Saturday, April 2, 2022

नव संवत्सर पर्व


अद्यतनं दिनम् (वत्सरस्य प्रथमो दिवसः)
महाकल्पसंवत् -१५५५२१९७२९४९०८७
कल्पसंवत्- १९७२९४९०८७
कलिसंवत्- ५०८७
महाभारतयुद्ध(युधिष्ठिर) संवत् - ५१२३ (प्रचलने ५१२२) 
नव संवत्सर विक्रम संवत २०७९
युग -ऐन्द्राग्न
वत्सरनाम- परिवत्सर (प्रमादी)
उत्तरायणम् (उदगयनम्) 
मास:- तपाः =माघः
पक्ष:- शुक्लपक्षः
तिथिः - प्रतिपद् 


वर्ष में मुख्य रूप से दो नवरात्रि में से एक चैत्र नवरात्र भी भारतीय नववर्ष अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही प्रारम्भ होता है । नवरात्र का एक प्रमुख भक्ति और शक्ति का पर्व है।

इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति स्वरूपा देवी के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है।

नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और महाकाली के नौ स्वरुपों की पूजा होती है।

ये नौ देवियाँ हैं –
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

नवरात्रि पर्व, सिद्धिदात्री माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा)* की पूजा का सबसे शुभ अवसर माना जाता है ।

चैत्र प्रतिपदा को वर्षारंभ दिन अर्थात नववर्ष क्यों मनाए?

वर्षारंभ का दिन अर्थात नववर्ष दिन। इसे कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे- संवत्सरारंभ, विक्रम संवत् वर्षारंभ, वर्षप्रतिपदा, युगादि, गुडीपडवा इत्यादि।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने के अनेक कारणों में नैसर्गिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण हैं।

वर्षाणामपि पञ्चानाम् 
     आद्यः संवत्सरः स्मृतः।
ऋतूनां शिशिरश्चाऽपि 
      मासानां माघ एव च ।।
ब्रह्माण्डपुराणे 
वायुपुराणे 
लिङ्गपुराणे च।


वर्षप्रतिपदा (भारतीय नववर्ष) का महत्व



1.ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि-रचना

पुराणों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण किया था, इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

ब्रह्मपुराण के अनुसार 1अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 123* वर्ष पूर्व ब्रह्माजी ने कमल कोष के तीन विभाग भूः भुवः स्वः करके सृष्टि रचने का दृढ़ संकल्प लिया और उनके मन से मरीचि, नेत्रों से अत्रि, मुख से अंगिरा, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगूठे से दक्ष तथा गोद से नारद उत्पन्न हुए।

इसी प्रकार उनके दायें स्तन से धर्म, पीठ से अधर्म, हृदय से काम, दोनों भौंहों से क्रोध, मुख से सरस्वती, नीचे के ओंठ से लोभ लिंग से समुद्र तथा छाया से कर्दम ऋषि प्रकट हुए।

इस प्रकार यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्मा जी के मन और शरीर से उत्पन्न हुआ।


प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।

लंका विजय के पश्चात विभीषण और सुग्रीव के साथ ।पुष्पक विमान द्वारा विदेहकुमारी सीता को वन की शोभा दिखाते हुए योद्धाओं में श्रेष्ठ श्रीरामचन्द्र जी ने किष्किन्धा मे पहुँचकर अंगद को, जिन्होंने लंका के युद्ध में महान् पराक्रम दिखाया था, युवराज पद पर अभिषिक्त किया।

इसके पश्चात लक्ष्मण तथा सुग्रीव आदि के साथ श्रीरामचन्द्र जी जिस मार्ग से आये थे, उसी के द्वारा अपनी राजधानी अयोध्या की ओर प्रस्थित हुए।तत्पश्चात अयोध्यापुरी के निकट पहुँचकर श्रीराम ने हनुमान को दूत बनाकर भरत के पास भेजा।
जब वायुपुत्र हनुमान जी भरत की सारी चेष्टाओं को लक्ष्य करके उन्हें श्रीरामचन्द्रजी के पुन: आगमन का प्रिय समाचार सुनाकर लौट आये, तब श्रीरामचन्द्रजी नन्दिग्राम में आये।

वहाँ आकर श्रीराम ने देखा भरत चीरवस्त्र पहने हुए हैं, उनका शरीर मैल से भरा हुआ है और वे श्रीराम की चरण-पादुकाएँ आगे रखकर कुश आसन पर बैठे हैं। लक्ष्मण सहित पराक्रमी श्रीरामचन्द्रजी भरत तथा शत्रुघ्न से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए। भरत और शत्रुघ्न को भी उस समय बड़े भाई से मिलकर तथा विदेहकुमारी सीता का दर्शन करके महान् हर्ष प्राप्त हुआ।

फिर भरतजी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ अयोध्या पधारे हुए भगवान श्रीराम को अपने पास धरोहर के रूप में रखा हुआ अयोध्या का राज्य अत्यन्त सत्कारपूर्वक लौटा दिया।

और चैत्र शुक्ला एकम् (प्रतिपदा) के पवित्र दिन श्रीराम का राज्याभिषेक संपूर्ण हुआ ।

'
विक्रम संवत' के प्रणेता सम्राट विक्रमादित्य हैं।'

चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम तथा प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं।

उन्होंने ९५ शक राजाओं को पराजित करके भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था।

प्राचीन काल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था।

राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज़ चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नया संवत चलाया..!!

संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। भारतवर्ष में वसंत ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लासपूर्ण है, क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव शृंगार किया जाता है..!!

भारतीय नववर्ष: विक्रम संवत २०७९ की अनंत शुभकामनायें। 'हे भगवन.....!
आपकी कृपा से यह वर्ष कल्याणकारी हो और इस संवत्सर के मध्य में आने वाले सभी अनिष्ट और विघ्न शांत हो जाएं।'

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।। शुभम् भवतु ।।


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