Tuesday, May 4, 2021

LOVE STORY OF KUNWAR BRIJESH SINGH BISEN AND SVETLANA STALIN - IMMORTAL RAJPUTS


एक था ‘राजा’, एक थी स्वेतलाना


एक प्रेम कहानी जिसने भारत, रूस और अमेरिका के राजनीतिक व कूटनीतिक सम्बंधों में तनाव पैदा कर दिया था। यह है स्वेतलाना एलिल्युयेवा और राजकुमार ब्रजेश सिंह प्रेम कहानी। प्रतापगढ़ के कालाकांकर के राजकुमार ब्रजेश सिंह को सोवियत संघ के तानाशाह जोसेफ स्टालिन की बेटी से मोहब्बत हो गई थी, वह भी एक अस्पताल में इलाज के दौरान।

कालाकांकर राजभवन की काली कोठी (प्रकाश गृह) की दीवारें उदास सी हैं। अंदर अजीब सी खामोशी है। राजघराने की इसी कोठी में कभी सोवियत संघ के तानाशाह शासक जोसेफ स्टालिन की ‘छोटी तितली’ की खिलखिलाहट भी गूंजी थी। इंग्लिश, फ्रेंच, रसियन और टूटी-फूटी हिंदी में मोहब्बत की दास्तां बयां हुई। प्रेम की वो परिभाषा लिखी गई जिसे सदियों तक भुलाया नहीं जा सकेगा। कालाकांकर राजघराने के कुंवर ब्रजेश सिंह और स्टालिन की बेटी स्वेतलाना अलिलुयेवा की प्रेम कहानी यहीं हमेशा के लिए अमर हो गई। सोवियत सरकार ने दोनों को शादी की इजाजत नहीं दी, लेकिन स्वेतलाना को बृजेश सिंह से इस कदर मोहब्बत थी कि तीन साल तक साथ रहने के बाद जब उनकी मौत हुई तो वह उनकी अस्थियां हिदूं रीति-रिवाज से गंगा में विसर्जित करने के लिए कालाकांकर आ गईं।


उन दिनों ब्रजेश सिंह मास्को में रहते थे।

कालाकांकर राजघराने के कुंवर ब्रजेश सिंह उन कम्युनिस्ट नेताओं में से थे जिन्होंने 1930 के बाद सोवियत संघ के मास्को को अपना घर बनाया। वह पूर्व विदेश मंत्री स्व. राजा दिनेश सिंह के चाचा थे। 1963 में मास्को के एक अस्पताल में ब्रजेश सिंह और स्वेतलाना की मुलाकात हुई। ब्रजेश सिंह उस समय ब्रोन्किइक्टेसिस जैसी बीमारी से जूझ रहे थे, जबकि स्वेतलाना टांसिल के आपरेशन के लिए अस्पताल गई थीं। पहली नजर में ही दोनों एक-दूसरे के प्यार में गिर गए। ब्रजेश सिंह के व्यक्तित्व और उनकी सौम्यता ने स्वेतलाना को काफी प्रभावित किया। वह उनकी दीवानी हो गईं।

1963 में दोनों मास्को के एक अस्पताल में ब्रजेश सिंह ब्रोन्किइक्टेसिस बीमारी के इलाज के लिए भर्ती हुए थे, जबकि स्वेतलाना टांसिल के आपरेशन के लिए अस्पताल गई थीं। पहली ही नजर में दोनों को प्यार हो गया। बृजेश सिंह के व्यवहार और व्यक्तित्व से स्वेतलाना काफी प्रभावित थीं। वह उनके प्यार में दीवानी हो गईं। दोनों ने संग जीने-मरने की कसमें खा लीं, लेकिन सोवियत संघ की सरकार ने शादी की अनुमति नहीं दी। बावजूद दोनों ने सरहदों का बंधन तोड़कर शादी कर ली, लेकिन तकनीकी तौर पर उस शादी को मंजूरी नहीं मिली। व्यवहारिक रूप से 1964 से दोनों पति-पत्नी की तरह साथ-साथ रहते थे।

