Tuesday, January 19, 2021

HANSWAR WARRIOR QUEEN JAYAKUMARI KANWAR - IN QUEST OF FORGOTTEN HEROIC OF RAM JANAMBHOOMI STRUGGLE IN MIDST OF DELIBRATE ATTEMPT TO...... - IMMORTAL RAJPUTS





 एक बड़ा ही सहज तथा सरल प्रश्न उठता है की यदि बाबर ने अयोध्या स्थित कोई मंदिर  तोड़ने का आदेश दिया था और उसपर तुरंत ही विवादिक ढांचा भी तामीर करा दी  तो हिंदुओं ने अविलम्भ प्रतिक्रिया व्यक्त कर, तभी वह मंदिर का निर्माण क्यों नही कर लिया था?


१५२८  में विवादिक ढांचे के निर्माण हो जाने के बाद भी हिन्दू समाज ने इस विवादिक ढांचे के निर्माण का कब-कब तथा कैसे-कैसे विरोध किया तथा कैसे मंदिर पुनहनिर्माण की प्रक्रिया  तुरंत क्यो नही हो सकी? 


आज अयोध्या में मंदिर निर्माण विरोधी लोगों के प्रमुख तर्कों में से एक तर्क ये भी है यदि तुर्क लुटेरे 'बाबर' ने वहां किसी मंदिर को तोड़कर विवादिक ढांचे की तामीर कराई थी, तो हिन्दू समाज ने तभी उसका विरोध क्यों नही किया और वह ६ दिसंबर १९९२ तक, कैसे यथावत बनी रही?


इस तर्क का बड़ा सीधा सा जवाब यह है कि बाबर से लेकर १५  अगस्त १९४७ तक अधिकांशतः भारत मे विदेशियो लुटेरो का ही शासन रहा है। पहले मुगलो का, फिर अंग्रेजो का। तुर्क लुटेरे 'बाबर' तो मुग़लों का स्वयं संस्थापक ही था अतः उसके उत्तराधिकारी उस स्थान पर हिन्दू मंदिर दुबारा बनने ही क्यों देते? दूसरे, जैसे कि आधतन मुस्लिम समाज का 'दावा' है ( जो ऐतिहासिक दृष्टि से गलत भी साबित हुवा है)  कि एकबार जहां मस्जिद बन जाती है, उसे वहां से हटाया नही जा सकता क्योंकि वह 'अल्लाह का घर' बन जाता है। वह 'शाश्वत' हो जाता है। ऐसी स्थिति में मुग़ल लुटेरो से तो यह उम्मीद ही नही थी। जहां तक ब्रिटिश लुटेरो का सवाल है, उन्हें तो इसी में फायदा था कि हिन्दू-मुस्लिम यह लड़ते रहें और वे कभी हिंदुओं पर तो कभी मुसलमानो पर हाथ रखके अपना 'राज' चलाते रहें।


सबसे विकट स्तिथि तो यह रही है कि १५२८ से लेकर अबतक भारत मे जो इतिहास लिखा गया वही इतिहास हमें आज भी उपलब्ध है। यह इतिहास इन्ही मुग़ल लुटेरो के दरबारी इतिहासकारों द्वारा लिखे या लिखवाए गए। वे इन तथ्यों का जिक्र संघर्ष के रूप में क्यों करते? फिर भी राम जन्मभूमि मंदिर या विवादिक ढांचे को लेकर जो संघर्ष चला था, उसका जिक्र इन इतिहास ग्रंथों में भी छुटपुट मिलता ही है। इसके अलावा समय-समय पर जो विदेशी यात्री या पर्यटक भारत मे आये, उन्होंने भी किसी-किसी ने यदा-कदा, यहां-वहां इस संघर्ष का जिक्र किया है। इसके पीछे अनेक एतिहासिक कारण भी है। लेकिन यह तय है कि मंदिर विध्वंस के बाद हिन्दू समाज के लोग मंदिर का पुनर्निर्माण भले ही ना कर सके हो, लेकिन मंदिर विध्वंस कर बन चुकी विवादिक ढांचे को उन्होंने स्वीकार कभी नही किया और वे इसके स्थान पर मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए सैंकड़ों बार लड़े। अधिकांशतः ये लड़ाईयां हिन्दू फौजो के साथ साथ सामान्य जनता द्वारा लड़ी गयी। कई बार तत्कालीन शासको ने भी, जो कि छोटी रियासतों के सूर्यवंश क्षत्रिय राजा थे उन्होंने ज्यादातर लड़ाईया लड़ी। मगर इतिहास में इनका जिक्र ' विद्रोह ' या ' झगड़े ' के रूप में है। जिनमे इन क्षत्रिय राजपूत शासकों ने तुर्क लुटेरे मुग़लों से टक्कर ली। इस काल मे अयोध्या का महत्व सिर्फ ' तीर्थ स्थली ' के रूप में रह गया था यहां साधु- संतों और हिन्दू धर्माचार्यों ने अपने डेरे डाल दिये थे आज भी यदि हम मौजुदा अयोध्या को देखें तो यहां के तमाम धर्मस्थलो को 'अखाड़ा' या 'छावनी' के रूप में पुकारा जाता है। 


