Friday, November 18, 2016

Paramveer Major Shaitan Sinh Bhati with 119 Men Saved Ladakh From China 55 years ago. This Is The Story Of The Greatest Last Stand Ever At Rezang La!

चरण चढाई भौम
रजपूताँ इण मुलक रै

हेमाळे सिर होम
साख भरी सैतानसी

मरणोपरांत परमवीर मेजर शैतान सिंह जी भाटी को शहादत दिवस पर शत शत नमन 

जैसलमेर का प्राचीनतम इतिहास भाटी शूरवीरों की रण गाथाओं से भरा पड़ा है। जहाँ पर वीर अपने प्राणों की बाजी लगा कर भी रण क्षेत्र में जूझते हुए डटे रहते थे। मेजर शेतान सिंह की गौरव गाथा से भी उसी रणबंकुरी परम्परा की याद ताजा हो जाती है। स्वर्गीय आयुवान सिंह ने परमवीर मेजर शैतान सिंह के वीरोचित आदर्श पर दो शब्द श्रद्धा सुमन के सद्रश लिपि बद्ध किये है। कितने सार्थक है:—

रजवट रोतू सेहरो भारत हन्दो भाण
दटीओ पण हटियो नहीं रंग भाटी सेताण

जैसलमेर जिले के बंसार (बनासर) गांव के ले.कर्नल हेमसिंह भाटी के घर १ दिसम्बर १९२४ को जन्में इस रणबांकुरे ने मारवाड़ राज्य की प्रख्यात शिक्षण संस्था चैपासनी स्कुल से शिक्षा ग्रहण कर एक अगस्त १९४९ को कुमाऊं रेजीमेंट में सैकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्ति प्राप्त कर भारत माता की सेवा में अपने आपको प्रस्तुत कर दिया था। मेजर शैतान सिंह के पिता कर्नल हेमसिंह भी अपनी रोबीली कमांडिंग आवाज, किसी भी तरह के घोड़े को काबू करने और सटीक निशानेबाजी के लिये प्रख्यात थे।

१८ नवम्बर १९६२ की सुबह अभी हुई ही नहीं थी, सर्द मौसम में सूर्यदेव अंगडाई लेकर सो रहे थे अभी बिस्तर से बाहर निकलने का उनका मन ही नहीं कर रहा था, रात से ही वहां बर्फ गिर रही थी। हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड के साथ ऐसी ठंडी बर्फीली हवा चल रही थी जो इंसान के शरीर से आर-पार हो जाये और इसी मौसम में जहाँ इंसान बिना छत और गर्म कपड़ों के एक पल भी नहीं ठहर सकता, उसी मौसम में समुद्र तल से १६,४४० फुट ऊँचे चुशूल क्षेत्र के रेजांगला दर्रे की ऊँची बर्फीली पहाड़ियों पर आसमान के नीचे, सिर पर बिना किसी छत और काम चलाऊ गर्म कपड़े और जूते पहने सर्द हवाओं व गिरती बर्फ के बीच हाथों में हथियार लिये ठिठुरते हुए भारतीय सेना की thirteen वीं कुमाऊं रेजीमेंट की सी कम्पनी के one hundred twenty जवान अपने सेनानायक मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में बिना नींद की एक झपकी लिये भारत माता की रक्षार्थ तैनात थे।

एक और खुली और ऊँची पहाड़ी पर चलने वाली तीक्ष्ण बर्फीली हवाएं जरुरत से कम कपड़ों को भेदते हुये जवानों के शरीर में घुस पुरा शरीर ठंडा करने की कोशिशों में जुटी थी वहीँ भारत माता को चीनी दुश्मन से बचाने की भावना उस कड़कड़ाती ठंड में उनके दिल में शोले भड़काकर उन्हें गर्म रखने में कामयाब हो रही थी। यह देशभक्ति की वह उच्च भावना ही थी जो इन कड़ाके की बर्फीली सर्दी में भी जवानों को सजग और सतर्क बनाये हुये थी।

