Tuesday, August 25, 2020

KUMAON RAJA BAZ BAHADUR CHAND - IMMORTAL RAJPUTS

 


https://youtu.be/gizGWcejJPs


बाज बहादुरचन्द- राजा (1638-1678): कूर्मांचल के सर्वाधिक शक्तिशाली नरेशों में एक तराई क्षेत्र को आबाद करने वाला पहला नरेश। भाग्य का सर्वाधिक धनी। चरवाहे से राजा बनने वाला कूर्मांचल में अकेला नरेश। संक्षेप में इनकी गाथा यहां प्रस्तुत है:-

सन 1625 में कूर्मांचल में हत्याकांड, अंधेरगर्दी और अराजकता का समय रहा। तत्कालीन कुमाऊँ नरेश विजयचंद विलासी राजा था। राजसत्ता शोर के तीन व्यक्तियों के हाथों मे चली गई थी। ये थे-सुखराम कार्की, पीरू गुसाई और विनायक भट्ट। इनका पूर्ण प्रभाव राजा और राजसत्ता पर था। एक दिन इन तीनों ने मिलकर राजमहल में भयंकर हत्याकाण्ड किया। राजा विजयचंद की हत्या कर दी। राजा के सगे चाचा नीलसिंह गुसांई अन्धे कर दिए गए। सत्ता लोलुप इन क्रूर और धूर्त राजनीतिज्ञों की प्यास इतना करने पर भी नहीं बुझी। इन्होंने कई चन्दवंशी राजकुमारों को तलवार के घाट उतार दिया। रक्त से सनी तलवार लिए जब हत्यारे रनिवास में नील गुंसाई के नन्हे कुमार बाजा की हत्या करने पहुंचे तो एक दासी ने सोते कुमार को शीघ्रता से शाल में लपेट कर किले के पिछवाड़े रख दिया। वहां पर राजकुमार चौसार के पण्डित धर्माकर त्रिपाठी की पत्नी को मिला। यही नन्हा कुमार त्रिपाठियों के घर पला।

विजयचन्द की हत्या के बाद राजा त्रिमल्ल चन्द गद्दी पर बैठे। इन्होंने 1625 से 1638 ई. तक राज्य के उत्तराधिकार के लिए किसी चन्दवंशी रौतेले की खोज करवाई, तो खोज करने पर बाजा का पता चला। निःसन्तान त्रिमल्लचन्द ने बाजा को बाजबहादुर चन्द के नाम से कुँवर घोषित कर दिया। राजा त्रिमल्ल चन्द ने विजयचन्द के हत्यारों- सुखराम कार्की को प्राण दण्ड दिया; विनायक भटट को अंधा कर दिया और पीरू गूसांई को प्रयाग राज अक्षय वट के पास आत्महत्या करने भेजा।

राजसिंहासन प्राप्त करते समय राजा बाज बहादुर के समक्ष विषम परिस्थितया थीं। विपत्नता में पला और ग्वाले का जीवन बिताने वाला बाजा राजा तो बन गया, किन्तु राज-काज से वह नितान्त अनभिज्ञ था। उस समय तक तराई के एक बड़े भू-भाग पर कठेड़ियों का कब्जा हो गया था; अब वे पूरी तराई को 'कब्जाने' की फिराक में थे। उनके भय से तराई में बसे पर्वतीय कृषक वहां से पलायन कर गए। तराई का एक बड़ा भाग जंगल में परिवर्तित हो गया। राजकोष की आमदनी घट गई। बाज बहादुर ने मुगलों से सहायता लेने के लिए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। वह शाहजहां का शासनकाल था। बाज बहादुर उसकी सेना में पदाधिकारी बन गया। उसने काबुल, कन्दहार के अभियान में महत्वपूर्ण भाग लिया। अवसर मिलने पर उसने कन्दहार के युद्ध में बड़ी वीरता दिखलाई। शाहजहां उससे बहुत प्रसन्न हुआ। युद्ध से लौटने पर सम्राट ने उसका विरोचित सम्मान किया। अवसर पाकर राजा ने तराई की विषम परिस्थिति से मुगल सम्राट को अवगत कराया। दिल्ली दरबार से बल पाकर राजा ने ठाकुरद्वारा की ओर से कठेड़ियों को तराई प्रान्त से खदेड़ दिया। तब उसने तराई की समृद्धि एवं विकास की ओर ध्यान दिया। तराई के विकास की सम्पूर्ण योजना भीमताल के पास पाण्डे गाँव (बाड़ाखोरी) निवासी बाम देव पाण्डे जी के सुपुत्र विश्वरूप पाण्डे ने बनाई। इस कार्य में उन्हें कायस्थ कुलाग्रवर्ती द्वारिका प्रसाद, जगन्नाथ पण्डित, रमा पण्डित, भवदेव, सेलाखोला के प्रयागदान आदि प्रभावशाली एवं कर्मठ व्यक्तियों ने सहायता दी। राजा ने तराई में बाजपुर नगर बसाया। काशीपुर और रुद्रपुर में गढ़ियों का पुनर्निर्माण हुआ। जंगल कटवाए, सड़कें बनाई, गाँव बसाए और कृषकों की सुरक्षा के लिए चार-चार कोस पर घुड़सवार सैनिक रखे गए। दुर्ग बनवाए गए और गूलों का निर्माण हुआ।

