Monday, June 14, 2021

दान यज्ञ कोई ध्यान योग नेहि, नाही शब्द विचारा। नित दर्शन दे इक नेम ने भव से पार उत्तारा


कभी .... घबराता मन है।

कभी .... समझाता मन हैं।

अगर अंधेरा छा जाये तो।

मन का दीप जलाता मन है।

विषय भोग में कभी फसाता।

जीवन मुक्क्त कराता मन है।

साथी कोई दूर खड़ा है।

उसको पास बुलाता मन है।

अपनो में गैरो सा बन कर

मन पर चोट लगता मन है।

जिसको अक्सर भूलना चाहो,

रूप वही दिखलाता मन है।


पर अज्ञानी का प्रेम हानिकारक हो सकता है परंतु वहीं ज्ञानी का क्रोध भी हानिकारक नही है। वह केवल हितकर ही हो सकता है।

पुराणों में इस विषय पर अनेक उदाहरण है। एक बार एक गुरु भारत के मध्य भाग में कही यात्रा कर रहे थे। उसका एक शिष्य उनके कुछ पीछे चल रहा था। कुछ दुष्ट बच्चों ने शिष्य पर पत्थर फैकना शुरू किया। वे उसे चिढ़ाने लगे और गाली देने लगे। वे गुरु और शिष्य के पीछे हो लिए और ऐसा ही कुछ समय तक चलता रहा।

वे सब एक नदी के तट पर पहुंचे। नदी पार करने के लिए गुरु और शिष्य एक नाव पर बैठे। बच्चे भी दूसरी नाव पर बैठ गए। बीच नदी में पहुंच कर उनकी नाव डूबने लगी।

गुरु ने शिष्य के गाल पर एक तमाचा लगाया। शिष्य चकित रह गया क्योंकि बच्चों के जवाब में उसने एक शब्द भी कहा नही था। वह समझ नही सका कि इतना अच्छा शिष्य होने पर भी गुरु ने उसे क्यों मारा?

गुरु ने कहा, " यह सब तुम्हारा दोष है। उनकी नाव डुबने के लिए तुम जिम्मेदार हो। तुमने उनके बुरे शब्दों का कोई उत्तर नही दिया। क्योंकि तुम में इतनी दया नही थी की तुम उनके बुरे शब्दों को रोको, इसलिए। प्रकृति ने अब उन्हें इतना कठोर दंड दिया है।"

गुरु के तमाचे ने इस घटना के बुरे कर्मों से बच्चों के भावी जीवन को प्रभावित होने से बचा लिया। साथ ही बच्चों की नाव डूबते देखकर शिष्य के मन मे आये आनंद को दूर कर दिया। इस प्रकार शिष्य को भी इस घटना के कर्म से बचा लिया। 

अतः ज्ञानी का क्रोध भी आशीर्वाद है। जो कि प्रभु भक्ति में विश्वास एंव प्रेम से स्वाभाविक प्राप्त होता है।

जो कि ईश्वर नही चाहते कि तुम उन पर और ज्यादा विश्वास करो क्योकी जितना अधिक आपका विश्वास होगा, उतना ही ईश्वर का काम बढ़ जाएगा। तब ईश्वर को तुम्हारे पीछे भागना होगा, वे तुम्हारे वश में हो जाएंगे। ईश्वर श्रद्धालु भक्तों के सेवक हैं। और इसलिए उन्हें बहुत ज़्यादा ऐसे भक्त नही चाहिए जो उन्हें बताएं कि उन्हें क्या करना चाहिये।

प्रेम सबसे बड़ी शक्ति है, और वही शक्ति तुम्हें बिल्कुल कमज़ोर भी बना देती है। इसलिए ईश्वर-परम ज्ञानी-प्रकृति-नही चाहते कि तुम्हारा प्रेम और विश्वास और अधिक बड़े। अत्यधिक प्रेम और निष्टसे तुम ईश्वर को कमजोर बना देते हो।


मामा श्री जी...........🕉️🕊️

इसलिये, ईश्वर के लिए तो यही अच्छा है कि तुम्हारी श्रद्धा, भक्ति कम रहे । सब कुछ तो वैसे ही चलता रहेगा। क्यों बदलो? बस, खुश रहो।

अपने में ईश्वर को देखना ध्यान है।

दूसरे व्यक्ति में ईश्वर को देखना प्रेम है।

सर्वत्र ईश्वर को देखना ज्ञान है।

प्रेम की अभिव्यक्ति सेवा है।

आनंद की अभिव्यक्ति मुस्कान है।

शांति की अभिव्यक्ति ध्यान है।

ईश्वर की भक्ति सचेत क्रिया है।






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