ब्रिगेडियर राज़ेन्द्रसिंह ज़म्वाल
( देश के पहले महावीर चक्र से सम्मानित हुए )
जम्मू के इस डोगरा राजपूत योद्धा ने बचाया था कश्मीर को
श्रीनगर। रावलाकोट, मुजफ्फराबाद और उसके बाद चकोटी तक कब्जा कर चुके छह हजार से ज्यादा कबाइलियों व छह जैक के गद्दार जवानों के संग 23 अक्टूबर 1947 को जब पाक सेना ने श्रीनगर की तरफ कदम बढ़ाए तो उन्हें जरा भी गुमान नहीं था कि आगे खून के आंसू रुलाने वाला खड़ा होगा।
उसी रणबांकुरे की याद दिलाता मूक स्मारक स्थल लाल चौक से करीब 60 किलोमीटर दूर श्रीनगर-उड़ी राजमार्ग पर है। ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह ने तीन दिन तक दुश्मन का कड़ा मुकाबला करते हुए कश्मीर पर रातोंरात कब्जा करने की उसकी मंशा पर पानी फेर दिया था। देश के पहले महावीर चक्र विजेता और कश्मीर के रक्षक कहलाने वाले ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह जंवाल ने 68 साल पहले 27 अक्टूबर 1947 को यहीं कबाइलियों का मुकाबला करते हुए शहादत पाई थी।
जम्मू के जीजीएम साइंस कालेज से ग्रेजुएशन करने वाले ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह ने 14 जून 1921 को जम्मू कश्मीर आर्म्ड फोर्स में कमीशन लिया था और वह मई 1942 में ब्रिगेडियर की रैंक पर पहुंचे थे। 25 सितंबर 1947 को मेजर जनरल रैंक के पदोन्नत हुए।
22 अक्टूबर को महाराज हरिसिंह ने जब मुजफ्फराबाद पर पाक सेना के कब्जे की खबर सुनी तो उन्होंने खुद दुश्मन से मोर्चा लेने का फैसला करते हुए सैन्य वर्दी पहनकर ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह को बुलाया। सिंह ने महाराजा को मोर्चे से दूर रहने के लिए मनाते हुए खुद दुश्मन का आगे जाकर मुकाबला करने का निर्णय लिया।
राजेंद्रसिंह महाराजा के साथ बैठक के बाद जब बादामी बाग पहुंचे तो वहां 150 के करीब सिपाही मिले। इनमें भी अधिकांश रसोइए, धोबी और सेना में अन्य सेवाएं उपलब्ध कराने वाले थे।
सभी साथी शहीद हुए, मगर हिम्मत नहीं हारी... पढ़ें अगले पेज पर...
23 अक्टूबर 1947 की सुबह तड़के उड़ी पहुंचे ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह ने उड़ी नाले पर एक प्लाटून को तैनात किया व उसके बाद खुद गढ़ी के लिए रवाना हो गए। गढ़ी में दुश्मन के साथ खूरेंज झड़प हुई। हालांकि दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचा, लेकिन वह हावी होने लगा। स्थिति की विकटता को समझते हुए ब्रिगेडियर ने पीछे हटने और कबाइलियों को उड़ी के पास रोकने का फैसला किया। उन्होंने सैन्य मुख्यालय को संपर्क कर अपने लिए अतिरिक्त कुमुक मांगी, क्योंकि उनके साथ जो जवान आए थे उनमें से अधिकांश खेत रहे थे।
मुख्यालय में मौजूद ब्रिगेडियर फकीरसिंह ने उन्हें 70 आदमी भेजने का यकीन दिलाया। इसी दौरान महाराजा ने खुद मुख्यालय में कमान संभालते हुए कैप्टन ज्वालासिंह को एक लिखित आदेश के संग उड़ी भेजा। इसमें कहा गया था ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह को आदेश दिया जाता है कि वह हर हाल में दुश्मन को आखिरी सांस और आखिरी जवान तक उड़ी के पास ही रोके रखें। कैप्टन सिंह 24 अक्टूबर की सुबह एक छोटी सैन्य टुकड़ी के संग उड़ी पहुंचे। उन्होंने सैन्य टुकड़ी ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह को सौंपते हुए महाराजा का आदेश सुनाते हुए खत थमाया।
हालात को पूरी तरह से विपरीत और दुश्मन को मजबूत समझते हुए ब्रिगेडियर ने कैप्टन नसीबसिंह को उड़ी नाले पर बने एक पुल को उड़ाने का हुक्म सुनाया, ताकि दुश्मन को रोका जा सके। इससे दुश्मन कुछ देर के लिए रुक गया, लेकिन जल्द ही वहां गोलियों की बौछार शुरू हो गई। करीब दो घंटे बाद दुश्मन ने फिर हमला बोल दिया।
