Saturday, August 14, 2021

JAAM ABDAAJI 'ADBANG' JADEJA - IMMORTAL RAJPUTS

जब शरणागत 140 सुमरा-मुस्लिम कन्या को बचाने के लिए जाडेजा राजपुतो ने किया जौहर और शाका...!!!


बात हे विक्रम सवंत 1356(ई.स. 1309) की तब गुजरात के कच्छ क्षेत्र में जाडेजा राजपुतो का राज था |कच्छ के वडसर में जाडेजा राजवी जाम अबडाजी गद्दी पर बिराजमान थे | जाम अबडाजी एक महाधर्मात्मा और वीरपुरुष होने की वजह से उनको “अबडो-अडभंग, अबडो अणनमी” नाम से भी जाना जाता था |

उस समय सिंध के उमरकोट में हमीर सुमरा(सुमरा परमार वंश की शाखा थे जो धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन गए थे।अब सिंध पाकिस्तान में हैं) जिसको सोरठ के चुडासमा राजवी रा’नवघन ने अपनी मुँह बोली बहेन जासल का अपहरण करने पर मार डाला था, उसके वंश में डोडा और चनसेर नामके दो मुस्लिम-सुमरा शाशक राज करते थे | इन दोनों भाईओ के बिच में आपसी कलह बहुत चलता रहेता था, जिसकी वजह से छोटे भाई चनसेर ने उमरकोट की गद्दी हथियाने के लिए दिल्ली के शाशक अलाउदिन-खिलजी से जाके कहा की “आपके जनान-खाने के लिए अच्छी सी सुन्दर सुमरी कन्या मैंने राखी हुई थी, पर मेरे भाई डोडे ने मेरा राज्य हथिया लिया और खुद सिंध की गद्दी पर बैठ गया | इसलिए में आपके पास सहायता मांगने के लिए आय हु” और कहा की “आप खुद सिंध पधारिए और मुझे मेरी गद्दी वापस दिलवाए तथा स्वयं उस स्वरूपवान सुमरी कन्याओ को कब्जे में ले कर दिल्ही अपने जनान-खाने के लिए ले जाए |

इस बात को सुनकर अलाउदीन खिलजी ने अपना लश्कर लेकर सिंध पर चड़ाई की और अपने सेनापति हुसैन खान के द्वारा धोधा को संदेसा भिजवाया की दिल्लीपति अलाउदीन खिलजी के साथ उस सुमरी कन्याओ का विवाह करवाओ” लेकिन धोधा ने इस बात से मन कर दिया और वो अलाउदीन के साथ लड़ने के लिए तैयार हो गया | और युद्ध में जाते समय उसने अपने वफादार भाग सुमरे को कहा की अगर मुझे कुछ हो जाए तो इन सुमरियो को कच्छ के जाम अबडाजी के पास भेज देना, एक वो ही वीर पुरुष हे जो इन सुमरियो को बचा सकते हे | इतना कह कर डोडा सुमरा अपनी फ़ौज के साथ अलाउदीन से भीड़ गया | उसकी सेना अलाउदीन की विशाल सेना के सामने बहुत छोटी होने के कारण वो युद्ध भूमि में ही मारा गया | जब सरदार हुसैन खान ने डोडे की लाश को पैरो से लात मरी तब उसके भाई चनसेर को बहुत अफ़सोस हुआ और उसने हुसैन खान का सिर धड से अलग कर दिया, बाद में वो भी अलाउदीन के लश्कर द्वारा मारा गया | बाद में अलाउदीन ने जब उमरकोट नगर में जाके देखा तो वह पे सुमरि कन्याओ का नमो निशान नहीं था | उसे बाद में पता चला की सभी सुमरी कन्या कच्छ की तरह जा चुकी हे, इसलिए उसने अपने लश्कर को कच्छ की तरफ कुच करवाया |

इस तरफ कच्छ में भाग सुमरा उस 147 मुस्लिम कन्याओ के साथ कच्छ के वडसर के पास आए, पर ये सुमरी कन्या बहुत चलने के कारण थकी हुई थी जिससे उनको कच्छ के रोहा पर्वत पर आराम करने के लिए कहेकर खुद जाम अबडाजी से मिला और उनसे कहा की “मुझे सिंध के डोडा सुमरा ने आपके पास भेजा हे और सब हकीकत जाम अबडाजी को बताई की अब आप ही इन सुमरी कन्याओ को अलाउदीन के जनान खाने से बचा सकते हे” इसे सुनकर अबडाजी ने संदेशा भिजवाया की की...

