Sunday, April 4, 2021

REVOLUTIONARY FREEDOM FIGHTER PANDIT RAM PRASAD BISMIL (TOMAR) - IMMORTAL RAJPUTS

चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?

कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !

साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !

दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद ,
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !

बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना ,
'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है !


 दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा,

एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा।


बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन,

मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा।


यह फ़ज़ले-इलाही से आया है ज़माना वह,

दुनिया की दग़ाबाज़ी दुनिया से उठा दूंगा।


ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल मंे,

हक़ तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा।


बंदे हैं ख़ुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं,

ज़र और मुफ़लिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा।


जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक़,

गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा।


हिम्मत को ज़रा बांधो, डरते हो ग़रीबों क्यों?

शैतानी क़िले में अब मैं आग लगा दूंगा।


ऐ ‘सरयू’ यक़ीं रखना, है मेरा सुख़न सच्चा,

कहता हूं, जुबां से जो, अब करके दिखा दूंगा।

(गुलामी मिटा दो - बिस्मिल)


सारे वतन-पुरोधा चुप हैं कोई कहीं नहीं बोला

लेकिन कोई ये ना समझे कोई खून नहीं खौला

मेरी आँखों में पानी है सीने में चिंगारी है

राजनीति ने कुर्बानी के दिल पर ठोकर मारी है

सुनकर बलिदानी बेटों का धीरज डोल गया होगा

मंगल पांडे फिर शोणित की भाषा बोल गया होगा

सुनकर हिंद - महासागर की लहरें तड़प गई होंगी

शायद बिस्मिल की गजलों की बहरें तड़प गई होंगी

नीलगगन में कोई पुच्छल तारा टूट गया होगा

अशफाकउल्ला की आँखों में लावा फूट गया होगा

मातृभूमि पर मिटने वाला टोला भी रोया होगा

इन्कलाब का गीत बसंती चोला भी रोया होगा

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में हैl


जिस उम्र में हम अपने पैरों पर खड़े होते हैं उस उम्र में बिस्मिल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना अमूल्य योगदान दिया और 30 वर्ष की अवस्था में ही बलिदान हो गए। वह एक साहित्यकार और कवि भी थे और 'बिस्मिल' उनका साहित्य का उपनाम था उर्दू में मतलब होता है घायल या प्रेमी|


हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !

अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !

अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को !

नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !

एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !

सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !

नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,

देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?

काकोरी कांड का केस वो ख़ुद लड़ रहे थे। जज लुइस नें उनकी शानदार अंग्रेजी सुनकर पूछा, "आपने कानून की डिग्री कहाँ से ली है?" बिस्मिल बोले,"

Excuse me sir! a king maker doesn't require any degree! 

आज उसी किंगमेकर का जन्मदिन है।
अफ़सोस की इस देश में कोई बिस्मिल लॉ यूनिवर्सिटी नहीं है।

लॉ यूनिवर्सिटी छोड़िए,मैंने तो आज तक कोई गली,मोहल्ला,शहर,बिल्डिंग,एयरपोर्ट,संस्थान योजना,परियोजना का नाम बिस्मिल जी के नाम से हो ऐसा नहीं सुना।हां लेकिन मुगल आक्रांताओं के नाम से क्या नहीं सुना और देखा है ये बताने के लिए जगह छोटी पड़ जाएगी।

सिर्फ बलिदान हूवे बिस्मिल ही नही,मंगल पांडे, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी,बटुकेश्वर दत्त,चाफेकर बंधु खुदीराम बोस,राजगुरु,अशफाक उल्ला,सुखदेव,और न जाने ऐसे कितने शहीदों के नाम पर शायद न स्मारक है न महाविद्यालय न विश्वविद्यालय न अस्पताल न सड़क,न हवाई अड्डे है

और जो है वो किसके नाम पर है.?

