इतिहास में गढवाल की रानी का उल्लेख नाक काटने वाली रानी के नाम से मिलता है ! गढ़वाल की इस रानी ने पूरी मुगल सेना की बाकायदा सचमुच नाक कटवायी थी ! कुछ इतिहासकारों ने इस रानी का उल्लेख नाक काटने वाली रानी के रूप में किया है !
रानी कर्णावती ने गढ़वाल में अपने नाबालिग बेटे पृथ्वीपतिशाह के बदले उस समय शासन सूत्र संभाले थे, जब दिल्ली में मुगल सम्राट शाहजहां का राज था ! शाहजहां के कार्यकाल पर बादशाहनामा या पादशाहनामा लिखने वाले अब्दुल हमीद लाहौरी ने भी गढ़वाल की इस रानी का जिक्र किया है ! शम्सुद्दौला खान ने ‘मासिर अल उमरा’ में गढ़वाल की रानी कर्णावती का उल्लेख किया है ! इटली के लेखक निकोलाओ मानुची जब सत्रहवीं सदी में भारत आये थे तब उन्होंने शाहजहां के पुत्र औरंगजेब के समय मुगल दरबार में काम किया था ! उन्होंने अपनी किताब ‘स्टोरिया डो मोगोर’ यानि ‘मुगल इंडिया’ में गढ़वाल की एक रानी के बारे में बताया है जिसने मुगल सैनिकों की नाट काटी थी !रानी कर्णावती कांगड़ा के कटोच वंश से थी इनका विवाह परमार वंश के राजा महिपतशाह की पत्नी थी ! यह वही महिपतशाह थे जिनके शासन में रिखोला लोदी और माधोसिंह जैसे सेनापति हुए थे जिन्होंने तिब्बत के आक्रांताओं को छठी का दूध याद दिलाया था ! माधोसिंह के बारे में गढ़वाल में काफी किस्से प्रचलित हैं ! पहाड़ का सीना चीरकर अपने गांव मलेथा में पानी लाने की कहानी भला किस गढ़वाली को पता नहीं होगी ! कहा जाता था कि माधोसिंह अपने बारे में कहा करते थे,
”एक सिंह वन का सिंह, एक सींग गाय का। तीसरा सिंह माधोसिंह, चौथा सिंह काहे का ! ”
इतिहास की किताबों से पता चलता है कि रिखोला लोदी और माधोसिंह जैसे सेनापतियों की मौत के बाद महिपतशाह भी जल्द स्वर्ग सिधार गये ! महिपतशाह की मृत्यु के पश्चात उनकी विधवा रानी कर्णावती ने सत्ता संभाली ! तब उनके पुत्र पृथ्वीपतिशाह केवल सात साल के थे, अतः रानी कर्णावती ने एक संरक्षिका शासिका के रूप में शासन किया ! वे अपनी विलक्षण बुध्दि एवं गौरवमय व्यक्तित्व के लिए प्रसिध्द हुईं ! अपने पुत्र के नाबालिग होने के कारण वह कर्तव्यवश जन्मभूमि गढवाल के हित के लिए अपने पति की मृत्यु पर सती नहीं हुईं और बडे धैर्य और साहस के साथ उन्होंने पृथ्वीपति शाह के संरक्षक के रूप में राज्यभार संभाला ! रानी कर्णावती ने राजकाज संभालने के बाद अपनी देखरेख में शीघ्र ही शासन व्यवस्था को सुद्यढ किया !
