Saturday, February 18, 2017

BRAVE RAO JAIMAL VIKRAM RATHORE- IMMORTAL RAJPUTS





बात उस समय की है जब चित्तोर पर अकबर का आक्रमण होने वाला था और राणा उदय सिंह को मेवाड़ के सरदारो ने सुरक्षित रखने के लिए कुम्भलगढ़ भेज दिया था तथा उदयसिंह ने राव जयमाल मेड़तिया को सम्पूर्ण चित्तोर का भार सौप सेनापति नियुक्त किया था ये महाराणा प्रताप के सैनिक गुरु भी थे जयमल मेडतिया| मेड़ता छोड़ने के बाद वह अपने परिवार व साथी सरदारों के साथ वीरों की तीर्थ स्थली चितौड़ के लिए रवाना हो गया | 

उस ज़माने में चितौड़ देशभर के वीर योद्धाओं का पसंदीदा तीर्थ स्थान था मातृभूमि पर मर मिटने की तम्मना रखने वाला हर वीर चितौड़ जाकर बलिदान देने को तत्पर रहता था | 

जयमल का काफिला मेवाड़ के पहाड़ी जंगलों से होता हुआ चितौड़ की तरफ बढ़ रहा था कि अचानक एक भील डाकू सरदार ने उनका रास्ता रोक लिया अपनी ताकत दिखाने के लिए भील सरदार ने एक सीटी लगाई और जयमल व उसके साथियों के देखते ही देखते एक पेड़ तीरों से बिंध गया | 
जयमल व साथी सरदार समझ चुके थे कि हम डाकू गिरोह से घिर चुके है और इन छुपे हुए भील धनुर्धारियों का सामना कर बचना बहुत मुश्किल है वे उस क्षेत्र के भीलों के युद्ध कौशल के बारे में भलीभांति परिचित भी थे | 
कुछ देर की खामोशी के बाद राव जयमल के एक साथी सरदार ने जयमल की और मुखातिब होकर पूछा - "अठै क उठै " | जयमल का जबाब था "उठै " |

 जयमल के जबाब से इशारा पाते ही काफिले के साथ ले जाया जा रहा सारा धन चुपचाप भील डाकू सरदार के हवाले कर काफिला आगे बढ़ गया | डाकू सरदार को हथियारों से सुसज्जित राजपूत योद्धाओं का इस तरह समर्पण कर चुपचाप चले जाना समझ नहीं आया | और उसके दिमाग में "अठै क उठै " शब्द घूमने लगे वह इस वाक्य में छुपे सन्देश को समझ नहीं पा रहा था और बेचैन हो गया आखिर वह धन की पोटली उठा घोडे पर सवार हो जयमल के काफिले का पीछा कर फिर जयमल के सामने उपस्थित हुआ और हाथ जोड़करजयमल से कहने लगा -- हे वीर ! आपके लश्कर में चल रहे वीरों के मुंह का तेज देख वे साधारण वीर नहीं दीखते | 

हथियारों व जिरह वस्त्रो से लैश इतने राजपूत योद्धा आपके साथ होने के बावजूद आपके द्वारा इतनी आसानी से बिना लड़े समर्पण करना मेरी समझ से परे है कृपया इसका कारण बता मेरी शंका का निवारण करे व साथ ही मुझे "अठै क उठै" वाक्य में छिपे सन्देश के रहस्य से भी अवगत कराएँ | तब जयमल ने भील सरदार से कहा -- मेरे साथी ने मुझसे पूछा कि "अठै क उठै" मतलब कि (अठै) यहाँ इस थोड़े से धन को बचाने के लिए संघर्ष कर जान देनी है या यहाँ से बचकर चितौड़ पहुँच (उठै ) वहां अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध करते हुए प्राणों की आहुति देनी है |