नागा सम्प्रदाय, गोरक्ष समुदाय, दिगम्बरी, निर्मोही, निर्वाणी व खाकी अखाड़ो की दर्जनों छावनियां आज भी अयोध्या में हमें इस संघर्ष के याद दिलाती है कि उस विकट परिस्थिति में इन साधुओं ने राम जन्मभूमि और अयोध्या की संस्कृति को बचाये रखा। वास्तव में तब अयोध्या के गौरव  की रक्षा का भार इन्ही साधुओं और बाबाओं ने उठाया और उन्होंने जैसे भी बना, कभी शस्त्रों और शास्त्रों इस लड़ाई को बरकरार रखा। यही कारण है की हमें आज अयोध्या जन आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं में कुछ अखाड़ों के साधुओं या बाबाओं का नाम पड़ने-देखने को मिलता है। इसकी शुरुवात तो विवादिक ढांचे बनने के तुरंत बाद ही हो गयी थी क्योंकि अयोध्या का प्राचीन गौरव तो नष्ट हो ही चुका था।




विवादिक ढांचे के निर्माण के तुरंत बाद ही दशनामी नागा साधुओं ने जिनको धर्मरक्षक लड़ाकू सम्प्रदाय के रूप में जगतगुरु शंकराचार्य ने ७वी शताब्दी में दीक्षित किया था, अयोध्या आ पहुंचे थे। इन्ही दशनामी साधुओं में से एक साधु थे-- स्वामी महेश्वरानंद। उन्होंने हंसवर राज्य के राजा रणविजय सिंह एंव उनकी धार्मिक पत्नी जयकुमारी के माध्यम से इस विवादिक ढांचे का तीव्र विरोध किया था। हंसवर राज्य अयोध्या से ७०-८० मील दूर एक छोटी-सी रियासत थी। हंसवर पालीवाल क्षत्रियो की रियासत हैं 


स्वामी देवीदीन पांडेय एंव राजा महताब सिंह से मीरबाकी की सेना ने विवादिक ढांचे के निर्माण के समय कैसा संघर्ष किया था इसे पहले ही अयोध्या वाले पोस्ट पर पड़ चुके है। इसके बाद राजा रणविजयसिंह  ने संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति दी। बाबर ने 'बाबरनामा' में स्वंय यह स्वीकार कि हिजरी ९३५ में मीरबाकी को इसलिए 'लंबी छुट्टी' पर भेज दिया था। यह मीरबाकी विवादिक ढांचा निर्माता मीर बाकी था या कोई और ये शोध का विषय हो सकता है।


कहा जाता है कि राजा रणविजय सिंह के हाथों मे 'जन्मभूमि परिसर' जो तब तक विवादिक ढांचा में तब्दील हो चुकी थी, लगभग १५ दिनों तक रही। इसी बीच मुग़ल सेना आ गई और राजा रणविजय सिंह की रणभूमि में लड़ते हुवे वीरगति प्राप्त हुवी। इसके बाद हमायुं के काल मे राजा रणविजय सिंह की धर्मपत्नी रानी जयकुमारी ने इस लड़ाई को आगे बढ़ाया। लाला सीताराम द्वारा लिखित 'तवारीख-ए-अवध' (हिंदी अनुवाद - अयोध्या का इतिहास) में इस संघर्ष का पूर्ण वर्णन है। इसके अलावा तुजक-ए-बाबरी में भी इस संघर्ष का थोड़ा सा वर्णन है। (देखें तुज़ुक-ए-बाबरी पृष्ट ५४०) 'दरबार-अकबरी' नामक पुस्तक के पृष्ठ ३०१ पर भी उलेख है की रानी जयकुमारी और स्वामी महेश्वरानंद अयोध्या के संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हुवे।