गढवाल के प्राचीन ग्रंथों और गीतों में रानी कर्णावती की प्रशस्ति में उनके द्वारा निर्मित बावलियों. तालाबों , कुओं आदि का वर्णन आता है !एक ऐतिहासिक संयोग के चलते वर्ष 1634 में बदरीनाथ धाम की यात्रा के दौरान छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास की गढवाल के श्रीनगर में सिख गुरु हरगोविन्द सिंह से भेंट हुई ! इन दो महापुरषों की यह भेंट बडी महत्वपूर्ण थी क्योंकि दोनों का एक ही उद्देश्य था,मुगलों के बर्बर शासन से मुक्ति प्राप्त करके हिन्दू धर्म की रक्षा करना। देवदूत के रूप में समर्थ गुरु स्वामी रामदास 1634 में श्रीनगर गढवाल पधारे और रानी कर्णावती को उनसे भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । समर्थ गुरु रामदास ने रानी कर्णावती से पूछा कि क्या पतित पावनी गंगा की सप्त धाराओं से सिंचित भूखंड में यह शक्ति है कि वैदिक धर्म एवं राष्ट्र की मार्यादा की रक्षा के लिये मुगल शक्ति से लोहा ले सके ! इस पर रानी कर्णावती ने विनम्र निवेदन किया पूज्य गुरुदेव , इस पुनीत कर्तव्य के लिये हम गढवाली सदैव कमर कसे हुए उपस्थित हैं !इससे पहले जब महिपतशाह गढ़वाल के राजा थे तब 14 फरवरी 1628 को शाहजहां का राज्याभिषेक हुआ था ! जब वह गद्दी पर बैठे तो देश के तमाम राजा आगरा पहुंचे थे ! महिपतशाह आगरा नहीं गये ! इसके दो कारण माने जाते हैं ! पहला यह कि पहाड़ से आगरा तक जाना तब आसान नहीं था और दूसरा उन्हें मुगल शासन की अधीनता स्वीकार नहीं थी ! कहा जाता है कि शाहजहां इससे चिढ़ गया था ! इसके अलावा किसी ने मुगल शासकों को बताया कि गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर में सोने की खदानें हैं ! महीपति शाह के शासनकाल में मुगल सेना गढवाल विजय के बारे में सोचती भी नहीं थी, लेकिन जब वह युध्द में मारे गए और रानी कर्णावती ने गढवाल का शासन संभाला तब मुगल शासकों ने सोचा कि उनसे शासन छीनना सरल होगा ! नजाबत खां नाम के एक मुगल सरदार को गढवाल पर हमले की जिम्मेदारी सौंपी गयी और वह 1635 में एक विशाल सेना लेकर आक्रमण के लिये आया ! उसके साथ पैदल सैनिकों के अलावा घुडसवार सैनिक भी थे !
ऐसी विषम परिस्थितियों में रानी कर्णावती ने सीधा मुकाबला करने के बजाय कूटनीति से काम लेना उचित समझा ! गढ़वाल की रानी कर्णावती ने उन्हें अपनी सीमा में घुसने दिया लेकिन जब वे वर्तमान समय के लक्ष्मणझूला से आगे बढ़े तो उनके आगे और पीछे जाने के रास्ते रोक दिये गये ! गंगा के किनारे और पहाड़ी रास्तों से अनभिज्ञ मुगल सैनिकों के पास खाने की सामग्री समाप्त होने लगी ! उनके लिये रसद भेजने के सभी रास्ते भी बंद थे !मुगल सेना कमजोर पड़ने लगी और ऐसे में सेनापति ने गढ़वाल के राजा के पास संधि का संदेश भेजा लेकिन उसे ठुकरा दिया गया ! मुगल सेना की स्थिति बदतर हो गयी थी ! रानी चाहती तो उसके सभी सैनिकों का खत्म कर देती लेकिन उन्होंने मुगलों को सजा देने का नायाब तरीका निकाला ! रानी ने संदेश भिजवाया कि वह सैनिकों को जीवनदान दे सकती है लेकिन इसके लिये उन्हें अपनी नाक कटवानी होगी ! सैनिकों को भी लगा कि नाक कट भी गयी तो क्या जिंदगी तो रहेगी ! मुगल सैनिकों के हथियार छीन लिए गये और आखिर में उन सभी की एक एक करके नाक काट दी गयी ! कहा जाता है कि जिन सैनिकों की नाक काटी गयी उनमें सेनापति नजाबत खान भी शामिल था ! वह इससे काफी शर्मसार था और उसने मैदानों की तरफ लौटते समय अपनी जान दे दी ! उस समय रानी कर्णावती की सेना में एक अधिकारी दोस्त बेग हुआ करता था जिसने मुगल सेना को परास्त करने और उसके सैनिकों को नाक कटवाने की कड़ी सजा दिलाने में अहम भूमिका निभायी थी !
