Sunday, September 27, 2020

MAHARAWAL DURJANSALJI BHATI (DUDA) AND BRAVE RANA TRILOK SINGH AT JAISALMER SECOND JAUHAR SAKA - IMMORTAL RAJPUTS

“इण गढ़ हिन्दू बाँकड़ो”
 

*यदुवंशी भाटी राजवंश परम्परा में महारावल जैसलदेव जी ने जैसलमेर की स्थापना की।*

*महारावल जैसलदेव जी के बाद उनके पाटवी पुत्र काल्हण जी महारावल बने। महारावल काल्हण जी के पुत्र पाल्हण जी के पुत्र जसहड़ जी के वंशज जसोड़ भाटी कहलाए।


इसी वंश परम्परा में दूदा जी जसोड़ जैसलमेर के महारावल जी बने।

रावल़ मूल़राज अर रतनसी फरै साको करियां पछै जैसल़मेर रो गढ घणा दिन सोग में डूब्योड़ो सूनो पड़ियो रह्यो।

जैसल़मेर जैड़ो गढ अर सूनो !!आ बात जद महेवै रै कुंवर जगमालजी मालावत नै ठाह पड़ी तो उणां आपरा आदमी अर सीधै रा सराजाम लेय जैसल़मेर कानी जावण रो मतो कियो।

उण दिनां काल़ काढण नै सिरूवै रा रतनू चंद्रभांणजी ई महेवै रैता, ऐड़ी सल़वल़ सुणी तो चंद्रभांणजी आपरै दादै आसरावजी नै समाचार कराया कै राठौड़ जैसल़मेर रो गढ दाबणो चावै!!

आसरावजी उणांनै पाछो कैवायो कै -

"जैसल़मेर जितो भाटियां रो गौरव उतो ई आपां रो गुमेज सो अजेज दूदे अर तिलोक नै कीकर ई समाचार करा जिकै सिंध में बैठा है।"

वे रात रा अंधारै में आपरी सांयढणी माथै डोल़ कर टुरिया जको रातोरात जसहड़ रै बेटां दूदे अर तिलोकसी नै समाचार भुगताय पाछा आय राठौड़ां भेल़ा होया।

राठौड़ बाजरी रै पाखल़ै भर अर आपरा आदमी लेय जैसल़मेर कानी बुवा।

आसणीकोट कनै आया जदै रतनू आसरावजी आय जगमालजी नै मनवार करी कै म्हारी छांनड़ी गुढै ईज है ,राज !! पवित्र करो अर कुरल़ो थूक म्हनै ई मोटो करो!!

जगमालजी जाणता कै रतनू आसराव मोटो आदमी अर भाटियां रो आदरणीय है सो इणनै ई साथै लेय गढ में बड़णो ठीक रैसी।

सो उणां आसरावजी री मनवार राखी।

आपरी गाड्यां जैसलमेर कानी टोर खुद अर बीजा सिरदार सिरूवै आया।

बिछायतां होई।वल़ री तैयारी होवण लागी।जगमालजी खतावल़ करै अर आसरावजी उणांनै बातां अर कायब सूं भूलथाप दैवै।

रोटीबेल़ा सूं दोपारो अर दोपारै सूं खीचड़ै री वेल़ा होई पण रोटी री होल़ी मांगल़ी ई नीं!!

जगमालजी कह्यो "बाजीसा घोड़ी बिल में बड़ै !!इती बखत नीं है म्हां कनै ।आप तो है जकी लावो !जोगमाया रो प्रसाद मान माथै चढाय लेसां।आपनै संकोच री जरूत नीं है।घर सारू पावणो होवै,पावणै सारू घर थोड़ो ई होवै!!"

आसरावजी कह्यो 

"अरे वडा सिरदार कद भांडां रै भैंस्यां दूजै अर कद छछवार्यां छाछ नै आवै!!आपरो कद काम पड़ै म्हारै घरै आवण रो सो आपरै सारू रोटी बणतां जेज लागसी!!"

