हिमालय का सौन्दर्य जितना आकर्षक है उतनी ही सुन्दर प्रेम कहानियां यहां की लोक कथाओं और गीतों में दिखाई देती हैं। उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में प्रेम कहानियां लोकगथाओं के रूप में जन जन तक पहुंची हैं, हालांकि यह अधिकतर राजघरानों से जुड़ी हैं लेकिन वह आम आदमी तक प्यार का संदेश छोड्ने में कामयाब रही हैं, हरूहीत और जगदेच पंवार की कहानी तो है ही रामी बौराणी का अपने पति के इंतजार में सालों गुजारना उसके समर्पण को दर्शाता है, इन सबसे बढ्कर राजुला मालूशाहीकी अमर प्रेम कथा है जो प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। उत्तराखण्ड की लोककथाओं में प्रेम कथाओं का विशेष महत्व हें यह लोक गाथाओं के रूप में गाई जाती है, हालांकि अलग अलग हिस्सों में इन कहानियों को अपनी तरह से लोक गायकों ने प्रस्तुत किया है लेकिन जब समग्रता से इसे देखते हैं तो कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्होंने उन पात्रों को आज भी गांवों में जीवंत रखा है। यहां प्रचलित कहानियों की पृष्ठभूमि में विषम भौगोलिक परिस्थितियों से उपजी दिक्क्तें साफ झलकती हैं। राजुला मालूशाही की गाथा कितनी अमर है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है साइबर युग में जहां प्रेम की बात संचार माध्मों से हो रही हो वहां भोट की राजुला का वैराट, चौखुटिया आने और मालूशाही का भोट की कठिन यात्रा प्रेमियों का आदर्श है।
कुमाऊं और गढ्वाल में प्रेम गाथायें झोड़ा, चांचरी, भगनौले और अन्य लोक गीतों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सुनी सुनाई जाती रही हैं, मेले इनको जीवन्त बनाते हैं। राजुला मालूशाही पहाड् की सबसे प्रसिद्व अमर प्रेम कहानी है। यह दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्टों, दो जातियों, दो देशों, दो अलग परिवेश में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है। सामाजिक बंधनों में जकड़े समाज के सामने यह चुनौती भी थी। यहां एक तरफ बैराठ का संपन्न राजघराना है, वहीं दूसरी ओर एक साधारण व्यापारी, इन दो संस्कृतियों का मिलन आसान नहीं था। लेकिन एक प्रेमिका की चाह और प्रेमी का समर्पण पेम की एक ऐसी इबारत लिखता है जो तत्कालीन सामाजिक ढ्ाचे को तोड्ते हुए नया इतिहास बनाती है।
राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार है- कुमांऊं के पहले राजवंश कत्यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी है, उस समय कत्यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थी। जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे, उनकी कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उन्होंने कई मनौतियां मनाई। अन्त में उन्हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की अराधना करे तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है। वह बागनाथ के मंदिर गये वहां उनकी मुलाकात भोट के व्यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में वहां आये थे। दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगें। ऐसा ही हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम मालूशाही रखा गया। सुनपत शौका के घर में लडकी हुई, उसका नाम राजुला रखा गया। समय बीतता गया, जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भोट में राजुला का सौन्दर्य लोगों में चर्चा का विषय बन गया। वह जिधर भी निकलती उसका लावण्य सबको अपनी ओर खींचता था।
पुत्र जन्म के बाद राजा दोलूशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि “हे राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिये जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा।” राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये मालूशाही से यह बात गुप्त रखी जाये।
धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे….राजुला जब युवा हो गई तो सुनपति शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली वैराट में ब्याहने का वचन राजा दोलूशाही को दिया था, लेकिन वहां से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा।
एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि
” मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?”
