Saturday, July 3, 2021

हमारी संस्कृति हमारी विरासत - IMMORTAL RAJPUTS


 भारत वर्ष लाखों वर्षों से अपनी सनातन वैदिक संस्कृति के कारण पूरी दुनिया में ज्ञान-विज्ञान और उपचार के क्षेत्र में अग्रणी रहा है। हजारों वर्षों से हमारे वैदिक साहित्य के आयुर्वेद के ग्रंथों एवं यज्ञ परंपरा से वातावरण और प्रकृति में बनने वाले संक्रमण का मुकाबला करने की परंपरा रही है। हमारा आयुर्वेद, यज्ञ विधान और सनातन परंपरा भारतीय को धैर्यवान, आस्थावान और सकारात्मक सोच को परंपरा से विजेता बनने में सहायक रही है।

आज सारा संसार एक कोरोना १९ जैसे भयंकर संक्रमण से संघर्ष कर रहा है। भारत भी इस संक्रमण से अछूता कैसे रह सकता था लेकिन हम भारतीयों ने अपने पारंपरिक विश्वास की मजबूत शक्ति के जोड़ से यह सिद्ध कर दिया कि वे इस संक्रमण से लड़ने में सक्षम है। भारतीय रसोई सदैव से आयुर्वेद के बहुमूल्य उपचार के स्त्रोत का भंडार रही है। आज केवल तुलसी, लौंग, दालचीनी, अदरक और वे सभी भारतीय ऋतु अनुसार बनने वाले भोजन इस संक्रमण को रोकने में बड़ी सहायक सिद्ध हो रहे हैं । गर्म पानी और हल्दी मिला दूध सदैव से भारतीयों की जीवन शैली से सदेव जुड़ा रहा हैं।



इतिहास में ऐसे अनेकों अवसर आए जब इस प्रकार के संक्रमणों ने भारत भूमि पर अनेकों मानव को काल का ग्रास बनाया। लेकिन उसके उपरांत भी भारतीय इस संक्रमण से सदैव विजयी हुए। बादशाह जहांगीर अपने 'तुजुके जहांगीरी' में लिखता है कि प्लेग से भारतवर्ष में बहुत संक्रमण फैला लेकिन भारतीय उससे भी लड़ने में सक्षम रहे। निरंतर पिछले पाँच सौ वर्षों से अनेक आपदाएं आई जो संक्रमण के रूप में भारतीयों को और मजबूत बना कर गई। यह संक्रमण हमें वसुधैव कुटुम्बकम और संयुक्त परिवार के पाठ पढ़ाते रहे हैं। संगठन, विश्वास और आस्था के साथ प्राकृतिक पारंपरिक वैदिक ज्ञान ही हमें इस प्रकार के संक्रमणों से निजात दिला सकता है। यह हमें 'कोरोना' ने सिखा दिया।


आज पूरा विश्व योग कर रहा है, दूध में हल्दी और गर्म जल का सेवन कर रहा है, काली मिर्च, लौंग, अदरक और तुलसी के पत्तों का काढ़ा पी रहा है। भारत सरकार स्वयं इस बात पर जोर दे रही है। भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने लोगों को तनाव और विशाद से उबारने के लिए आस्था और विश्वास के ही सूत्र का प्रयोग किया और संपूर्ण देश एक साथ खड़ा होकर जीवन की ज्योति की लौह को जला उठा। यही हमारी सनातन संस्कृति और परंपरा रही है। यह दीपक हमें ऊर्जा, रोशनी और संक्रमण से बचने के लिए वायु को शुद्ध भी करते हैं। घी, तेल और कपूर वायु के दोष निवारक रहे है, यही तो ज्ञान था, जो हम भूल बैठे थे।

सदैव से ही भारतीय संस्कृति में संक्रमण से जुड़े व्यवसाय कर्म और उनसे जुड़े लोगों को आज ही की भांति कुछ दिशानिर्देश से समाज को संक्रमण मुक्त रखने की परंपरा डाली गई थी।


आज उसके परिणाम भी देख लिए। जिसे छूत-अछूत नाम देकर प्रथा बना दिया वास्तव में यह वैदिक ज्ञान से बनाई गई सुरक्षा की डोर थी न कि छूत-अछूत!

