Monday, October 21, 2019

A FIGHTING RACE - IMMORTAL RAJPUTS

"निजर न पुगी जिण जिग्या, गोळो पड़्यो न आय।
पाँवा सू पेली घणो, सिर पड़्यो गढ़ जाय।।"


जहा शीश ले निज करतल पर युद्ध किया करते है। 
और मान के धनी प्राण धन वार दिया करते है।।
राजपुताना ये धरा शौर्य की कथा कहा करता है ।
पाणी कम है मगर रक्त/शौर्य की नदी बहा करता है।।

राजपूताना के वीर योद्घा युद्घ की घड़ी में सबसे आगे रहने के लिए हर वक्त तैयार रहते थे। सबसे आगे रहने की ऐसी ही कहानी है चूण्डावतों और शक्तावतों की।


राजपूताना का हर जर्रा वीरता और शौर्य की कहानियों से अटा पड़ा है। यहां के कण-कण में ऐसी हजारों कहानियां हैं जिनमें यहां के वीर योद्घा मातृभूमि की रक्षा और आत्म सम्मान के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहूति दे देते हैं। राजस्थान का इतिहास बताता है कि पराक्रमी वीर योद्घा युद्घ की घड़ी में सबसे आगे रहने के लिए हर वक्त तैयार रहते थे। युद्घ में सबसे आगे रहने की एेसी ही एक कहानी है चूण्डावतों और शक्तावतों की।
मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह की सेना में सिसोदिया राजपूत कुल दो शाखा चूण्डावत और शक्तावत हमेशा से ही अपनी श्रेष्ठता सिद्घ करने के लिए प्रयासरत रहते थे। मेवाड़ की सेना में शुरू से चूण्डावतों को 'हरावल' यानी युद्घ में सबसे आगे रहने का गौरव प्राप्त था। चूण्डावत जबरदस्त पराक्रमी थे, जिसके कारण उन्हें ये सम्मान दिया गया था। हालांकि शक्तावत उनसे कम पराक्रमी नहीं थे। शक्तावत भी चाहते थे कि हरावल दस्ते का प्रतिनिधित्व वे करें। अपनी इस इच्छा को उन्होंने महाराणा अमर सिंह के सामने रखा और कहा कि वे वीरता और बलिदान देने में किसी भी प्रकार से वे चूण्डावतों से कम नहीं हैं।
शक्तावतों की इस बात से अमरसिंह पशोपेश में पड़ गए। उन्होंने इस पर काफी विचार करने के बाद अपना फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि दोनों दल उन्टाला दुर्ग पर अलग-अलग दिशा से एक साथ आक्रमण करेंगे। इसके बाद जिस दल का योद्घा इस दुर्ग में पहले पहुंचेगा उसे ही युद्घों में सबसे आगे रहने का गौरव मिलेगा। ये किला बादशाह जहांगीर के नियंत्रण में था आैर उस वक्त फतेहपुर का नवाब समस खां वहां का किलेदार था।
युद्घ शुरू हुआ और शक्तावत दुर्ग के फाटक पर पहुंचकर इसे तोड़ने की कोशिश करने लगे तो चूण्डावतों ने रस्सी के सहारे दुर्ग पर चढ़ने की कोशिश की। कहते हैं कि जब दुर्ग को तोड़ने के लिए शक्तावतों ने हाथी को आगे बढ़ाया गया तो वह सहमकर पीछे हट गया। फाटक पर नुकीले शूल थे, जिसके कारण वह आगे बढ़ने से हिचकिचा रहा था। ये देखकर शक्तावतों के सरदार बल्लू अपना सीना शूलों से अड़ाकर खड़े हो गए। उन्होंने महावत को हाथी को आगे बढ़ाने का हुक्म दिया। महावत से जब ऐसे करते न बना तो उन्होंने कठोर शब्दों में एेसा करने के लिए कहा। महावत ने उनका हुक्म मानते हुए हाथी को आगे बढ़ाया और सरदार बल्लू के सीने को नुकीले शूलों ने बींध दिया। उन्होंने इस युद्घ में वीरता पाई। सरदार बल्लू का बलिदान देखकर वहां पर मौजूद हर कोर्इ उनके आगे नतमस्तक था।
चूंण्डावतों ने ये देखा तो उन्हें लगा कि शक्तावत इस तरह से किले में पहले पहुंचने में कामयाब हो जाएंगे। यह देखकर चूण्डावताें के सरदार जैतसिंह चूण्डावत ने अपने सिपाहियों काे वो आदेश दिया जिसे सुनकर आज भी लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते हैं। उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि दुर्ग में पहले पहुंचने की शर्त को पूरा करने के लिए मेरे सिर को काटकर किले के अंदर फेंक दो। कहते हैं कि जब उनके साथी एेसा करने को तैयार नहीं हुए तो उन्हेांने खुद अपना सिर काटकर किले में फेंक दिया।



शक्तावत जब फाटक तोड़कर अंदर घुसे तो उन्हें वहां पर चूडावतों के सरदार जैतसिंह चूडावत का मस्तक किले के अंदर दिखा। चूडावतों ने हरावल का अधिकार अपने पास रखा। ये युद्घ दिखाता है कि राजपूताना की मिट्टी में पैदा होने वाले वीर अपने जीवन के लिए नहीं बल्कि अपने सम्मान के लिए जीते हैं और इसके लिए वे स्वयं का बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटते।


The Mewar Rajputs bravery and sacrifice in the race to keep “हरावळ” with their clan had over shadowed the capture of Oontala. 


Battle of Oontala !


Rana Amar Singh valiantly continued the policy of opposition like his father &  Oontala was the target. 

Chundawats held right to Vanguard of Mewar equally asserted by Shaktawats. Rana decided “one who reaches inside first will be vanguard” !
Gauntlet thrown Proud clans of Sisodia were now competitors in glory.



Shaktawats went directly for the huge gates while Chundawats tried scaling the walls.
Chundawat chief led the escalade but a ball rolled him back, while the elephant of Shaktawat deterred to take on the spikes on the Gate.


Shaktawat placed himself at head of spikes to cushion to elephant. Gates were flung open & clansmen rushed in.
Alas, Harawal remained with Chundawats, lifeless body of their chief was in the fort.

Deogarh Thakur called “वेंड़ो ठाकुर” (madman) lanced his way & threw the corpse in.


The fort was run over by the Sisodias led by Chundawats & Shaktawats. Mughals fell to their swords.

The standard of Mewar was erected over Oontala but not before it lost its bravest sons, the chiefs of Chundawats & Shaktawats. Chundawat leader was Jait Singh Chundawat, ancestor of Krishnawat Chundawats of Salumber and Saktawat who placed himself on spikes in front of elephant was Ballu Saktawat, third son of Shakti Singh.

How does one defeat a Warrior Rajputs clans that has such a level of sacrifice brewed in their quarks?
The number game may impact the outcome, but they never worried about it as it was always about Victory or Martyrdom..

There was a complete dearth & absence of the concept of "defeat"..






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