 तब मैंने कहा " उठै " मतलब कि इस थोड़े से धन के लिए लड़ना बेकार है हमें वही अपनी मातृभूमि के रक्षार्थ युद्ध कर अपने अपने प्राणों को देश के लिए न्योछावर करना है | इतना सुनते ही डाकू भील सरदार सब कुछ समझ चूका था उसे अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ वह जयमल के चरणों में लौट गया और अपने किये की माफ़ी मांगते हुए कहना लगा -- हे वीर पुरुष ! आज आपने मेरी आँखे खोल दी , आपने मुझे अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य से अवगत करा दिया | मैंने अनजाने में धन के लालच में अपने वीर साथियों के साथ अपने देशवासियों को लुट कर बहुत बड़ा पाप किया है आप मुझे क्षमा करने के साथ-साथ अपने दल में शामिल करले ताकि मै भी अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर कर सकूँ और अपने कर्तव्य पालन के साथ साथ अपने अब तक किये पापो का प्रायश्चित कर सकूँ और वह भील डाकू सरदार अपने गिरोह के धनुर्धारी भीलों के साथ जयमल के लश्कर में शामिल हो अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ चितौड़ रवाना हो गया और जब अकबर ने 1567 ई. में चितौड़ पर आक्रमण किया तब जयमल के नेत्रित्व में अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षार्थ लड़ते हुए शहीद हुआ| 1567 में जयमल और चित्तोर के वीरो ने 6 महीने तक मुगलो को किल्ले में घुसने नही दिया अंत में जब किल्ले का राशन ख़तम हो गया तब 11000 राजपूत वीरांगनों ने जौहर किया और राजपूतो ने शाका तथा 8000 राजपूत वीर 60000 कि अकबर कि सेना पर भूखे शेर कि तरह टूट पड़े और युद्ध के अंत में कुल 48000 सैनिक मारे गए जिनमे मुग़ल 40000 और राजपूत 8000 थे।

Brave Jaimal Vikram Rathore


“मरण नै मेडतिया अर राज करण नै जौधा “
“मरण नै दुदा अर जान(बारात) में उदा ” 

उपरोक्त कहावतों में मेडतिया राठोडों को आत्मोत्सर्ग में अग्रगण्य तथा युद्ध कौशल में प्रवीण मानते हुए मृत्यु को वरण करने के लिए आतुर कहा गया है मेडतिया राठोडों ने शौर्य और बलिदान के एक से एक कीर्तिमान स्थापित किए है और इनमे राव जयमल का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है | कर्नल जेम्स टोड की राजस्थान के प्रत्येक राज्य में “थर्मोपल्ली” जैसे युद्ध और “लियोनिदास” जैसे योधा होनी की बात स्वीकार करते हुए इन सब में श्रेष्ठ दिखलाई पड़ता है | जिस जोधपुर के मालदेव से जयमल को लगभग २२ युद्ध लड़ने पड़े वह सैनिक शक्ति में जयमल से १० गुना अधिक था और उसका दूसरा विरोधी अकबर एशिया का सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति था |अबुल फजल,हर्बर्ट,सर टामस रो, के पादरी तथा बर्नियर जैसे प्रसिद्ध लेखकों ने जयमल के कृतित्व की अत्यन्त ही प्रसंशा की है | जर्मन विद्वान काउंटनोआर ने अकबर पर जो पुस्तक लिखी उसमे जयमल को “Lion of Chittor” कहा |

जयमल विक्रम राठौड़

राव जयमल का जन्म आश्विन शुक्ला ११ वि.स.१५६४ १७ सितम्बर १५०७ शुक्रवार के दिन हुआ था | सन १५४४ में जयमल ३६ वर्ष की आयु अपने पिता राव विरमदेव की मृत्यु के बाद मेड़ता की गद्दी संभाली | पिता के साथ अनेक विपदाओं व युद्धों में सक्रीय भाग लेने के कारण जयमल में बड़ी-बड़ी सेनाओं का सामना करने की सूझ थी उसका व्यक्तित्व निखर चुका था और जयमल मेडतिया राठोडों में सर्वश्रेष्ठ योद्धा बना | मेड़ता के प्रति जोधपुर के शासक मालदेव के वैमनस्य को भांपते हुए जयमल ने अपने सीमित साधनों के अनुरूप सैन्य तैयारी कर ली | जोधपुर पर पुनः कब्जा करने के बाद राव मालदेव ने कुछ वर्ष अपना प्रशासन सुसंगठित करने बाद संवत १६१० में एक विशाल सेना के साथ मेड़ता पर हमला कर दिया | अपनी छोटीसी सेना से जयमल मालदेव को पराजित नही कर सकता था अतः उसने बीकानेर के राव कल्याणमल को सहायता के लिए ७००० सैनिकों के साथ बुला लिया | लेकिन फ़िर भी जयमल अपने सजातीय बंधुओं के साथ युद्ध कर और रक्त पात नही चाहता था इसलिय उसने राव मालदेव के साथ संधि की कोशिश भी की, लेकिन जिद्दी मालदेव ने एक ना सुनी और मेड़ता पर आक्रमण कर दिया | पूर्णतया सचेत वीर जयमल ने अपनी छोटी सी सेना के सहारे जोधपुर की विशाल सेना को भयंकर टक्कर देकर पीछे हटने को मजबूर कर दिया स्वयम मालदेव को युद्ध से खिसकना पड़ा | युद्ध समाप्ति के बाद जयमल ने मालदेव से छीने “निशान” मालदेव को राठौड़ वंश का सिरमौर मान उसकी प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हुए वापस लौटा दिए | 


