Friday, June 25, 2021

KOT KEHLOOR - IMMORTAL RAJPUTS


हुतो चरुंजा सात सै विक्रम सन तब हीं।

वीरचंद इत आन कै गादी थित जब हीं।।

इतिहास के आइने में किला कोट कहलूर

कहलूर रियासत की प्रमाणिक ऐतिहासिक पुस्तक शशि वंश विनोद में इसके लेखक कवि गणेश सिंह बेदी ने ये उपरोक्त पंक्तियां लिखी हैं । जिसका आश्य है कि विक्रमी संवत ७५४ यानी ६९७ ईसवी में वीरचंद ने यहां पहुंचकर राज्य की स्थापना की । वीर चंद ने जंदवडी़ में एक किला बनाया और इसे अपनी राजधानी बना कर यहां से राज काज चलाने लगा।

वीरचंद चंदेरी रियासत के राज वंश का वंशज था । वहां चंदेल राजघराने की ७०वीं पीढ़ी में हरि हरचंद चंदेरी का राजा हुआ था । उसके पांच पुत्र थे ,वीरचंद, गंभीरचंद,कबीर चंद्, सवीर चंद और गोबिंद चंद । इनमें से सबसे बड़े पुत्र वीर चंद, ने कहलूर रियासत की स्थापना की थी । सबसे पहले उसने जंदवडी़ में अपना किला बनाया । जंदवड़ी आज के आनंदपुर साहब के पास स्थित है । यह इलाका तब सब तरफ से जंगलों से घिरा हुआ था । चोर डाकू यात्रियों को लूट लिया करते थे । वीरचंद ने उन लुटेरों को मार भगाया और वहीं पर अपना राज्य स्थापित करके राजकाज चलाने लगा ।

एक और जनश्रुति के अनुसार एक दिन वीरचंद जब राजसभा में राज सिंहासन पर बैठा था, तब वहां पर एक भेड़ बकरी चराने वाला आया । उसने आकर राजा से कहा कि उसकी एक बछड़ी है जो अभी तक ब्याही नहीं है । वह प्रतिदिन एक पत्थर की शिला के पास जाती और वहां उसके स्तनों से दूध की धार निकलने लग पड़ती है । राजा वीरचंद अचंभित हुआ । उसने जब वहां जाकर देखा तो एक पत्थर की मूर्ति मिली ।


राजा ने वहां पर एक मंदिर बनवाया और उस मूर्ति को वहां स्थापित कर दिया । इस मंदिर का नाम नैना देवी रखा गया । जो बाद में नैना देवी के नाम से मशहूर हुआ। इसी तरह एक और जनश्रुति है जिसमें एक भेड़ बकरी चराने वाला राजा कहल चंद के पास आया और उसने उसे एक बहुत ही रोमांचित घटना सुनाई ।

उसने कहा कि उसकी बकरी एक शिला चट्टान पर खड़ी थी । वहां पर एक बाघ आया । उसने बकरी को मारने की कोशिश की । वह तीन बार उस पर झपटा लेकिन बकरी ने उसे हर बार अपने सींगों से पीछे धकेल दिया ।

राजा कहल चंद जी सोच में पड़ गये । उन्होंने सोचा कि जरूर उस चट्टान में कुछ विशेष गुण है । उन्होंने वहां पर एक किला बनाया और जो आगे चलकर कोट कहलूर के नाम से जाना गया। इसके बाद राजा कहलचंद जंदवड़ी से आकर कोट कहलूर में ही रहने लग पड़ा । इस तरह इस राज्य का नाम कहलूर पड़ा। 




कोट कहलूर में कहलूर रियासत के २९ राजाओं ने राज किया । कोट कहलूर को अपनी राजधानी बनाया । ६९७ ईसवी से १५५५ ई .तक कोट कहलूर , कहलूर रियासत की राजधानी रही ।