भारत में नहीं मिली रहने की इजाजत तो...
स्वेतलाना प्रतापगढ़ के कालाकांकर में काफी समय तक रहीं। यहां आज भी इनकी प्रेम कहानी की स्मृतियां मौजूद हैं। कालाकांकर के ब्रजेश अस्पताल के एक स्कूल की दीवारों पर स्वेतलाना और ब्रजेश सिंह की तस्वीरें लगी हैं, जो खुद स्वेतलाना ने बनवाया था। तत्कालीन इंदिरा सरकार ने उन्हें नागरिकता नहीं, जिस कारण वापस जाना पड़ा। भारत अपने मित्र देश से इस मामले पर कोई विवाद नहीं चाहता था। वर्ष 1966 में ब्रजेश सिंह का असामयिक निधन हो गया। इसके बाद वह उनकी अस्थि भस्म लेकर स्वेतलाना भारत आई थीं। स्वेतलाना भारत में ही बसना चाहता थी, लेकिन भारत सरकार की इजाजत न मिलने पर वह अमेरिका चली गईं और बाद में ब्रिटेन की नागरिककता ले ली। 85 साल की उम्र में स्वेतलाना का निधन हो गया।

हिंदी भी सीखी



स्वेतलाना न सिर्फ बृजेश सिंह से प्यार करती थीं, बल्कि उन्हें भारतीय वेशभूषा, परम्परा, रीति-रिवाजों और उनकी भाषा से बेहद मोहब्ब थी। कालाकांकर में उनकी अस्थियां विसर्जित करने के बाद वह कुछ दिन यहां रुकीं और हिंदी बोलना भी सीख लिया था।

मोहब्बत इस कदर जवां हुई कि दोनों को एक दूसरे के बिना जीना गंवारा नहीं था, लेकिन तत्काल सोवियत संघ की सरकार ने शादी की अनुमति नहीं दी। बावजूद इसके दोनों पति-पत्नी की तरह ही रहते थे। तीन साल से भी अधिक समय तक दोनों साथ रहे। अक्तूबर 1966 में रूस में ही ब्रजेश सिंह की बीमारी के चलते मौत हो गई। साथ रहते हुए उन्होंने स्वेतलाना को बताया था कि हिंदू धर्म में मरने के बाद व्यक्ति की अस्थियां गंगा में प्रवाहित की जाती हैं। ब्रजेश सिंह की मौत के बाद रूस में उनका शव हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक जलाया गया।

इसके बाद स्वेतलाना ने तय किया कि वह उनकी अस्थियां गंगा में प्रवाहित करेंगी। दिसंबर 1966 में विशेष अनुमति लेकर स्वेतलाना ब्रजेश सिंह की अस्थियों के साथ भारत आईं। वह सीधे कालाकांकर राजभवन पहुंचीं। राजपरिवार ने उन्हें पूरा सम्मान दिया। राजभवन के लोगों के साथ राजभवन के किनारे गंगा में उन्होंने ब्रजेश सिंह की अस्थियों की विसर्जित किया।

दो महीने से ज्यादा रहीं कालाकांकर में


कालाकांकर राजघराने के कुंवर ब्रजेश सिंह से स्वेतलाना को इस कदर लगाव था कि वह कालाकांकर आने के बाद यहां से जाना नहीं चाहती थीं। उनकी इच्छा यहीं रहने की थी, लेकिन सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी। करीब दो महीने से ज्यादा समय तक वह कालाकांकर में रहीं। पंडित मदन मोहन मालवीय कॉलेज कालाकांकर के रिटायर्ड क्लर्क 70 वर्षीय एमएल गुप्ता बताते हैं कि स्वेतलाना राजभवन के प्रकाश गृह में रहती थीं। उनके कालाकांकर प्रवास के दौरान इंदिरा गांधी भी एक बार यहां आई थीं। स्वेतलाना स्कर्ट और ब्लाउज पहनती थीं। छोटे गोल्डेन कलर के बाल थे।


डॉ. कृष्ण कुमार लाल ने सिखाई हिंदी
स्वेतलाना को सिर्फ ब्रजेश सिंह से लगाव नहीं था, बल्कि उनकी वेशभूषा, परंपरा, रीति-रिवाज और उनकी भाषा से भी मोहब्बत थी। कालाकांकर में उनकी अस्थियां विसर्जित करने के बाद जब वह यहां रुकीं तो उन्हें हिंदी सीखने की भी ठान ली। एमएल गुप्ता बताते हैं कि मदन मोहन कॉलेज के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार लाल ने स्वेतलाना को हिंदी सीखने में मदद की। वह प्रतिदिन शाम को पांच बजे राजभवन जाकर स्वेतलाना को हिंदी सिखाते थे। हर दिन करीब एक घंटे तक क्लास चलती थी। स्वेतलाना नियमित रूप से गंगा घाट और पोस्टआफिस जाती थीं।