मालदेव पर विजय के बाद जयमल ने मेड़ता में अनेक सुंदर महलों का निर्माण कराया और क्षेत्र के विकास के कार्य किए | लेकिन इस विजय ने जोधपुर-मेड़ता के बीच विरोध की खायी को और गहरा दिया | और बदले की आग में झुलसते मालदेव ने मौका देख हमला कर २७ जनवरी १५५७ को मेड़ता पर अधिकार कर लिया उस समय जयमल की सेना हाजी खां के साथ युद्ध में क्षत-विक्षत थी और उसके खास-खास योधा बीकानेर,मेवाड़ और शेखावाटी की और गए हुए थे इसी गुप्त सुचना का फायदा मालदेव ने जयमल को परास्त करने में उठाया | मेड़ता पर अधिकार कर मालदेव ने मेड़ता के सभी महलों को तोड़ कर नष्ट कर दिए और वहां मूलों की खेती करवाई | 

आधा मेड़ता अपने पास रखते हुए आधा मेड़ता मालदेव ने जयमल के भाई जगमाल जो मालदेव के पक्ष में था को दे दिया | मेड़ता छूटने के बाद जयमल मेवाड़ चला गया जहाँ महाराणा उदय सिंह ने उसे बदनोर की जागीर प्रदान की | लेकिन वहां भी मालदेव ने अचानक हमला किया और जयमल द्वारा शोर्य पूर्वक सामना करने के बावजूद मालदेव की विशाल सेना निर्णायक हुयी और जयमल को बदनोर भी छोड़ना पड़ा | अनेक वर्षों तक अपनी छोटी सी सेना के साथ जोधपुर की विशाल सेना मुकाबला करते हुए जयमल समझ चुका था कि बिना किसी शक्तिशाली समर्थक के वह मालदेव से पीछा नही छुडा सकता | और इसी हेतु मजबूर होकर उसने अकबर से संपर्क किया जो अपने पिता हुमायूँ के साथ मालदेव द्वारा किए विश्वासघात कि वजह से खिन्न था और अकबर राजस्थान के उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक मालदेव को हराना भी जरुरी समझता था | 

The capture of Fort Mertha in Rajasthan, 1561.


जयमल ने अकबर की सेना सहायता से पुनः मेड़ता पर कब्जा कर लिया | वि.स.१६१९ में मालदेव के निधन के बाद जयमल को लगा की अब उसकी समस्याए समाप्त हो गई | लेकिन अकबर की सेना से बागी हुए सैफुद्दीन को जयमल द्वारा आश्रय देने के कारण जयमल की अकबर से फ़िर दुश्मनी हो गई | और अकबर ने एक विशाल सेना मेड़ता पर हमले के लिए रवाना कर दी | अनगिनत युद्धों में अनेक प्रकार की क्षति और अनगिनत घर उजड़ चुके थे और जयमल जनता जनता को और उजड़ देना नही चाहता था इसी बात को मध्यनजर रखते हुए जयमल ने अकबर के मनसबदार हुसैनकुली खां को मेड़ता शान्ति पूर्वक सौंप कर परिवार सहित बदनोर चला गया | और अकबर के मनसबदार हुसैनकुली खां ने अकबर की इच्छानुसार मेड़ता का राज्य जयमल के भाई जगमाल को सौंप दिया |