" जब आप संक्रमण से जुड़े लोगों के संपर्क में ही नहीं आएंगे तो संक्रमण कैसे फैलेगा। यह तो हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से जानते थे लेकिन पाश्चात्य संस्कृति और सनातन विरोधी विचारधारा ने हमारे इस संक्रमण से लड़ने के सूत्र को तोड़कर हमें ही गलत साबित कर दिया। आज वे ही छूत-अछूत बन गए हैं कोरोना १९ ने दिखा दिया।"



इतिहास सदैव मनुष्य को प्रेरणा और भूतकाल में घटित घटनाओं और उसके निवारण से किए गए उपायों से हमें रूबरू कराता है। भारत के रेगिस्तानी प्रदेश मारवाड़ अपने गौरवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध रहा है। इसी मारवाड़ को मरू देश व मुर्दों का प्रदेश द लैंड ऑफ डेथ भी कहते हैं। 

इस प्रदेश के शासक महाराजा मानसिंहजी (१८०३-१८४३ ई.) के राज्य काल में कोरोना के जैसी ही संक्रमण की बीमारी फैली और किस प्रकार तत्कालीन शासक ने उसका निवारण किया यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है। आज हम भी उस प्रक्रिया को कुछ हद तक स्वीकार कर रहे हैं केवल स्वरूप बदल गया है। मारवाड़ के इतिहास का प्रमुख स्त्रोत हकीकत बहियों में नित्य प्रतिदिन की घटित घटनाओं का उल्लेख मिलता है। महाराजा मानसिंहजी के वि.सं. १८९३ (१८३६ ईस्वी) में मारवाड़ में जोधपुर शहर में एक रोग फैला। बहियों में लिखा है शहर में रोग चालियो आसोज मास (सितंबर अक्टूबर) में इस रोग को रोकने के लिए सर्वप्रथम महाराजा मानसिंहजी ने तुला दान (अपने शरीर के वजन के बराबर) किया जिसमें रुपए ८८०० दान दिए गए। आज जिस प्रकार कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कोष में दान दिया जा रहा है। उसी प्रकार उस जमाने में महाराजा स्वयं इसकी शुरुआत करते थे।
इस रोचक घटना का उल्लेख इस प्रकार हुआ है-

"आसोज वद ६ सम्वत् १८९३ ( ईसवी सन १८३६ )मुकाम गढ़ जोधपुर
। श्रीजी साहब आज दिन दोपार घड़ीक घड़ला तुलाव विराजीया स्हैर में रोग चालो तिण सूं आथुणी ख़ाबगा में तुला खड़ी हुई।"


मारवाड़ के शासकों ने संक्रमण का मुकाबला वैदिक क्रिया, आस्था विश्वास और आयुर्वेद के साथ लोगों को घरों मे रख कर ही किया था। महाराजा मानसिंह जी ने ब्राह्मणों को बुलाकर विद्याशाला में ब्राह्मण, जोगेश्वर जोशी, वेदिया को बुलाकर बैठक की गई तथा सभी को दक्षिणा देकर उपाय पर चर्चा हुई। सभी की चर्चा के पश्चात आसोज वाद ९ की रात्रि में मंडोर में भेरूजी की पूजा हुई और शहर के सभी दरवाजों चांदपोल, सोजती गेट, सिवांची गेट, जालोरी गेट, नागोरी गेट, मेड़ती गेट और बारियों (खिड़कियों) पर बाहर पूरी शहर पनाह की दीवार के चारों और शराब ओर दूध में कपूर लोंग आदि मिलाकर उसकी धार दिलाई गई । भेरू जी की पूजा के लिए सिंदूर, माली पन्ना, घिरत, गुल, तेल, फूल, कपूर, पात, श्रीफल, आटो, सुपारी, पतासा आदि से चढ़ावा और यज्ञ किया गया।

शहर पनाह के दरवाजों पर बलिदान के निमित्त इस प्रकार सामग्री काम में ली गई दारू डेढ़ मण, दूध डेढ़ मण, इलायची, मिठाई, होको चिलम, लौंग, श्रीफल, लोंगि हाथ, पतासा, धूप, छजादर, पुसप, धजा भगवी, सिंदूर, माटी रो पात्र, तेल, घिरत, पान सुपारियां, जायफल इत्यादि इसी के साथ आसोज वद ११ को विद्याशाला से ब्राह्मणों की बरणिया बैठी जिन्होंने निरंतर हवन यज्ञ किया। जिन्हें नियमानुसार दक्षिणा इत्यादि प्रदान की गई । सभी दरवाजों के बाहर होम करवाया गया।

