Saturday, May 28, 2022

SHRI RUKMINI KUND - IMMORTAL RAJPUTS


बिलासपुर जिला मुख्यालय से करीब २८-२९ किमी दूर औहर क्षेत्र पड़ता है। वहीं उसी क्षेत्र में एक स्थान है रूकमणी कुंड जो कि आसपास के इलाकों ही नहीं बल्कि पड़ोसी जिलों के लोगों के लिए भी आस्था का केंद्र है। यह स्थान एक जलाशय के रूप में है जो कि पथरीली पहाड़ियों के बीच है।

हजारों साल पहले की बात है कि इस इलाके में बहुत बड़ा सूखा पड़ा । फसलें सूख गईं । पानी के स्त्रोत सूख गए ।लोगों में हाहाकार मच गया । इलाके के लोगों ने गांव के बड़े राजपूत जमीदार से मिलकर गुहार लगाई थी .....चलो कहीं दूसरी जगह चल पड़ते हैं । जहां पीने को पानी मिले । यहां तो पशु भी पानी के बिना हाहाकार कर रहे हैं ।जमीदार ने कहा.... ठीक है । जैसे आप कहेंगे वैसे करेंगे। फिर वह खामोश रहा । अपने बुजुर्गों की भूमि छोड़ने का उसका मन नहीं कर रहा था । ऊधर गांव के लोग लगातार उसे गांव छोड़ने का दबाव डाल रहे थे ।


एक रात उसे सपना आया कि यदि वह अपने बड़े बेटे की बलि देगा तो सूखा खत्म हो जाएगा । आसमान से बादल बरसने लगेंगे । सब तरफ हरियाली छा जाएगी । पानी के स्रोतों में पानी आ जाएगा । यह सपना देख कर जमीदार पसीने पसीने हो गया । उसका सपना टूट गया । वह उठ कर बैठ गया । उसने अपने सपने की बात लोगों से सांझा की ।

उसके बेटे ने कहा कि यदि मेरे बलि देने से गांव में सूखे का प्रकोप समाप्त होता है, तो उसे खुशी होगी । तभी उसकी बहू जो अपने मायके तरेड़ गांव गई हुई थी ,वह अपने ससुराल वापस आ गई । उसे पता चल गया था कि सूखे के कारण लोग गांव छोड़कर कहीं दूसरी जगह जाना चाहते हैं । अपने घर पहुंच कर उसने अपने आंगन में लोगों को इकट्ठे हुए देखा । अपने ससुर को चिंतित भी देखा । उसे भी पिछली रात वैसा ही सपना आया था । जैसे उसके ससुर को आया था । उसने ससुर के मन की बात को भांप लिया । उसका नाम रुकमणी था । रुकमणी ने ससुर से कहा कि आप क्यों चिंता करते हैं ? मैं भी आपके बेटे की तरह हूं । बड़ी हूं । मैं अपना बलि देने के लिए तैयार हूं । मेरी बली दीजिए । मुझे खुशी खुशी होगी यदि मेरी बलि से गांव में सूखे का प्रकोप समाप्त हो जाए ।

आखिर उसकी बात मानी गई । रुकमणी को नई नवेली दुल्हन की तरह सजाया गया और उसे बलि के लिए ले जाया जाने लगा । सतलुज नदी के किनारे ऊपर रपैड़ गांव में बलि देने के लिए उसे डोली में बिठाकर ले जाने की तैयारी हुई ।

जब उसे बलि के लिए ले जाया जाने लगा तो अपशकुन होने लगे । दिन में सियार रोने लगे तो कौओं की बोली करकस हो गई । कुत्ते रोने लगे । जानवर रोने लगे ।

तब रुक्मिणी ने कहा ......अरे जंगली जानवरों तुम ऐसी बोली मत बोलो । मैं तो अपनी बलि देने जा रही हूं ताकि सूखे का प्रकोप समाप्त हो जाए । आखिर उसे बलि वाले स्थान पर ले जाया गया । राज मिस्त्रियों ने एक दीवार में उसे चिनना शुरू कर दिया ।

