Sunday, August 23, 2020

उड़णा राजकुमार कुँवर पृथ्वीराज - हिंदुपत महाराणा सांगा (भाग -२)

“उसकी देह लोहे की बनी थी, आत्मा भी अग्नि की|
सदा संकट में निडर था, अथक था, अति परिश्रमी||

उसके वेग भरे साहस, बाजी मार ले जाने के अतृप्त प्रेम, कार्य के निमित्त निरंतर प्यास और कीर्ति की अथक खोज के समान भाव वालों को देश के चारों ओर आकर्षित किया| भिन्न भिन्न जातियों और देशों के सहस्त्रों वीर कीर्तिसम्पादन और कष्ट-सहन करने में भाग लेने को पृथ्वीराज के अनुगामी हुए|” (हरविलास शारडा; महाराणा सांगा; पृष्ठ-२३)

"मेवाड़ के उड़णा राजकुमार कुँवर पृथ्वीराज की छतरी कुंभलगढ़ दुर्ग में स्थित है।"

हिंदुपत महाराणा सांगा ( पूरा नाम महाराणा संग्रामसिंह ) के बड़े भाई पृथ्वीराज  को उड़ना राजकुमार कहा जाता है ये मेवाड़ के महाराणा रायमल के ज्येष्ठ पुत्र व राणा सांगा के बड़े भाई थे | ये अपने तेज तर्रार मिज़ाज व बहादुराना बर्ताव के कारण इतिहास में "उड़णा राजकुमार" या "उड़न पृथ्वीराज" के नाम से प्रसिद्ध हुए | इस समय पूरे राजपूताने में महाराणा से ज्यादा चर्चे कुंवर पृथ्वीराज के रहते थे | ये बड़े उग्र स्वभाव के थे | 

इतिहासकारों के अनुसार अपने इन गुणों से “पृथ्वीराज को लोग देवता समझते थे।” पृथ्वीराज एक ऐसे राजकुमार थे जिन्होंने अपने स्वयं के बलबूते सैन्य दल व उसके खर्च के लिए स्वतंत्र रूप से आर्थिक व्यवस्था कर मेवाड़ के उन कई उदण्ड विरोधियों को दंड दिया जो मेवाड़ राज्य की परवाह नहीं करते थे।



कुंवर पृथ्वीराज ने मेवाड़ के हित में कई लड़ाइयाँ लड़ी थी। कुंवर पृथ्वीराज एक स्थान से दूसरे स्थान पर जिस तीव्रता से पहुँचते थे और दुश्मन पर जिस तीव्र वेग से आक्रमण करते थे उसके कारण उस वक्त उन्हें लोग “उडणा (उड़ने वाला) पृथ्वीराज” कहने लगे थे। कुंवर पृथ्वीराज अपने अदम्य साहस, अप्रत्याशित वीरता, दृढ निश्चय, युद्धार्थ तीव्र प्रतिक्रिया व अपने अदम्य शौर्य के लिए दूर दूर तक जाने जाते थे।

इतिहासकारों के अनुसार अपने इन गुणों से “पृथ्वीराज को लोग देवता समझते थे|” पृथ्वीराज एक ऐसे राजकुमार थे जिन्होंने अपने स्वयं के बलबूते सैन्य दल व उसके खर्च के लिए स्वतंत्र रूप से आर्थिक व्यवस्था कर मेवाड़ के उन कई उदण्ड विरोधियों को दंड दिया जो मेवाड़ राज्य की परवाह नहीं करते थे| इतिहासकारों के अनुसार यदि पृथ्वीराज की जहर देकर हत्या नहीं की गई होती और वे मेवाड़ की गद्दी पर बैठते तो देश का इतिहास कुछ और ही होता| यदि राणा रायमल का यह ज्येष्ठ पुत्र पृथ्वीराज जीवित होता और सांगा के स्थान मेवाड़ का महाराणा बनता, उन परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए हरविलास शारडा अपनी पुस्तक “महाराणा सांगा” के पृष्ठ 36 पर लिखते है- “यदि पृथ्वीराज मेवाड़ की भाग्यलक्ष्मी के नेता होने को जीवित रहते तो वहां के इतिहास का मार्ग और ही तरह का होता और “सावधान सांगा के स्थान में पृथ्वीराज की निर्भयतापूर्वक वीरता और अदम्य शौर्य के अधीन राजपूत वीरत्व के हाथों भारत में तुर्क (मुग़ल) वंश के मूल-संस्थापक की क्या गति होती?” इस विषय में कर्नल टॉड का कथन है कि उसका अनुमान करना भी असंभव है, तो भी एक बात निश्चित है कि यदि अपनी प्रारंभ की पराजयों के पश्चात बाबर को सांगा के स्थान में पृथ्वीराज का सामना करना पड़ता तो बहुत संभव है कि फरवरी १५२७ में खानवा की लड़ाई में साहसी (बाबर) हार जाता और भारत भूमि उतर पश्चिम के आक्रमणकारियों से फिर एक बार मुक्त हो जाती|”