इस पर राज्य के सैन्य प्रमुख ने महाराजा के आदेश को भुलाकर उड़ी से हटने और माहूरा में दुश्मन को रोकने का फैसला किया। वह 24 अक्टूबर की रात को 10 बजे माहूरा पहुंचे और वहां उन्होंने मोर्चाबंदी कर ली। अगली सुबह सात बजे दुश्मन ने फिर धावा बोल दिया, लेकिन जवाब इतना कड़ा मिला कि दुश्मन को अपने कुछ जवानों को झेलम के रास्ते आगे बढ़कर ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह पर नजदीक से हमला करने का आदेश देना पड़ा।
दुश्मन की इस चाल को भांपते हुए ब्रिगेडियर सिंह के आदेश पर कैप्टन ज्वालासिंह ने सभी पुलों को उड़ा दिया। यह काम शाम साढ़े चार बजे तक समाप्त हो चुका था। लेकिन कई कबाइली पहले ही इस तरफ आ चुके थे। इसके बाद ब्रिगेडियर ने रामपुर में दुश्मन को रोकने का फैसला किया और रात को ही वहां पहुंचकर उन्होंने अपने लिए खंदकें खोदीं।
रातभर खंदकें खोदने वाले जवानों को सुबह तड़के ही दुश्मन की गोलीबारी झेलनी पड़ी। मोर्चाबंदी इतनी मजबूत थी कि पूरा दिन दुश्मन गोलाबारी करने के बावजूद एक इंच नहीं बढ़ पाया। दुश्मन की एक टुकड़ी ने पीछे से आकर सड़क पर अवरोधक तैयार कर दिए, ताकि महाराजा के सिपाहियों को वहां से निकलने का मौका नहीं मिले।
ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह को दुश्मन की योजना का पता चल गया और उन्होंने 27 अक्टूबर की सुबह एक बजे अपने सिपाहियों को पीछे हटने और सेरी पुल पर डट जाने को कहा। पहला अवरोधक तो उन्होंने आसानी से हटा लिया, लेकिन बोनियार मंदिर के पास दुश्मन की फायरिंग की चपेट में आकर राज्य के सिपाहियों के वाहनों का काफिला थम गया।
पहले वाहन का चालक दुश्मन की फायरिंग में शहीद हो गया। इस पर कैप्टन ज्वालासिंह ने अपनी गाड़ी से नीचे आकर जब देखा तो पहले तीनों वाहनों के चालक मारे जा चुके थे, लेकिन उन्हें ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह नजर नहीं आए, वह अपने वाहन चालक के शहीद होने पर खुद ही वाहन लकर आगे निकल गए थे। सेरी पुल के पास दुश्मन की गोलियों का जवाब देते हुए वह बुरी तरह जख्मी हो गए।
उनकी दाई टांग पूरी तरह जख्मी थी। उन्होंने उसी समय अपने जवानों को आदेश दिया कि वह पीछे हटें और दुश्मन को रोकें। उन्हें जब सिपाहियों ने उठाने का प्रयास किया तो वह नहीं माने और उन्होंने कहा कि वह उन्हें पुलिया के नीचे आड़ में लिटाएं और वह वहीं से दुश्मन को राकेंगे। 27 अक्टूबर 1947 की दोपहर को सेरी पुल के पास ही उन्होंने दुश्मन से लड़ते हुए वीरगति पाई।
अलबत्ता, 26 अक्टूबर 1947 की शाम को जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को लेकर समझौता हो चुका था और 27 अक्टूबर को जब राजेंद्रसिंह शहीद हुए तो उस समय कर्नल रंजीत राय भारतीय फौज का नेतृत्व करते हुए श्रीनगर एयरपोर्ट पर पहुंच चुके थे।
हालांकि कई लोग कहते हैं कि ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह ने उड़ी से हटकर महाराजा के आदेश का उल्लंघन किया था। युद्ध विशेषज्ञों का दावा है कि अगर वह पीछे नहीं हटते तो कबाइली 23 अक्टूबर की रात को ही श्रीनगर में होते। ब्रिगेडियर राजेंद्रसिंह ने जो फैसला लिया था वह कोई चालाक और युद्धक रणनीति में माहिर व्यक्ति ही ले सकता था। उनके इसी फैसले और शहादत के कारण कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बनने से बचा है।
ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह को मरणोपरांत देश के पहले महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा ने 30 दिसंबर 1949 को जम्मू संभाग में बगूना-सांबा के इस सपूत की वीर पत्नी रामदेई को सम्मानित किया था।