भले आवयु भेनरू, अबडो चयतो ईय
अनदिठी आडो फीरां, से डिठे दियां किय...?
(अर्थ:- मेरी बहेनो अच्छा किया आप मेरे पास आ गई, अगर मेरे ध्यान में भी कुछ नही हो फिर भी में उसको बचाने के लिए जाता हु, आप तो स्वयं मेरे पास आई हों अब आपको कैसे जाने दूँ, आप निश्चिंत रहिये।)
और इन सुमरी कन्या को लाने के लिए जाम अबडाजी ने बैल-गाडे भिजवाए पर इन बैल-गाड़े को सुमरी कन्या दुश्मन का लश्कर समज बैठी और डर के मारे इन 147 सुमरी कन्या में से 7 ने वही पर आत्म-हत्या कर लि | बाकि की 140 सुमरी कन्या वहा से वडसर आ पहुची | बादशाह का लश्कर वडसर की तरफ आ रहा हे इस बात को जानकर जाम अबडाजी ने रोहा पर्वत के उपर रात को मशाले जलवाकर खुद बादशाह के लश्कर को युद्ध के लिए आमत्रित किया...!!!अलाउदीन का लश्कर वडसर के पास आ कर रुक गया और दोनों तरफ फौजे इक्कठा हो गई |


जाम अबडाजी की सेना में ओरसा नामका एक मेघवाल जाती का आदमी भी था जो बहुत ही बहादुर था, उसने जाम अबडाजी को कहा की अगर आज्ञा दे तो में अकेला ही रात को जाकर उस अलाउदीन का सिर काट के आपके पास रख दु, लेकिन जाम अबडाजी ने उसे कहा की “ऐसे कपट से वार दुशमन को मारने वाला में जाम अबडाजी नहीं हु फिर भी तुम कुछ ऐसा करो जिससे अलाउदीन की रूह कांप उठे” | ये ओरसा मेघवाल जाती से था जो मृत पशुओ की खाल उतारने का कम करते थे, उसने एक युक्ति निकाली और रात को वो कुत्ते की खाल पहेनकर अलाउदीन के लश्कर में भीतर जाता हुआ उसके तंबू में घुस गया, उसका मन तो सोते हुए अलाउदीन का सिर काटने का ही था, पर जाम अबडाजी के मना करने की वजह से उसने अलाउदीन का शाही खंजर निकल लिया और उसकी जगह अपना खाल उधेड़ने वाला खंजर रख दिया | सुबह फिर जाम अबडाजी ने अलाउदीन खिलजी को संदेशा भिजवाया की “अगर में चाहू तो कपट से तेरा सिर धड से अलग करवा सकता था लेकिन क्षत्रिय ना ही ऐसा करते हे न ही दुसरो से करवाते हैे, इसलिए अब अभी समय है चला जा यहाँ से और भूल जा मुस्लिम सुमरी कन्या को”, और निशानी के तौर पर उसको उसका शाही खंजर भिजवाया | जिसे देखकर अलाउदीन हक्का-बक्का रह गया | उसने सोचा की जिसका एक आदमी उसके इशारे पे ये कार्य कर सकता हे उसके साथ युद्ध नही करता ही अच्छा हैे | इसलिए उसने जाम अबडाजी जो पत्र लिखा की अगर आप उस मुस्लिम सुमरी कन्याओ को मेरे हवाले कर दे तो में आपको कोई भी नुकशान नहीं करूँगा | लेकिन जाम अबडाजी ने जवाब दिया की “मैंने उन सुमरी कन्या को वचन दिया हे की जब तक में जिन्दा हु तब तक आपको उनके साथ कुछ नहीं करने दूंगा, और क्षत्रिय कभी अपनी जुबान से नहीं हिलता” भूल जा उस कन्या को |

इसे सुनकर दुसरे दिन सुबह फिर अलाउदीन ने अबडाजी के लश्कर पर हमला बोल दिया | जाम अबडाजी और ओरसा अपनी सेना के साथ अलाउदीन के लश्कर को काटते काटते उसके हाथी के पास पहुच गए थे तभी ओरसा पर किसी ने पीछे से हमला कर उसे मार डाला | इस पराक्रम को देखकर अलाउदीन ने दूसरी बार जाम अबडाजी को सुलह के लिए संदेसा भिजवाया लेकिन जाम अबडाजी अपनी बात से हिलने वाले कहा थे | दुसरे दिन फिर युद्ध शुरु हो गया इस तरह ये युद्ध ७२ दिनों तक चलता रहा धीरे धीरे जाम अबडाजी का सैन्य कम होता जा रहा था | आखिर में उन्होंने अपनि राणी और राज घराने की औरतो को बुलाकर कहा की अब अंत आ गया हे हम ज्यादा देर तक अलाउदीन के लश्कर का सामना नहीं कर सकेंगे | और उन्होंने सुमरी कन्याओ को वडसर गाव से 2 कोस दूर पर्वत पर भिजवाया और साथ में दूध का प्याला देकर कहा की जब इस दूध का रंग लाल हो जाए तो समाज लेना में इस दुनिया में नहीं रहा |