१४६८ ई

महाराणा कुम्भा के दूसरे पुत्र  रायमल्ल के बड़े भाई उदयसिंह प्रथम ने महाराणा कुम्भा की हत्या कर खुद को मेवाड़ का महाराणा घोषित कर दिया, तब मेवाड़ के सर्दारों ने रायमल्ल को ईडर से मेवाड़ बुलाया

३ वर्षों तक कई बार रायमल्ल व उदयसिंह की फौज में लड़ाईयां हुई

उदयसिंह ने १०,००० की फौज के साथ रायमल्ल पर हमला किया | दाड़मी गांव में हुई इस लड़ाई में रायमल्ल विजयी हुए |
उदयसिंह के कब्जे में जो इलाके थे, उनमें जावर, चित्तौड़, जावी, पानगढ़ वगैरह मेवाड़ी इलाकों पर रायमल्ल ने अधिकार किया

इन लड़ाईयों में कांधल (राव चूंडा के पुत्र) ने रायमल्ल का साथ दिया

१४७३ ई.

* रायमल्ल के कुम्भलगढ़ आने पर उदयसिंह अपने दोनों बेटों सूरजमल व सैंसमल समेत भागकर मांडू के बादशाह गयासुद्दीन खिलजी के पास चला गया। उदयसिंह ने गयासुद्दीन को अपनी बेटी के विवाह के बदले मेवाड़ पर चढाई करने का इक्रार किया।
एकलिंग जी की कृपा से ये सम्बन्ध नहीं हुआ, क्योंकि इक्रार करके लौटते वक्त उदयसिंह पर बिजली गिर गई, जिससे उसकी मौत हुई।

* इसी वर्ष महाराणा रायमल्ल का राज्याभिषेक हुआ।

* उदयसिंह प्रथम के दोनों बेटों की अर्जी पर मांडू बादशाह गयासुद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर हमला करने का फैसला किया।

* इस वक्त मेवाड़ की फौजी ताकत कम हो गई थी, क्योंकि उदयसिंह और रायमल्ल में काफी लड़ाईयां हुई।

मेवाड़ के कई इलाके उदयसिंह के शासनकल में ही हाथ से निकल गए थे।

इसलिए इस मौके पर एक मजबूत दुश्मन के हमले का जवाब देना बड़ा मुश्किल था।

* आखिरकार महाराणा रायमल्ल ने गयासुद्दीन को पराजित किया

* महाराणा रायमल्ल के १३ पुत्र -

१) कुंवर पृथ्वीराज (उड़णा राजकुमार)
२) कुंवर जयमल्ल
३) कुंवर संग्रामसिंह (सांगा)
४) कुंवर पत्ता
५) कुंवर रामसिंह
६) कुंवर भवानीदास
७) कुंवर कृष्णदास
८) कुंवर नारायणदास
९) कुंवर शंकरदास
१०) कुंवर देवीदास
११) कुंवर सुन्दरदास
१२) कुंवर ईसरदास
१३) कुंवर वेणीदास

* महाराणा रायमल्ल की २ पुत्रियां -

१) आनन्द कुंवरबाई
२) दमाबाई - इनका विवाह सिरोही के जगमाल देवड़ा से हुआ | इनका हाल मौके पर लिखा जाएगा |

* महाराणा रायमल्ल ने अपने ज्येष्ठ पुत्र कुंवर पृथ्वीराज को मेवाड़ का सेनापति घोषित किया

