Saturday, February 27, 2021

RAO RAJA KALYAN SINGH - IMMORTAL RAJPUTS

 शिक्षा हो या स्वास्थ्य, धर्म हो या ढांचागत विकास, हर क्षेत्र में योगदान उन्हें आधुनिक सीकर का जनक बनाता है। 

राव राजा कल्याण सिंह जी का जीवन परिचय:

राव राजा कल्याण सिंह का जन्म आषाढ वदि 4 सं. 1943 (20जून 1886) को दीपपुरा में हुआ। माधोसिंह के बाद आषाढ सुदि 15, सं. 1979 (1 जुलाई 1922) को सीकर की गद्दी पर बैठे।

शासन पर आने के बाद राव राजा ने अपने शासन प्रबन्ध में जन कल्याणकारी कार्यों में विशेष ध्यान दिया। प्रशासन व्यवस्था के लिये अलग अलग कार्यो के लिए अलग अलग विभाग कायम किये गये। गरीबी और बेकारी मिटाने के लिए आर्थिक सुधार किये। स्थान स्थान पर लघु उद्योग धन्धे खोलने का प्रयास किया गया। हाथ करघा, रेशम के कीड़े पालना, सड़कों का निर्माण भूगर्भ की खोज कर धातु आदि का पता लगाना, भवन निर्माण यातायात के साधनों का विकास करना इनके मुख्य कार्य थे। सर्व सुलभ न्याय के लिये अपने इलाके में तहसीलों की स्थापना कर प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के न्यायालयों की स्थापना कर और केंद्र में प्रथम श्रेणी के न्यायधीशों की नियुक्ति कर सर्व साधारण के लिये न्याय का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

जनरक्षा के लिए पुलिस विभाग की स्थापना की। केंद्र में एक पुलिस सुपरिटेण्डेण्ट की नियुक्ति की गई। मुख्य क्षेत्रों में पुलिस स्टेशन बनवाकर थानेदारों की नियुक्तियाँ दी गई। इससे जनता में सुरक्षा की भावना बढी।

कृषकों की भलाई के लिए भूमि सुधार किया। भूमिकर के रूप में ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर निश्चित लगान तय किया गया। प्रत्येक कस्बे में कानून विशेषज्ञ, तहसीलदारों की नियुक्तियाँ की गई। इसके नीचे नायब, तहसील, गिरदावर, पटवारी, घुड़सवार, सिपाही आदि रखे गये। पैमाइश विभाग की स्थापना की गई। 7-8 लाख रूपये व्यय कर सारी भूमि की पैमाइश की गई। एक निश्चित अवधि को ध्यान में रखकर किसान को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।

निर्माण विभाग की स्थापना भी की गई। यह विभाग सुन्दर भवनों का निर्माण एवं पुरातत्व अन्वेषण का कार्य करता था।

हर्षदेव के मंदिर की खंडित मूर्तियों का संग्रह इसी विभाग की देन हैं। रावराजा ने ग्राम पंचायत और नगरपालिकाओं के निर्माण का कार्य भी किया। अलग से स्वास्थ्य विभाग की स्थापना भी की। आम जनता की चिकित्सा के लिये सीकर में आधुनिक सुविधाओं से युक्त अस्पताल भवन का निर्माण करवाया। जो कल्याण अस्पताल के नाम से आज भी प्रसिद्ध है। इस अस्पताल में एम. बी. बी. एस. मेडिकल अफसर इन्डोर रोगियों के लिए स्थान, भोजन औषधि आदि का प्रबन्ध करवाया। प्रयोगशाला, एक्स रे आदि सुविधाओं से अस्पताल को सुसज्जित किया।

राव राजा ने धनाढय सेठों को भी इन कामों को करने के लिये प्रोत्साहित किया गया। पशु चिकित्सा के कार्य भी रावराजा ने करवाये।

उन्होंने बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए 1954 में बजाज रोड पर कन्या पाठशाला का निर्माण करवाया। ये जिले का पहला स्कूल था, जो केवल बालिकाओं के लिए था।