यूं करतां दिन बधियो।

आसरावजी नै समाचार मिलिया कै दूदो अर तिलोकसी आय गढ में जमग्या है।उणां रै जीव में जीव आयो।

दूदा अने तिलोकसी पायो गढ़ जैसाण ।
हाथ मंडा बैठा नृपत जाणक ऊगा भाण ।

जितै भोजन री तैयारी होई ।हेरां आय जगमालजी नै समाचार दिया कै गढ में भाटी आय बड़िया।उणां रात रै अंधारै में देखियो तो गढ सूं चानणो दीसियो।उणां आसरावजी नै पूछियो कै गढ में कुण आयो !!

आसरावजी इचरज में पड़तां कह्यो कै 

"हुकम और तो ऐड़ो कोई भाटी जाणियो नीं ,हो सकै दूदो-तिलोकसी जसहड़ोत आयग्या होवै तो ठाह नीं!!

ठालाभूला है!मोत नै टिल्ला देता अर बांथियां आवता बैवै!!"-


जीम भोज जगमाल,

तुरँग दिस करी तियारी।

कहियो हेरां कांन,

एम गल गई अपांरी।

दुरजनियो डकरेल,

उरड़ गिर जैसल़ आयो।

मरियां पैली माड,

न दै जसहड़ रो जायो।

गोठ रो मरम गढपत जदै,

जगमालै झट जाणियो।

आस नै रंग देयर उमंग,

तुरंग खेड़ दिस तांणियो।।

जगमालजी जाणग्या कै बाजीसा जणै ई रोटियां नै मोड़ो कीधो।

उणां रात उठै ई वासो लियो अर दिनूंगै दूदेजी नै समाचार कराया कै 

"धायां थांरी छाछ सूं म्हांनै कुत्ता सूं छोडावो यानि म्हांरी गाडियां अर बाजरी पाछी दे दिरावो।

दूदेजी अर तिलोकसी आपरै धोबां सूं सुगनां री हजार धोबां बाजरी पाछी दी ।बाकी आपरै कोठार में नखाई।

जगमालजी रै आदम्या कह्यो कै 

"भाटी है किताक !!चढो!! जको धका देय गढ खोसलां ला!!

जगमालजी रै बात जचगी पण आसरावजी कह्यो कै-

चला र मोत रै मूंडै जावणो ठीक नीं है।

आ दो आदम्यां रै मिण र दियोड़ी बाजरी है सो थां मांय सूं टणका दो आदमी मिणलो। उवां दी जितरी होवै जणै तो मतो करिया नीं जणै आया बिनै ई जावणो ठीक रैसी!!"

जगमालजी ,बाजरी मिणाई जको बारै सौ -तैरै सौ धोबा होया!!

आसरावजी कह्यो कै जकां रै मुट्ठै मोटे !उणां री तरवारां री मूठां ई मोटी!!लागै जको पाणी ई नीं मांगे।

जगमालजी समझग्या कै जैसल़मेर हाथ नीं आवै।

राठौड़ां रो मन मोल़ो पड़ियो।

उणां पाछी जावती बखत दो सांसण रोहड़ियां नै दिया।एक सांगड़ अर दूजो ओल़ेचा।

गोरहर में दूदेजी री आण फिरी।

दूदोजी नखतधारी रावल़ होया।जिणां गोरहरै रो गुमेज बधायो।बांकीदासजी आ तक लिखै जैसल़मेर रो जनम रावल़ दूदे रै घरै।

राज करतां नै दस वरस होवण लागा जणै सोचियो कै मरणो तो एक दिन है ई पछै क्यूं नीं जसनामो करर मरूं!!उणां पातसाह रो खजानो खोस लियो।दिल्ली खबर पूगी।सेना आई ।गढ घिरियो।

राजपूतां साको करण अर रजपूताणियां जमर कर अमर होवणो तय कियो।

रात रा दूदेजी सूता अर 

 उणां रो एक राजपूत धाऊ भाछेलो जिणरी ऊमर 15-16वरस री,इणां रा पग चांपै।अचाणचक दूदेजी री पगथल़ी माथै आंसू रो टोपो पड़ियो।

दूदोजी रो ध्यान भंग होयो।उणां धाऊ रै साम्हो जोयो तो चानणै में उणां नै लागो कै धाऊ उदास अर आंख्यां जल़जल़ी!!

दूदेजी उणरै खांधै माथै हाथ देयर कह्यो 

"जा रे गैला!!दूदे री रोटी खाय !मोत सूं डरै!!तैं सुणी नीं कै देस खातर अर धणी खातर मरै वो सीधो सरग जावै अर उणरो जस संसार गावै!!"