* कुंवर पृथ्वीराज - ये अपने तेज तर्रार मिज़ाज व बहादुराना बर्ताव के कारण इतिहास में "उड़णा राजकुमार" या "उड़न पृथ्वीराज" के नाम से प्रसिद्ध हुए | इस समय पूरे राजपूताने में महाराणा से ज्यादा चर्चे कुंवर पृथ्वीराज के रहते थे | ये बड़े उग्र स्वभाव के थे, जिस वजह से इन्होंने अपनी ज़िन्दगी में कुछ गलतियां की, जिनका हाल मौके पर लिखा जाएगा | इन्होंने मेवाड़ के हित में कई लड़ाईयाँ लड़ीं | बनवीर इन्हीं कुंवर पृथ्वीराज का दासीपुत्र था |

कुंवर पृथ्वीराज एक स्थान से दूसरे स्थान पर जिस तीव्रता से पहुँचते थे और दुश्मन पर जिस तीव्र वेग से आक्रमण करते थे उसके कारण उस वक्त उन्हें लोग “उडणा (उड़ने वाला) पृथ्वीराज” कहने लगे थे | मुंहता नैंणसी ने अपनी ख्यात में लिखा है कि "पृथ्वीराज ने एक दिन में टोडा और जालौर जो एक दूसरे से २०० मील के अंतर पर है धावा किया और तब से वे "उड़न पृथ्वीराज" कहलाये"

* गयासुद्दीन को पिछली हार बर्दाश्त न हुई और उसने दोबारा मेवाड़ पर हमला किया। यह सुन कुंवर पृथ्वीराज ने अपना दल एकत्रित किया, नीमच में जा पहुंचे और वहां ५,००० सवार एकत्रित कर देपालपुर पहुँच उसे लूट लिया और वहां के हाकिम को मार डाला | इस आक्रमण के समाचार सुन कर सुल्तान गयासुद्दीन और तेजी से आगे बढ़ा |

गयासुद्दीन ने अपने सेनापति मलिक जफ़र खां के साथ मेवाड़ के मुल्क को बर्बाद करना शुरु किया व कोटा, भैंसरोड, सोपर वगैरह इलाकों में थाने मुकर्रर किए।

कुंवर पृथ्वीराज ने गयासुद्दीन की फौज को मांडू तक खदेड़ दिया और मांडू के पास खैराबाद नाम के इलाके को लूटकर तबाह किया।
इस लड़ाई में कुंवर पृथ्वीराज के घोड़े का नाम परेवा था व कुंवर संग्रामसिंह (सांगा) के घोड़े का नाम जंगहत्थ था

* मांडू के बादशाह गयासुद्दीन ने महाराणा रायमल्ल के पास दोस्ती का प्रस्ताव लेकर अपने एक खैरख्वाह को भेजा।

महाराणा रायमल्ल उस मुलाज़िम से बड़ी ही नम्रता से बात कर रहे थे, तभी कुंवर पृथ्वीराज ने ये देखा तो महाराणा से बोले "हुकुम, क्या मुसलमानों से इतनी अज़ीज़ी के साथ बात करते हैं ?"

ये सुनकर वह मुलाज़िम उसी वक्त उठकर बादशाह गयासुद्दीन के पास पहुंचा और सारा हाल कह सुनाया

* बादशाह गयासुद्दीन ने मेवाड़ पर चढाई की। महाराणा रायमल्ल ने भी कुंवर पृथ्वीराज के नेतृत्व में फौज भेजी | कुंवर पृथ्वीराज ने महाराणा को वचन दिया कि "आज किसी भी हाल में मैं गयासुद्दीन को बन्दी बनाकर आपके पास लाऊंगा" दिन भर की लड़ाई के बाद कोई नतीजा नहीं निकला और रात होने पर दोनों फौजें अपने-अपने डेरों में चली गई। कुंवर पृथ्वीराज ने अपना वचन पूरा करने के लिए चालाकी से रात के वक्त ५०० मेवाड़ी बहादुरों के साथ बादशाही डेरों पर हमला कर दिया। कई दुश्मनों को मारने के बाद कुंवर पृथ्वीराज ने बादशाह गयासुद्दीन को बन्दी बना लिया।