ऐसा माना जाता है कि यह लड़ाई बड़े ही विचित्र तरीके से लड़ी गयी। अयोध्या में मुग़ल फौजो पर सांपों से हमला कराया गया। नागा साधु चिमटे लेकर लड़े और स्त्रियों ने भी रात के अंधेरे में ' चुड़ैलों की तरह' उनपर हमला किया। मुग़ल फौजों ने इसे दैवीय उपद्रव माना और उनके दिमाग मे यह बात बैठ गयी  की यहां कोई 'दैवीय' शक्ति है। जो वहां उपद्रव कराती रहती है। जबकि बाबर अपने अभियान में आक्रामक रूप में था और देसी राजा उससे लड़ने में व्यस्त थे अतः अयोध्या स्तिथ मंदिर का पुनर्निर्माण तुरंत संभव ना हो सका। इसी बीच अयोध्या के आस पास के गांवों, विशेषकर मौजूदा ग्राम सराय सिरसिंडा और राजेपुर की जनता ने जन्मभूमि परिसर को दुबारा पाने की तमन्ना को लेकर संघर्ष शुरू किया। यह संघर्ष निहत्थी जनता और मुग़ल फौज के बीच था इसी संघर्ष में उन्होंने विवादिक ढांचे की सामने का दरवाजा तोड़ डाला था। ४-५ दिनों तक चले इस संघर्ष को रोकने के लिए पूरी मुग़ल सेना  की जरूरत पड़ी। इसमें हज़ारों लोग मारे गए थे। हमायुं के १५३० से १५५६ के २५ वर्ष के काल में हिंदुओं ने हंसवर रानी जयकुमारी और स्वामी महेश्वरानंद के नेतृत्व में काम से कम १० बार संघर्ष किया और अंततः अपने प्राणों की आहुति दी। 


भारतीय इतिहास में रानी जयकुमारी कंवर जैसी शायद ही कोई धर्मपरायण रानी हुई हों जो धर्म के रक्षार्थ हेतु रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई हों 


लेकिन दुर्भाग्य देखिये आज की युवा पीढ़ी रानी जयराज कुंवरी का नाम तक नहीं जानती.... 


बाबर अकबर हुमायु जहांगीर शाहजहां औरंगजेव सभी मुगलशासकों के विरुद्ध इस रियासत ने युद्ध लड़े!!

When Babur's won agra, Ayodhya Temple was under Shyamanand Ji Maharaj. Khwaja Kajal Abbas Moosa Ashi Khan on hearing Shyamanand’s Divinity was attracted & became disciple of Shri Shyamanand Maharaj, Jallal Shah came to know about this and became a disciple too. 

Babur started forcefully burying dead bodies of muslims around Ayodha to gradually pave way towards Khurd Makka or Mini Mecca. Meerbaki Khan received orders from Babur for demolition of the Temple.

Brimming with the love for Islamic rule in India, Jallal shah stabbed his guru Shyamanand with Khwaja Kajjal Abbas Moosa, 


Shyamanand Maharaj was deeply hurt when he came to know that his disciples had conspired against him.With a heavy heart, Shyamanand Maharaj immersed the Idols into Sarayu and left for Himalayas. The priests of the temple shifted all the remaining things from Sanctum Sanctorum

According to the Orders of Jallalshah, all four priests aka guards were beheaded. He ordered his men to demolish the temple and build an islamic structure. But the Structure was supposed to have no place for Worship or for Uzu before a namaz. 



As soon as the declaration was made, 

The king of Bhiti Raja Mahtab Singh was on a pligrimage to Badrinath. On reaching Ayodhya, he came to know about the ongoing issues at Ayodhya and sent around 1.8 lakh soldiers to safeguard Ram Bhakths.


Baburs Army had 4.5 lakh soldiers .The Staunch Ram Devotees had taken a pledge that they wouldnt stop until the last drop of their blood. 

The battle went on for 70 days and all the soldiers and Raja Mahtab Singh himself was beheaded, Entire Ayodhya was painted with the blood of Rambhakths . 