He immortalized fighting Pakistani raiders in 1947 and is the first recipient of any gallantry award in Independent India. With just 100 DOGRA troops, BRIGADIER RAJINDER SINGH defended Kashmir against 6000 Pakistanis at Uri for four days in 1947.
Had he not been deceived by his own troops, who joined hands with the raiders, there would have been no POK today.
Brig Rajinder Singh, India’s first MVC recipient was a rare military leader. In 1947, with 100 soldiers, the Dogra General stopped a 6000 strong Pak force from overrunning Kashmir.
Brigadier Rajinder Singh was born on 14th June,1899 in Bagoona village (now re-named as Rajinderpura) of Samba district to Subedar Lakha Singh. He was Jamwal Rajput from Jammu who rose to command the State Forces of J&K.
His heroic ancestor General Baj Singh Jamwal had sacrificed his life in the defence of Chitral.
He was Chief of Military Staff of the JK State Forces, & the first Mahaveer Chakra Awardee of Independent India. Brigadier Rajinder Singh Jamwal was decorated with the second highest gallantry award the Mahavir Chakra posthumously and most deservedly so.
Brigadier Rajinder Singh Jamwal saved the Kashmir Valley from falling into the hands of Pakistani Raiders.
Brigadier Rajinder Singh Jamwal was one of the main reasons why Srinagar is today in India and not in Pakistan. He was a brave soldier.
Brigadier Rajinder Singh Jamwal's small contingent defended Jammu and Kashmir for four days and prevented it from falling into Pakistan's hands.
For the people of Jammu, Brigadier Rajinder Singh Jamwal is known as the ‘Immortal Dogra’ and the ‘Saviour of Kashmir’. He continues to be an inspiration for people across Jammu, and almost every household has one or two members serving in the armed forces, many defending the border and the Kashmir valley.
Immediately after the partition of the Indian Sub continent in 1947, thousands of raiders assisted by Pakistani regulars invaded the State of Jammu and Kashmir all along its border.
The Jammu and Kashmir State Forces, stretched along a 550-mile long border deployed in penn-packets with limited arms, ammunition and supplies, without road communications, and heavily-outnumbered, fought tenaciously holding on to their positions. Kohla-Domel garrison fell to the invaders on 22 October 1947. The fate of the Valley as of the whole State hung precariously on a slender thread.
When Brig Singh took over as chief of staff of Dogra state forces, Kashmir was going through its worst days kabali jihadis were making occasional raids into Kashmir, killing and raping non Muslims. Indian wouldn't send troops until instrument of accession was signed. Maharaja Hari singh was very happy to sign instrument of accession and merge Kashmir into India, provided Sheikh Abdullah not be made prime minister of Kashmir. Maharaja Hari Singh knew of Abdullah's treachery but Nehru would accept accession until his friend Abdullah wasn't made PM.