इस तरह मोहन चट्टी में मुगल सेना को नेस्तनाबूद कर देने के बाद रानी कर्णावती ने जल्द ही पूरी दून घाटी को भी पुन: गढवाल राज्य के अधिकार क्षेत्र में ले लिया ! गढवाल की उस नककटवा रानी ने गढवाल राज्य की विजय पताका फिर शान के साथ फहरा दी और समर्थ गुरु रामदास को जो वचन दिया था, उसे पूरा करके दिखा दिया ! रानी कर्णावती के राज्य की संरक्षिका के रूप में 1640 तक शासनारूढ रहने के प्रमाण मिलते हैं लेकिन यह अधिक संभव है कि युवराज पृथ्वीपति शाह के बालिग होने पर उन्होंने 1642 में उन्हें शासनाधिकार सौंप दिया होगा और अपना बाकी जीवन एक वरिष्ठ परामर्शदात्री के रूप में बिताया होगा !कुछ इतिहासकारों के अनुसार कांगड़ा आर्मी के कमांडर नजाबत खान की अगुवाई वाली मुगल सेना ने जब दून घाटी और चंडीघाटी (वर्तमान समय में लक्ष्मणझूला) को अपने कब्जे में कर दिया तब रानी कर्णावती ने उसके पास संदेश भिजवाया कि वह मुगल शासक शाहजहां के लिये जल्द ही दस लाख रूपये उपहार के रूप में भेज देगी ! नजाबत खान लगभग एक महीने तक पैसे का इंतजार करता रहा ! इस बीच गढ़वाल की सेना को उसके सभी रास्ते बंद करने का मौका मिल गया ! मुगल सेना के पास खाद्य सामग्री की कमी पड़ गयी और इस बीच उसके सैनिक एक अज्ञात बुखार से पीड़ित होने लगे ! गढ़वाली सेना ने पहले ही सभी रास्ते बंद कर दिये थे और उन्होंने मुगलों पर आक्रमण कर दिया ! रानी के आदेश पर सैनिकों की नाक काट दी गयी ! नजाबत खान जंगलों से होता हुआ मुरादाबाद तक पहुंचा था ! कहा जाता है कि शाहजहां इस हार से काफी शर्मसार हुआ था ! शाहजहां ने बाद में अरीज खान को गढ़वाल पर हमले के लिये भेजा था लेकिन वह भी दून घाटी से आगे नहीं बढ़ पाया था ! बाद में शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने भी गढ़वाल पर हमले की नाकाम कोशिश की थी !The Uttarakhandi Rajput culture reflects the most dynamic of the Rajput social and cultural formation since robust men from the plains and the mountain populations joined together to form the largest Ethnic population of Rajputs.
In the aftermath of Muslim invasions of India, older kingdoms survived only in the difficult terrains of the hills and the desert where they were able to defend themselves effectively with smaller forces as the terrain gave tremendous advantages to defending forces over attacking forces. Many of the erstwhile rulers from the plains also fled here to found kingdoms, like the Rathores of Kannauj went on to Jodhpur. Garhwal was ruled by Paramar kings who had migrated from Dhara, the city of Raja Bhoj, in Central India. Many of these kingdoms survived right till 1947.
In all this Garwhal was a tiny hill state located in the lower Himalayas, and was ruled by the Pal Dynasty (an offshoot of the Paramaras). shot into prominence in Mughal imagination when a Mughal invading force was trapped in the mountain defiles by the Pahadi Rajput troops of Queen Karnavati.Forced to surrender, they were not killed but allowed to go albeit with their noses cut off. Whatever the case may be, this was one of the greatest military achievments of Uttarakhand and the Himalayan States. It should also be noted that the Mughal army wasn't some unoperational army who never fought in the hills, they were campaigning in places like Kandhar in Afghansitan, leading successful campaigns into the Deccan, and even fought and achieved success against the Ladakhis.Queen Karnavati of Garhwal Kingdom was the wife of Raja Mahipat Shah, King of Garhwal. The capital of Garhwal Kingdom was shifted from Dewalgarh to Srinagar on the banks of the Alaknanda River by him, who ascended to the throne in 1622 and further consolidated his rule over most parts of Garhwal, though he died young in 1631.The Parmar ruler Mahipat Shah ascended the throne of Garhwal in 1622, succeeding his uncle Shyam Shah. He was considerably a very arrogant and headstrong man. A local saying on his headstrong character went
“Trin barabar sabko janahi Kahi kahu ki kabhi nahi manahi”In 1624, to punish Tibetan raiders, he gathered 12000 Pahadi Rajputs to invade Western Tibet. As per Andrade, the very following year , he snubbed Emperor Jehangir’s decree asserting the independence of Pahadi people from Delhi Durbar. This wasn’t the first snub by the Pahadi Rajputs, nor would it be their last.In 1628, the new Emperor Shah Jehan, issued a similar decree, sending a messenger to Raja Mahipat Shah which the latter rejectedIn 1631, after 9 long years of war with Kumaon, he finally succumbed on the battle field, transferring the power to his widow The famous Queen Karnavati, popularly called “Nak-kati Rani”.Queen Karnavati hailed from Kangra and was from an Ancient Katoch Rajput Clan.After King Mahipat Shah’s martyrdom fighting Kumaon, Queen Karnavati Parmar ruled the kingdom on behalf of her 7year old son, Prince Prithvipati Shah. During her Reign she successfully defend the kingdom against invaders and repelled an attack of Mughal army of Shah Jahan led by Najabat Khan in 1640. Rani Karnavati was a great military Tactician. She calmly instructed her military commanders to create hurdles in the route of the Mughal Army, hence everywhere they had to clear the walls of stones and fallen trees, Which caused the loss of time and energy and delayed their progress.This is the account given by the Maasir Ul Umara:The Hill States, despite being so low in number of troops and cavalry, always used successful guerrilla tactics to nearly wipe out armies that were much larger than it, as seen in the failed Qarachil expedition launched by Muhammad Bin Tuglaq. In 1634, the Faujduar of Kangra, Najabat Khan received permission to invade the neighboring Garhwal kingdom. The size of the army was listed as 130,000 by Nicolas Mannuci and 100,000 by Travenier, but a reasonable estimate would be somewhere around 25,000-30,000, while the Garhwal kingdom could reasonably only field 3,000-5,000 (1,000 is given by travenier). Upon Najabat Khan's arrival, the Queen of Garhwal is said to have lured the army in the hills by lying about giving 1 million rupees in tribute. The Garhwali forces, after constantly harrasing the Mughals, closed the retreats and exits, then destroyed the Mughal Army down to a man. The Mughal forces were severly defeated and retreated back to Kangra.John F Richards also mentions this battle in his "The Mughal Empire" book:
where he states that "so badly were the Mughals mauled that they did not attack for another 20 years.