ब्रजेश सिंह के नाम से बनवाया अस्पताल

स्वेतलाना भारत में अपने प्रेम की अमिट छाप छोड़ गईं। प्रियतम ब्रजेश सिंह की याद में उन्होंने कालाकांकर में अस्पताल शुरू कराया। भारत से अमेरिका जाने के बाद स्वेतलाना ने अस्पताल के निर्माण के लिए फंड भेजा। उन्होंने अपनी किताब ‘ट्वंटी लेटर्स टू ए फ्रेंड’ से मिलने वाली रायल्टी भी अस्पताल के निर्माण के लिए भेजी। स्वेतलाना की मदद से ब्रजेश की याद में 35 बेड के अस्पताल का निर्माण कराया गया। मई 1969 में हिंदी के महान कवि सुमित्रा नंदन पंत ने इस अस्पताल का शिलान्यास किया। हालांकि अब इस अस्पताल की जगह पर स्कूल संचालित हो रहा है।

तत्कालीन पीएम ने चेताया, पति के साथ चिता जल जाती हैं भारतीय महिलाएं

सोवियत संघ में ब्रजेश की मौत के बाद स्वेतलाना ने तय कर लिया कि वह उनकी अस्थियां गंगा में ही प्रवाहित करेंगी। इसके लिए उन्होंने भारत आने का प्रयास शुरू किया। तब सोवियत संघ के नेताओं ने स्वेतलाना को ऐसा न करने के लिए मनाने की काफी कोशिश की थी। कहा जाता है कि उस समय के सोवियत प्रधानमंत्री अलेक्सी कोसिगिन ने उनसे कहा था कि वह जोखिम ले रही हैं, क्योंकि कट्टर हिंदुओं में विधवाओं को मृत पति के साथ जलाने की परंपरा है, लेकिन जिद पर अड़ीं स्वेतलाना भारत पहुंच गईं।

भारत से अमेरिका जाकर ली शरण


स्वेतलाना को सरकार ने देश में रहने के लिए मंजूरी नहीं दी थी। इस पर वह कालाकांकर से दिल्ली पहुंचीं। वह सोवियत दूतावास में ठहरी हुई थीं। यहां से उन्होंने अमेरिका में शरण लेने की ठानी। इसके लिए वह अमेरिका दूतावास में जाकर राजदूत चेस्टर बॉवल्स से मिलीं। अमेरिका उस समय सोवियत संघ से भागे हर व्यक्ति को शरण देता था। राजदूत ने एक अधिकारी के साथ स्वेतलाना को रोम की एक फ्लाइट में सवार होने के लिए एयरपोर्ट भेज दिया। फिर वहां से वह अमेरिका पहुंच गईं।

मां के आत्महत्या करने के बाद स्टालिन से करने लगीं नफरत
स्वेतलाना का स्कूली जीवन स्टालिन के विशाल व्यक्तित्व के साथ गुजरा। जब उनकी मौत हुई तब वह लारा पीटर्स थीं। इससे पहले उनका नाम स्वेतलाना अलिलुयेवा था और उससे भी पहले वह स्वेतलाना लोसिफोवना स्टालिन के नाम से जानी जाती थीं। वह सोवियत संघ पर 1922 से 1953 तक शासन करने वाले जोसेफ स्टालिन की इकलौती बेटी थीं। स्टालिन के दो बेटे थे, लेकिन वह उनकी खास थीं। स्टालिन उन्हें नन्हीं बुलबुल या छोटी तितली कहकर बुलाते थे। स्वेतलाना साढ़े छह साल की थीं जब उनकी मां ने आत्महत्या की थी। 16 साल की उम्र में जब उन्हें अपनी मां की मौत के कारणों का पता चला तब उनके मन में पिता के खिलाफ गहरी नफरत पैदा हो गई। मास्को यूनिवर्सिटी में इतिहास की पढ़ाई करने के दौरान वह ग्रिगोरी मोरोजोफ से मिलीं। जिससे उन्होंने शादी कर ली। 19 साल की उम्र में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। जिसका नाम उन्होंने जोसेफ रखा। 1947 में स्वेतलाना और गिग्रोरी का तलाक हो गया। इसके बाद वह फिर अपने पिता के पास लौट गईं। भारत से अमेरिका जाने के बाद 1970 में उन्होंने प्रतिष्ठित अमेरिकी वास्तुकार वेस्ले पीटर्स से शादी कर ली। 1971 में बेटी ओल्गा को जन्म दिया। 1978 में उन्हें अमेरिका की नागरिकता मिली। इस समय तक उनका पीटर्स से तलाक हो चुका था। वो बेटी ओल्गा के साथ न्यू जर्सी चली गईं। 22 नवंबर 2011 को 85 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। बेटी ओल्गा ने उनका अंतिम संस्कार किया।



The most sensational of all such relations in past was that of a wealthy prince hailing from the royal family of Kalakankar State near Allahabad; and an Indian Communist. His affair with Josef Stalin’s daughter Svetlana became sensational.


