Sunday, February 21, 2021

1857 REBELLION KOTHARIA PATRIOT CHIEF RAWAT JODH SINGH CHAUHAN - IMMORTAL RAJPUTS

 


Rawat Jodh Singh Chauhan of Mewar's first class hideout Kothariya was a proud patriot, besides being self-respecting. He also did not like the British intervention in Rajputana. But initially due to the nephew of Maharana of Mewar, he did not openly come in front of the British, but that brave man gave shelter to many patriotic revolutionaries in distress without caring about the British in his hideout.

Thakur Kushal Singh Champawat of Auwa, the great revolutionary in Marwar, took shelter with his family at Rawat Jodh Singh during the time of crisis. When the British came to know about this fact, they were very angry, but being the nephew of Maharana of Mewar, the British did not think it appropriate to tease Rawat Jodh Singh Chauhan. At that time, when the great King-Maharaja used to be afraid of the British, in such works, the poets mentioned the fearless patriotism displayed by Rawat Jodh Singh Chauhan. On giving shelter to Thakur Kushal Singh Auwa. Rawat Jodh Singh Chauhan also supported Tantya Tope, who had open armed rebellion against the British rule.




दास्ताने  कोठारिया (मेवाड़)क्रांतिकारियों की शरणस्थली एवं साहसी, निडर, राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता के अमर पुरोधा रावत जोधसिंह जी की गौरवगाथा----- ------

मेवाड़ की कोठारिया जागीर के रावत जोधसिंह चौहान मेवाड़ के प्रथम श्रेणी के सामन्त थे ।इस जागीर में लगभग 60 गांव आते थे जिसकी उस जमाने में साधारणतया राजस्व आय 23615 र के लगभग थी तथा कर (Tribute) र 1502 के लगभग था।

  1857-58 के विदेशी दासता विरोधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजपूताने के जिन कतिपय सामन्तों ने योगदान दिया उनमें मेवाड़ की पावन पवित्र राष्ट्र भक्त वीरों की पूज्यनीय भूमि पर

स्थित ,सलूम्बर ,भींडर ,लसानी ,रूपनगर ,के जागीरदारों के साथ -साथ कोठारिया ठिकाने के रावत जोधसिंह जी भी अग्रणी रहे ।स्वभाव ,आचरण एवं विचारों की दृष्टि से रावत जोधसिंह जी क्षत्रिय परम्पराओं के कट्टर समर्थक थे ।वे मेवाड़ की छोटी एवं कम आय वाली जागीर के स्वामी होते हुए भी विदेशी दासता विरोधी भावनाएं संजोये हुए थे ।वे मेवाड़ के उन इने गिने सामन्तों में से थे जो पूर्ण विलासिता एवं अकर्मण्यता में डूबने से बचे हुये थे ।इस लिए 1857 -58 के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सैनिकों को निरंतर सहयोग देते रहे।इतना ही नहीं वह स्वतंत्रता युद्ध की असफलता के बाद भी अंग्रेजी प्रभुत्व की चिंता किये बिना निडरता के साथ अंग्रेज सरकार विरोधी कार्यवाहियां करते रहे ।रावत जोध सिंह जी स्वाभिमानी होने के साथ ही प्रच्छन्न देश भक्त थे।उन्हें भी राजपूताने में अंग्रेजों का हस्तक्षेप बिल्कुल पसन्द नहीं था लेकिन मेवाड़ के महाराणा के भान्जे होने के कारण शुरू में तो अंगेजों के सामने विरोध में नहीं आये पर उस वीर पुरुष ने संकट में आये कई देशभक्त क्रांतिकारियों को अपने ठिकाने में अंग्रेजों  की परवाह न करते हुए शरण दी ।



‎अक्टूबर 1857 में नारनोल में पराजित होने के बाद जब अंग्रेज सेना द्वारा आउवा ठाकुर कुशाल सिंह जी का पीछा किया गया तो वह गोडवाड़ होते हुए अरावली पर्वतीय इलाके में आ गए ,जहां से कोठारिया रावत जोधसिंह जी ने उनको सपरिवार अपनी जागीर में बुलाकर शरण दी ।जब अंग्रेज सरकार को इस बात का पता चला तो जोधपुर राज्य के सैनिक और अंग्रेज घुड़सवार कुशाल सिंह जी को गिरफ्तार करने 8 जून 1858 को कोठारिया पहुंचे किन्तु वे कुशाल सिंह जी का वहां पता नहीं पासके ओर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा ।उसके बाद 21 अप्रैल 1859 को गुप्त सूचना पुनः पोलिटिकल एजेन्ट को दी कि आउवा ठाकुर का परिवार हमीरगढ़ में रह रहा है ओर ठाकुर कुशाल सिंह जी स्वयं कोठारिया जागीर में मौजूद है।अंग्रेज सरकार को यह भी सूचित किया गया कि भीमजी चारण नामक व्यक्ति भी कोठारिया में शरण पाए हुए है ,जो गंगापुर में अंग्रेज अधिकारियों की संपत्ति की लूटखसोट में शरीक था।और अंग्रेज अधिकारियों के आदेश के बावजूद कोठारिया रावत जोधसिंह जी ने गिरफ्तार नहीं किया है।अंगेज सरकार ने कोठारिया रावत के विरुद्ध कोई कदम उठाने का साहस नहीं किया क्यों कि अंग्रेजों को डर था कि ऐसा करने से उस विपत्ति काल में मेवाड़ के असन्तुष्ट सामन्त मिल करविद्रोह कर सकते है दूसरा मेवाड़ के महाराणा के भान्जे होने के कारण भी रावत कोठारिया को अंग्रेजों ने चलते छेड़ना उपयुक्त नहीं समझा।उस काल में बड़े -बड़े राजा -महाराजा अंग्रेजों से भयभीत रहते थे,ऐसे में रावत जोधसिंह जी द्वारा प्रदर्शित निर्भीक देशभक्त का आचरण , स्वतत्र्य प्रियता आनबान और ठाकुर कुशाल सिंह जी आउवा को आश्रय देने पर किसी चारण कवि ने लिखा---

