुजरात से गुजरात जीता, आखिरी सुल्तान मुजफरशाह तीसरा जो भाग गया, लेकिन काादी के पास जोताना में पकड़ा गया और जेल में भेजा गया। १५७८ में गुजरात पूर्व-सुल्तान मुजफर दिल्ली मुगल जेल से बच निकले और राजपिपला वन में गुजरात और छुपा हुआ। उन्होंने १५८३ में अपने पुराने प्रमुखों की सेना को इकट्ठा किया गुजरात पूर्व-सुल्तान मुजफर ने मुगल ने अहमदाबाद पर शासन किया और मुगल गवर्नर इटिमखान से भी जीता। उन्होंने भी जीता वडोदरा और भरूच। १५८४ में गुजरात के कमांड के तहत विशाल मुगल सेना नई मुगल गवर्नर मिर्जा अब्दुरहिमखन / मिर्जखान ने विद्रोही पूर्व सुल्तान मुजफर को हराया।

उन्होंने भाग लिया गुजरात पिछले पूर्व-सुल्तान मुजफर को गुजरात और सौराष्ट्र में १५८४-१५९२ के दौरान घूम रहा था और घूम रहा था। उन्हें लगातार मुगल सेना द्वारा पीछा किया गया था। १५९२ में घूमने वाले गुजरात पूर्व सुल्तान मुजफरशाह ने सौराष्ट्र शासकों की शरण लेने की कोशिश की लेकिन जामनगर शासक जाम सतजी को छोड़कर सभी ने इनकार कर दिया। १५९२ में जामनगर जडेजा शासक जाम छत्रसालजी / सतजी ने माफी मिजल पावर के खिलाफ पिछले पूर्व-सुल्तान मुजफ़रशाह के लिए शरण दी। गुजरात मुगल गवर्नर मिर्जा अज़ीज़ कोकाल्टाश ने जामनगर शासक जाम सतजी को गुजरात पूर्व-सुल्तान मुजफर को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया १५९२ केशत्ररी धर्म के रूप में धर्म जामनगर शासक जाम सतजी ने अपने शरणार्थी गुजरात को मुगल सम्राट अकबर को सौंपने से इंकार कर दिया

जामनगर शासक जाम सतजी की १५९२ में सहयोगी सेनाओं में जुनागढ़ शासक डोलताखन गोरी और कथी लोमा खुमन ने भुखर मोरी-ध्रोल में धोखाधड़ी में छावनी दी। यह मानसून और बारिश थी मुगल सेना तेजी से १५९२ के श्रवण एसयूडी ६ पर विरामगाम से दीरोल में पहुंची थी।

मुगल सेना के जामनगर युद्ध गठन के साथ भयंकर लड़ाई शुरू हुई:

दाहिने तरफ साईद कासिम, नवरोज़खान, गुजरखन;

सेंटर-मिर्जा मार्हान; बाईं ओर-मुहम्मद राफी;

फ्रंट-मिर्जा अनवर में।

जामनगर साइड चीफ राजपूत योद्धाओं:

सेना प्रमुख यीसा वजीर और शासक जाम सतजी जडेजा,
महेहानजी डंजानानी,
नागाडो वज़ीर,
दह्यो लडक और भंजी दल।

भुचर मोरी ध्रोल के पास एक बड़ा सादा है। युद्ध का सबसे बड़ा दिन बिना परिणाम के पास हुआ। दोनों सेनाएं बहादुरी से लड़ीं और हजारों सैनिक मारे गए।

एक महत्वपूर्ण समय में १५९२ ईस्वी के श्रवण वाड ७ पर १ दिन के अंत में, जूनागढ़ शासक दौलतखन गोरी और कथी लोमा खुमन ने जामनगर शासक को धोखा दिया। अपने २४००० सैनिकों के साथ डॉल्तखन गोरी और लोमा खुमन ने मुगल सेना के साथ बदल दिया और शामिल हो गए। यह बड़ा झटका था जो युद्ध की संतुलन बदल गया। जनशष्टमी पर बहुत ही भयंकर लड़ाई लड़ी।


जामनगर क्राउन प्रिंस अजजी ५०० दोस्त के साथ अपने विवाह समारोह से सीधे आए। भद्रेश्वर कच्छ शासक हला मेहरामनजी अपने १४ बेटों के साथ शहीद बन गए। द्वारका तीर्थयात्रा से लौटने वाले १५०० नागा बावा ने युद्ध में बहादुरी से लड़ा। १५९२ मुगल सेना के जन्माष्टमी ने भुचर मोरी युद्ध जीता जो सौराष्ट्र इतिहास में आखिरी बड़े पैमाने पर बड़ी लड़ाई है।


शत-शत वंदन उन वीर हुतात्माओं को जिन्होंने आश्रय धर्म निभाते हुवे भूचर-मोरी के ऐतिहासिक युद्ध मे वीरगति प्राप्त की...🙏

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