सच्चाई तो ये है की इनके जैसे महान विभूतियों को सरकार के साथ साथ आम लोगों ने भी भुला दिया है। अफ़सोस है की आज इनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर जन समुदाय में अधिकांश लोग मौन हैं । नमन है ऐसे महानायक को।

मेरे चमन को उजाडा जिन्होने
वही फर्जी हरियाली के सपने लाये है
जिन्होने सि़चा वतन को अपने लहु से
उनको बेचकर ही तो ये यहां तक आये है

इस चित्र से हृदय विदीर्ण हो उठा है...स्वंत्रता के नायक ,जिन्होंने खुद को बलिवेदी पर अर्पण कोय उनका परिवार आज गरीबी में जीवन यापन कर रहा है...धिक्कार है उन चोरो पर जिन्होंने उन्हें इतिहास से  मिटाने की कोशिश की...

जिसने कभी कोई खेल नहीं खेला उसके नाम पर खेल का राष्ट्रीय पुरस्कार है। जो कभी कलाकार नहीं रहीं उनके नाम पर अंतरराष्ट्रीय कला संस्थान हैं..जो डॉक्टर नहीं रहे उनके नाम पर अस्पताल है। लेकिन जिसने बिना लॉ की डिग्री के कोर्ट हिलाकर रख दिया उसको हम ठीक से याद करना भी भूल गए हैं।

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,...

यही इस देश की विडम्बना रही, जो जिसका हकदार रहा , उससे वो हक छीनकर दूसरे को दे दिया गया !

कुछ दिन पहले ही एक क्रांतिकारी पिता के क्रांतिकारी पुत्र ने अपने घर की एक तस्वीर साझा की थी,आज ये चलचित्र देख कर विरोधाभास का आभास हुआ। असली क्रांतिकारियों के घरवालों ये हाल है, और जो २१वी सदी में जातिगत राजनीति करके सत्ता में आये, उन्होंने अपने घरों के दरवाज़ों तक मे सोना जड़वा दिया। 

धन्य हो कलयुग की माया 


सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं

ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दुस्तान

देखते की मुल्क सारा यूँ टशन में, थ्रिल में है

आज का लौंडा ये कहता हम तो बिस्मिल थक गए

अपनी आज़ादी तो भैय्या लौंडिया के तिल में है

आज के जलसों में बिस्मिल एक गूंगा गा रहा

औ बहरों का वो रेला नाचता महफिल में है

हाथ की खादी बनाने का ज़माना लद गया

आज तो चड्ढी भी सिलती इंग्लिशों के मिल में है ….

गुलाल चलचित्र के लिए पीयूष मिश्र द्वारा लिखित... सरफरोशी की तम्मना से प्रेरित होके


ये हाल हैं रामप्रसाद विस्मिल (तोमर) के परिवार के..

विस्मिल जी के भतीजे की जुबानी आप भी सुनिए.

गांव,बरबई , मुरैना मध्यप्रदेश

अमर बलिदानी रामप्रसाद सिंह तोमर "बिस्मिल" जी के भतीजे विजेंदर सिंह तोमर तथा धेवते अचल सिंह चौहान जी जो ग्वालियर से पधारे थे उनसे मुलाक़ात करते सर् हुकुम ठाकुर साब (कुंवर अमित सिंह प्रतिहार जी)। इनकी कहानी सुनकर वाक़ई आँख भर आती है कि वास्तविक बलिदानियों के परिवार आज दयनीय अवस्था में हैं तथा सरकारें भी इनकी कोई मदद नहीं करती. 


इनका अकाउंट नंबर मिल गया है जो मदद करना चाहें इनके खाते में सीधे ट्रांसफ़र कर दें,इनके भांजे अचल सिंह चौहान का मोबाइल नम्बर है :- 9997454333 

जाने कितने परिवारों के वंशज जिन्होंने देश के इतिहास में यह दर्ज करवा दिया कि देश को आजादी सिर्फ उन्होंने दिलवाई थी आज मौज की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।


न चाहूं मान - बिस्मिल

 न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना

करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना 

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना

Ram Prasad ‘Bismil’ was a “Kshatriya/Rajput” by Caste. He belong to Tomar Rajputs clan was born on 11 June 1897 at Shahjahanpur, United Province, British India. His father Muralidhar was an employee of Shahjahanpur Municipality.