धाऊ नीची मीट घाल बोलियो-

"हुकम !म्है आपरै ऐठोड़ो खाधो है,मोत सूं हूं कांई डरूं !!मोत तो म्हारै सूं लुकती बैवै!!"

तो पछै मरण पथिक रै आंख में आंसू!! कांगैपणो रो प्रतीक है!!राजपूत होय इयां बाई री गल़ाई रोवणकाल़ो क्यूं होवै?" दूदेजी पूछियो तो धाऊ कह्यो-

"हुकम !म्है सुणी है कै कंवारा मरै उणां नै कठै ई गत नीं मिलै!!उणांनै लूण ढोवणो पड़ै।आ देखो ऊपर आकाश गंगा !!ऐ सगल़ा बापड़ा कंवारिया लूण ढोवै!!म्हनै ई सरग नीं उठै जाय आं रै भेल़ो लूण ढोवणो पड़सी!!"

थूं म्हारो राजपूत है!!थारी ओगत मतलब म्हारो मरण बिगड़णो!! दूदेजी आ कैय हाजरियां नै कह्यो -

"दो भायां नै अर मा'राज नै बुलावो!!"

भायां अर मा'राज आय अरज करी -

खमा !!कांई आदेश?

"म्हारी बेटी ,म्है इण धाऊ नै दी !!हणै फेरा करावो।प्रभात रा आपां सगल़ा सरग हालसां!!"

भायां कह्यो -

हुकम -

बाई !!इण धाऊ नै!!"

"हां ,इण धाऊ नै!!

राजपूत !!कांई छोटो अर कांई मोटो!!हाड ऊजल़ो अर तरवार में पाणी होवणो चाहीजै। अर ऐ दोनूं बातां इण धाऊ में है!!फेरां री तैयारी करावो!!नीं तो म्हनै मरियै नै मुखातर नीं!!" दूदेजी पाछो जाब दियो।धणी रो धणी कुण?

दूदेजी आपरी बेटी धाऊ नै परणाई।

सवार रो साको होयो।


सवार रा सूरज री किरणां रै साथै ई भाटियां मुसल़ां माथै किरमाल़ां काढी।

दूदोजी नाम रै गुण ज्यूं ई दुरजनां नै सालता रणांगण में विकराल़ रूप में जूझै हा।

लारै सूं किणी माथै रै झाटको बायो जको सिर न्यारो अर देह न्यारी!!हमें कुण कैवै कै ब्याव भूंडो!!

बिनां माथै लड़ती देह अर अरियां री झड़ती लासां नै देख घणै दोखियां नीसासो खाधो। सेवट आयो सो जावै।रावल़ दूदैजी री देह ई शांत होई।

एकर भल़ै गोरहर रा गौरव दीप बुझग्या।

गढ में मुसलां रो थाणो बैठो,भाटी पाछा दुरबल़ पड़िया।

रावल़ रतनसी रो कुलदीप घड़सीजी दर -दर भटकता मेहवै पूगा।किणी रै घरै रातवासो लियो।दिनूंगै घड़सीजी दांतण करै अर अठीनै अठै रो कुंवर जगमालजी निकल़िया।असैंधो आदमी देख कुंवर खराय साम्हो जोयो पण घड़सीजी कोई गिनार नीं करी!!आ बात बलाय रै बटकै जगमालजी रै खुभगी।उणरै ई घरै कोई उणनै आवकारो नीं दे आ बात वे कीकर अंगेजै।उणां जाय रावल़ मलीनाथजी नै अरज करी कै एक ओपरो राजपूत फलाणै घरै कुरल़ो करै हो ,म्हनै जंवारड़ा नीं करिया सो लागै कै तो सफा भुछ है कै कोई देसोत है।

रावल़जी तेड़ायो ।घड़सीजी अदब सूं मिलिया।ओल़खाण होई।रावल़जी आपरी पोती विमलादे परणाई।

रावल़जी सूं रजा मांग ,घड़सीजी जैसाण री धरा में आया।*आपरो रावल़ो *बधाऊड़ै रतनू *भोजराजजी* रै घरै उणां रै भरोसै भोल़ाय पातसाह री सेवा में बारै आदमी लेय गया।