अकबर द्वारा चित्तोड़ पर आक्रमण का समाचार सुन जयमल चित्तोड़ पहुँच गया | २६ अक्टूबर १५६७ को अकबर चित्तोड़ के पास नगरी नामक गांव पहुँच गया | जिसकी सूचना महाराणा उदय सिंह को मिल चुकी थी और युद्ध परिषद् की राय के बाद चित्तोड़ के महाराणा उदय सिंह ने वीर जयमल को ८००० सैनिकों के साथ चित्तोड़ दुर्ग की रक्षा का जिम्मा दे स्वयम दक्षिणी पहाडों में चले गए | विकट योद्धों के अनुभवी जयमल ने खाद्य पदार्थो व शस्त्रों का संग्रह कर युद्ध की तैयारी प्रारंभ कर दी | उधर अकबर ने चित्तोड़ की सामरिक महत्व की जानकारिया इक्कठा कर अपनी रणनीति तैयार कर चित्तोड़ दुर्ग को विशाल सेना के साथ घेर लिया और दुर्ग के पहाड़ में निचे सुरंगे खोदी जाने लगी ताकि उनमे बारूद भरकर विस्फोट कर दुर्ग के परकोटे उड़ाए जा सकें,दोनों और से भयंकर गोलाबारी शुरू हुई तोपों की मार और सुरंगे फटने से दुर्ग में पड़ती दरारों को जयमल रात्रि के समय फ़िर मरम्मत करा ठीक करा देते।


Verses by Jaimal Mertiya before final battle of Chittorgarh Mewar 

जयमल भज जगदीश को, झूटा तजदे फोड़
अंत समय भिळसी अवस ठीक राख मन ठोड़।

लाज रखे तो जीव रख लजवन जीव रख 
साईं तो सूँ वीनती दोनुं भेळा रख।

बिना लाज जीवण बुरो, अकबर सुं जुद्ध आज 
राखी ज्यूँ अब राखजे लघु जयमल की लाज। 

अनेक महीनों के भयंकर युद्ध के बाद भी कोई परिणाम नही निकला | चित्तोड़ के रक्षकों ने मुग़ल सेना के इतने सैनिकों और सुरंगे खोदने वालो मजदूरों को मारा कि लाशों के अम्बार लग गए | बादशाह ने किले के निचे सुरंगे खोद कर मिट्टी निकालने वाले मजदूरों को एक-एक मिट्टी की टोकरी के बदले एक-एक स्वर्ण मुद्राए दी ताकि कार्य चालू रहे | अबुलफजल ने लिखा कि इस युद्ध में मिट्टी की कीमत भी स्वर्ण के सामान हो गई थी | बादशाह अकबर जयमल के पराकर्म से भयभीत व आशंकित भी थे सो उसने राजा टोडरमल के जरिय जयमल को संदेश भेजा कि आप राणा और चित्तोड़ के लिए क्यों अपने प्राण व्यर्थ गवां रहे हो,चित्तोड़ दुर्ग पर मेरा कब्जा करा दो मै तुम्हे तुम्हारा पैत्रिक राज्य मेड़ता और बहुत सारा प्रदेश भेंट कर दूंगा | लेकिन जयमल ने अकबर का प्रस्ताव साफ ठुकरा दिया कि मै राणा और चित्तोड़ के साथ विश्वासघात नही कर सकता और मेरे जीवित रहते आप किले में प्रवेश नही कर सकते |


The following verse is a famous but rare Rajputana ballad, which can still be heard from the old timers of Chittorgarh.This ballad has been passed down through several generations. It contains the words ofRaja Jaimal Rathore, commander of the Chittor fort during the 3rd siege, conveyed to the Mughal Emperor Akbar by the Dodiya Thakur of Lava Sardargarh -Thakur Sanda Sinh Ji*:

"Jaimal likhe Jawab jad Sun je Akbar Shah
Aan phire Garh Utra Tuta Sir Pat Sah
Hai Garh Mano Ghu Ghani Asur Tere Simhaar
Uncheyea Garh Chittod Ri Bhedi Mohi Deewar"

The English translation is --

Oh Shahinshah Akbar! Listen carefully the answer of our chief - Jaimal.
You can not set your foot in our pious fort of Chittor, as long as Jaimal Rathore is alive.
Unless you walk over my corpse, you cannot enter our Garh - Chittor.

Because, right now this Garh of Chittor is MINE.
My master, The Rana - His Majesty has appointed me to take care of this fort.
He has given the keys of this Fort to me.
Forget entering the Fort, as long as i'm alive, the enemy(demon) can't even set it's eyes at my pure fort.
Jaimal is a wall which has to be crossed to enter the Fort of Chittor

.{* More about the Brave Dodia Thakur of SardarGarh can be read in other post.}



Rathores of Bednore, amongst the 16 Umraos of Mewar sat at the right side of Ranas.