बन्दी बनाकर जब कुंवर चित्तौड़ दुर्ग में जाने लगे, तो बादशाही फौज ने उनको चारों तरफ से घेर लिया। कुंवर पृथ्वीराज ने गयासुद्दीन से कहा कि "अगर ज़िन्दा रहना है, तो बेहतर होगा कि कुल बादशाही फौज पीछे हट जावे" तब गयासुद्दीन ने फौज को पीछे हटने का हुक्म दिया। कुंवर पृथ्वीराज गयासुद्दीन को चित्तौड़ ले आए

महाराणा रायमल्ल ने महीने भर बाद दण्ड (जुर्माना) लेकर गयासुद्दीन को छोड़ दिया

"उत्तराधिकार संघर्ष"

* महाराणा रायमल्ल के जीते-जी मेवाड़ में उत्तराधिकार संघर्ष शुरु हुआ।

* एक दिन का जिक्र है कि कुंवर पृथ्वीराज, कुंवर जयमल्ल व कुंवर संग्रामसिंह ने जब अपनी-अपनी जनम-पत्रियां एक विद्वान ज्योतिषि को दिखाई, तो ज्योतिषि ने कहा कि ग्रह तो कुंवर पृथ्वीराज और कुंवर जयमल्ल के भी ठीक हैं, पर मेवाड़ का महाराणा तो कुंवर संग्रामसिंह बनेगा।

इस वजह से दोनों बड़े भाईयों ने कुंवर संग्रामसिंह को मारने का इरादा किया। कुंवर पृथ्वीराज ने तलवार की हूल मारी, जिससे कुंवर संग्रामसिंह की एक आंख फूट गई। तभी इनके काका सूरजमल यहां आ पहुंचे और कुंवर संग्रामसिंह को अपने मकान पर ले जाकर उनका इलाज किया।

* सूरजमल ने अपने भतीजों को सलाह दी की अगर उत्तराधिकार की भविष्यवाणी सुननी ही है, तो नाहरमगरा के पास भीमल गांव में तुंगल कुल के चारण की बेटी बीरी नामी देवी से पूछो।

सूरजमल और तीनों कुंवर वहां पहुंचे, तो देवी ने कहा कि कल सुबह आना। सुबह ये सब वहां पहुंचे, तो कुंवर पृथ्वीराज तो वहां रखे एक सिंहासन पर बैठ गए | कुंवर जयमल्ल इसी सिंहासन के कोने पर बैठे | कुंवर संग्रामसिंह नीचे चटाई पर बैठे और इसी चटाई के कोने पर सूरजमल बैठ गए | देवी ने कहा कि "जो चटाई मैंने मेवाड़ के भावी महाराणा के लिए बिछाई थी, उस पर तो कुंवर संग्रामसिंह बैठ गए, इसलिए महाराणा तो संग्रामसिंह ही बनेंगे | सूरजमल चटाई के कोने में बैठे, इसलिए वे मेवाड़ के छोटे से हिस्से के मुख्तार होंगे | पृथ्वीराज और जयमल्ल किसी दूसरे के हाथ से मारे जावेंगे"

* ये सुनते ही पृथ्वीराज और जयमल्ल ने संग्रामसिंह व सूरजमल पर हमला कर दिया। कुंवर पृथ्वीराज व सूरजमल तो ज्यादा जख्मी होकर वहीं पड़े रहे। कुंवर संग्रामसिंह घोड़ा लेकर बच निकले। कुंवर जयमल्ल ने संग्रामसिंह का पीछा किया।

सैवंत्री गांव में राठौड़ बीदा जैतमलोत ने कुंवर संग्रामसिंह को खून से लथपथ देखा, तो उनका इलाज किया। कुंवर जयमल्ल वहां पहुंचे, तो बीदा ने संग्रामसिंह को जयमल्ल के सुपुर्द करने से इनकार किया।

बीदा ने कुंवर संग्रामसिंह को तो मारवाड़ की तरफ रवाना किया और खुद जयमल्ल से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

बीदा के वंशज कैलवा के राठौड़ हैं।

* कुंवर पृथ्वीराज के घाव ठीक हुए और वे चित्तौड़ पहुंचे, तो महाराणा रायमल्ल ने नाराज़ होकर उनको चित्तौड़ में घुसने से मना किया, तो कुंवर पृथ्वीराज ने कुम्भलगढ़ में रहना शुरु किया।