यह ताम्रपत्र राजा बाज बहादुर चंद द्वारा उदा बिष्ट को जमीन देने का घोषणापत्र है।

बाज बहादुर चन्द ने तलवार के बल पर अपने राज्य का विस्तार किया। 1655 के आसपास बाज बहादुर गढ़वाल पर अकारण आक्रमण कर दिया।

परिणामस्वरूप  तराई पर अपना कब्जा जमा दिया। मानिल के अन्तिम कत्यूरी गढ़पति तकलाखार (हूण देश) के राजा और व्यास पर सदियों से कब्जा जमाएं जुमला (नेपाल) के राजा को युद्ध में परास्त कर उनके राज्य को अपने राज्य में मिलाया। 1670 में अस्कोट के रजवार की जागीर की छानबीन की। चितोन (डोटी) के गढ़पति का गढ़ कब्जा कर वहां के गढ़पति को फांसी पर लटका दिया। 

अपने जीवन के अन्तिम कुछ वर्षों में राजा निराश रहने लगा था। उसे विश्वास हो गया था कि उसके सेवक और पुत्र उद्योत चन्द कभी भी उसकी मृत्यु कर सकते हैं। इसी भय से उसने अपने सभी पुराने सेवकों को निकाल दिया। मृत्यू के समय किसी ने उसकी देखभाल नहीं की।

अनेक युद्धों में संलग्न रहने पर भी बाज बहादूर विद्वानों का आश्रयदाता था। उसकी सभा में अनेक विद्वान पण्डित थे। राजा के आश्रय में एक महाराष्ट्रीय 



Baj Bahadur of Kumaon ca. 1650.One of most powerful ruler of Chand dynasty was Baz Bahadur (1638–78) AD, who met Shahjahan in Delhi, and in 1655 joined forces with him to attack Garhwal, which was under its king, Pirthi Shah, and subsequently captured the Terai region including Dehradun, which was hence separated from the Garhwal kingdom. Baz Bahadur extended his territory east to karnali river. 

Baz Bahadur also built the Golu Devata Temple, at Ghorakhal, near Bhimtal, after Lord Golu, a general in his army, who died valiantly at war . 


He also built famous Bhimeshwara Mahadev Temple at Bhimtal.


 King Baz Bahadur Chand,took away the idol of Nanda Devi from Garhwal kings, believing its worship would guarantee future victories against Garhwal. Kumaon armies later adopted the war cry,“Victory to Nanda Devi!”

The idol was installed at Ram shila mandir at malla mahal.

The worship of royal Goddess Nanda in the region has been a tradition since kings brought her idol in the 17th century.




In 1670, the Raja of Kumaon, Baz “Bahadur” Chand, invaded the southern part of tibet and subdued the Huniya-tibetans who were harassing Hindu Pilgrims. There are several copper plate grants which indicate his control over Tibet, till the Himalayan Watershed. 


Besides the copper grants, the Tibetan Bards still sing songs about the bravery of Baz Bahadur Chand and the Kumaonis. 

Source: The Tradegy of Tibet by Man Mohan Sharma


This is further corroborated by Firishta, a contemporary historian, who says that the Raja of Kumaon extends into Tibet. 


Several generals such as Bhakitar Khilji invaded Tibet and were nearly annihilated in their attempt to do it, but Baz Bahadur succeeded. 


He not only wrested the passes from the Huniyas, he even conquered forts from them, like the fort at Takalakhar. 

This was at a 10,000+ feet elevation in very unforgiving conditions.


This good luck continued throughout Maharaja Baz Bahadur Chand’s reign; the Kumaoni Rajput king remained undefeated for the rest of his life.


His reign is generally marked as the best or one of the best in the History of Kumaon.


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