कोट कहलूर किले का इतिहास के आईने में विशेष स्थान रहा है । वीरचंद के बाद उद्धरण चंद ,यशकर्णचंद, मदन ब्रहम चंद ,अहल चंद ,कहल चंद ,सलारचंद,मैण चंद,सैण चंद , सुलाक्षण चंद, काहन चंद ,अजीत चंद, कोकिल चांद ,उदय चंद ,गैण चंद ,पृथ्वी चंद ,श्रृंगार चंद, मेघ चंद ,देवचंद ,आलम चंद ,अभय सार चंद ,संपूर्ण चंद, रतन चंद ,नरेंद्र चंद ,फतह चंद ,पहाड़ चंद, रामचंद् , उत्तम चंद ,व ज्ञान चंद राजाओं ने कोट कहलूर से अपना राजकाज चलाया ।


कहलूर नरेश अभयसार चंद के समय दिल्ली के सिंहासन पर मोहम्मद तुगलक १३२५...१३५१... बैठा था ।

एक बार उसका तातार का नाम का एक सरदार कुछ सेना लेकर दिल्ली से लाहौर जा रहा था । जब वह किरतपुर में पहुंचा तो राजा को उसके गुप्तचरों ने बताया कि मुसलमान सेना के साथ कुछ कसाई गउओं को काटने के लिए ले जा रहे हैं । यह सुनकर राजा की भृकुटी तन गई ।उसने अपने सैनिकों को भेजा और कसाईयों से गायों को छुड़ा लिया ।

तातार खान की सेना के कई हाथी घोड़े छीन लिए और नौ सौ सिपाहियों के नाक काट कर वहां एक कुएं में फेंक दिए थे । यह सब बिलासपुर की कहानी नामक पुस्तक में दर्ज है । जिसे मियां अक्षर सिंह और रामचंद्र वर्मा ने लिखा है। इस हार का बदला लेने के लिए तातार खान दोबारा दिल्ली से फौज लेकर लड़ने आया और उसने कोट कहलूर का किला घेर लिया । किले के मुख्य दरवाजे को तोड़ने में मुस्लिम सेना कामयाब नहीं हुई तो उसने एक हाथी को लाकर मुख्य द्वार तोड़ने की कोशिश की । यह देखकर राजा अभयसार चंद को गुस्सा आया और वह तलवार लेकर बाहर कूद पड़ा । उसने एक ही वार से हाथी की सूंड काट दी । तातार खान भी वहां मारा गया । इससे मुस्लिम सेना भयभीत होकर भाग गई ।

बाद में सरहिंद के सूबेदार कपोत खान ने आनंदपुर साहब पहुंचकर अपना कैंप लगाया और वहां पर राजा अभयसार चंद को दोस्ती करने के बहाने बुलाया । उसने अपने कैंप में राजा को धोखे से मार दिया । तब यह खबर पाकर राजा के दो राजकुमार संपूर्ण चंद और रतन चंद सेना लेकर वहां पहुंचे। उन्होने अपने पिता का पार्थिव शरीर कपोत खान से छीना और उसे वहां पर पराजित कर के मार भगाया ।





कोट कहलूर का किला राजा रतन चंद की बहादुरी का भी गवाह है ,जिसने दिल्ली के बादशाह फिरोज तुगलक को शेर के हमले से उसी की तलवार खींच कर बचाया था । शेर के दो टुकड़े कर दिए थे । और तब बादशाह ने उसे सवा लाख रुपए और वही तलवार तथा आसपास के २२ पहाड़ी रियासतों की सरदारी से नवाजा था । रतन चंद ने बछरेटू और बसेह के किले बनवाए थे ।

ऐतिहासिक मोड़

सन् १८८१ ई. में कहलूर रियासत की जनसंख्या ८६,५४६ थी । इनमें ४७,१३३ पुरुष व ३९,४१३ महिलाएं थीं । मतलब साफ कि एक हजार पुरुषों पर ८३६ महिलाएं । इसमें ३२४ तेली ,भरयाई २४० और शेख १०५ थे । यह गणना कहलूर नरेश हीराचंद के समय हुई थी । जोकि बिलासपुर के गज़ेटियर में दर्ज है । हीराचंद कहलूर का ४२ वां राजा था । अब इससे भी लगभग तीन सौ साल पीछे चलते हैं । राजा ज्ञान चंद (१५१८-१५५५ ई. } के समय की बात करते हैं । यह रियासत का २९ वां राजा हुआ है । यह झगड़ालु किस्म का था । अपनी आसपास की रियासतों से लड़ता झगड़ता रहता । अधीनस्थ ठकुराइयों को बेवजह धमकाया करता था ।

