दिल्ली के चांदनी चौक स्थित पंजाब नेशनल बैंक की छत से क्रूर गोरे अफसर वायसराय लार्ड हॉर्डिंग्ज पर 23 दिसंबर सन 1912 ई. को बम फेंक ब्रिटिश राज की जडें हिला कर,
पूरी ब्रिटिश हुकुमत में दहशत पैदा करने का प्रमुख योजनाकार,
लगातार 27 वर्षों तक अंग्रेज सेना को छकाते रह कर,
आजीवन स्वतंत्रता के लिए कार्य करने वाला भारत के स्वतन्त्रता प्राप्ति संग्राम का महान क्रांतिकारी
जन्म - 12 सितंबर सन 1883 ई. उदयपुर, राजस्थान.
देहावसान - 17 अक्टूबर सन 1939 ई।
ठाकुर जोरावर सिंह बारहठ जिन्होंने ब्रिटिश राज की जडें हिला दी थी,
नई दिल्ली में तत्कालीन ब्रिटिश राज के अतिविशिष्ट मेहमान और क्रूर गोरे अफसर वायसराय लार्ड हॉर्डिंग्ज पर 23 दिसंबर सन 1912 को बम प्रहार घटना के प्रमुख योजनाकार थे।
और फिर 27 वर्षों तक अंग्रेज सेना को छकाते रहे।
वे उसी महान क्रांतिकारी बारहठ परिवार के सदस्य थे जिस परिवार ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया।
ठाकुर जोरावर सिंह बारहठ का जन्म 12 सितंबर सन 1883 को उदयपुर में महान राष्ट्रभक्त ठाकुर कृष्ण सिंह बारहठ के घर हुआ था।
बचपन से ही बालक जोरावर सिंह को राष्ट्र भक्ति और स्वतंत्रता प्रेम विरासत में मिला था।
उनके भ्राता महान राष्ट्रभक्त क्रांतिकारी ठाकुर केशरी सिंह बारहठ ने उम्र भर देश की आजादी के लिए संघर्ष किया और अपने सोलह वर्षीय पुत्र अमर शहीद कुंवर प्रताप सिंह बारहठ को भाई जोरावर सिंह के साथ आजादी की लड़ाई के लिए देश को समर्पित कर दिया,
इतना ही नहीं ठाकुर केशरी सिंह बारहठ ने अपने दामाद को भी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल कर दिया।
क्रांति के दीवाने ठाकुर जोरावर सिंह बारहठ ने 23 दिसंबर सन 1912 को ऐसा धमाका कराया जिससे पूरी ब्रिटिश हुकुमत में दहशत पैदा हो गई।
उन्होंने अपने भतीजे क्रांतिकारी कुंवर प्रताप सिंह बारहठ के साथ मिलकर दिल्ली के चांदनी चौक स्थित पंजाब नेशनल बैंक की छत से वायसराय लॉर्ड हॉर्डिंग्ज पर उस समय बम प्रहार कराया
जब वह पूरे देश को ब्रिटिश राज का रुतबा दिखाने के लिए
ब्रिटिश हुकुमत के अति विशिष्ट मेहमान के रूप में
एक भारी लाव लस्कर के साथ हाथी पर बैठकर जुलूस में शामिल हुआ था।
इस बम के धमाके ने देश में ब्रिटिश राज की जड़ों को बुरी तरह से हिला दिया।
इस घटना के बाद भी ठाकुर जोरावर सिंह ने पूरे 27 वर्षों तक ब्रिटिश राज को खूब छकाया और लाख कोशिशों के बाद भी गोरे उन्हें छू तक नहीं पाए, वे भेष बदलकर देशभर में आजादी की मशाल जलाते रहे।
इस बम कांड के बाद ब्रिटिश राज ने उन्हें आरा केस बिहार वर्ष 1912 का मुख्य अभियुक्त घोषित किया, इस अभियोग में उनके दो क्रांतिकारी साथियों को अंग्रेज सरकार ने फांसी दे दी, लेकिन ठाकुर जोरावर सिंह को उनके जीते जी गोरे कभी नहीं पकड़ पाए।
उन्होंने वेष बदलकर राजस्थान और मालवा मध्य प्रदेश में अमरदास बैरागी बाबा के नाम से आजीवन स्वतंत्रता के लिए कार्य किया और फिर वो मनहूस घड़ी भी आई जब यह महान क्रांतिकारी आजाद भारत देखने की चाह लिए ही 17 अक्टूबर, 1939 को स्वर्ग सिधार गया।
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