इणां में दस राजपूत अर दो दादो -पोतरो *रतनू आसरावजी अर चिराईजी हा*।इणी चिराईजी रा सपूत रतनू भोजराजजी आपरी बखत रा सपूत चारण हा।इण बात रो दाखलो नैणसी आपरी ख्यात में इण भांत दियो है-

*तरै रावल़़ घड़सी आपरा माणस लेनै फल़ोधी रै किनारै सिरड़ां रै किनारै गांव बधाऊड़ो छै तठै माणसांनूं राखनै आप पातसाह री ओल़ग गयो।उठै वरस 12चाकरी कीधी ।आदमी 10तथा 12 भाटी आदमी 2 चारण कनै था उठै बोहत परेसान हुवा।भूख गाढा दबाया।*

घणा दिन सेवा करी।जणै पातसाह भाटी लूणंग ऊदलोत री रजवट सूं रीझियो अर कह्यो मांग!!जणै लूणंग कह्यो म्हांरो देस जैसल़मेर पावां।

पातसाह घड़सीजी नै परवानो लिख दियो।

घड़सीजी साथ साथै टुरिया सो बैतां बैतां राजबाई तलाई गुढै आया जणै इणांनै अपसुगन होया।साथ रुक सुगन विचारिया।सुगनी कह्यो धरती मिनख रो वल़ मांगै!!

कनै गिणती रा आदमी अर वे ई बिखै रा एक सूं बधर एक साथी ।धरती नै किणरो भख दियो जावै!!पूरो साथ गताघम में।

भाटियां नै दोघड़चिंता में देख रतनू आसरावजी बोलिया कै-

"थे सगल़ा एकूंको आदमी अर म्हे एकै घर रा दो।म्हारी इच्छा आ ईज होती कै जैसाण पाछो रावल़ रतनसी रै घरै आवै।सो आयो ,म्हे घणो ई सुख-दुख दीठो !!हमें नीं जीयां लाभ अर नीं मरियां हांण!!म्हारी वल़ जमी नै देय धपावो।अंकै ई विचारण री बात नीं!!"

आसरावजी री आ बात सुण एकर मून पसरगी पछै घड़सीजी बोल्या बाजीसा आ कीकर हो सकै!!म्हांरै हाथां आपरो भख !!रैयत नै कांई मूंढो बतावला अर कांई ऐड़ै राज रो करांला जिको आपरो रगत पी म्हारै गुढै आवै!!कांई म्हारी जात रै बटो नीं लागै कै-

*भाटी बदल़ै रतनुवां,*

*जो कुल़ सूधो नाय!!*

आसरावजी पाछो कीं कैता जितै साथ नै लारै घोड़ां रा पौड़ बाजता अर खेह उडती दीसी!!


रावल दूदा (दुर्जनसाल जी) भाटी  (1357 ई. से 1368 ई.)


जैसलमेर का साका (धर्म युद्ध) और जैौहर

जैसलमेर के प्रथम साके में रावल मूलराज और राणा रतनसी ने अलाउद्दीन खिलजी की सेना का सामना किया था इस साके में जौहर हुआ और तत्पश्चात् जैसलमेर पर मुस्लिम राज हुआ। जैसलमेर के प्रथम शाके के पश्चात् दुर्ग में बादशाह का थाना बैठा था। राजधानी से बाहर भाटी सेना विभिन्न दलों में बंटी हुई मौके की तलाश में थी। प्रथम शाके से पलायन करने वाले दूदा - तिलोकसी जसहड़ोतों (जसोड़ों) की टुकड़ी उस समय पारकर में रह रही थी। तोला पाहु चालीस घुड़सवारों सहित लीलमा(वर्तमान गडरारोड़ के पास) में जाकर रहा। बाकी सरदारों की टुकड़ियाँ भी चारों ओर फैली हुई उचित अवसर की तलाश में थी। वे जैसलमेर दुर्ग में रसद की पूर्ति को बाधित करते थे तथा यवन सैनिकों से उलझते रहते थे। कुछ समय बाद यवन अधिकारी बुरी तरह तंग आ गए। वे दुर्ग छोड़कर चले गए।
 पाँच वर्ष बाद महारावल दूदा भाटी वहाँ का शासक हुआ और उसने भी दिल्ली के मुसलमान तुगलक सुल्तानों से जबरदस्त लोहा दिया। 