उसकी मां ने उत्तर दिया ” दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट”
तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि ” हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना। इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौक के यहां आया और उसने अपने लिये राजुला का हाथ मांगा और सुनपति को धमकाया कि अगर तुमने अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इस बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालूशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विखीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्च्य किया कि वह स्व्यं वैराट देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी मां से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, वैराट के रास्ते से तुझे क्या मतलब। तो रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी।
वह पहाड़ों को पारकर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, वहां से उसे कफू पक्षी ने वैराट का रास्ता दिखाया। लेकिन इस बीच जब मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया। लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, सो नहीं उठ पाया, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि ” हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।” यह सब देखकर राजा मालू अपना सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये।
गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे, राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को शरीर में मलकर एक सफेद धोती पहन कर गुरु जी के सामने गया और कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी, मुझे राजुला चाहिये, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यही पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा। तब बाबा ने आंखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होंने यह भी कहा कि देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लडकी को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे, राजुला। लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा कि गुरु यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहां से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उसे न लग सके।
तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खाकर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुंचा और भिक्षा और खाना मांगा, रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है, मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे खान दे। रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पांच ग्रास बनाये, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पांचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था। इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राज पाट छोड़कर? तो मालू ने कहा-मां तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊंगा, मुझे हूणियों के देश जाना है, अपनी राजुला को लाने। रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालू फिर भी नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।
मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुंचा, उस देश में विष की बावडियां थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खी पाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई? राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं, तो जोगी ने कहा कि ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने कहा कि ’मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’ तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ’चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली वैराट का मालूशाही था’। तो राजुला ने रोते हुये कहा कि ’हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’। तो मालूशाही अपना जोगी वेश उतार कर कहता है कि ’ मैंने तेरे लिये ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा’।
तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। राजुला मालु से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो वैराट का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने क षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिये मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हून देश भेजा।
सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं। मालूशाही बारात लेकर वैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोड़्कर जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका।
उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में प्रेम कहानियाँ लोकगथाओं के रूप में जानी जाती है | हालाँकि यह अधिकतर राज परिवारों से जुड़ी हैं , लेकिन यह आम आदमी तक प्यार का संदेश पहुँचने में कामयाब रही हैं, हरूहीत और जगदेच पंवार ,रामी बौराणी की कहानियाँ जिसमे अपने पति के इंतजार में सालों गुजारना उसके समर्पण को दर्शाता है, इन सबसे बढ़कर राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कथा है जो प्रेम का प्रतीक मानी जाती है।
उत्तराखंड की लोककथाओं में प्रेम कथाओं का विशेष महत्व हें यह लोक गाथाओं के रूप में गाई जाती है, हालांकि अलग - अलग हिस्सों में इन कहनियों को अपनी तरह से लोक गायकों ने प्रस्तुत किया है | लेकिन यदि समग्र रूप से इसे देखा जाये तो कुछ कहानियाँ ऐसी भी है जिन्होंने उन पात्रों को आज भी उत्तराखण्ड में जन - जन के दिलों में जीवित रखा है। यह प्रचलित कहानियों की पृष्ठभूमि में विषम भौगोलिक परिस्थितियों से उपजी दिक्क्तें साफ झलकती हैं।
राजुला मालूशाही की गाथा कितनी अमर है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है की इस साइबर युग में जहां प्रेम की बात संचार माध्यम से हो रही हो वही भोट की राजकुमारी राजुला का वैराट से चौखुटिया आने और मालूशाही का राजुला के लिए भोट की कठिन यात्रा करना उनके पवित्र प्रेम को दर्शाता है, यह दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्टों, दो जातियों, दो देशों, दो अलग परिवार में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है।
कुमाऊं और गढ्वाल में प्रेम गाथायें झोड़ा, चांचरी, भगनौले और अन्य लोक गीतों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सुनी सुनाई जाती रही हैं, मेले इनको जीवित रखते हैं। राजुला मालूशाही पहाड़ की सबसे प्रसिद्व अमर प्रेम कथा है। सामाजिक बंधनों में जकड़े समाज के सामने यह चुनौती थी।
एक तरफ बैराठ का संपन्न राज परिवार था , वहीं दूसरी ओर एक साधारण व्यापारी, इन दो संस्कृतियों का मिलन आसान नहीं था। लेकिन एक प्रेमिका की चाह और प्रेमी का समर्पण प्रेम के ऐसे त्याग को दर्शाता है, जो तत्कालीन सामाजिक ढाँचे को तोड़ते हुए नया इतिहास को बनता है।
राजुला मालूशाही लोकगाथा :-
बागेश्वर मंदिर |
कुमाऊँ के पहले राजवंश कत्यूर के वंशज के बारे में यह कहानी है, कत्यूर के शासन काल में कत्यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान की चौखुटिया थी। स्थानीय मान्यता के अनुसार बैराठ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे, उनकी कोई संतान नहीं थी, संतान प्राप्ति हेतु उन्होंने कई मन्नते मांगी । अन्त में उन्हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की अराधना करे तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है।
वह बागनाथ मंदिर गये वहां उनकी मुलाकात भोट के व्यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में वहां आये थे। दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड़का और लड़की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगें।
ऐसा ही हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम मालूशाही रखा गया। सुनपत शौका के घर में लडकी हुई, उसका नाम राजुला रखा गया। कुछ समय पश्चात जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा, वहीं भोट में राजुला का सौन्दर्य लोगों में चर्चा का विषय बन गया। वह जिधर भी निकलती उसका सौंदर्य सबको अपनी ओर खींचता था।
पुत्र जन्म के बाद राजा दोलाशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि “हे राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिये जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा।” राजा ने अपने पुरोहित को भोट देश भेजा और उनकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया।
लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलाशाही की मृत्यु हो गई। जिसका का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। मालूशाही से यह बात गुप्त रखी गई ।
भोट देश - बैराठ देश के बीच मतभेद:-
धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे….राजुला जब युवा अवस्था में थी तो सुनपति शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली वैराट में ब्याहने का वचन राजा दोलाशाही को दिया था, लेकिन वहां से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा। एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि
” मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?”