  ‎कोठारिया कलजुग नहीं,सतजुग लायो सोध।

  ‎अंगरेजां आडो फिरे,जाड़ो रावत जोध।।

  ‎मुरधर छांड खुसालसी ,भागो चापों भूप।

  ‎रावत जोये राखियो, रजवट हंद रूप।

  ‎जोध भलां ही जनमियो,सत्रुआ उरसाल।

  ‎रावत सरनैं राखियो,कामन्धा तिलक खुशाल।।

  ‎देश के प्रसिद्ध क्रांतिकारी पेशवा नाना साहब एवं उनके सहयोगी राव साहब पाण्डुरंगराव सदाशिव पन्त जी तथा अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुला सशस्त्र विद्रोह करने वाले तात्या टोपे के साथ रावत जोधसिंह जी का बराबर सम्पर्क था।जोधसिंह जी ने समय -समय पर राव साहब द्वारा भेजे गये लोगों को शरण दी और सहायता प्रदान की ।इस प्रकार से कई लोग साधु वेश में कोठारिया ठिकाने में गुप्तरूप में रहे ।अंग्रेज सरकार को इस बात का संदेह बना रहा कि राव साहब स्वयं छद्दम वेश में कोठारिया में छिपे हुये है राव साहब द्वारा रावत जोध सिंह जी को लिखा पत्र मिलता है जो उनके निकट सम्बन्धों का महत्वपूर्ण प्रमाण है।

  ‎9 अगस्त 1857 को जब तांत्या टोपे की सेना जनरल रॉबर्ट्स की सेना द्वारा भीलवाड़ा के निकट पराजित हुई तो तांत्या वहां से सीधा नाथद्वारा होते हुये कोठारिया पहुंचे।कोठारिया रावत जोधसिंह जी से उनको पर्याप्त सहायता मिली ।ऐसा कहा जाता है कि तांत्या की सेना के गोला -बारूद की कमी के कारण पांव युद्ध से उखड़ गए थे ।दुर्भाग्य से उन दिनों कोठारिया ठिकाने के पास भी पर्याप्त मात्रा में गोला बारूद  नहीं था।कहते है कि उसी समय कोठारिया का एक तोपची अवकाश पर बाहर चला गया ,उसकी अनुपस्थिति रावत जोधसिंह जी को बहुत अखरी थी तभी सहसा उस तोपची की 70 वर्ष की व्रद्ध मां ने तोपची की जगह स्वयं सम्हाली ओर संकट के उस समय में उस महिला ने गोला -बारूद के अभाव में लोहे के सांकले ,कील -कांटे  जो भी उस समय उपलब्ध हुए ,उसी से काम चलाया।उस बूढ़ी महिला के साहस ,बहादुरी ,देशभक्ति एवं कर्तव्यपरायणता से प्रसन्न होकर रावत साहब ने अपने कोठारिया ठिकाने का चेनपुरा गांव उस महिला को इनाम स्वरूप में जागीर में देदिया।ऐसी की कहते है राजपूती देशभक्ति।इस प्रकार कोठारिया रावत से पर्याप्त सहायता मिलने पर तांत्या टोपे ने 13 अगस्त को पुनः कोठारिया के निकट अंग्रेज सेना का सामना किया किन्तु दुर्भाग्यवस तांत्या यहां भी पराजित हुये।

  ‎ स्वतंत्रता युद्ध की असफलता के बाद भी स्वाभिमानी देशभक्त रावत जोधसिंह जी अंग्रेज सरकार विरोधी कार्यवाहियां करते रहे ।

  ‎1861 ई0 में महाराणा स्वरूपसिंह जी का देहांत होने पर उनके साथ कोई सती प्रथा का उदाहरण अंग्रेज सरकार को मिला जिसमे मेहता गोपालदास नाम के व्यक्ति का प्रमुख हाथ था।अंग्रेज सरकार ने उसको पकड़ने के आदेश किये किन्तु वह कोठारिया चला गया जहां रावत जोधसिंह ने उसको भी शरण देदी।उसी भाँति रावत जोधसिंह जी ने सरकारी आदेश के विरुद्ध मेवाड़ के पूर्वप्रधान मंत्री मेहता शेरसिंह को भी शरण दी थी ।

