Thursday, April 6, 2023

|| ॐ हनुमते नमः ||

 


अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामाग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशंरघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत सुमेरु के समान शरीर वाले, दैत्य रूपी वन का ध्वंस करने के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवन पुत्र श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूं।

आश्विनस्यसिते पक्षे स्वात्यां भौमे चतुर्दशी।
मेशलग्नेञ्जनीगभांत् स्वयं जातो हरः शिवः।।

अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में, चतुर्दशी तिथि को मंगल के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लगन में माता अंजना के गर्भ से स्वयं भगवान शिव हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए। इस तथ्य के अनुसार सूर्य कन्या राशि में स्थित है एवं चंद्र सूर्य से कम अंशों पर है अर्थात स्वाति नक्षत्र नहीं हो सकता।

शकुलादिमासगणनया आश्विनकृष्ण कार्तिककृष्ण, तुलार्केमेषलग्ने सायंकाले।
अतश्चतुर्दश्यां सायंकाले जन्मोत्सव।।

अर्थात शुक्लादि मास गणनानुसार अश्विन कृष्ण पक्ष एवं कृष्णादि मास गणनानुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष, चतुर्दशी को, तुला के सूर्य में, मेष लग्न में सांयकाल को श्री हनुमान जी का अवतार हुआ। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि हनुमान जी का अवतार मास अश्विन शुक्लादि है न कि कृष्णादि। अतः मास प्रवेश में सूर्य अवश्य कन्या राशि में था, लेकिन मास समाप्ति के समय जब कृष्ण चतुर्दशी थी तब वह तुला के मध्य या उच्चांश पर स्थित था। इसी कारण चंद्रमा भी तुला में स्वाति नक्षत्र में स्थित था।

पंचांगों के अनुसार चैत्र पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र में हनुमान जी की अवतार दिवस मनाई जाती है। लेकिन हनुमान जी की माता अंजना जी को उनकी कठोर तपस्या के पश्चात इस दिन वायु देवता ने पुत्र का वरदान दिया था। उसके कुछ समय पश्चात उन्होंने महाराष्ट्र प्रदेश में नासिक के पास अंजना नेरी पर्वत की एक गुफा में श्री हनुमान जी को जन्म दिया। अतः चैत्र पूर्णिमा उचित रूप में अवतार दिवस नही है।


Saturday, April 1, 2023

| ॐ द्यौहा शांतिरान्तरिक्षं शांतिहि |


एक संत एक बार अपने शिष्यों के साथ मछुआरे के जल में मछलियों का फसना देख रहे थे। जाल में कुछ मछलियां शांत थी, कुछ जाल से निकलने का प्रयास कर रही थी और कुछ अपने प्रयत्न से जाल से मुक्त हो गयी थी। संत शिष्यों ने कहा, मछलियों की तरह ही मनुष्य भी तीन प्रकार के होते है। एक तो वे जो बंधन स्वीकार कर भवजाल से मुक्त होने का प्रयास नही करते, दूसरे वे जो वीरों की तरह प्रयास करते हैं पर असफल रहते हैं, तीसरे वे जो अपने चरम प्रयत्न द्वारा ही मुक्ति पाते हैं। इस पर गुरुदेव ने कहा मेरे बच्चों एक चौथी श्रेणी और होती हैं। इसमें लोग उन मछलियों की तरह होते हैं, जो जाल के समीप ही नहीं जाती और उनके फंसने के सवाल ही नही पैदा होता। ऐसा कहते हुवे उन्होंने एक दृष्टांत भी दिया कि एक बार एक महारानी का हार कहीं खो गया । राजा ने नगर में घोषणा कर दी कि जिस व्यक्त्ति को हार मिला हो, वह तीन दिन के भीतर वापस कर दे, अन्यथा उसे मृत्युदंड का भागी होना पड़ेगा। यह संयोग था कि वह हार एक सन्यासी को मिला था। उसने यह सोचकर हार रख लिया कि कोई हार ढूंढता हुवा आएगा तो उसे दे देगा। उसने अगले दिन राजा की घोषणा सुनी, पर वह हार देने नही गया। वह अपनी तपस्या में लीन रहा। जब तीन दिन गुजर गए। तो चौथे दिन सन्यासी हर लेकर राजा के पास गया तो उसे मालूम चला कि वह तीन दिनों से हार अपने पास रखे था। इसपर क्रोधित हुवे राजा बोला, क्या तुमने मेरी घोषणा नही सुनी थी?

सन्यासी ने जवाब दिया, राजन, घोषणा तो मैंने सुनी थी, पर जानभुझकर हार देने नही आया। लोग भी क्या कहते, एक सन्यासी होकर मैं मृत्यु से भयभीत हो गया। संन्यासी की बात पर राजा ने फिर पूंछा, तो आज चौथे दिन क्यो आये हो।

इस पर संन्यासी ने कहा, मुझे मृत्यु का भय नही, पर पाप का जरूर भय है। किसी दूसरे की संपत्ति को अपने पास रखना पाप है। मैं संन्यासी हूँ, पापी नहीं। संन्यासी का ऐसा उत्तर सुन राजा का क्रोध शांत हो गया क्योंकि संन्यासी उस चौथी श्रेणी के जलचर की तरह जल में रहते हुए भी माया जाल से दूर था। इसलिए उसमे फसने से दूर रहा। यही आदर्श स्थिति है कि हम अपनी इच्छाओं, कामनाओं को नियंत्रित रखें और दूसरों से किसी प्रकार के लाभ, सहयोग पक्षपात की अपेक्षा से विरक्त रहें इससे हम मानसिक क्लेश से बच सकते हैं।