हिन्दुत्व को बचाने के लिये आपके द्वारा इस सत्य से हिन्दुओं को अवगत कराना आवश्यक है नही तो कालांतर मे अर्थ का अनर्थ हो सकता है।
मारवाड़ में होली के बाद एक पर्व शुरू होता है ,जिसे *घुड़ला पर्व* कहते है,
कुँवारी लडकिया अपने सर पर एक मटका उठाकर उसके अंदर दीपक जलाकर गांव में घूमती है और घर घर घुड़लो जैसा गीत गाती है।
अब यह घुड़ला क्या है ?
कोई नहीं जानता है ,
घुड़ला की पूजा शुरू हो गयी
यह भी ऐसा ही घटिया ओर घातक षड्यंत्र है जैसा की अकबर को महान बोल दिया गया।
दरअसल हुआ ये था की घुड़ला खान अकबर का मुग़ल सरदार था और अत्याचारऔर पैशाचिकता मे भी अकबर जैसा ही गंदा पिशाच था। ज़िला नागोर राजस्थान के पीपाड़ गांव के पास एक गांव है कोसाणा। उस गांव में लगभग 200 कुंवारी कन्याये गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी ,वे व्रत में थी उनको मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते है।
गाँव के बाहर मौजूद तालाब पर पूजन करने के लिये सभी बच्चियाँ गयी हुई थी उधर से ही घुडला खान मुसलमान सरदार अपनी फ़ौज के साथ निकल रहा था ,उसकी गंदी नज़र उन बच्चियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत पैशाचिकता जाग उठी। उसने सभी बच्चियों का बलात्कार के उद्देश्य से अपहरण कर लिया , जिस भी गाँव वाले ने विरोध किया उसको उसने मौत के घाट उतार दिया ! इसकी सूचना घुड़सवारों ने जोधपुर के राव सातल सिंह जी राठौड़ को दी।
राव सातल सिंह जी और उनके घुड़सवारों ने घुड़ला खान का पीछा किया और कुछ समय मे ही घुडला खान को रोक लिया , घुडला खान का चेहरा पीला पड़ गया उसने सातल सिंह जी की वीरता के बारे मे सुन रखा था। उसने अपने आपको संयत करते हुये कहा , राव तुम मुझे नही दिल्ली के बादशाह अकबर को रोक रहे हो इसका ख़ामियाज़ा तुम्हें और जोधपुर को भुगतना पड़ सकता है? राव सातल सिंह बोले , पापी दुष्ट ये तो बाद की बात है पर अभी तो मे तुझे तेरे इस गंदे काम का ख़ामियाज़ा भुगता देता हुँ।
राजपुतो की तलवारों ने दुष्ट मुग़लों के ख़ून से प्यास बुझाना शुरू कर दिया था , संख्या मे अधिक मुग़ल सैना के पांव उखड़ गये , भागती मुग़ल सैना का पीछा कर ख़ात्मा कर दिया गया। राव सातल ने तलवार के भरपुर वार से घुडला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया। राव सातल सिंह ने सभी बच्चियों को मुक्त करवा उनकी सतीत्व की रक्षा करी।
इस युद्दध मे वीर सातल सिंह जी अत्यधिक घाव लगने से वीरगति को प्राप्त हुये। उसी गाँव के तालाब पर सातल सिंह जी अंतिम संस्कार किया गया, वहाँ मौजूद सातल सिंह जी की समाधि उनकी वीरता ओर त्याग की गाथा सुना रही है। गांव वालों ने बच्चियों को उस दुष्ट घुडला खान का सिर सोंप दिया। बच्चियो ने घुडला खान के सिर को घड़े मे रख कर उस घड़े मे जितने घाव घुडला खान के शरीर पर हुये उतने छेद किये और फिर पुरे गाँव मे घुमाया और हर घर मे रोशनी की गयी।
यह है घुड़ले की वास्तविक कहानी।
हिन्दु राव सातल सिंह जी को तो भूल गए
और पापी दुष्ट घुड़ला खान को पूजने लग गये ! अब बताओ कैसे हो हिन्दुओं का उद्गार ?
इतिहास से जुडो और सत्य की पूजा करो।
सातल सिंह जी को याद करो घुड़ले खान को जूते मारो ....
आज भी राजस्थान में होली के बाद, गणगौर के दिनों में शाम को गली-मोहल्लों में घुड़ला घुमाने की प्रथा है।
म्हारो तेल बले री मायं, घड़ूल्यो घूमेला जी घूमेला ।
लडकियाँ जो घुडला (earthen pot with holes) लेकर घुमती हैं।
Famous folk song “ घुड़लो घूमेला” sung by maidens is a tribute to Rao Satal for Celebrating
A VICTORY OF GOOD OVER EVIL
Rajputana, Circa 1890's. |
Gangaur observed by women in worship of Isar Gauri ( Shiv-Parvati) after Holi in Rajasthan has a special place in our lives. But Jodhpur Royal family worship only Gangaur and not Isar, as Rao Satal sacrificed his life on the same day at Battle of Peepar (Chaitra Sudi 3, 1548 VS).
What one love about Jodhpur is that there are so many interesting story left by their ancestors. One is about a brave king, the successor of Jodhpur founder, Rao Satal Ji Rathore, son of Rao Jodha Ji descended upon the throne of Marwar in 1488. his bravery & saving the life & honour of 140 maidens abducted by Afghan raiders from Merta & Peepar.
Mallu Khan, governor of Ajmer, under Sultan Nasir of Mandu. He, Mir Ghudla, renowned warrior raided Rathore kingdom in retaliation of raid by Duda & Bar Singh, brothers of Satal. Mallu Khan attacked Merta, Duda & Bar Singh retreated to Jodhpur. Mallu & Ghudla moved towards Jodhpur, Rao Satal moved to face the muslim raiders, who attacked & looted Peepar on way.
It was Gangaur day, maidens had come to worship were abducted by Mlechas & taken to Kosana, Rao Satal alarmed, knew honour of Hindu maidens was at stake. He forced marched to Kosana & attacked Mallu at night, Mallu Khan got defeated and fled. Ghudla Khan who faced Rao Satal in mortal combat & was killed by Rao Satal.
The Afghan warlord Gudhla Khan had Herculean strength and the armour he wore was so heavy that no weapon could pierce it, Rao Satal was fatally wounded while fighting Gudhla but he was able to kill him by severing his head through an opening in his armour. Rao Satal saved the girls and personally escorted them to their village, but he succumbed to his wounds and died that night. his Hero Stone stands in memory.
Sarang Khichi drilled holes in the head of Ghudla Khan & presented it to maidens to roam with his head in the villages around as a reminder. The head of Gudhla was then taken by one of the girls and it was paraded around the town to show that Gudhla had been slain by the brave Rathore chieftain and that their honour remained untarnished.
It was 13 March 1491, Rao Satal & Sarang Khichi are immortals in history !
In commemoration of this event, a festival is held in Marwar in March. At sunset, on the appointed day, young married girls make their way to the local potter’s home to get an earthen pot, which is riddled with holes. The girls place an oil lamp in the earthen pot and the procession wends its way through the streets with the pot held high midst a chanting of folk song Gudhla ghoomelaji. The lamp is paraded in a similar manner as to how Gudhlas's head was paraded by the maidens after they were saved and reached their village. After sunset, the pot is taken to the nearest lake and gently cast away.
The riddled pot symbolises the head of Gudhla Khan and the festival acknowledges the long-dead king who lost his life in the protection of his subjects
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