Wednesday, November 25, 2020

भगवान डौंडिया नरसिंह



उत्तराखण्ड में नरसिंह को भगवान विष्णु के बावन अवतारों में से एक अवतार की जगह वीररूप में पूजा जाता है। ये आधिव्याधि और संकट दूर करने वाले जोगी देवता हैं। इनके प्रमुख दो रूप - डौडया नरसिंह अत्यधिक क्रोधी व दुधिया नरसिंह कोमल भावना, दयाप्रिय हैं। दुधिया नरसिंह का मंदिर जोशीमठ में है। इन्हें बद्रीनाथ का मामा कहा जाता है, इनको रोट चढ़ाया जाता है। नरसिंह के जागर गीतों में इन्हें काली के पुत्र के रूप में जाना जाता है। इनका सम्बन्ध शिव इन्द्र और स्वर्गलोक के सभी देवताओं से बताया जाता है।

यह 9 नरसिंह थे जो कि गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे, यह सन्यासी थे चिमटा, ठेमरु का डंडा(लट्ठा), झोली अपने साथ लेकर चलते थे। इनके उत्पत्ति के बारे में कई अलग अलग मान्यताए है पर जागरों में यह बताया जाता है कि भगवान शिव ने इन 9 भाई नरिसंह की उत्पत्ति केसर के पेड़ द्वारा की थी। सबसे बड़े भाई शायद दूधा धारी नरिसंह थे और सबसे छोटे भाई डोंडिया नरिसंह थे पूरी तरह से अभी मुझे भी नही मालूम पड़ा है अभी प्रयास जारी है और जानकारी इकट्ठी करना।

नरसिंग जागर और नाथपंथी मन्त्र:

आम तौर पर नरसिंग (नृसिंह-नरसिंह का अपभ्रंश) को भगवान को विष्णु का अवतार माना जाता है, किन्तु कुमाऊं व गढ़वाल में यह गुरु गोरखनाथ के चेले के रूप में ही पूजे जाते हैं। नरसिंगावली का मंत्रों और घड़ेलों में जागर के रूप में भी प्रयोग होता है। नरसिंग नौ प्रकार के बताए जाते हैं-इंगला वीर, पिंगला बीर, जतीबीर, थतीबीर, घोरबीर, अघोरबीर, चंड बीर, प्रचंड बीर, दुधिया व डौंडिया नरसिंग। आमतौर पर दुधिया नरसिंग व डौंडिया नरसिंग के जागर लगते हैं। दुधिया नरसिंग शांत नरसिंग माने जाते है, जिनकी पूजा रोट काटने से पूरी हो जाती है। जबकि, डौंडिया नरसिंग घोर बीर माने जाते हैं व इनकी पूजा में भेड़-बकरी का बलिदान करने की प्रथा भी है।

नरसिंग की जागर के कुछ अंश:

जाग जाग नरसिंग बीर बाबा
रूपा को तेरा सोंटा जाग, फटिन्गु को तेरा मुद्रा जाग .
डिमरी रसोया जाग, केदारी रौल जाग
नेपाली तेरी चिमटा जाग, खरुवा की तेरी झोली जाग
तामा की पतरी जाग, सतमुख तेरो शंख जाग
नौलड्या चाबुक जाग, उर्दमुख्या तेरी नाद जाग
गुरु गोरखनाथ का चेला जाग
पिता भस्मासुर माता महाकाली जाग
लोह खम्भ जाग रतो होई जाई बीर बाबा नरसिंग
बीर तुम खेला हिंडोला बीर उच्चा कविलासू
हे बाबा तुम मारा झकोरा, अब औंद भुवन मा
हे बीर तीन लोक प्रिथी सातों समुंदर मा बाबा
हिंडोलो घुमद घुमद चढे बैकुंठ सभाई, इंद्र सभाई
तब देवता जागदा ह्वेगें, लौन्दन फूल किन्नरी
शिवजी की सभाई, पेंदन भांग कटोरी
सुलपा को रौण पेंदन राठवळी भंग
तब लगया भांग को झकोरा
तब जांद बाबा कविलास गुफा
जांद तब गोरख सभाई , बैकुंठ सभाई
गुरु खेकदास बिन्नौली कला कल्पण्या
अजै पीठा गजै सोरंग दे सारंग दे
राजा बगिया ताम पातर को जाग
न्यूस को भैरिया बेल्मु भैसिया
कूटणि को छोकरा गुरु दैणि ह्वे जै रे
ऊंची लखनपुरी मा जै गुरुन बाटो बतायो
आज वे गुरु की जुहार लगान्दु
जै दुध्या गुरून चुडैलो आड़बंद पैरे
ओ गुरु होलो जोशीमठ को रक्छ्यापाल
जिया व्बेन घार का बोठ्या पूजा
गाड का गंगलोड़ा पूज्या
तौ भी तू जाती नि आयो मेरा गुरु रे
गुरून जैकार लगाये, बिछुवा सणि नाम गहराए
क्विल कटोरा हंसली घोड़ा बेताल्मुखी चुर्र
आज गुरु जाती को ऐ जाणि रे………….