महारावल दुर्जनसाल ने अपने पूर्वजों की राजगद्दी पर संवत १३५७ विक्रमी को जैसलमेर में विराजमान हुए इनके ११ रानिया थी । १ अमरकोट के सोढा राणा गड़सी जी की पुत्री से विवाह हुआ तथा अन्य रानिया थी । इनके ४ पुत्र थे । इनके भ्राता तिलोकसिंह महावीर थे । उन्होंने नगर थटटा के दुर्ग से कुमरा कुमरा नामक बलोच को मार कर धोड़िया और बहूत साधन छीन लीया और कई जगह लूट खसोट कर खूब धन इकठ्ठा किया और उस धन को सुक्रत में लगाया । दूदा ने खीवसर के करमसोत सरदार की कन्या से विवाह किया । इस राजकुमारी के  साथ खीवसर के सिरदार ने शादू वंशीय हूफा नामक चारण को भेजा था । जिसकी वीर रस पूरण कविताओं से दूदा बहुत प्रसन्न रहते थे । इनके भाई तिलोकसी चारों तरफ उपद्रव मचाते थे । 
रावल के भाई त्रिलोकसी ने सुल्तान के क्षेत्र में धाड़ा और लूट आरम्भ करा दी और सुल्तान के एक सामन्त काँगड़ बलोच को मार डाला और उसके बहुत से घोड़े ले आए। इसी प्रकार सुल्तान के लिए उन्नत नसल के घोड़े जा रहे थे सो वे भी रावल ने लूट लिए। यह जैसलमेर राज्य से बाहर जाकर सिन्ध और मुल्तान प्रदेशों में डकैतियां करते और लूटा हुआ माल लाकर जैसलमेर के रावल दूदा जी को नजर करते। एक बार सिंध नदी के तट के पास 550 खच्चरों पर सोने की मुहरें लादकर, सिन्ध प्रदेश के करों का शाही खजाना नगरथट्टा से दिल्ली ले जाया जा रहा था। सिन्ध नदी के किनारे पर स्थित भक्खरकोट के पास दोनों भाई दूदा और त्रिलोक सिंह, अपने साथियों सहित शाही काफिलें पर टूट पड़े। काफिलें के साथ चल रहे पठानों को भाटियों ने मार गिराया और शाही खजाना लूटकर जैसलमेर लेकर आ गये। इससे दिल्ली का सुल्तान क्रोधित हो गया, लेकिन वह कोई ठोस कदम उठा नहीं पाया।
कुछ समय पश्चात दिल्ली के सुल्तान के पीरजादों(गुरूओं) का काफिला मक्का की तीर्थयात्रा करके और अपने अरब के खलीफा से मिलकर वापस दिल्ली लौट रहे थे, इन पीरजादों के पास बहुमूल्य उपहार, भेंट आदि थे - जिसका आकलन उस काल में तेरह करोड़ रुपयों के बराबर था, साथ ही इनके पास 2200 अरबी नस्ल के घोड़े थे, यह दोनों पीरजादे बिना अनुमति जैसलमेर के क्षेत्र में से होकर जाने लगे। अपने राज्य की संप्रभुता का यह तिरस्कार दोनों भाटी राजकुमारों को असहनीय लगा और दोनों भाटी राजकुमारों ने मिलकर पीरजादों का वध कर दिया और उनके सभी घोड़े और 13 करोड़ रुपए की धनराशि जब्त कर ली। इसके अतिरिक्त रावल दूदा ने तुगलक के राज्य में इतने बिगाड़ किए कि जिनकी गिनती नहीं। 