१ दरवाजा होम करायो जिण ता। इण माफ़क सूं रात रा जोशी वैदिया ने मेल होम करायो।
१५) चांदपोल मेड़तीये दरवाजे
२३ १-) दूजा सारा ही छवा दरवाजा बारिया होम ता। लागा"

मारवाड़ में फैली इस महामारी का प्रभाव पाली शहर पर बहुत अधिक पड़ा। जोधपुर से एक वर्ष पूर्व विक्रम सम्वत् १८९२ ईसवी सन १८३५ कि ग्रीष्म ऋतु में पाली मे प्लेग फैला जिसमें हज़ारों नर नारी अकाल की काल कलवित हो गये, इसका असर कई महीनो तक रहा था।
मारवाड़ में सदैव अकाल बाहें खड़ा रहता है जिससे मारवाड़ वासी सदियों से संघर्ष और विपदाओं से लड़ने में सक्षम रहे हैं। जब इस प्रकार के संक्रमण फैले तब यहां के लोगों ने इसका मुकाबला करने में कभी कसर नहीं रखी।


प्रथम विश्व युद्ध के दौरान महाराजा सुमेरसिंहजी (१९११-१९१८ ई.) के राज्य काल में मार्च १९१८ में जब वर्षा की अधिकता के कारण नगर और गांव में प्लेग फैला तब भी मारवाड़ के लोगों ने आज ही की भांति धैर्य का परिचय दिया था। आज ही की तरह नए मकानातों की व्यवस्था की गई। महाराजा की आज्ञा से शहर के बाहर के सरकारी मकानात खुलवाकर नगरवासियों के रहने की सुविधा की गई। उस समय अनाज और खान-पान की सामग्री के लिए नियत भाव से बेचने के लिए दुकानें खुलवा कर नगर में होने वाली महंगाई को दूर करने के पूरे प्रयास किए गए। सरकारी रिसाला नगर में गश्त करता था साथ ही खाली पड़े घरों की सुरक्षा भी रिसाले के सैनिकों पर ही थी।

उस अवसर पर शहर के दफ़्तर अदालतें सभी बंद कर दिये गये १९१७ के ऑक्टोबर में १५ दिन की छुटिया की गयी थी ओर ३ नवम्बर को अदालते खुली ओर इसी तरह प्रकोप वापस फ़रवरी मार्च १९१८ में फैला तब १५ मार्च से १५ अप्रैल तक सभी दफ़्तर अदालतें ओर बाज़ार को बंद करना पड़ा । महामारी इतनी भयंकर थी की पहले शुरू में रोज़ाना १२५ आदमी काल के ग्रास बनने लगे जब मार्च अप्रैल में सब कुछ बंद किया गया तब धीरे धीरे पहले ६०-६५ ओर कुछ दिन बाद ४०-४५ ओर इस तरह अप्रैल अंत तक इस मरी रूपी महामारी पर क़ाबू पाया गया । उस समय भी आज ही तरह जोधपुर - मारवाड़ लोगों ने धेर्य ओर संयम का जो परिचय दिया था आज भी वैसे ही यहाँ के नागरिकों ने धैर्य का परिचय दिया है। उस वक़्त मारवाड़ के नागौर में जब अधिक बीमारी फैली तो सरकारी दफ़्तर दूसरे नगर में ले जाने पड़े पुरा नागौर शहर खाली हो गया था । शहर के लोगों ने सभी प्रकार से सहयोग किया मारवाड़ की बहियों में लिखा की जब शहर में एक ही दिन में इतनी मोते होने से शवयात्रा के समय सिंघपोल में मूता करणराज ओर सिंघी मदनराज ने अपनी हवेली पर लगे बाहर निकले झरोखो ( टोडे) को अपने आप निकलवा दिये जिससे वहा से मोहले वालों ओर मुसलमानो को ताबूत ( शवयात्रा ) के समय परेसानी ना हो । यही थी मारवाड़ की अपनायत और संस्कार। इसका उल्लेख तवारिख में इस प्रकार मिलता है - ‘’ तारीख़ २७ आषाढ़ सुदी १२ शनि को सिंघ पोल में मूता करणराज ओर सिंघी मदन राज ने अपने मकानो पर टोडे लगालिये थे वह मोहले वालों ओर मुसलमानो की नालिश होने पर कि ताबूतों के निकलने का रास्ता तंग हो जावेगा गिरा दिये गये ।’’