Jaimal Rathore chose Mewar as his Karmabhoomi & died a most glorious death at the Third Siege of Chittorgarh, 1568, 23 Feb.

His elder son, Rao Mukund died defending Kumbhalgarh, 1568 campaign.

His younger son, Rao Ram Singh who led the Haraval (Vanguard) at Haldighati, died there, 1576 !

Jaimal’s nephew, whom Fazl calls an inspiration for Rajputs, Kalla ji died with Jaimal at Bhairav Pol on day of Saka, 23 Feb 1568…

He was a direct descendant of Rao Jodha(1415-1489), the king who founded of thecity of Jodhpur in 1459. 

Rao Jodha had a son named Rao Dudha(1440-1515) from his queen, Rani Champa Bai Songara Chauhan. Rao Dudha was given the estate ofMerta, and hence, he established the Merta offshoot of Rathores here.Born on 17th September 1507, 


Jaimal was a grandson of Rao Dudha. son of Biramdev, ruler of Merta was Famous Meera Bai first cousin.

He was granted the estate of Bednor by Rana Udai Singh in 1554, in recognition of his exceptional services. Before Chittor siege, In 1557, Battle of Harmada, the forces of Rao Maldeo defeated forces of Udai Singh of Mewar and Merta was captured and assigned to Maldeo’s trusted chief Jagmal. Rao Maldeo Rathore, broke the Rajput tradition of primogeniture (eldest son takes his father seat) and named his third son Rao Chandra Sen as his successor. Chandrasen Rathore crowned himself in the capital Jodhpur and ousted his elder brother, Rao Udai Singh (Marwar).

1562: Battle of Merta

As per Nainsi, in 1562, Jaimal of Merta (brother of Jagmal), presented himself at Sambhar and sought his help against Maldeo. Interested in taking advantage of these internal situation, Akbar responded favourably to request of Jaimal and appointed Sharifuddin Husain Mirza along with Jaimal and Lonkarn Shekhawat to march against Rao jagmal.

The city was captured and was given back to Rao Jaimal.

Consequence:

Jaimal became the governor of Merta under Sharifuddin Husain Mirza. But soon, Mirza revolted against Akbar and created disorder in the region of Ajmer and Nagaur. Akbar sent an army under the command of Hussain Quli Khan-i- Jahan who successfully suppressed the rebellion and brought Ajmer and Nagaur under imperial control.

The fort of Merta which Jaimal held with the approval of Mirza Sharifuddin was transferred again back of Jagmal. Jaimal was dethroned and moved to seek refuge with Rana Udai Singh of Mewar.

In 1562, Akbar with the help of Rajas from Bikaner and Amer defeated Rao Chandra Sen in Battle of Merta and advanced towards Jodhpur.

There is another veraion which says Jaimal had earlier, fought a pitched battle against Mughal Subedar Sharf-ud-din, brother-in-law of Mughal Emperor Akbar, in the Battle of Merta in 1562-63. This was also a siege of several months. 

Finally, being outnumbered, Merta was lost to Mughals, after carrying out the Jauhar and Saka. Later, JaiMal shifted to his other estate of Bednor.

The sequence of rulers is :
Rao Jodha(Jodhpur) -> Rao Dudha(Merta) -> Rao Vikram(Merta) -> Rao JaiMal(Bednor).

The famous Jaimal Rathore Along with Patta Chundawat, he took the reins of Chittor during of Siege of Chittorgarh,1567-68. When Turk lutera Jalaludin Mohamad laid a siege to the Fort of Chittor. He is said to have died from a bullet fired from the match-lock - Sangram, of Mughal Emperor Akbar. Akbar accidentally shot him which led to the II Jauhar &
Saka of Chittorgarh.

Akbar on the rt shot Jaimal. AbulFazl, "he killed Jaimal", fact is he was hit in the knee. Next day Saka was led by Jaimal & Patta.
Jaimal Ji, fought riding shoulders of his nephew Kalla Ji. Earning epithet, CHARBHUJA, 4 armed. Horses abandoned, no one leaves alive is SAKA. 


But, Rajputana sources give a slightly different account. According to them, Jaimal was wounded, not died. According to one of the sources - 

" Udaipur Ka Itihaas " , which when read, says, Jaimal died between the place called "Hanuman Pol and BhairavPol" while fighting a soldier's death.Jaimal was indeed wounded during the attempt to fill a breach created by the Mughal mining. Due to this wound he was unable to mount a horse. Hence, when the Mughal soldiers started pouring in the morning after Jauher, he sat on the shoulders of a soldier and wielding swords in both his hands fought bravely like a normal soldier, not like a battle general, before he finally fell fighting near the SurajPol.