 तब ऐकण नर अपिया फिरोजशाह हजूर।
 घोड़े लिए तिलोकसी है भाटी नर सूर।।

वीर तिलोक सी की उद्दणता की शिकायत बादशाह के पास पहुँचते ही वह आग बबूला हो गया। भाटियों द्वारा बार-बार शाही खजानों को लूटने की घटनाओं पर दिल्ली का सुल्तान तुगलक क्रोधित हो गया और अपनी असंख्य सेना से जैसलमेर पर आक्रमण कर दिया । राजपूत युद्ध के लिए पहले से ही तेयार थे यवन सेना ने घेरा डाल दिया और छः वर्ष पर्यन्त युद्ध होता रहा । किन्तु बादशाही सेना किला न जीत सकी । रावल दूदा ने जौहर और साका करने का निश्चय तो बहुत पहले ही कर रखा था। अब वह मुस्लिम सेना पर रोज धावे करने लगा। किले में भोजन सामग्री ख़तम होते देख दूदा ने एक चाल चली । उसने हरिजनों से सुअरोनियो का दूध निकलाकर खीर बनवाई और खीर को पतलों में लगाकर उन्हें किले से बाहर फेंकवा दिया । बादशाही सेना धोखा खा गयी । उसने खीर लगी पतलों को देख समझा की अभी तक किले में खाध्य सामग्री बहुत बाकि है । ऐसी सूरत में किला जीतना मुश्किल है । अतः मुसलमान सेनापति ने युद्ध बंद कर वापिस जाने की तेयारी कर ली । किन्तु इसी बीच देशद्रोही भीमदेव ने शहनाई बजाकर संकेत भेजा कि दुर्ग में रसद समाप्त होने को है। ऐसा भी कहते है कि उसने संदेश कहलवाया था किले में भोजन सामग्री ख़तम हो गयी है । अगर ३ दिन और ठहर जाये तो किला आसानी से जीत सकते है । अतः सेनापति के आदेश पर फिर युद्ध का बिगुल बज उठा वस्तुत भोजन सामग्री ख़तम हो चुकी थी ।

जैसलमेर गढ़ बीच जसोड़ सूत वरदाई
बरस तीन सात मास राज सुखदेस बसावी
बरस सात पंचमास कलह विग्रह बिच बीते ।
रख नाम संसार जेण पतिसाह वदीते
दूदे तिलोकसी राख नाम इण जग उघरे ।
जादव वंस कुल महपति कर साको नर सुधरे ।

 रावल दूदा ने जीत की आशा छोड़ जोहर का हुकुम दे दिया ।ओर भयंकर संग्राम कर वीरगति को प्राप्त हुए । इस युध्ह में जसोड़ उतेराव ने बड़ी वीरता दिखाई । ये जुझार हुए । और आज तक जैसलमेर की जनता द्वारा पूजे जाते है । उतेरव के वीरगति होने के पश्चात् वीर दूदा और तिलोक सी ने अपने साढ़े पांच हजार सेनिको के साथ असंख्य मुसलमानों को यमलोक भेज स्वर्ग प्राप्त किया । 

“रावल जमहर राचियो’’ 

इस प्रकार रावल ने साका करने का समय जानकर रानी सोढ़ी को जौहर करने की तिथि बताई। रानी ने स्वर्ग में पहचान करने के लिए रावल से शरीर का चिन्ह मांगा तब रावल ने पैर का अंगूठा काट कर दिया। दशमी के दिन जौहर हुआ। रानी ने तुलसीदल की माला धारण की तथा त्रिलोचन, त्रिवदन लिए और 1600 हिन्दू सतियों ने अग्नि में प्रवेश किया। अगले दिन एकादशी को रावल ने साका करने का विचार किया था सो सभी योद्धा मिल रहे थे। एक युवक राजपूत धाडू जो 15 वर्ष का था सो जूंझार होने वालों में से था। उसने सुना था कि कुंआरे की सद्गति नहीं होती है। अतः वह दु:खी हुआ। यह जानकर रावल ने अपनी एक मात्र राज कन्या जो नौ वर्ष की थी से धाडू का विवाह दशमी की आधी रात गए कर दिया। प्रभात होने पर उस राजकन्या ने जौहर में प्रवेश किया।

१५६८ में एकादशी को दुर्ग के कपाट खोले गए और 25 नेमणीयात (नियम धर्म से बन्धे) जूझारों के साथ सैकड़ों हिन्दू वीर शत्रु पर टूट पड़े। रावल दूदा के भाई वीर त्रिलोकसी के सम्मुख पाँजू नामक मुस्लिम सेना नायक आया। यह अपने शरीर को सिमटा कर तलवार के वार से बचाने में माहिर था। परन्तु त्रिलोकसी के एक झटके से सारा शरीर नौ भाग होकर गिर पड़ा। इस पर रावल दूदा ने त्रिलोकसी की बहुत प्रशंसा की। कहा इस शौर्य पर मेरी नजर लगती है।

