मुगलों के लिए काल राजपूत शूरवीर हल्दिघाटी के भीम सरदारगढ के ठाकुर भीम सिंह डोडिया जी!
सरदारगढ़ रो शूरवीर , डोडियो सरदार ।
मुग़ल मोकळा मारिया , छोड़ी नह तलवार ।।
जय राजपूताना _/\_जय मेवाड़ _/\_
MEWAR DODIYA DARBAR
"मेँवाड़ उमराव"
ठाकुर भीमसिँह डोडिया जी सरदारगढ
ठाकुर भीमसिंह डोडिया के पुर्वजो का मेवाड से सम्बन्ध कब आया इसके बारे मे कहा जाता हे की महाराणा लाखा की माँ द्वारिका की याञा गई उस समय काठियावाड मे लुटेरो ने घेर लिया तब शार्दुलगढ के राव सिँह डोडिया अपने पुञो कालु व धवल ने राजमाता कि रक्षा कि तब महाराणा लाखा ने डोडिया धवल को बुलाकर और रतनगढ नन्दराय और मसुदा आदि पाँच लाख कि जागीर देकर अपना उमराव बनाया तब से धवल के वंशज सरदारगढ(लावा) ठिकाना के सरदार है
सरदारगढ के डोडिया राजपूतो की लगातार 9 पिढी़यो ने मेवाड़ के युध्दो मे अपने प्राणो की आहुती दी.. और हमेसा महाराणाओ के विश्वास पात्र सामंत बने रहे.. अन्य सामंतो का महाराणाओ से मनमुटाव होता रहा लेकिन डोडिया सामंतो का महाराणाओ से कभी भी मनमुटाव नही हुआ... इस तरह महाराणा जगत सिंह ने सरदारगढ के डोडिया राजपूतो को मेवाड के प्रथम श्रेणी के उमरावो मे स्थान दिया
राव भीम सिंह अपनी कुमारावस्था मे ही मेवाड की सेना मे सक्रिय था अपने पुर्वजो की तरह भीम सिँह भी साहसी, पराक्रमी ओर जान पर खेलने वाला योध्दा था किसी भी चुनौती का सामने करने मे उसे आनन्द का अनुभव होता था
महाराणा उदयसिँह के समय हाजी खां के विरुध्द युध्द मे भीमसिँह अग्रिम पंक्ति मे लडने वाले योध्दाओ मेँ से एक था भीमसिँह ने अपनी कौमार्यवस्था मे हाजी खां के हाथी के शरीर मे बरछी आर पार कर दी थी और हाजी खां को घायल कर दिया
महाराणा प्रताप के समय जब संधि वार्ता प्रारम्भ हो रही थी तब प्रताप ने मानसिँह को ससम्मान लाने के लिये भीम सिँह को गुजरात भेजा था प्रताप को उसकी वाकपटुता पर विश्वास था,
उदय सागर की पाल पर कुँवर अमरसिँह व मानसिह के मध्य वार्ता हो रही थी तब भीमसिह भी वही था, जब मानसिँह ने संधि को स्वीकार न किया ओर मेवाड के प्रति कठोर वचनो का प्रयोग किया
तो भीमसिँह ने विनम्र किन्तु उग्र शब्दो मे उतर देते हूये कहा कि "यदि मानसिंह मेवाड से निपटना ही चाहता हे तो उसके साथ दो दो हाथ अवश्य होगे यदि अपने ही बलबुले पर आक्रमण करने आया तो मेवाड मे जहाँ कही उचित अवसर मिलेगा उसका यथोचित स्वागत किया जायेगा,
हल्दीघाटी के युध्द मे ऐसा ही हुआ भीमसिह सेना के अग्रभाग(हरावल) मे था भीमसिँह जब युध्द करता हुआ मानसिंह के सामने आया तब भीम ने कहा की उस दिन जो बोल बोले थे वह अवसर आ गया हे तब भीमसिँह ने अपना घोडा शीघ्रता से मानसिँह के हाथी पे चढा दिया ओर अपने भाले से मानसिँह पर वार किया लेकिन भाला होँदे मे लग गया मान बच गया
महाराणा कि रक्षा करने मे भीमसिँह डोडिया वीरगति को प्राप्त हुआ भीम ने मानसिँह पर ऐसे प्रहार किये जिसका वर्णन आमेर के साहित्य तथा अकबर के इतिहासकारो ने भी किया।
इस युध्द मे उसका भाई ओर उसके दो पुञ हम्मीर व गोविन्द भी वीरगति को प्राप्त हुयेँ, जय मेवाड़
जय राजपुताना
HaldiGhati is synonymous with MahaRana Pratap & his undaunted valour in face of enemy outnumbering 3:1 & still carrying the battlefield with his honour & country intact. In fact, this stand took place within 8 years of Third Jauhar of Chittorgarh, ie., 1568 CE !