Under these conditions, Brig Rajinder Singh received the distressing news that
every single Muslim soldier of 4 JAK battalion, without a single exception, killed Hindu comrades while the latter were sleeping and joined hands with Pakistan. Such desertions happened everywhere. Due to desertion and cold blooded murder of their Gorkha and Sikh comrades by Muslim troops, Muzaffarabad was lost to Pakistan.
On the fateful night of 21/22 October 1947, the Muslim element of the 4th Jammu and Kashmir Infantry, located at Lohargali and Ramkot, swept by religious fanaticism, forgot their oath of loyalty toward their ruler and the state, joined hands with enemy and led him to pre-arranged positions in the area around Muzaffarabad and Domel, in what was to become most treacherous and dastardly act in the military history. Muslim companies of 4 JAK battalion defending Muzaffrabad switched sides, killing their commanding officer Lt Col Narain Singh Sambyal and all other Hindu officers and Jawans.
Very few survived to tell the tale. It was a severe treachery and a great blow to the defence of J&K.
Brig Rajinder Singh decided he would himself face attackers and defend Uri. He had at his disposal only about 150 troops. Brig Rajinder Singh Jamwal and his 150 odd troops at Uri withstood a 8,000 strong Pakistani Qabali army and stopped their advances into Srinagar for 4 days, in addition to helping refugees cross the border and protecting civilians near the border. He fought last man & last bullet, caused famous delay of Pak Raiders, he held out despite odds before Indian Army landed on 27 October1947 & Srinagar was saved.Brig Rajinder inspired his troops as the finest example of leading from front. The last sighting of him, lying wounded & alone with a pistol, his heroism of leading a 100 odd rif-raf army of brave Dogra men that kept the enemy at bay for 4 days, giving vital time for JK to be integrated with India. His heroism deserves a Bharat Ratna.
Brig Rajinder Singh Jamwal and his band of brave soldiers carried out the orders of the Maharaja Hari Singh to the letter and spirit. Fighting bravely for every inch of land. They delayed enemy advance by two crucial days during which important decisions were taken.
The Indian Army joined the fight and the Jammu and Kashmir State was thus saved for India by Brave Soldier Brigadier Rajinder Singh Jamwal. Brig Rajinder Singh Jamwal made the supreme sacrifice of his life on the night of 26-27 October 1947 valiantly fighting the Pakistani raiders in Uri-Rampur sector.
He was promoted to the rank of Brigadier in the Indian Army after Jammu Kashmir state forces joined Indian Army. He had the rank of General in the state forces at the time of his martyrdom.
Actually, the rank of Brigadier was in the Indian army, but it was after the merger of state forces into the Indian army. It was after his martyrdom. He was General in Jammu Kashmir State Forces. We must remember the will and the sacrifice that has kept the Union of India together.
Our history is a testimony to how our country is a more enduring force than the blind fury of the misguided and the resolve of the cowards.
BRIGADIER RAJINDER SINGH when immortalized himself, he left behind his wife and five daughters.
Brigadier Rajinder Singh is rightly known as the saviour of Kashmir.
Smt Urvashi Pathania Ji, eldest daughter of Brig Rajinder Singh Jamwal with the family at the National War Memorial, New Delhi paying floral tribute to Father, the recipient of the first gallantry Award of independent India, the MVC posthumously, for saving Kashmir in 1947.
Smt Ram Dei, his wife received MVC on behalf of him from GENERAL K M CARIAPPA.
Brigadier Rajinder Singh Jamwal was the first war hero of independent India who sacrificed his life for Jammu and Kashmir while fighting Pakistani invaders.
Not only Jammu and Kashmir, but the entire nation should honor the sacrifice of Independent India’s first war hero. 🙏 Our homage to the saviour of Kashmir.
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