अभी दिन उगा भी नहीं था और रात के धुंधलके और गिरती बर्फ में जवानों ने देखा कि कई सारी रौशनीयां उनकी और बढ़ रही है चूँकि उस वक्त देश का दुश्मन चीन दोस्ती की आड़ में पीठ पर छुरा घोंप कर युद्ध की रणभेरी बजा चूका था, सो जवानों ने अपनी बंदूकों की नाल उनकी तरफ आती रोशनियों की और खोल दी। पर थोड़ी ही देर में मेजर शैतान सिंह को समझते देर नहीं लगी कि उनके सैनिक जिन्हें दुश्मन समझ मार रहे है दरअसल वे चीनी सैनिक नहीं बल्कि गले में लालटेन लटकाये उनकी और बढ़ रहे याक है और उनके सैनिक चीनी सैनिकों के भरोसे उन्हें मारकर अपना गोला-बारूद फालतू ही खत्म कर रहे है।

दरअसल चीनी सेना के पास खुफिया जानकारी थी कि रेजांगला पर उपस्थित भारतीय सैनिक टुकड़ी में सिर्फ one hundred twenty जवान है और उनके पास three hundred-four hundred राउंड गोलियां और महज one thousand हथगोले है अतः अँधेरे और खराब मौसम का फायदा उठाते हुए चीनी सेना ने याक जानवरों के गले में लालटेन बांध उनकी और भेज दिया ताकि भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म हो जाये। जब भारतीय जवानों ने याक पर फायरिंग बंद कर दी तब चीन ने अपने २००० सैनिकों को रणनीति के तहत कई चरणों में हमले के लिए रणक्षेत्र में उतारा।

मेजर शैतान सिंह Number one Shaitan Singh ने वायरलेस पर स्थिति की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को देते हुये समय पर सहायता मांगी पर उच्चाधिकारियों से जबाब मिला कि वे सहायता पहुँचाने में असमर्थ है आपकी टुकड़ी के थोड़े से सैनिक चीनियों की बड़ी सेना को रोकने में असमर्थ रहेंगे अतः आप चैकी छोड़ पीछे हट जायें और अपने साथी सैनिकों के प्राण बचायें। उच्चाधिकारियों का आदेश सुनते ही मेजर शैतान सिंह के मस्तिष्क में कई विचार उमड़ने घुमड़ने लगे। वे सोचने कि उनके जिस वंश को उतर भड़ किंवाड़ की संज्ञा सिर्फ इसलिये दी गई कि भारत पर भूमार्ग से होने वाले हमलों का सबसे पहले मुकाबला जैसलमेर के भाटियों ने किया, आज फिर भारत पर हमला हो रहा है और उसका मुकाबला करने को उसी भाटी वंश के मेजर शैतान सिंह को मौका मिला है तो वह बिना मुकाबला किये पीछे हट अपने कुल की परम्परा को कैसे लजा सकता है?

और उतर भड़ किंवाड़ कहावत को चरितार्थ करने का निर्णय कर उन्होंने अपने सैनिकों को बुलाकर पूरी स्थिति साफ साफ बताते हुये कहा कि – मुझे पता है हमने चीनियों का मुकाबला किया तो हमारे पास गोला बारूद कम पड़ जायेगा और पीछे से भी हमें कोई सहायता नहीं मिल सकती, ऐसे में हमें हर हाल में शहादत देनी पड़ेगी और हम में से कोई नहीं बचेगा। चूँकि उच्चाधिकारियों का पीछे हटने हेतु आदेश है अतः आप में से जिस किसी को भी अपने प्राण बचाने है वह पीछे हटने को स्वतंत्र है पर चूँकि मैंने कृष्ण के महान युदुवंश में जन्म लिया है और मेरे पुरखों ने सर्वदा ही भारत भूमि पर आक्रमण करने वालों से सबसे पहले लोहा लिया है, आज उसी परम्परा को निभाने का अवसर मुझे मिला है अतः मैं चीनी सेना का प्राण रहते दम तक मुकाबला करूँगा, यह मेरा दृढ निर्णय है।