बालिकाओं को स्कूल लाने व घर छोड़ने के लिए बस चलती थी, जिसका खर्चा राव राजा उठाते थे। इतिहासकार महावीर पुरोहित के मुताबिक राजा कल्याण सिंह महज साक्षर थे। वे कहते थे कि मैं नहीं पढ़ा, लेकिन मेरी प्रजा पढ़नी चाहिए। उन्होंने सिल्वर जुबली रोड पर गेस्ट हाउस की जगह स्कूल (एसके स्कूल) के नाम की। 1928-29 में श्री कल्याण हाई स्कूल बना। बजाज रोड पर कन्या पाठशाला, 1946 में इंटर कॉलेज और देवीपुरा में हरदयाल स्कूल भी उन्हीं की देन रही। 15 जून 1954 में सीकर के राजस्थान में शामिल होने के बाद सरकार ने प्रशासन के लिए भवनों की कमी के चलते सीकर को जिला बनाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया था। इसकी बजाय झुंझुनूं को जिला बनाकर सीकर को उसमें शामिल किया जा रहा था। इसकी सूचना पर राजा कल्याण सिंह ने कलेक्ट्रेट और कोर्ट के लिए तत्कालीन ट्रेवल अस्पताल का भवन सरकार को दे दिया।

वहीं, तहसील भवन और पुलिस लाइन भी मुहैया करवा दिया। इसके बाद बद्री नारायण सोढाणी, पुरोहित स्वरूप नारायण, जानकी प्रसाद मारू, दीन मोहम्मद और सोहनलाल दुग्गड़ सरीखे लोगों ने भी सरकार तक मांग पहुंचाई। जिसके बाद सरकार ने एक कमेटी गठित कर उसकी सिफारिश पर सीकर को जिला घोषित किया।
सीकर में सबसे ज्यादा भवन राव राजा के नाम से

1958-59 में राव राजा एसके कॉलेज के लिए भवन दिया। एसके अस्पताल, कल्याण सर्किल, सिल्वर जुबली रोड और बजाज रोड पर हरदयाल टॉकीज का लोकार्पण भी 1948 में राव राजा कल्याण सिंह के समय हुआ। 

"|| एक राजा जिसकी सुरक्षा के लिए उमड़ पड़ी थी हजारों की भीड़ ||"


आजादी के बाद कांग्रेस ने राजस्थान में सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत बनाये रखने के उद्देश्य से राजाओं, जागीरदारों को लोकतान्त्रिक व्यवस्था से दूर रखने की भरसक कोशिश की। नेहरु ने तो राजाओं को चेतावनी भी दी कि "राजा चुनावी प्रक्रिया से दूर रहे, वरना उनका प्रिवीपर्स बंद कर दिया जावेगा।” 

बावजूद जहाँ राजा व जागीरदार चुनाव लड़े, वहां कांग्रेस चारोंखाने चित हुई| राजाओं की इसी प्रसिद्धि को दूर करने के लिए कांग्रेस ने राजाओं द्वारा प्रजा के शोषण की झूठी कहानियां प्रचारित कर दुष्प्रचार किया। लेकिन राजा और प्रजा का सम्बन्ध नीचे की घटना से समझा जा सकता है।

जयपुर और शेखावाटी के राजाओं के मध्य विवाद शुरू से रहा है। अप्रैल 1938 में शुरू हुआ महा. स. मान सिंह II व सीकर के कल्याण सिंह जी के बीच एक विवाद इतना बढ़ गया कि जयपुर महाराजा ने 20 जुलाई 1938 को सीकर के राजा को गिरफ्तार कर जयपुर लाने के लिए सेना भेज दी। जयपुर की सेना के सीकर कूच की खबर आग की तरह फैलते ही सीकर राज्य की प्रजा अपने राजा को बचाने के लिए सीकर गढ़ के बाहर एकत्र हो गई सीकर की फ़ौज ने भी गढ़ के दरवाजों पर तोपें व मशीनगन तैनात कर दी। सीकर की प्रजा के हाथ में जो भी हथियार तलवार, बन्दुक, लट्ठ जो भी मिला लेकर अपने राजा की सुरक्षा में तैनात हो गई और मरने मारने को तैयार प्रजा रातभर पहरा देने लगी। 