Akbarnama records Jaimal's end as follows: On Tuesday, February 23, 1568, Akbar noticed at the breach a personage wearing a chief's cuirass who was busy directing the defence. Without knowing who the chief might be, Akbar aimed at him with his well-tried musket Sangram. When the man did not come back, the besiegers concluded that he must have been killed. Less than an hour later reports were brought in that the defences were deserted and that fire had broken out in several places in the fort. Raja Bhagwan Das, being familiar with the customs of his country, knew the meaning of the fire, and explained that it must be the jauhar performed at Chittor.

Early in the morning the facts were ascertained. The fortress, chief whom Akbar's shot had killed proved to be Jaimal Rathor of Bednor, who had taken command of the fortress. As usual in India the fall of the commander decided the fate of the garrison. Shortly before Jaimal was killed a gallant deed was performed by the ladies of the young chieftain Patta, whose name is always linked by tradition with that of Jaimal.

Sons: we know the details of 2 of his sons.-> 

His eldest son Rao Mukund Rathore perished in the Battle at Kumbhalgarh Fort, during the Siege of Chittor in 1568. As we know, this battle was fought not only for Chittor, but also for the supremacy of other fortresses of Mewar. At other fronts also the battle was continuing.-> 

His younger son Rao Ram Rathore perished in the Battle of Haldighati, 18th June 1576, fighting against forces of Mughal Emperor Akbar, alongside Maharana Pratap.

Mother:

His mother is said to be Rani Gorajia Kanwar, Chief Queen of his father. It is not 100% sure to me if she was his biological mother. She was the daughter of Rana Raimal of Mewar(died 1508) and sister of Rana Sanga(died 1527). Hence, JaiMal was also related to Mewar just like Patta.

Father::

His father was (the son of above mentoned Rao Dudha) - Rao Vikram Rathore, the ruler of Merta till his death in 1544.

Brothers:

About his siblings, we know of one. His elder brother was Pratap Rathore, who also gave his life in the Saka at Chittor in 1568. 

He was the ruler of the strategically important estate of Ghanerau, in present day Pali district of Rajasthan. Present on outskirts of Udaipur.His son Gopal Rathore, actively served Mewar till his death in 1626, and constructed a beautifulcastle here in 1606.

View of GhaneRau Castle


Conclusion:

The bitter victory document issued by Mughal Emperor Akbar after the victory at Chittor bears testimony to the fact - 



the havoc wrecked across the Mughal ranks by the 2 Chiefs - Jaimal and Patta.

Though bitter, but still, the victory document of Mughal Emperor Akbar recognizes the bravery of these two 'enemies' in following words -"Jaimal and Patta who are renowned for their valoramong the infidels.......aresingly considered to beequal to a thousand horsemen in intrepidity and prowess.......

"The names of Jaimal and Patta have become synonymous with the House of Mewar and the Fort of Chittor. Whenever, one talks about Chittor, names of Jaimal and Patta surely come to one's mind. 

Their deeds evoke a sense of deep respect and a pride to be cherished by the posterity.There are lesser known heroes who have earned a place even in the Mughal records for their valor, 

Especially the name of Isar Das Chauhan - who fought an elephant with a bare knife, when it was sent to spread rampage and destruction in the battle-field. First, 50 and then 300 elephants were let loose after arming their trunks with swords in the battle-field. Among them was a favorite elephant of Akbar named Madukar, and Abu'l Fazl records,

Isar Das took hold of it's tusk and stabbed it with a dagger and asked him to "convey his(Isar Das's) regards to His Master(Akbar)" in the following words - 

"Be good enough to convey my respects to your world adorning appreciator of merit".

Every one loves his/her land. In a war, there are two sides. For one side, the other side is an enemy. Same was the case here. Akbar wanted to capture Chittor. These people wanted to defend it. 

The war was different because this is one war, where one gets the written evidence of involvement of women-folk fighting alongside men for their beloved motherland.

This post is a homage to those warriors who staked theirallin fight for their principles.

Note

Rawat Chundavat also gave his life in the Saka at the Battle of Chittor on 24th February 1568. Along with him, his ONLY son Kunwar Amar also died on the same day in the Saka at the Fort of Chittor.




















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