तब रुक्मणी ने कहा .... उसके पांव नंगे रखना ताकि इन पांव में उसकी सखियां मेहंदी लगा सके । जब राजमिस्त्री दीवारें उसके छाती तक लेकर आ गए तो उसने कहा था की छात्ती नंगी रखना ताकि उसका बेटा दूध पी सके । और जब चिनाई उसके सिर तक पहुंच गई । राजमिस्त्री दीवार चिनते हुए ऊपर पहुंचे तो उसने कहा ..... कि उसके बालों को नंगे रखना ताकि उसके बालों को उसकी सहेलियां संवार सके ।


इस तरह उसने लोगों की भलाई के लिए , समाज के कल्याण के लिए , अपनी बलि दे दी ।

कहते हैं उस समय उसकी छाती से दूध की धार बह गई जो बाद में पानी में परिवर्तित हो गई । देखते-देखते सारा सूखा खत्म हो गया । सब तरफ हरियाली छाने लगी ।पानी के स्त्रोत भर उठे । रुकमणी रपैड़ गांव की थी जो कि सतलुज नदी के समीप था । तरेड़ गांव के लोग इस रुक्मणी कुंड का पानी नहीं पीते थे । वो कहते थे कि यह पानी हमारी बेटी के बलिदान के कारण निकला है । इसे हम नहीं पिएंगे ।

आज भी हर वर्ष वैशाखी के त्यौहार के उपलक्ष में रुक्मणी कुंड में बड़ा भारी मेला लगता है । दूर-दूर से लोग यहां स्नान करने आते हैं । यहां समीप की बगड़ घास को महिलाएं गूंथती हैं, जैसे सिरगुंदी कर रही हों । सिर के बाल गूंथ रही हों । यह सब रुकमणी की याद में किया जाता है । रुकमणी की याद में गीत गाए जाते हैं । रुकमणी दि सुद् सुपने आई ,बडि़यां-बलियां मंगदी पाइयो बडि़यां-बलियां मंगदी......।

रुक्मणी कुंड में पानी एक गुफा से निकलता है । यह पानी दर्जनों गांव की प्यास बुझाता है औहर गांव में सिंचाई के काम आता है । गुफा से लगातार निकलने वाला पानी रुक्मणी के बलिदान की कहानी बयान करता रहता है ।


It is story of Auhar region which was in trouble because of dearth of water despite their repeated efforts to dig a well. Once the Rajput Ruler of Barsandh had a dream that in case his son or daughter in law is offered as a sacrifice, water could come out. Legend is there that a newly married young lady named Rukmani of Taredh Village married to Rundh Family, Rajput ruler of Barsandh village, was buried alive by the side of the spot which was selected for digging a Baoli (Tank). The daughter-in-law, Rukmani offered herself in preference to her husband. She sacrificed her life and the present Rukmani Kund is a result of her courageous act. It is said that she was buried alive at the place where we have this Kund today.


According to Omacanda Hāṇḍā in Buddhist Art & Antiquities of Himachal Pradesh, Up to 8th Century A.D., such stories of Woman sacrifices were common instances in which women were sacrificed to Nāga Devta for the sake of water. Similar stories can be taken into consideration like Rupi Rani of Gushal Village in Lahul Valley, Rani Nayana of Raja Sahil Varman of Chamba, Bichi of Sirmaur and Kandi Rani of Kishtwar in Jammu who were sacrificed to Nāga Devta for the sake of water. Human Sacrifices to Nāga Devta has been one of the most conspicuous features of Austric Tribes.


Grass (baggad) hanging from the walls of the Kund is considered her hair. And it is there because of the magical power of the reservoir water. People tie ribbons, bangles to the grass to offer tribute to Rukmani. It is also believed that the waters of this reservoir can cure skin ailments. Shri Rukmani belonged to Auhar (erstwhile Tared Village) and even today people from Rukmani's village don't drink or bathe in the Kund's waters. Such is the pride they take in their daughter's sacrifice.

No comments:

Post a Comment