Ramaprasad learnt Hindi from his father and was sent to learn Urdu from Moulvi. He wanted to join an English medium school and got admission in one of such schools despite his father’s disapproval.


Pandit Ram Prasad Bismil poems


Ram Prasad Ji Tomar wrote this famous poetic piece in his book

'मैं क्रांतिकारी कैसे बना' called:

'अच्छे दिन आने वाले है'


Our heart has the dire desire to die, See! how much force killer apply.
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए-क़ातिल में है !

Let the time come we will tell O Sky! What to tell now what we are to try.
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ ! हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है !


Hope of dy’ing has dragged us here, Landlovers’ rush has increased high.
खीँच कर लाई है हमको क़त्ल होने की उम्म्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-क़ातिल में है !

We dedicate to thee everything O Nation! Our deeds of dare they will notify.
ऐ शहीदे-मुल्के-मिल्लत हम तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है !

Neither there is any zeal or wish, The heart of ‘Bismil’ now wants to die.
अब न अगले बल्वले हैं और न अरमानों की भीड़, सिर्फ मिट जाने की हसरत अब दिले-‘बिस्मिल’ में है !


He was not only a poet, but a brilliant writer too. He wrote many famous gazals, poems and books.

जिन्दगी का राज

चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?

कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !

साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !

दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद ,
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !

बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना ,
'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है !

 Infact these writings were used against him in Kakori Conspiracy Case as well. He was a rare talent. also they have been converted into some musclemen while Ram Prasad ji wrote in Hindu, Urdu and English and his ideas about India makes him an intellectual giant.

This Ghazal of ‘Bismil’ was very much popular amongst all freedom fighters. They used to sing it in a chorus while proceeding to the court for trial.

British Govt. has banned it totally to be published in any of the leading News Paper but small papers continued it’s publishing.


Ram Prasad Bismil Famous Lines

Even if I have to face death a thousand times for the sake of my Motherland, I shall not be sorry. Oh, Lord! Grant me a hundred births in India. But grant me this, too, that each time I may give up my life in the service of the Motherland.


Ram Prasad Bismil books:-

Deshvasiyon ke nam sandesh (A message to my countrymen)
Bolshevikon Ki Kartoot (en: The Bolshevik’s programme)
Yogik Sadhan
Man Ki Lahar (A sally of mind)
Swadhinta ki devi: Catherine
Kakori ke shaheed Ram Prasad Bismil


Slogan of Ram Prasad Bismil


सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

"Sarfaroshi ki tamanna ab hamare dil mein hai, dekhna ki zor kitna baazu-e-qatil mein hai.”

(The desire for revolution is in our hearts, we shall see how much strength lies in the arms of the enemy.)

This revolutionary freedom fighter Ram Prasad Tomar (Bismil) the founding member of HSRA and a great ideologue for young revolutionaries. Ram Prasad ji Tomar was born in a humble background in Shahjahanpur district of UP. His ancestors belonged to Tomardhar area of Morena District in MP.

He was an active participant of Maipuri Conspiracy Case, Kakori Conspiracy and founding member of HSRA.

Bismil showed a talent for writing patriotic poetry. His poem demonstrated a commitment to remove the British control over India.

On 28 January 1918, Bismil published a pamphlet titled Deshvasiyon Ke Nam Sandesh (A Message to Countrymen), which he distributed along with his poem Mainpuri Ki Pratigya (Vow of Mainpuri).

To collect funds for the party looting was undertaken on three occasions in 1918. Soon Police searched for them in and around Mainpuri while they were selling books proscribed by the U.P. Government in the Delhi Congress of 1918. Later when police found them, Bismil absconded with the books unsold.