रींगस स्टेशन जब रेल गाड़ी आकर रुकी, सीकर के लोगों व जयपुर फ़ोर्स के मध्य फायरिंग हुई। स्टेशन पर बैठे बिरजीसिंह, नाथूसर ने आई जी यंग पर गोली चलाई, जो उसके टोप से टच कर निकल गई, जवाबी फायरिंग में बिरजीसिंह मारे गए। इस विवाद में कई दिन सीकर राज्य की प्रजा हाथों में लट्ठ लिए जयपुर की सेना के आगे डटी रही, रातभर जागकर गढ़ व परकोटे के बाहर पहरा देती रही और जयपुर की हथियारबंद सेना को नगर के भीतर घुसने तक नहीं दिया। आखिर 25 जुलाई 1938 जयपुर-सीकर के मध्य समझौता हुआ, तब जाकर यह गतिरोध ख़त्म हुआ।

राव राजा कल्याणसिंह जी की गिरफ्तारी रोकने के लिए जिस तरह प्रजा ने मरने का भय त्याग कर सेना का सामना किया, वह प्रजा के मन में राजा के प्रति प्रेम, विश्वास और आत्मीयता का उत्कृष्ट उदाहरण है।यह घटना कथित सेकुलर गैंग के मुंह पर तमाचा भी है जो राजाओं पर अपनी प्रजा के शोषण का आरोप लगाते है। यदि राजा अपनी प्रजा का शोषण करते तो क्या यह संभव था कि प्रजा उस राजा की सुरक्षा के लिए अपनी जान दाँव पर लगा देती।

राव राजा कल्याण सिंह लोकप्रिय राव राजा थे। इसके साथ वे धार्मिक प्रवृति के शासक थे। वे कल्याण जी के भक्त थे। प्रतिदिन निश्चित समय पर कल्याणजी के मंदिर पंहुचते थे ऐसे धर्म शील व कर्तव्य परायण राव राजा का 7 नवम्बर 1967 वि. 2024 में देहान्त हो गया। 

ज्ञातव्य हो कि इन्होंने जितने भी कार्य करवाए उनके नाम अपने नाम पर नहीं बल्कि अपने डिग्गी के कल्याण महाराज के नाम पर करवाए थे।

इनके पुत्र राजकुमार हरदयाल सिंह की पढाई जयपुर सीकर विवाद के कारण बीच में ही छूट गई । कुछ समय यह सवाई मान गार्ड में रहे। राणा बहादुर शमसेर जंग बहादुर नेपाल की पुत्री से हरदयाल सिंह का संबन्ध तय हो गया और शादी हो गई लेकिन उनकी पत्नी का निधन हो गया। अतः दूसरी शादी त्रिभुवन वीर विक्रमशाह नेपाल की पुत्री के साथ सम्पन्न हुई ।

राजकुमार हरदयाल सिंह की मृत्यु माघ वदि 13 वि. 2015 को राव राजा कल्याण सिंह के जीवन काल में ही हुई। इनके कोई पुत्र नहीं था। इनकी कंवराणी सीकर रही और सरवड़ी के नारायण सिंह के पुत्र विक्रमसिंह को भादवा सुदि 15 वि. 2016 को गोद ले लिया। राव राजा के दो पुत्रियां थीं। बडी पुत्री फलकंवर का विवाह उम्मेदसिंह नीमाज के साथ व छोटी पुत्री का विवाह चाणोद के कंवर चिमन सिंह के साथ हुआ।

इनकी मृत्यु के बाद विक्रमदेव सिंह सीकर की संपत्ति के स्वामी हुए।



Rao Raja Kalyan Singh of Sikar was possibly one of the greatest Gau Sewak.
He donated 2000 Bighas (Roughly 1000 Acres) of Land for Gau-shalas & grazing lands for Gauvansh.

Rao Raja was ruler of the biggest estate under Jaipur Kingdom & belonged to the glorious line of Shekha Ji. Sadly at present only 350 Bigha land is left with the Gau Seva trust and rest has been either forcefully encroached or taken over by the government.
Grants provided by the government fulfills only the 1/4th of the required funds.

Rao Raja Kalyan Singh was one of the best king. He also started sanskrit college in sikar which is in bad situation today. True, he was a benevolent ruler. Apart from these he also constructed Sikar Government Welfare College, Kalyan Kanya Pathshala, Kalyan Senior Secondary School, Sikar's largest state welfare hospital, 12 Bigha land for Jat hostel and many more, will write more on him soon. Many ppl here say very wrong things abt rajpoots/kings and give credit to britishers for all the development. Rao raja kalyan singh is the best counter to this. previous kings were also very good.

No comments:

Post a Comment