This is what the Italian traveler Manucci has to say, though confusing the gender:“The purpose that Shahjahan had of righting with the Rana was diverted to a campaign against the Hindu prince of Srinaguer, which is in the midst of lofty mountains in the north, covered all the year with snow. But it did not happen to him as he had hoped. To effect his purpose he despatched a general at the head of thirty thousand horsemen besides infantry.“The prince ( confusing the gender) allowed his enemy to penetrate into the mountains, retiring as they advanced. When the soldiers of Shahjahan had got a certain distance he closed the roads, so that they could neither advance any farther nor retreat, and there was no way of deliverance for them. Finding himself in this danger, the general sent proposals for peace negotiations, but the Hindu prince returned the answer that his resolve to retreat was too late. Already the commander had a deficiency of supplies, and all his camp was in great confusion. He therefore requested from the prince permission to withdraw, and although the rajah could have destroyed them every one, he did not wish to do so. He sent to say that he would grant them their lives, but his soldiers required all their noses as a memorial of having given them a gift of their lives.”“Shahjahan’s soldiers finding themselves in such dreadful straits, rather than lose their lives, were content to lose their noses. Najabat Khan who could not endure coming back with his nose cut-off, took poison and put an end to his life” writes Manucci. Undoubtedly, this was one of the greatest military achievments of Uttarakhand & the Himalayan States.Due to her MercilessMughals never dared to attack her Kingdom again.Over the time she earned the nickname 'Nak kati Rani' (Nak-Kati-Rani) as she had the habit of cutting the noses of the invaders, whoever would dare to attack her Kingdom.Queen Karnavati resorted to psychological warfare by sending a message to the Mughal court that if she could chop off their noses, she could also chop off their heads. The sultan was embarrassed and enraged. He ordered another attack under Mughal Areej Khan who met the same embarrassment.She ruled over a tolerant, multicultural society and had capable and loyal ministers from all communities to guide her - Madho Singh Bhandari , Bhanwaridas & Daulat Baig.An old Tantric text “Sanwari Granth” mentions her patronage of Tantric , Kalikula and Shrikula systems; and that she patronized a “vidwat sabha” inviting scholars from Gujarat, Kashmir and Kerala to the capital city of Srinagar.Queen Karnavati is said to have orchestrated a number of hydraulic constructions, the most noted of which was an irrigation system that prevented the water from sinking underground as it exited the hill into the gravels leading to the valleys. This allowed agricultural development that allowed an efflorescence of several towns in the region.This consequently fed a local Hindu revival which was mainly seen in the form of various productions of certain tantrika, legal, and medical texts under the patronage of this dynasty.Monuments erected by her still exist in Dehradun District at Nawada,The Rajpur canal of Dehradun, the first such canal to irrigate the region, was built by her causing a boost in agriculture. Queen Karnavati Parmar was credited with the construction of Rajpur Canal, the earliest of all such canal in the region which starts from the Rispana River and brings its waters till the city of Dehradun.It's one of the tributary of Song river that drains the central and eastern part of the Doon valley And Yet apart from being an able administrator, she also proved an able military strategist when Emperor Shah Jehan sent Najabat Khan with 30,000 strong army to invade Garhwal in 1640. But romanticizing of The invaders is what their in our Itihas book....
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