Left historians have distorted the history showing Pratap losing & Mughals as the victors.
Akbarnama & Muntkhab ul Twarikh by Badayuni are more circumspect, fact that Badayuni was present makes it interesting & addresses Pratap as KIKA. He says Man Singh was In Ajmer at Chishti tomb, presented with a Khilat & a horse by Akbar himself. Asaf khan was second in command of 5000 Mughals to reinforce Syeds of Barha, Ghazi Khan, Mihtar Khan, Loonkaran & Jagannath Kachawahas.
Hakim Khan Sur joined MahaRana. On that day, Mughals started their advance early with Mewaris waiting. Mughal army was in classical Arrow Head formation.
Man Singh in centre on elephant.
Initial attack by Rana was so ferocious that Mughals reeled back under it. AbulFazl records it. Complete domination.
With Rajputs fighting Rajputs, Badayuni writes, Asaf Khan asked how to distinguish, he answered, " who so ever killed will be in service of Islam " !
Many Rajput on Mughal side were killed by Mughals. Advance body & skirmishers were cowering against smaller Mewar force.
Badayuni says it was a complete rout of Mughal, in his words, " sustained a complete defeat "! Even, Rajputs in Mughal side fled "Raja Loonkaran & his men fled likw flock of sheep" !
War elephants joined fighting. Gajmukta of Mughals faced Mewari 'Lona', it put Gajmukta to flight when a stray bullet killed Mahawat.
Famous Ramprasad of Mewar was brought by Pratap Singh, son of Gwalior Raja. It faced 2 Mughal elephants, Gajraj & Ranmandar & dominated both Abul Fazl writing, " Ranmandar was letting foot of courage slip" when an arrow hit Ramprasad's Mahawat.
Captured without Mahawat was the only trophy of Haldighati for Mughals. MahaRana had performed deeds of valour not seen us attested by Mughal chroniclers.
But, Dodiya Thakur Bhim Singh saw Man Singh first & charged his elephant, flung his Lance at Imperial Commander, misses. He's killed by the Altmash & bodyguards of Man Singh.
Pratap heard Bhim & rushed through the impregnable Mughal defence. Mewar chronicler has described it beautifully... His Lance killed the Mahawat & hit the metal Howda. Pratap didn't know that he missed as Man Singh had dived inside the Howda.
Jhala Man Singh grandson of Jhala Ajja ji who replaced MahaRana Sanga at Battle of Khanuwa did honours at Haldighati. He allowed MahaRana to retreat tactically, "reared aloft the Mewar emblem fought till the last is Mewar army melted into the hills"!
Mughal didn't dare to follow says BADAYUNI.
Next day at Gogunda described by Badayuni, was not that of a Victor but a fearful stalemate worried if another attack.
Man Singh & Asaf Khan who had fled the battlefield were banished from the Mughal Court for their failure.
Badayuni describes how Mihtar Khan who was at the rear along with Syeds of Barha saved the day by falsely claiming that Akbar himself had come to battle & stopped the fleeing Mughals.
The TRUTH of Haldighati !!!
Courtesy : 🙏Pragyata.Com🙏
No comments:
Post a Comment