कहते है तभी त्रिलोक सी का प्राणान्त हो गया। इस भयंकर युद्ध के अन्त में 1700 वीरों के साथ रावल दूदा अपने 100 चुने हुए अंग रक्षक योद्धाओं के साथ रणखेत रहे। भारत माता की रक्षा में रावल दूदा ने अपना क्षत्रित्व निभाया और हिन्दुत्व के लिए आशा का संचार किया। रावल दूदा सदा ही अपने को “सरग रा हेडाऊ” अर्थात् स्वर्ग जाने के लिए धर्म रक्षार्थ युद्ध में रणखेत रहने को तत्पर रहते थे। 1. त्रिलोकसी भाटी, रावल के भाई 2. माधव खडहड़ भाटी 3. दूसल (दुजनशाल) 4. अनय देवराज 5. अनुपाल चारण 6. हरा चौहान 7. घारू इस प्रकार जैसलमेर ने ‘उत्तर भड़किवाड़’ अर्थात् देश के उत्तरी द्वार कपाटों के रक्षक के अपने विरुद को चरितार्थ किया और भारत के प्रहरी का काम किया।

दूदा अने तिलोकसी साको कियो संसार
तेरह सो छासठ भड़ रहिया भाटी लार
एमारै अड़िया किले रहि या दल ने ठाह
हठ हुवो दूदो सरस पारम पेरोसाह
जैसलमेर दुग्गाम गढ़ बढे न आवे हत्थ
तो सरीखी सोदागिरी कैति कर गयी कत्थ
पड़े वाज गजराज पड़े वह रावत भारिया ।
पड़े खेत बंगाल जास को अंतन पारिया
पड़े खेत जदू राय जेण असगर नर खड़िया
पड़े सुर विकराल जेण जग नाम सो मंडिया
   चवदे हजार दो सो असिया भिड़े मीर रण खेत पड़
  दूदो तिलोकसि पड़िया पछे जैसल गिर पडियों अनड़


एक और कथा मिलती है इस जौहर की जिसमे महारावल दूदा की महारानी खीवसर थी । वहां चारण हुंफा द्वारा अमंगल समाचार सुनकर सत करने के लिए अपने पति का सिर लाने को कहा । हुंफा ने जाकर यवन सेनापति से सिर के लिए प्राथना की उसने जवाब दिया की रणभूमि में असंख्य सिर कटे है । यदि तुम रावल का सिर पहचान सकते हो तो ले जाओ हुंफा ने कहा मेरे लिए सिर का पहचानना कठिन नहीं है । मेरी वीर भरी कविताओं को सुनकर सर् हंस पड़ेगा । कविराज की अद्भुत बात सुनकर सेनापति व् उसके अनुचर भी साथ हो लिए रन स्थल में पहुँच कर हुंफा के कविता पढने पर महारावल का सिर खिल -खिला उठा । उसके कवित्व शक्ति की प्रशंसा में दोहा प्रसिद्ध है ।

:: दोहा :::

 सांदू हूफे सेवियों साहब दुर्जनसल ।
 विड़धे माथो बोलियों गीतों दुहो गल ।

इस प्रकार महारावल दूदा के १० वर्ष राज्यकाल के पश्चात् जैसलमेर फिर यवनों के अधिकार में चला गया ।

जैसलमेर दुर्ग के प्रथम प्रोल के सामने ढिब्बे पाड़े में महारावल दुर्जनशाल जी और उनके अनुज राणा त्रिलोकसी जी देवलियां व छत्रियां मुख्य बाजार से दक्षिणी गली में २० फीट की दुरी पर मौजूद है॥ ये हमारे पावन तीर्थ है॥

ऐसे अद्वितीय योद्धाओं के बलिदान दिवस मनाना हमारे लिए गौरव की बात है।


वर्ष के चैत्र सुदी एकादशी को मातेश्वरी देगराय मंदिर में हजारों लोगों की उपस्थिति में समारोह पूर्वक महारावल दूदा जी का बलिदान दिवस मनाते है।


संदर्भ : 1 नैणसी री ख्यात द्वितीय 2- Rajasthan Through the Ages I, Dr. Dashrath Sharma,


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