Kunwar Brajesh Singh Bisen

(Hindi: ब्रजेश सिंह, or Kunwar Brijesh Singh; died 31 October 1966) was an Indian politician belonging to the Communist Party of India. He hailed from the royal family of Kalakankar near Allahabad and his nephew Dinesh Singh was a minister in the Indian cabinet.

Kunwar Brajesh Singh

Predecessor Raja Ramesh Singh

Died 1966

Burial
Kalakankar

Spouse Kunwarani Laxmi Devi
Leela (an Austrian woman)
Svetlana Alliluyeva

Issue Asha Pal
Usha Pande
Victor Singh
House Bisen, Rajput

Father Raja Ramesh Singh

Religion Hinduism

He first married Kunwarani Laxmi Devi, followed by Leela, an Austrian woman, with whom he had a son, Victor Singh, who became a photographer in England. In 1963, while recuperating from bronchitis, he met Svetlana Alliluyeva, daughter of Joseph Stalin. They lived together in Sochi, in the Russian Soviet Federative Socialist Republic part of the Soviet Union, where he was convalescing, although they were not officially married. He died 31 October 1966 and Svetlana brought his ashes to Kalakankar to be immersed in the Ganges. She later defected to the United States in 1967, where she died in 2011.


Stalin Daughter Relationship with Kalankar Prince kunwar Brajesh Singh Bisen.


Svetlana Iosifovna Alliluyeva (later known as Lana Peters), was the youngest child and the only daughter of Soviet Premier Joseph Stalin and Nadezhda Alliluyeva, Stalin’s second wife.

Svetlana, when she was 17, married (in 1943) Grigory Morozov, a fellow student from Moscow University, though Stalin hadn’t likeed it. They had a son Josef (Iosif) in 1945. And, their divorce took place in 1947. Svetlana married, for the second time (in 1949), Yuri Zhdanov, the son of Stalin’s close associate. A daughter, Katherine, was born to them in 1950. And, soon thereafter they were divorced. Josef Stalin died in 1953.

In 1963, while in hospital for a tonsillectomy, Alliluyeva met Kunwar Brajesh Singh, an Indian Communist from the Kalakankar Rajput Zamindar family visiting Moscow. The two began to talk about a book by Rabindranath Tagore that Svetlana had found in the hospital’s library. Singh was the most peaceful man Svetlana had ever met. He protested when the hospital wanted to kill the leeches they had used in his treatment, and he opened windows to let flies escape. When she told him who her father was, he exclaimed “Oh!” and never mentioned it again. 

The two fell in love. Singh was mild-mannered and well-educated but gravely ill with bronchiectasis and emphysema. The romance grew deeper and stronger still while the couple were recuperating in Sochi near the Black Sea. They spent a month together in Sochi, by the Black Sea, before Singh had to return to India. 

A year and a half later, after delays from the Soviet and the Indian bureaucracies, Singh returned to Moscow in 1965 to work as a translator, When they met in 1963, Svetlana was about 37 years; and Brajesh Singh (said to be old enough to be her father) was about sixty, about twenty-three years elder to Svetlana. He and Svetlana filed papers to get married, but the next day she was summoned to her father’s old office in the Kremlin to meet with Alexei Kosygin, the Soviet Premier. The marriage was immoral and impossible, Svetlana recalled him saying: “Hindus treat women badly.”

It is not clear whether they were married formally. It appears that the Soviet Primer Alexi Kosygin had strongly disapproved of Svetlana getting married to Brajesh Singh. (She however persisted in calling herself as Brajesh Singh’s wife.)  In an interview on 26 April 1967, she referred to Singh as her husband but also stated that they were never allowed to marry officially. They lived together for four years as man and wife at Sochi until Brajesh Singh died on 31 October 1966.


Brajesh Singh had long suffered from respiratory problems. When he died, in 1966, Svetlana insisted that she be allowed to take his ashes back to India. It was her first trip outside the Soviet Union and, she said later, the one moment in her life when she felt blissful. Svetlana ensured that Brajesh Singh was cremated according to Hindu rites. Thereafter; she decided to take his ashes to India for immersion in the Ganges. That took time because the Soviet leaders tried hard to dissuade her from making that journey. Finally, the arrangements for her travel to India were made at the highest level. And, that was not difficult since Brajesh Singh’s nephew Dinesh Singh was a confidant of then Prime Minister Indira Gandhi and was also a member of her council of ministers.