He was patriotic poet and wrote in Hindi and Urdu using the pen names Ram, Agyat and Bismil.

विद्यार्थी बिस्मिल की भावना

 देश की ख़ातिर मेरी दुनिया में यह ताबीर हो
हाथ में हो हथकड़ी, पैरों पड़ी ज़ंजीर हो

सर कटे, फाँसी मिले, या कोई भी तद्बीर हो
पेट में ख़ंजर दुधारा या जिगर में तीर हो

आँख ख़ातिर तीर हो, मिलती गले शमशीर हो
मौत की रक्खी हुई आगे मेरे तस्वीर हो

मरके मेरी जान पर ज़ह्मत बिला ताख़ीर हो
और गर्दन पर धरी जल्लाद ने शमशीर हो

ख़ासकर मेरे लिए दोज़ख़ नया तामीर हो
अलग़रज़ जो कुछ हो मुम्किन वो मेरी तहक़ीर हो

हो भयानक से भयानक भी मेरा आख़ीर हो
देश की सेवा ही लेकिन इक मेरी तक़्सीर हो

इससे बढ़कर और भी दुनिया में कुछ ताज़ीर हो
मंज़ूर हो, मंज़ूर हो मंज़ूर हो, मंज़ूर हो

मैं कहूँगा ’राम’ अपने देश का शैदा हूँ मैं
फिर करूँगा काम दुनिया में अगर पैदा हूँ मैं

At the age of 20 he founded a revolutionary organization 'Matridevi'.

In 1918, he distributed a pamphlet in Mainpuri along with his peom Mainpuri ki Pratigya. To collect funds for Revolutionary activities, looting was undertaken at 3 locations along with Genda Lal Dixit. He was found guilty in the case, search parties were sent for him, during a shootout he jumped into the river, british though he drowned but he swam underwater and miraculously survived.

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

हो मदान्ध निज निर्माता को गयो हृदय से भूल
रूप-रंग लखि करें चाह सब, को‍उ लखे नहिं शूल
अन्त-समय पद-दलित होयगी निश्चय तेरी धूल
चलत समीर सुहावन जब लौं समय रहे अनुकूल ।

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

यौवन मद-मत्सर में काट्यो, पर-हित कियो न भूल
अम्ब कहाँ से मिल सकता है यदि बो दिए बबूल
नश्वर देह मिले माटी में होकर नष्ट समूल
प्यारे ! घटत आयुक्षण पल-पल जय हरि मंगल मूल

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

For next two years he remained underground and writing several revolutionary books. He got all these books published through his own resources under Sushilmala.

From 1919 to 1920 Bismil remained inconspicuous, moving around various villages in Uttar Pradesh and producing several books.

In 1921, Bismil was among the many people from Shahjahanpur who attended the Ahmedabad Congress. He had a seat on the dias, along with the senior congressman PK Khanna, and the revolutionary Ashfaqulla Khan. Bismil played an active role in the Congress with HM Mohani and got the most debated proposal of Poorna Swaraj passed in the General Body meeting of Congress.
Even when. MK Gandhi was not in favour of this proposal of Poorna Swaraj, but Bismil ji had mobilised support in advance and Gandhi was helpless before the overwhelming demand of Youths. Later Bismil executed a meticulous plan for looting the government treasury carried in a train at Kakori, near Lucknow in U.P.

In 1922, after the Chauri Chaura Case, MK Gandhi immediately stopped the non cooperation movement. Bismil & his group of youths strongly opposed Gandhi in the Gaya session of INC(1922).As a result, Chittranjan Das resigned. In Jan 1923, the rich group of party formed a new Swaraj Party under ML Nehru & Das, & youth group formed a revolutionary party under leadership of Bismil. 

Constitutional Committee Meeting of the Party was conducted on 3 October 1924 at Kanpur in U.P. under Chairmanship of Sachindra Nath Sanyal.

