Sunday, April 14, 2019

RAMLALA



भगवान श्रीराम


श्रीराम परिपूर्णतम भगवान हैं और साथ ही पूर्ण मानव भी। ये अपने निरकारस्वरूपमें सर्वव्यापक हैं, फिर भी भक्तोंका कल्याण करनेके लाये तथा धर्मकी संस्थापनाके लिये समय- समयपर अवतार धारण करते हैं। भगवानके नाम, रूप, लीला और धाम --- ये चारों ही परम सत्य , दिव्य, अप्राकृत, नित्य तथा सैट- चित- आनन्दमय हैं।
बहुत पुरानी बात है, त्रेतायुगमें रावण आदि राक्षसोंके अत्याचार से सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ था, सनातन धर्म की मर्यादाएँ छिन्न- भिन्न हो चुकी थीं। उस दमे देवताओंकी प्रार्थनापर साक्षात नारायण ही श्रीराम, श्रीलक्मन, श्रीभरत और श्रीशत्रुघ्न --- इन चार रूपोंमें अयोध्यामें महाराज दशरथ के यहां प्रकट हुवे। उन्ही दिनों मिथिलामें महाराज सीरध्वज जनक्की पुत्रीक रूपमें भगवान श्रीरामकी की शक्तिस्वरूपा जगन्माता भगवती सीताका भी आविर्भाव हुआ। भगवान श्रीरामकी बल्यकालसे लेकर स्केटधाम पधारनेतककी सम्पूर्ण लीलाएँ धर्म- मर्यादासे ओट- प्रोत हैं। संसारमें जितने भी अचे गुण हैं, जितनी भी अच्छे गुण हैं, जितनी भी अछि बातें हैं, सब भगवानसे ही आयी हैं। उनकी प्रत्येक लीलामें प्राण, दया, क्षमा, सत्य, विनय आदि अनन्त सद्गुण भरे हुवे हैं। अपने आचारणोंके द्वारा, अपनी जीवनचर्याके द्वारा श्रीरामने एक महान, श्रेष्ट एवं सर्वोत्तम आदर्श जीवनकी स्थापना की है और मनुष्योंको धर्माचरणकी शिक्षा प्रदान की है। इनके उपदेशों एवं आचरणके अनुसार थोड़ी भी चेष्टा होने लगे तो इसमें उसकी कृपा समझनी चाहिये।

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