* कुंवर संग्रामसिंह कुछ दिन मारवाड़ में एक गडरिये के यहां रहे, फिर वहां से निकलकर अजमेर के पास श्रीनगर के ठाकुर करमचन्द पंवार (लूटेरा) की २-३ हजार की फौज में वेष बदलकर व पहचान छुपाकर एक आम सैनिक की हैसियत से रहे|

* कुंवर पृथ्वीराज कुम्भलगढ़ दुर्ग में रहा करते थे | कुम्भलगढ़ में कुंवर पृथ्वीराज ने एक महाजन से ऋण लेकर खुद की एक सैनिक टुकड़ी तैयार की |

कुम्भलगढ़ के पास गोडवाड़ में मादड़ेचा बालेचा वगैरह पालवी राजपूत मेवाड़ के हुक्म नहीं मानते थे। कुंवर पृथ्वीराज ने गोडवाड़ पर हमला कर इन राजपूतों से अधीनता स्वीकार करवाई।

* देवसूरी के मादड़ेचा राजपूतों ने बगावत की, तो कुंवर पृथ्वीराज ने सिरोही के लांछ गांव में रहने वाले सौलंकी राजपूतों की मदद से देवसूरी का किया फतह किया। कुंवर पृथ्वीराज ने रायमल्ल सौलंकी को १४० गांवों समेत देवसूरी का किला जागीर में दिया। झीलवाड़ा व रुपनगर के सौलंकी राजपूत रायमल्ल सौलंकी के ही वंशज हैं

* कुंवर पृथ्वीराज ने मगरा नामक इलाके पर हमला कर विजय प्राप्त की

"कुंवर जयमल्ल की हत्या"

* इस वक्त कुंवर जयमल्ल भी अपने बड़े भाई कुंवर पृथ्वीराज के साथ ही कुम्भलगढ़ में रहते थे। लल्ला खां पठान ने टोडा पर हमला कर फतह हासिल की, तो टोडा के राव सुल्तान सौलंकी मेवाड़ आ गए। कुंवर जयमल्ल ने राव सुल्तान से कहा कि "हमें आपकी बहिन से शादी करनी है, आप हमें उनसे मिलावें" तब राव सुल्तान ने कहा कि "राजपूतों में शादी से पहले मिलना सम्भव नहीं है"

जब कुंवर जयमल्ल ने बार-बार यही ज़िद की, तो राव सुल्तान ने अपने साले रत्नसिंह सांखला के ज़रिए कुंवर जयमल्ल की हत्या करवा दी। कुंवर जयमल्ल के साथी राजपूतों ने भी रत्नसिंह सांखला को उसी वक्त मार दिया।

* राव सुल्तान ने कुंवर पृथ्वीराज के सामने अपनी बहिन ताराबाई का विवाह प्रस्ताव रखा और बदले में टोडा राज्य दिलाने की मांग रखी।

कुंवर पृथ्वीराज ने ५०० मेवाड़ी बहादुरों के साथ टोडा पर हमला किया और लल्ला खां पठान को मार कर कुंवर पृथ्वीराज ने टोडा का राज्य राव सुल्तान को सौंप दिया। इस लड़ाई में आमेट के रावत सींहा चुण्डावत ने कुंवर पृथ्वीराज का साथ दिया था। फिर कुंवर पृथ्वीराज ने ताराबाई से विवाह किया।

लल्ला खां पठान की मौत से खफ़ा होकर अजमेर के बादशाही सूबेदार ने कुंवर पृथ्वीराज पर चढ़ाई करने का फैसला किया। ये खबर कुंवर पृथ्वीराज को मिली, तो वे खुद ही अजमेर चले गए। अजमेर में हुई इस लड़ाई में बादशाही सूबेदार मारा गया और फतह का झंडा कुंवर पृथ्वीराज के हाथ रहा।

* रावत सूरजमल (महाराणा मोकल के पौत्र) व रावत सारंगदेव (महाराणा लाखा के पौत्र)

ये दोनों महाराणा रायमल्ल के पास पहुंचे और अपने हिस्से की जागीर मांगी, तो महाराणा ने भैंसरोड़ की जागीर दे दी। इस बात से कुम्भलगढ़ में बैठे कुंवर पृथ्वीराज ने एक खत महाराणा को लिखा कि "हुकुम, आपने इन दोनों को ५ लाख की जागीर दे दी | इसी तरह छोटों को जागीरें मिलती रहीं, तो आपके पास मेवाड़ का कुछ ही हिस्सा रह जाएगा" महाराणा रायमल्ल ने भी कुंवर पृथ्वीराज को खत लिखा कि "अगर तुमको तकलीफ है, तो तुम सब आपस में ही सुलझ लो"।