जब प्लेग का संक्रमण कम हुआ तो नगर में एक नई बीमारी युद्ध ज्वर (इन्फ्लूएंजा) का प्रकोप हो गया महाराजा ने तुरंत प्रभाव से एक 'रिलीफ कमेटी' बनाकर गरीब लोगों को सभी प्रकार की सुविधा देने का प्रयास किया। इस कमेटी के द्वारा गरीब बीमारों के लिए दवा के साथ साथ खाने-पीने का भी प्रबंध किया जाता था। 
जानकारी के लिए बता दु कि जोधपुर का उम्मेद पेलेस छप्पनियो काल जिसका नाम लेना ही अपशकुन माना जाता है मारवाड़ में, ये उसी अकाल के समय बना हे जिससे प्रजा को रोजगार सुलभ हो और कोई भुखा ना सोये ये था रजवाडा का समय।


यही वह समय था जब मारवाड़ के सरदार रिसाले के वीरों ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इजराइल के हैफ़ा नगर को विजित कर इतिहास का सबसे बड़ा काम किया था। स्टैंनगनों और नवीन तकनीकी के शस्त्रों के मुकाबले मारवाड़ के वीरों ने मेजर दलपतसिंहजी के नेतृत्व में हैफ़ा पर घोड़ों पर सवार होकर तलवारों से युद्ध लड़ा और जीत गए। आज हमारे कोरोना वॉरियर्स डॉक्टर्स, नर्स, अस्पताल के कर्मचारी, पुलिसकर्मी, अध्यापक, प्रेस मीडिया, सफाईकर्मी और सभी सरकारी और अर्ध सरकारी कर्मचारी जो इस संक्रमण के संघर्ष में हमें सुरक्षित रखते हुए लड़ रहे हैं वे निस्संदेह इस भयंकर 'संक्रमण रूपी' कोरोना १९ पर विजय प्राप्त करने वाले कोरोना वॉरियर्स है जिन्हें इतिहास में सदैव याद किया जाएगा।

मारवाड़ के शासक राव गांगाजी ने कहा था "नांव राखण नै गीतड़ा कै भीतड़ा"। 

संसार से कीर्ति सदैव उसी की रहेगी जो जन कल्याण, लोक कल्याण और राष्ट्र के निमित्त अपने योगदान देंगे। आज जिस प्रकार कोरोना वारियर्स हम सभी की सुरक्षा के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं तो समाज के कवि और साहित्यकार उनके गुणगान करते हुए गीत और कविताएं रच रहे हैं। इसलिए राव गांगाजी ने कहा था कि भीतड़ा अर्थात स्थापत्य धरोहरे गढ़ किले सब नष्ट हो जाएंगे लेकिन गीतड़ा अर्थात कीर्ति कविताएं गीत और कथाएं अमर रहेगी।

ये स्वाभिमान १२०० वर्ष के संघर्ष के साथ आया है।

आज का कठिन दौर भी निकल जाएगा और यह छूत-अछूत की बातें भी इतिहास बन जाएगी रहेगी तो केवल कोरोना से जुड़ने वाले वीरों की गाथाएं । मारवाड़ भी १९१८ ईस्वी में इसी प्रकार इनफ्लुएंजा की बीमारी से नवयुवक संक्रमित हुए और दूसरी तरफ प्रथम विश्व युद्ध के अनेक मोर्चों पर लड़कर मारवाड़ी सैनिकों का मान बढ़ाने वाले महाराजा सुमेरसिंहजी को मात्र २१ वर्ष की आयु में ३ अक्टूबर १९१८ को मारवाड़ के लोगों ने खो दिया था। अब मारवाड़ संक्रमण जैसी बीमारियों से और लोगों को नहीं खोना चाहता है। सभी सजग और जागृत होकर मुकाबला करें और अपने वैदिक संस्कारों और परंपराओं का निर्वाह कर कोरोना से मुकाबला करें। ईश्वर सदैव कर्मशील का सारथी बनता है कर्मशील बने भाग्य आपके कदमों में होगा। नया सूर्य उदय होगा और कोरोना का कोहरा अवश्य छटेगा इति अस्तु!




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