  ‎1863ई0 में महाराणा शम्भूसिंह की नाबालिकी में पोलिटिकल एजेन्ट द्वारा हाकिम मेहता अजीतसिंह की अमानवीय अत्याचार और हत्या अपराध लगाकर गिरफ्तार किया गया ।अजीतसिंह उदयपुर की कैद से भागकर कोठारिया रावत की शरण में चला गया।पोलिटिकल एजेन्ट और मेवाड़ सरकार की धमकीयों के बाबजूद रावत जोधसिंह जी ने अजीतसिंह को समर्पित करने से इन्कार कर दिया किन्तु शरणागत की  रक्षा करने के राजपूतों के परम्परागत कर्तव्य के प्रति राजपूतों की उत्कंठ भावना को देखते हुये पोलिटिकल एजेन्ट को साहस नहीं हुआ क्यों कि इस प्रकार की कार्यवाही से राजपूतों में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध राष्ट्रीय भावनाएं उत्तपन्न होने का खतरा था ।अलबत्ता अंग्रेज सरकार के दबाब के कारण महाराणा शम्भू सिंह जी ने कोठारिया जागीर के 2 गांव जब्त करने के लिए धौंस अवश्य भेजी थी ।

  ‎1865ई0 में मेवाड़ के तत्कालीन अंग्रेज पोलिटिकल एजेन्ट ले0 कर्नल ईडन ने अपने दौरे पर जाते हुए कोठारिया जागीर के भीतर तम्बू डाल कर ठहरने का  विचार किया तो रावत जोधसिंह जी ने ऐसा करने पर ईडन के तमाम कर्मचारियों को मार डालने की धमकी दी ।ईडन ने जब इस बात की रिपोर्ट अंग्रेज सरकार को की किन्तु रावत जोधसिंह जी के विरुद्ध अंग्रेज सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी।




  ‎इस प्रकार वीरों की प्रणेता पावन पवित्र भूमि मेवाड़ में जन्मे इस स्वतंत्रता प्रेमी राष्ट्रभक्त साहसी निडर ठाकुर ने अपने कोठारिया ठिकाने में कई क्रांतिकारियों को शरण दी व साधन भी उपलब्ध कराए।इस प्रकार स्वतंत्रता के दीवाने कोठारिया के रावत जोधसिंह जी चौहान ने भी स्वाधीनता के लिए की गई क्रांति में अपना महत्वपूर्ण  योगदान देकर अमरता प्राप्त की ।

  ‎देश की आजादी के लिए स्वाधीनता संग्राम से लेकर आजादी के बाद भी देश के लिए सबसे अधिक बलिदान व त्याग क्षत्रिय जाति के  हिस्से में रहा है यह कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।यही कारण रहा कि मेरा झुकाव भी उन क्षत्रिय वीरों और वीरांगनाओं पर रहा जिन्हें इतिहास ने जन -साधारण तक नहीं पहुंचाया ।दूसरे शब्दों में यह भी गलत नहीं है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजपूतों के इतिहास को दबाया गया है।1857 ई0 के स्वाधीनता संग्राम में देश के सभी प्रान्तों के क्षत्रियों का स्वतंत्रता प्राप्ति में अहम योगदान रहा है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि तत्कालीन इतिहासकारों ने भी उनको इतिहास में वह स्थान नहीं दिया जिनके वे  हकदार थे ।हमारे राजपूत इतिहासकारों ने भी कभी इस विषय पर चिंतन नहीं किया  ।आज के युग में सभी अपने अपने समाज की बातें करते है और अपनों के विषय में लिखते है ,तो हमारे समाज के हमारे  पूर्वजों के त्याग ,बलिदान तथा राष्ट्रभक्ति के इतिहास को दूसरे लोग क्यों लिखेंगे ।हमें अब अपने पूर्वजों के गौरवमयी इतिहास को स्वयं लिखना होगा।राजपूताने में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले विभिन्न मेवाड़ ,मारवाड़ तथा अन्य क्षेत्रों के राजपूत सामन्तों का अहम योगदान रहा है लेकिन सभी के विषय में इतिहासकारों ने नहीं लिखा यही अमर शहीदों के साथ अन्याय है ।

  ‎अंत में ,मैं अपने इस लेख को कोठारिया ठाकुर साहब रावत जोधसिंह जी की स्मृति में समर्पित करते हुऐ अपने शब्दो के द्वारा स्वतंत्रता के अमर पुरोधा देशभक्त को सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुऐ सत -सत नमन  करता हूँ ।जय हिंद।जय राजपूताना।।


लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन 

गांव-लढोता, सासनी ,जिला-हाथरस

उत्तरप्रदेश ।

हाल निवास -सवाईमाधोपुर

राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी ,अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (वांकानेर)

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