Mir Baqi demolished the Temple with Cannons. Mir Baqi was so barbaric that he built the Islamic Structure with the remnants of the Temple Debris and used Human Blood instead of Water for construction.


(Historian Cunningham in his Lucknow Gazetteer mentions in the 66th point, Page 3 that despite the falling of 1 Lakh 74 thousand Hindu Bodies, Mir Baqi succeeded in his plans by bombarding the Temple from all 4 sides in 1528.)


Another historian named Hamilton mentions in the Barabanki Gazetteer that Jallalshah had ordered Mir Baqi to use the blood of all dead Hindus for construction of the Islamic Structure, 

Around 6 miles away frm Ayodhya, Sanethu village lived Devideen Pandey. He created militia by collating Suryavanshi kshatriyas Rajputs from Saray, Sisinda n Rajepur. 



He told Mahabat singh n other Suryavanshi Kshatriyas that my ancestor was Rishi Bharadwaj n ur ancestor was none other than Ayodhya Naresh Shri Ram, 

The moghuls are converting Ayodhya into an Islamic Burial Ground. It is better to die in a battle against them than being a silent spectator to all these atrocities. 

Within 2 days, around 90,000 kshatriyas Rajputs from far away places under Devideen Pandey n launched attack, The battle with the Moghul Army went on for 5 days. On the 6th day, Devideen Pandey eliminated several commanders and had a direct confrontation with Mir Baqi. One of Mir’s personal body guard’s attacked Devideen Pandey’s Skull with a Heavy Brick.Taking advantage of the situation, Mir Baqi fired at an already injured Pandey and he later succumbed to his injuries. 


Devideen Pandey from Sanethu and Mahabat Singh attacked Meer Baanki’s men. 




Devideen Pandey alone is said to have killed 600 men in five days. 


Ayodhya bathed in the blood of 90,000 hindu martyrs once again. The descendents of Devideen Pandey still reside in a village called Sanethu, 


KING OF HANSVAR -RAJA RANVIJAY SINGH


Just after 14 days of Devideen Pandey’s Martyrdom, the king of Hansvar Ranvijay Singh along with 24000 soldiers attacked the huge and well armed army of Mir Baqi. Raja Ranvijay attained martyrdom after a ferocious battle of 10 days. 

Ayodhya saw blood of 24000 hindu soldiers.


In span of few years 3,00,000 hindu warriors sacrificed thier life for saving the soul of this nation.. almost all Kshatriya Rajput men who are in position to fight sacrificed themselves in battlefied.. when no Kshatriya Rajput men left in avadh to fight came their women under Queen  Jayakumari kanwar to protect what this last great civilization named bharata soul enriched with..


IN 1530 - 1556, QUEEN OF HANSVAR- RANI JAYAKUMARI KANWAR




 Rani Jayakumari Kanwar was widow of Raja Ranvijay. After her husband’s martyrdom, she took the responsibility of rescuing Ayodhya from the clutches of Invaders and formed an army with 3000 female soldiers. 


They fought till Humayun (Nasiruddin Muhammed) became emperor in 1530. Ranis Guru Swami Maheshwaranand Ji had been recruiting Ram Bhakths and Training them under Maharani’s Supervision and expanding the army. He simultaneously raised an army of 24 thousand saints and sadhus. 


Both the Armies fought valiantly against Humayun’s forces in over 10 battles to gain back Ayodhya from Moghul Clutches.

The end of the 10th battle witnessed considerable damage in the Moghul Army and Ayodhya came under Rani Jayarajakumari’s Control, 



But the happiness was shortlived. Just after a month, Humayun sent his entire army to Ayodhya and crushed both the armies and publicly beheaded Rani Jayakumari and Swami Maheshwaranand Ji.

Ayodhya once again bathed in the brave blood of 24 thousand Ascetic Saints; 3 thousand Ferocious Kshatriya Rajput Female Soldiers.....


It's sad that people have forgotten such contributions.. its their courage, valor and fearlessness for death made ram janmbhoomi renaissance possible.. else passive spineless breeds of Hindus coming up nowadays could never have achieved it 

🙏hope that such delibrately forgotten warriors(bcoz they fought as hindu and remain hindu is crime in secular india)  get thier ......

🏹सियावर राजा रामचंद्र भगवान की जय🏹
🔱🕉️पवनपुत्र हनुमान जी की जय🕉️🔱

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