इसके खराब व्यवहार के कारण सरहिंद के सूबेदार

कासिम खान से रियासतों के नाराज राजाओं ने शिकायत कर दी । सूबेदार ने मुसलमान सेना को भेज कर कहलूर पर चढ़ाई कर दी । कहलूर की हार हुई । तब राजधानी कोट कहलूर हुआ करती थी । राजा और उसके दो बेटों रामा और भीमा को बंदी बना लिया गया । तब उन्हें सरहिंद में कासिम खान के समक्ष पेश किया गया । तीसरा बेटा बिक चंद उस समय सुन्हानी में था ।

जब कहलूर नरेश को बंदी के रुप में कासिम खान के सामने पेश किया गया तो वह उसे देखता ही रह गया ।राजा जितना झगड़ालू मिजाज़ का था । उतना ही सुंदर आकर्षक व्यक्तित्व का था । कासिम खान ने उसे मुसलमान बनने को बाध्य किया । वह मुसलमान बनाया और कासिम खान ने उससे अपने बेटी की शादी कर दी । उसके दो बंदी बेटों रामा और भीमा को भी मुसलमान बनाया गया । मुसलमान बनने के बाद रामा तो जम्मू की तरफ चला गया लेकिन भीमा कहलूर के सलाहों गांव में आ बसा । आज भी बिलासपुर में जितने भी जिम्मीदार मुसलमान हैं , वे राजा ज्ञानचंद के वंशज के रूप में जाने जाते हैं । बहुत से मुसलमान अपने साथ चंदेल लिखा करते थे ।


राजा ज्ञानचंद और उसके दो लड़के जब मुसलमान बन गए तो रियासत में उनके प्रभाव के कारण कई और लोगों ने भी धर्म परिवर्तन कर लिया । समझा जाता है कि उस समय से रियासत में मुसलमानों की संख्या सामने आने लगी । यहां से कहलूर रियासत के इतिहास का वह ऐतिहासिक मोड़ दिखाई देता जहां से मुस्लिम समाज भी दिखाई देने लगता है । यह जनसंख्या १९०१ की जनगणना के अनुसार १४८७ थी । और १९२१ में २५२३ तक पहुंच गई । हां ,१९४७ में बाहर से भी बड़ी संख्या में मुसलमानों ने डर के कारण बिलासपुर में शरण ली ।

पाठकों की जानकारी के लिए यहां बताते चलें कि बिलासपुर में सैंकड़ों सालों से रहने वाले मुसलमानों के पुराने बुजुर्गों के हिंदू नाम रहे हैं । हमारे मित्र गोगी उस्ताद बताते हैं कि मीरांबक्श उनका मित्र होता था । अनपढ़ था । उसके पिता का नाम कन्हैया था । हरनाम सिंह पटवारी ने नब्बे के दशक में पटवार खाने में कुछ ऐसे ही कुर्सी नामे बताते हुए कहा था ....देखो इनके बुजुर्ग हिंदू नाम वाले थे ।

कहलूर के राजा ज्ञानचंद को जब जबरदस्ती उसके दो बेटों के साथ मुसलमान बनाया गया ,तो बाद में राज गद्दी के लिए भी उस के तीसरे हिंदू बेटे बिकचंद जो विक्रम चंद के नाम से भी जाना जाता है , के साथ मुस्लिम रानी के बेटों से झगड़ा हुआ । लेकिन रियासत की जनता विक्रम चंद के साथ थी । इसलिए वह संख्या में बहुत कम होने के कारण कहलूर की गद्दी पर कब्जा नहीं कर सके । बाद में विक्रम चंद्र गद्दी पर बैठा और अपनी राजधानी बदल कर सुन्हाणी ले आया था । 


इस तरह कोट कहलूर किले का इतिहास में बहुत महत्व है। आज भी यह किला शान से गर्दन ऊंची करके खडा़ है । इतिहास के समुंद्र से गोता लगा कर जो हाथ लगा वह आपसे सांझा करते हुए सुखद अनुभूति हो रही है । 


आजकल इस किले में बिलासपुर पुलिस का कोट कहलूर पुलिस थाना है।

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