उसकी मां ने उत्तर दिया ” दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट” माँ की बात सुन कर राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि ” हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना।
इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौक के यहां आया और उसने अपने लिए राजुला का हाथ मांगा और सुनपति को धमकाया कि अगर तुमने अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इस बीच मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रूप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा। यही सपना राजुला को भी हुआ,
एक ओर मालूशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विखीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्च्य किया कि वह स्व्यं वैराट देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी मां से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, वैराट के रास्ते से तुझे क्या मतलब। तो रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी।
मालूशाही और राजुला का मिलन :-
वह पहाड़ों को पार कर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, वहां से उसे कफू पक्षी ने वैराट का रास्ता दिखाया। लेकिन इस बीच जब मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया। लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि
” हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, जो तूने मुझे विवहा का वचन दिया है उसे पूरा करना और मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं
यह सब देखकर राजा मालू अपना सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये।
गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे, राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को शरीर में मल कर एक सफेद धोती पहन कर गुरु जी के सामने गया मालूशाही ने कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी, मुझे राजुला चाहिये, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यही पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा।
तब बाबा ने आंखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होंने यह भी कहा कि देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लडकी को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे, राजुला। लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा कि गुरु यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहां से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उसे न लग सके।
तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खाकर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुंचा और भिक्षा और खाना मांगा, रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है, मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे खान दे।
रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पांच ग्रास बनाये, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पांचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था।
इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राज पाट छोड़कर? तो मालू ने कहा-मां तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊंगा, मुझे हूणियों के देश जाना है, अपनी राजुला को लाने। रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालू नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।
मालूशाही और विक्खीपाल के बीच युद्ध :-
मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुंचा, उस देश में विष की बावडियां थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिकारी विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे मालू पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खी पाल राजुला को ब्याह कर लाया था।
मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया।
जोगी ने कहा - अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई ?
राजुला ने कहा - जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं,
तो जोगी ने कहा - ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’
राजुला ने बताया - ’मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’
जवाब में जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ’चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली वैराट का मालूशाही था’।
राजुला ने रोते हुये कहा कि ’हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’।
मालूशाही ने अपना जोगी वेश उतार कर बताया कि ’ मैंने तेरे लिये ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा’।
तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा तेज देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उस पर नज़र रखता रहा। राजुला मालु से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो वैराट का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने का षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लाने के लिये मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हूण देश भेजा।
सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं।
मालूशाही बारात लेकर वैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो।
अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोड़ कर जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका।
Rajula Malushahi is one of the most comprehensive ballads of Kumaon, Uttarakhand. This epic ballad has been sung in the Kumaon Himalayas for at least a thousand years. Rajula Malushahi is the love story of King Malushahi, perhaps a historical personage and Rajula, daughter of a Tibetan trader visiting the king’s dominions.
Set at the time when the Katyuri dynasty was fragmenting into independent fiefdoms, the ballad traces its origins to around the 10th century A.D., when a king no longer reigned from the capital of Kartikeyapur. Instead, the ballad tells the tale of one successor king, Malushahi, who ruled from Bairath, near present-day Dwarahat The king, although already married to seven queens, falls in love with Rajula, the beautiful and intelligent daughter of Sunapati Shauka, a Bhotiya trader of Tibetan goods. Their romantic adventures in search of one another take them to the far corners of the Himalayas, where intrigue, treachery, violence, black magic, and even death conspire to keep them apart.
In their travels, the principle characters visit many places and deal with at least three distinct cultures - the Katyuri, Bhotia (Shauka), and Tibetan (Huniya). Unlike other tales, the characters never become gods, nor are overpowered by them, as Malushahi and especially Rajula use their wits to escape danger time and time again.
All three main versions of the ballad end in the marriage of Malushahi and Rajula. Sung at a stretch in a village courtyard or home on a happy social occasion the ballad takes ten or 12 hours to perform.
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