This meeting decided the name of the party would be the Hindustan Republican Association(HRA).
Bismil was made Provincial organiser of UP.


Ram Prasad Bismil and Ashfaqulla Khan

Bismil met Ashfaqulla Khan through the latter’s elder brother. When Bismil was declared absconder after the Mainpuri Conspiracy, Khan’s brother used to tell him about the bravery and Urdu poetry of Bismil like :- हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को
Bismil
#
Hindi
 हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को,
यकायक हमसे छुड़ाया उसी काशाने को।
आसमां क्या यहां बाक़ी था ग़ज़ब ढाने को?
क्या कोई और बहाना न था तरसाने को?

फिर न गुलशन में हमें लाएगा सैयाद कभी,
क्यों सुनेगा तू हमारी कोई फरियाद कभी,
याद आएगा किसे ये दिले-नाशाद कभी,
हम कि इस बाग़ में थे, कै़द से आज़ाद कभी,
अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को!

दिल फ़िदा करते हैं, कुर्बान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है, वो माता की नज़र करते हैं,
ख़ाना वीरान कहां, देखिए घर करते हैं,
अब रहा अहले-वतन, हम तो सफ़र करते हैं,
जा के आबाद करेंगे किसी विराने को!

देखिए कब यह असीराने मुसीबत छूटें,
मादरे-हिंद के अब भाग खुलें या फूटें,
देश-सेवक सभी अब जेल में मूंजे कूटें,
आप यहां ऐश से दिन-रात बहारें लूटें,
क्यों न तरजीह दें, इस जीने से मर जाने को!

कोई माता की उमीदों पे न डाले पानी,
ज़िंदगी भर को हमें भेज दे काले पानी,
मुंह में जल्लाद, हुए जाते हैं छाले पानी,
आबे-खंजर को पिला करके दुआ ले पानी,
भर न क्यों पाए हम, इस उम्र के पैमाने को!

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर,
हमको भी पाला था मां-बाप ने दुख सह-सहकर,
वक़्ते-रुख़सत उन्हें इतना ही न आए कहकर,
गोद में आंसू कभी टपके जो रुख़ से बहकर,
तिफ़्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को!

देश-सेवा ही का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की क़समें,
सरफ़रोशी की, अदा होती हैं यो ही रस्में,
भाई ख़ंजर से गले मिलते हैं सब आपस में,
बहने तैयार चिताओं में हैं जल जाने को!

नौजवानो, जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले-भटके,
आपके अजबे-बदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद चाक हो, माता का कलेजा फट के,
पर न माथे पे शिकन आए, क़सम खाने को!

अपनी क़िस्मत में अज़ल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था, मिहन रक्खा था, ग़म रक्खा था,
किसको परवाह थी, और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-गुरबत में क़दम रखा था,
दूर तक यादे-वतन आई थी समझाने को!

अपना कुछ ग़म नहीं लेकिन ये ख़याल आता है,
मादरे हिंद पे कब से ये ज़वाल आता है,
देशी आज़ादी का कब हिंद में साल आता है,
क़ौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है,
मुंतज़िर रहते हैं हम ख़ाक में मिल जाने को!

मैक़दा किसका है, ये जामो-सबू किसका है?
वार किसका है मेरी जां, यह गुलू किसका है?
जो बहे क़ौम की ख़ातिर वो लहू किसका है?
आसमां साफ़ बता दे, तू अदू किसका है?
क्यों नये रंग बदलता है ये तड़पाने को!

दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पूछो,
मरने वालों से ज़रा लुत्फ़े-शहादत पूछो,
चश्मे-मुश्ताक़ से कुछ दीद की हसरत पूछो,
जां निसारों से ज़रा उनकी हक़ीक़त पूछो,
सोज़ कहते हैं किसे, पूछो तो परवाने को!