अपने सेनानायक के दृढ निर्णय के बारे में जानकार उस सैन्य टुकड़ी के हर सैनिक ने निश्चय कर लिया कि उनके शरीर में प्राण रहने तक वे मातृभूमि के लिये लड़ेंगे चाहे पीछे से उन्हें सहायता मिले या ना मिले. गोलियों की कमी पूरी करने के लिये निर्णय लिया गया  कि एक भी गोली दुश्मन को मारे बिना खाली ना जाये और दुश्मन के मरने के बाद उसके हथियार छीन प्रयोग कर गोला-बारूद की कमी पूरी की जाय। और यही रणनीति अपना भारत माँ के गिनती के सपूत, २००० चीनी सैनिकों से भीड़ गये, चीनी सेना की तोपों व मोर्टारों के भयंकर आक्रमण के बावजूद हर सैनिक अपने प्राणों की आखिरी सांस तक एक एक सैनिक दस दस, बीस बीस दुश्मनों को मार कर शहीद होता रहा और आखिर में मेजर शैतान सिंह सहित कुछ व्यक्ति बुरी तरह घायलावस्था में जीवित बचे, बुरी तरह घायल हुए अपने मेजर को दो सैनिकों ने किसी तरह उठाकर एक बर्फीली चट्टान की आड़ में पहुँचाया और चिकित्सा के लिए नीचे चलने का आग्रह किया, ताकि अपने नायक को बचा सके किन्तु रणबांकुरे मेजर शैतान सिंह ने इनकार कर दिया। और अपने दोनों सैनिकों को कहा कि उन्हें चट्टान के सहारे बिठाकर लाईट मशीनगन दुश्मन की और तैनात कर दे और गन के ट्रेगर को रस्सी के सहारे उनके एक पैर से बाँध दे ताकि वे एक पैर से गन को घुमाकर निशाना लगा सके और दुसरे घायल पैर से रस्सी के सहारे फायर कर सके क्योंकि मेजर के दोनों हाथ हमले में बुरी तरह से जख्मी हो गए थे उनके पेट में गोलियां लगने से खून बह रहा था जिस पर कपड़ा बाँध मेजर ने पोजीशन ली व उन दोनों जवानों को उनकी इच्छा के विपरीत पीछे जाकर उच्चाधिकारियों को सूचना देने को बाध्य कर भेज दिया।

सैनिकों को भेज बुरी तरह से जख्मी मेजर चीनी सैनिकों से कब तक लड़ते रहे, कितनी देर लड़ते रहे और कब उनके प्राण शरीर छोड़ स्वर्ग को प्रस्थान कर गये किसी को नहीं पता. हाँ युद्ध के तीन महीनों बाद उनके परिजनों के आग्रह और बर्फ पिघलने के बाद सेना के जवान रेडक्रोस सोसायटी के साथ उनके शव की तलाश में जुटे और गडरियों की सुचना पर जब उस चट्टान के पास पहुंचे तब भी मेजर शैतान सिंह की लाश अपनी एल.एम.जी गन के साथ पोजीशन लिये वैसे ही मिली जैसे मरने के बाद भी वे दुश्मन के दांत खट्टे करने को तैनात है।


मेजर के शव के साथ ही उनकी टुकड़ी के शहीद हुए ११४ सैनिकों के शव भी अपने अपने हाथों में बंदूक व हथगोले लिये पड़े थे, लग रहा था जैसे अब भी वे उठकर दुश्मन से लोहा लेने को तैयार है।

इस युद्ध में मेजर द्वारा भेजे गये दोनों संदेशवाहकों द्वारा बताई गई घटना पर सरकार ने तब भरोसा किया और शव खोजने को तैयार हुई जब चीनी सेना ने अपनी एक विज्ञप्ति में कबुल किया कि उसे सबसे ज्यादा जनहानि रेजांगला दर्रे पर हुई। मेजर शैतान सिंह की one hundred twenty सैनिकों वाली छोटी सी सैन्य टुकड़ी को मौत के घाट उतारने हेतु चीनी सेना को अपने 2000 सैनिकों में से 1800 सैनिकों की बलि देनी पड़ी। कहा जाता है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और बलिदान को देख चीनी सैनिकों ने जाते समय सम्मान के रूप में जमीन पर अपनी राइफलें उल्टी गाडने के बाद उन पर अपनी टोपियां रख दी थी। इस तरह भारतीय सैनिकों को शत्रु सैनिकों से सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हुआ था। शवों की बरामदगी के बाद उनका यथास्थान पर सैन्य सम्मान के साथ दाहसंस्कार कर मेजर शैतान सिंह भाटी को अपने इस अदम्य साहस और अप्रत्याशित वीरता के लिये भारत सरकार ने सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया।

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