* कुंवर पृथ्वीराज ने २,००० की फौज लेकर भैंसरोडगढ़ पर चढ़ाई कर फतह हासिल की। सूरजमल व सारंगदेव बच निकले और इनकी पत्नियों व बच्चों को कुंवर पृथ्वीराज ने किले से निकाल दिया। तब सूरजमल व सारंगदेव ने मांडू के बादशाह नासिरुद्दीन खिलजी से मदद मांगी।

* सूरजमल व सारंगदेव बादशाह नासिरुद्दीन खिलजी की फौज के साथ चित्तौड़ फतह करने के इरादे से निकले।

महाराणा रायमल्ल भी मेवाड़ी फौज के साथ मुकाबले के लिए किले से बाहर आए। गम्भीरी नदी के किनारे दोनों फौजों में मुकाबला हुआ। महाराणा रायमल्ल ज़ख्मी हो गए व उनकी हार करीब थी, कि तभी कुंवर पृथ्वीराज अपनी उड़न चाल से कुम्भलगढ़ से गम्भीरी नदी के किनारे पहुंच गए व युद्ध का रुख ही बदल दिया। कुंवर पृथ्वीराज विजयी हुए। सूरजमल व सारंगदेव पराजित होकर अपने-अपने डेरों में चले गए।

* रात के वक्त कुंवर पृथ्वीराज सूरजमल के डेरे पर गए। वहां इनके बीच जो बात हुई, उसे उस वक्त वहीं मौजूद कवि-भाटों ने लिखा है, जो कुछ इस तरह है -

कुंवर पृथ्वीराज - "काकाजी, खुश हो ?"

सूरजमल - "तुम्हारे मिलने से ज्यादा खुशी हुई"

कुंवर पृथ्वीराज - "अभी-अभी दाजीराज के ज़ख्मों पर पट्टी बांधकर आ रहा हूँ"

सूरजमल - "तुम्हारे पास और काम ही क्या है"

कुंवर पृथ्वीराज - "काकाजी, मैं आपको भाले के नोक से दबे उतनी ज़मीन भी नहीं दूंगा"

सूरजमल - "भतीजे, मैं तुम्हें इस पलंग के नीचे आए, उतनी ज़मीन भी नहीं हड़पने दूंगा"

कुंवर पृथ्वीराज - "मैं फिर आऊंगा, होशियार रहना"

सूरजमल - "जल्दी आना भतीजे"

कुंवर पृथ्वीराज - "कल ही आऊंगा"

सूरजमल - "बहुत अच्छा"

(इस तरह बहस के बाद कुंवर पृथ्वीराज दुर्ग में चले गए)

* अगले दिन सुबह फिर लड़ाई हुई, जिसमें सूरजमल ज़ख्मी हुए

कुंवर पृथ्वीराज को ७ व रावत सारंगदेव को ३५ ज़ख्म लगे। मुकाबला बराबरी पर खत्म हुआ।

* सूरजमल तो सादड़ी में व सारंगदेव बाठरड़े में रहने लगे। कुंवर पृथ्वीराज १,००० की फौज समेत बाठरड़ा पहुंचे और सारंगदेव से बोले "चलो, देवी के दर्शन कर लें"। दोनों मन्दिर में गए, जहां कुंवर पृथ्वीराज ने कटार निकालकर सारंगदेव के सीने में घोंप दी। सारंगदेव ने भी तलवार से वार किया पर तलवार देवी के पाट पर जा लगी और सारंगदेव के प्राण चले गए। सारंगदेव के वंशज सारंगदेवोत कहलाए, जिनके ठिकाने कानोड़ व बाठरड़ा हैं।

* कुंवर पृथ्वीराज कुम्भलगढ़ पहुंचे

वहां उन्हें खबर मिली की महाराणा कुम्भा की पुत्री व कुंवर पृथ्वीराज की भुआ रमाबाई, जिनका विवाह गिरनार के राजा मण्डलीक जादव से हुआ