बात सच है कि इस बात की पीछे ठानें,
देश के वास्ते कुरबान करें सब जानें,
लाख समझाए कोई, एक न उसकी मानें,
कहते हैं, ख़ून से मत अपना गिरेबां सानें,
नासेह, आग लगे तेरे इस समझाने को!

न मयस्सर हुआ राहत में कभी मेल हमें,
जान पर खेल के भाया न कोई खेल हमें,
एक दिन को भी न मंजूर हुई बेल हमें,
याद आएगी अलीपुर की बहुत जेल हमें,
लोग तो भूल ही जाएंगे इस अफ़साने को!

अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली,
एक होती है फ़कीरों की हमेशा बोली,
ख़ून से फाग रचाएगी हमारी टोली,
जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली,
कोई उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को!

नौजवानो, यही मौक़ा है, उठो, खुल खेलो,
खि़दमते क़ौम में जो आए बला, तुम झेलो,
देश के सदके में माता को जवानी दे दो,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएं, ले लो,
देखें कौन आता है, इर्शाद बजा लाने को!

Since then, Ashfaq was very keen on meeting Bismil because of his poetic attitude. He became friends with Bismil in a private gathering where they read couplets Ashfaq was a devout Muslim and together with ‘Bismil’ had the common objective of a free and united India.

Their common objective united them even more than before. Ram Prasad Bismil and his colleague, Ashfaqullah Khan planned and executed Kakori Conspiracy of August 9, 1925.

Bismil executed a meticulous plan for looting the government treasury carried in a train at Kakori, near Lucknow in U.P. in 1925, known as the Kakori conspiracy. Ten revolutionaries stopped the Saharanpur-Lucknow passenger train at Kakori – a station just before the Lucknow

This historical event happened on 9 August 1925. This looting is known as the Kakori conspiracy. Police arrested more than 40 revolutionaries whereas only 10 persons had taken part in the decoity.


This case gave a huge boost to the activities and moral or young revolutionaries. As an after effect more than 40 revolutionaries were arrested whereas only 10 persons had taken part in the decoity. Persons completely unrelated to the incident were also captured. Government appointed Jagat Narain Mulla as public prosecutor at an incredible fee. The defence committee was also formed to defend them. Govind Ballabh Pant,Chandra Bhanu Gupta and Kripa Shankar Hajela defended their case.The men were found guilty after subsequent appeals failed.

Following 18 months of legal process, Court declared Bismil, Ashfaqulla Khan, Roshan Singh and Rajendra Nath Lahiri guilty and sentenced them to death.


Ram Prasad Bismil death


बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से,
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।

लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।

खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।

कभी ओ बेख़बर तहरीके़-आज़ादी भी रुकती है?
बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से।

यहां तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल,
कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी से।

Outside view of Gorakhpur Jail


Following 18 months of legal process, Bismil, Ashfaqulla Khan,Thakur Roshan Singh & Rajendra Nath Lahiri were sentenced to death. Bismil was hanged on 19 December 1927 at Gorakhpur Jail, Ashfaqulla at the Faizabad Jail & Roshan Singh at Naini Allahabad Jail. Lahiri at Gonda Jail. 

Police took Bismil’s body to the Rapti river for a Hindu cremation, and the site became known as Rajghat


Ram Prasad Bismil Jayanti

Every year 11 June is celebrated as ram prasad bismil jayanti.

न मयस्सर हुआ राहत में कभी मेल हमें,

जान पर खेल के भाया न कोई खेल हमें,

एक दिन को भी न मंजूर हुई बेल हमें,

याद आएगी अलीपुर की बहुत जेल हमें,

लोग तो भूल ही जाएंगे इस अफ़साने को!

हैफ़ जिसपे कि हम तैयार थे मर जाने को

यक ब यक हमसे छुड़ाया उसी काशाने को

- bismil

Tributes to the true son of the soil, the great revolutionary Scholar Freedom fighter on his 123rd birth anniversary. 

Naman


No comments:

Post a Comment