Svetlana arrived in India on 20 December 1966 with ashes of Brajesh Sigh. She stayed with Brajesh’s family at their ancestral royal home at Kalakankar near Allahabad (UP). After a couple of days, on 25 December 1966, Brajesh’s ashes were immersed in the Holy Ganges, with Svetlana watching the ritual, from the shore, dressed in widow’s white sari.


Brajesh Singh’s family’s large white house, surrounded by cacti the height of trees; a sparse bedroom with large windows, flowing drapes, and a wooden bed; a man on a camel on the banks of the Ganges. “India had really tremendous impact on me—on my thinking, on my everything,” she told me.

She lived happily with Brajesh’s extended family; and got on very well with all its members. She wanted to stay back in India; and, Brajesh’s family was also willing and happy to let her stay with them. Svetlana asked Dinesh Singh (Brajesh’s nephew) to use his influence with Indira Gandhi to let her stay in India. But the Soviet Government insisted that she should be back in Moscow before the end of March 1967. Indira Gandhi , not daring to antagonize the Soviets, advised Svetlana, through Dinesh, to return to Russia. Exasperated, Svetlana approached socialist Rammanohar Lohia in Allahabad for help so that she could stay in India and build a memorial for Brajesh. He promised to help; but could do very little.

Svetlana then reached New Delhi for making arrangements for her travel to Moscow; and stayed there at the Soviet Embassy where Ambassador Nikolai Benediktov was advising her to return home . Next day , on the evening of 6 March 1967, Svetlana went out to finalise her travel arrangements ; but, she asked the taxi to drive straight to the American embassy. The embassy had shut for the day. She told the duty officer who she was and what she wanted. In panic, the duty officer rang up Ambassador Chester Bowles and told him that he must come to his office immediately to deal with a matter that could not be discussed on the phone. Mr Bowles arrived, talked to Svetlana and gave her a lined pad to write down why she wanted to go the US; and, not to her own country.

[Ambassador Chester Bowls, later recalled: In about two hours she put together a very eloquent sixteen to eighteen page statement in excellent English; a dramatic story of her life , who her father was, who her mother was, and why she wanted to leave Russia and come to America. Please see; India & the United States: Politics of the Sixties by Kalyani Shankar. P.387 to 393]

While Svetlana was writing her piece, Ambassador Bowles sent an “Eyes Only” telegram to the Secretary of State Dean Rusk explaining the situation and asking for instructions. He took care to conclude his cable with the words: “If I do not hear from the State Department by midnight (Indian time), I would, on my responsibility, give her the visa.”

According to the Ambassador’s subsequent account of the incident, as he had expected, there was not a word from Washington by the deadline. So he arranged to send Svetlana to the airport in the company of a CIA officer to catch a flight to Rome.

Only after she had reached Rome safely did the sensational news of her dramatic. great escape was leaked to the Press.

There was, of course, a huge uproar in Moscow and in New Delhi ; the US government blandly explained that it merely helped Svetlana on humanitarian grounds.

After a brief stay in Switzerland, she flew to the US. Upon her arrival in New York City in 1967, the then 41-year-old said, “I have come here to seek the self- expression that has been denied to me for so long in Russia.”

Political asylum and later life

Alliluyeva in 1967

Three days after she landed in America, Svetlana sent her children in Moscow (Iosif and Yekaterina, twenty-one and sixteen) a long letter. Soviet Communism , she said, had failed as an economic system and as a moral idea. She couldn’t live under it. “With our one hand we try to catch the moon itself, but with another one we are obliged to dig out potatoes the same way it was done a hundred years ago,” she wrote. She urged Iosif to study medicine and Yekaterina to continue to pursue science. “Please, keep peace in your hearts. I am only doing what my conscience orders me to do.”

The note that Svetlana wrote while in the US Embassy at New Delhi along with her “Twenty Letters to a Friend” was published within months of her arrival in the US; and it became a best-seller. The book in the form of a series of letters to her friend, the physicist Fyodor Volkenstein, described her family’s tragic history . The message of the book, it seemed, was that being one of Stalin’s relatives was nearly as terrible as being one of his subjects.

According to Brajesh Singh’s family in India, Svetlana did not forget her commitment for the memorial for Brajesh: “She kept sending money for many years for a hospital in Kalakankar village in Brajesh’s name, until it was taken over by the government”.


Svetlana settled down in Princeton New Jersey, where she lectured and wrote. From 1970–73, she was married to American architect William Wesley Peters with whom she had a daughter, Olga. Svetlana died in Richland Center, Wisconsin, U.S, from complications arising from colon cancer, on 22 November 2011, at the age of eighty-five (28 February 1926 to22 November 2011).














1 comment:

  1. बहुत शानदार मज़ा आ गया पढ़के।

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