जै नौ नरसिंग बीर छयासी भैरव
हरकी पैड़ी तू जाग
केदारी तू गुन्फो मा जाग
डौंडी तू गढ़ मा जाग
खैरा तू गढ़ मा जाग
निसासु भावरू जाग
सागरु का तू बीच जाग
खरवा का तू तेरी झोली जाग
नौलडिया तेरी चाबुक जाग
टेमुरु कु तेरो सोंटा जाग
बाग्म्बरी का तेरा आसण जाग
माता का तेरी पाथी जाग
संखना की तेरी ध्वनि जाग
गुरु गोरखनाथ का चेला पिता भस्मासुर माता महाकाली का जाया
एक त फूल पड़ी केदारी गुम्फा मा
तख त पैदा ह्वेगी बीर केदारी नरसिंग
एक त फूल पड़ी खैरा गढ़ मा
तख त पैदा ह्वेगी बीर डौंडि
एक त फूल पोड़ी वीर तों सागरु मा
तख त पैदा ह्वेगी सागरया नरसिंग
एक त फूल पड़ी बीर तों भाबरू मा
तख त पैदा ह्वेगी बीर भाबर्या नारसिंग
एक त फूल पड़ी बीर गायों का गोठ, भैस्यों क खरक
तख त पैदा ह्वेगी दुधिया नरसिंग
एक त फूल पड़ी वीर शिब्जी क जटा मा
तख त पैदा ह्वेगी जटाधारी नरसिंग
हे बीर आदेसु आदेसु बीर तेरी नौल्ड्या चाबुक
बीर आदेसु आदेसु बीर तेरो तेमरू का सोंटा
बीर आदेसु आदेसु बीर तेरा खरवा की झोली
वीर आदेसु आदेसु बीर तेरु नेपाली चिमटा
वीर आदेसु आदेसु बीर तेरु बांगम्बरी आसण
वीर आदेसु आदेसु बीर तेरी भांगला की कटोरी
वीर आदेसु आदेसु बीर तेरी संखन की छूक
वीर रुंड मुंड जोग्यों की बीर रुंड मुंड सभा
वीर रुंड मुंड जोग्यों बीर अखाड़ो लगेली
वीर रुंड मुंड जोग्युंक धुनी रमैला
कन चलैन बीर हरिद्वार नहेण
कना जान्दन वीर तैं कुम्भ नहेण
नौ सोंऊ जोग्यों चल्या सोल सोंऊ बैरागी
वीर एक एक जोगी की नौ नौ जोगणि
नौ सोंऊ जोगयाऊं बोडा पैलि कुम्भ हमन नयेण
कनि पड़ी जोग्यों मा बनसेढु की मार
बनसेढु की मार ह्वेगी हर की पैड़ी माग
बीर आदेसु आदेसु बीर आदेसु बीर आदेसु
पारबती बोल्दी हे मादेव, और का वास्ता तू चेला करदी
मेरा भंग्लू घोटदू फांफ्दा फटन, बाबा कल्लोर कोट कल्लोर का बीज
मामी पारबती लाई कल्लोर का बीज, कालोर का बीज तैं धरती बुति याले
एक औंसी बूते दूसरी औंसी को चोप्ती ह्वे गे बाबा
सोनपंखी ब्रज मुंडी गरुड़ी टों करी पंखुरी का छोप
कल्लोर बाबा डाली झुल्मुल्या ह्वेगी तै डाली पर अब ह्वेगे बाबा नौरंग का फूल
नौरंग फूल नामन बास चले गे देवता को लोक
पंचनाम देवतों न भेजी गुरु गोरखनाथ , देख दों बाबा ऐगे कुसुम की क्यारी
फूल क्यारी ऐगे अब गुरु गोरखनाथ
गुरु गोरखनाथ न तैं कल्लोर डाली पर फावड़ी मार
नौरंग फूल से ह्वेन नौ नरसिंग निगुरा, निठुरा सद्गुरु का चेला
मंत्र को मारी चलदा सद्गुरु का चेला…….
(यह गढ़वाली जागर कत्यूर शासन और केदारनाथ धाम की स्थापना के बाद की मानी जाती है, क्योंकि इसमें केदार नाथ धाम और वहां के पुजारी रावल का साथ कत्यूर वंश की तत्कालीन राजधानी जोशीमठ का जिक्र भी है।)

नरसिंगावली में उल्लेखित नरसिंग का मंत्र

ऊं नमो गुरु को आदेस … प्रथमे को अंड अंड उपजे धरती, धरती उपजे नवखंड, नवखंड उपजे धूमी, धूमी उपजे भूमि, भूमि उपजे डाली, डाली उपजे काष्ठ, काष्ठ उपजे अग्नि, अग्नि उपजे धुंवां, धुंवां उपजे बादल , बादल उपजे मेघ , मेघ पड़े धरती, धरती चले जल, जल उपजे थल, थल उपजे आमी, आमी उपजे चामी, चामी उपजे चावन छेदा बावन बीर उपजे महाज्ञानी, महादेव न निलाट चढाई अंग भष्म धूलि का पूत बीर नरसिंग….


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