रमाबाई व उनके पति में झगड़े हुआ करते थे | राजा रमाबाई को बहुत दुख देते |

कुंवर पृथ्वीराज को पता चलते ही बड़े क्रोध में उसी वक्त गिरनार की तरफ रवाना हुए

कुंवर पृथ्वीराज ने राजा के माफी मांगने पर जीवनदान दिया पर कुंवर ने जाते वक्त राजा का एक कान काट दिया और रमाबाई को पालकी में बिठाकर कुम्भलगढ़ आ गए

रमाबाई को उनके भाई महाराणा रायमल्ल ने जावर का परगना दिया

रमाबाई ने अपना शेष जीवन मेवाड़ में ही बिताया

रमाबाई ने रामस्वामी का मन्दिर, रामकुण्ड, कुम्भलगढ़ में विष्णु मन्दिर वगैरह बनवाए

"कुंवर पृथ्वीराज का देहान्त"

* कुंवर पृथ्वीराज की बहिन आनन्दबाई का विवाह सिरोही के राव जगमाल से हुआ था

राव जगमाल आनन्दबाई को बहुत दुख देता

कहते हैं कि वह सोते वक्त पलंग के पाये को आनन्दबाई के हाथ पर रखा करता था

कुंवर पृथ्वीराज के कान में ये बात पड़ते ही उन्होंने आधी रात को सिरोही के राव जगमाल के महल में घुसकर जो सुना था वो देख भी लिया। कुंवर पृथ्वीराज अपनी तलवार से राव जगमाल को मारने ही वाले थे कि तभी आनन्दबाई की विनती पर उन्हें जीवित छोड़ दिया।राव जगमाल ने भोजन की तैयारी की भोजन के बाद कुंवर पृथ्वीराज कुम्भलगढ़ के लिए निकलने वाले थे कि तभी राव जगमाल ने कुछ विशेष माजून की ३ गोलियाँ दीं कुम्भलगढ़ के करीब पहुंचकर इन्होंने ये गोलियां खा ली, जिससे किले में जाकर इनका देहान्त हुआ | इस तरह मेवाड़ की गद्दी का घोषित योग्यतम उतराधिकारी जो एक निर्भीक वीर, अदम्य साहसी, अप्रतिम शौर्य का प्रतीक, दृढ निश्चयी, दुश्मन पर तीव्रता से आक्रमण करने वाला, जिसकी हिन्दुतान को भविष्य में जरुरत थी, अपने बहनोई के विश्वासघात की बलि चढ़ गया।

इन राजकुमार की एक छतरी तो जहां इनका देहान्त हुआ वहां है व दूसरी छतरी मामादेव कुण्ड के पास है जहां इनका दाह संस्कार हुआ।

कुंवर पृथ्वीराज की छतरी पर एक स्तंभ लेख अंकित है जिस पर उनके साथ सती हुई रानियों के नाम एवं उनके प्रिय घोड़े का नाम अंकित है। कुंवर पृथ्वीराज की १६ पत्नियां सती हुई।

* बनवीर इन्हीं कुँवर पृथ्वीराज की दासी पूतल दे का बेटा था।

* कर्नल जेम्स टॉड लिखता है "उसका अनुमान करना भी असंभव है, तो भी एक बात निश्चित है कि यदि अपनी प्रारंभ की पराजयों के पश्चात बाबर को सांगा के स्थान में पृथ्वीराज का सामना करना पड़ता तो बहुत संभव है कि फरवरी १५२७ में खानवा की लड़ाई में साहसी (बाबर) हार जाता और भारत भूमि उत्तर-पश्चिम के आक्रमणकारियों से फिर एक बार मुक्त हो जाती"।

यहां इस तथ्य को रेखांकित करना प्रासंगिक होगा कि कुंवर पृथ्वीराज मेवाड़ के राणा रायमल के जेष्ठ पुत्र थे, स्वाभाविक है, यदि उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती तो वह मेवाड़ राज्य के उत्तराधिकारी होते। कहना ना होगा कि उस स्थिति में मेवाड़ का इतिहास अधिक गौरवशाली होता।

जय वीर श्रीओमणि राजपूताना।
जय एकलिंग जी
_/\_जय उड़णा राजकुमार कुँवर पृथ्वीराज_/\_

Post regard :- Tanveer Singh Sarangdevot laxmanpura mewar






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