जिसे सुनकर राजपुत क्षत्राणी ने वडसर के गढ़ के बीचो बिच चंदन की लकड़ी इकठ्ठा की उसकी श्रीफल धुप आदि से पूजा करके फिर चिता जलाके एक के बाद एक राजपुत क्षत्राणी “जय भवानी” के नारे के साथ चिता पर चड गई और इस तरह जौहर व्रत का अनुष्ठान किया | जिसके बाद सभी राजपुत योध्दाओं ने माथे पे राजपुत क्षत्राणी की भस्म लगाकर केसरिया साफा पहेनकर “हर हर महादेव” के नारे के साथ अलाउदीन के लश्कर पर टूट पडे |

जाम अबडाजी अदभुत पराक्रम दिखाकर युद्ध भूमि में सहीद हो गए | एस तरफ सुमरी कन्या के पास रखे दूध के प्याले में दूध का रंग लाल हो गया | वे समज गई की अब उनको बचाने वाला कोई नहीं रहा | कहेते है की उस समय उनकी ऊपरवाले की प्रार्थना से ज़मीन फट गई और सभी सुमरी कन्या उसमे समा गई, एक कन्या का दुप्पटा बहार रह गया था क्योकि उसको किसी मर्द ने छुआ था | अलाउदीन के हाथ में कुछ नहीं लगा और वो भारी पस्तावे के साथ वापस चला गया | बाद में वडसर की गद्दी पे अबडाजी के पुत्र डुंगरसिंह जो लड़ाई के वक़्त उसके माम के यहाँ थे वो बेठे |

ये घटना विक्रम सवंत 1356 में फागुन वद 1 को हुई थी | इस युद्ध में जाम अबडाजी के भाई जाम मोडजी भी सहीद हुए थे | आज भी वडसर गाव जो कच्छ जिल्ले की नलिया तहेसिल में स्थित हे, उस वडसर गाव में नदी के किनारे जाम अबडाजी और जाम मोडजी दोनों के स्मारक मौजूद हे, और हर साल वहा पे होली के दुसरे दिन यानि फागुन वद 1 को इन स्मारकों को लोग वहा पे आकर पूजा करते हैे | और हर साल जन्माष्टमी को वह पे मेला भी लगता है |

कच्छ का लोकसाहित्य में आज भी जाम अबडाजी को याद किया जाता हे उनपे बने काव्यो द्वारा, जिसमे से कुछ पंक्तिया यहाँ पे रख रहे हे....

अठ मुंठुं जे ज्युं मुछदियुं, सोरो हाथ धडो,
सरण रखंधळ सुमरीऊँ, अभंग भड अबडो ||
(अर्थ:- जिसकी मुछे आठ मुठ जितनी लंबी है, और जिसका शरीर सोलह बाज़ुओ जितना ताकतवर है, वो अनभंग अबडा ही शरणागत सुमरियो की रक्षा कर सकता है)

जखरा ! तू जस खरो ब्या मीडे ऐ खान,
मिट्टी उन मकान, असल हुई इतरी ||
(अर्थ:- हे जाम जखरा(अबडाजी का दूसरा नाम) सही में यशस्वी तो तू ही है. दुसरे तो मात्रा कहेने के है | तू जिस मिट्टी से बना है, वो सिर्फ तेरे लिए ही बनी थी किसी और के लिए नहीं |)

जखरा ! तुं जिए, तोजो, मंचो केनि म सुणा,
अखिये ने हिये, नालो तोजे नेहजो ||
(अर्थ:- हे जखरा जाम , तू सदा इतिहास में अमर रहेगा | हमारी आंखे और अंतर में तेरा नाम हमेशा अमर रहेगा |)

जखरे जेडो जुवान, दिसां न को देहमे,
मिट्टी उन मकान असल हुई इतरी ||
(अर्थ:- जाम जखरा जेसा वीर पुरे देशमें एक भी नहीं है, वो जिस मिट्टी से बना था उस मिट्टी से और कोई नहीं बना |)


In early 14 century Sama dynasty Rajput Jam Abada Jadeja was the ruler of Abadasa area of western Kutch with capital at Vadsar.He was very brave.In 1314 AD Delhi Sultan Alauddin army attacked Sumara king Ghogha at his capital Umarkot in Sindh. 140 Sumari queens & princesses fled to Kutch.140 Sumari queens & princess took refuge under Jam Abada at Vadsar Kutch.Alauddin's army followed beautiful women of Sumara king & came to Vadsar.Alauddin's army chief ordered Jam Abada to surrender 140 Sumari women. Instead of surrendering refugees, Jam Abada fought for 5 weeks & died.Jam Abada fought with Alauddin army for 5 weeks & died in unequal fight thereby acquiring immortal fame in Kutch history.He was really brave.


Kutch Rajput women of Jam Abada family & 140 Sumari women of Sindh royal family became Sati by burning themselves in the fire of pyre at Vadsar.A monument temple is built in memory of brave Jam Abada Jadeja on the river bank at Vadsar Kutch where fair is held on Holi festival every year.Our tribute to brave Jam Abada Jadeja who sacrificed his life performing Kshatriya Dharma-duty in the protection of refugee Sumari women.



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