Sunday, February 28, 2021

1971 WAR HERO COLONEL SHYAM SINGH BHATI SIR -IMMORTAL RAJPUTS



पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति के लिए साल 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के दौरान मैनामति की प्रसिद्ध लड़ाई लड़ी गई थी। इसके हीरो कर्नल श्यामसिंह भाटी जी जोधपुर के तापू गांव में साल 1941 में उनका जन्म हुआ था। 



उनके पिता ठाकुर खेतसिंह भाटी जी जोधपुर रियासत की सरदार इन्फैंट्री में अफसर थे। उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था।



कर्नल श्याम सिंह जी की शिक्षा जोधपुर में ही हुई थी। साल 1963 में उन्होंने भारतीय सेना की सबसे पुरानी राजपूताना रायफल से अपना सैन्य जीवन शुरू किया। साल 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में अपनी बहादुरी की मिसाल पेश की।



सेना में 34 साल तक सेवा देने के बाद वे जीवन भर युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित करते रहे। सैन्य पृष्ठभूमि वाले परिवार के कर्नल श्याम सिंह जी के बेटे कर्नल संग्राम सिंह जी का निधन दो साल पहले हुआ था। कर्नल संग्राम जी को साल 1999 में करगिल युद्ध के दौरान दिखाई वीरता के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था।



लेफ्टिनेंट जनरल ओपी कौशिक जी के द्वारा बताई गयी बहादुरी की दास्तान
साल 1971 में 9 दिसंबर की रात हुई मैनामति की लड़ाई के बारे में लेफ्टिनेंट जनरल ओपी कौशिक ने एक लेख लिखा था। इसमें उन्होंने बताया- मैनामति में राजपूताना राइफल्स की टुकड़ी ने मेजर श्याम सिंह के नेतृत्व में महत्वपूर्ण स्थान पर कब्जा जमा लिया था, लेकिन पाकिस्तान की एक पूरी ब्रिगेड ने इस टुकड़ी को घेर लिया। शुरू में यह माना गया कि यह पाकिस्तान की एक कंपनी है, लेकिन बाद में पता चला कि पूरी टैंक ब्रिगेड ने उन्हें घेर रखा है। ऐसे में मेजर श्याम सिंह ने हेड क्वॉर्टर से मदद मांगी। लेकिन पीछे से मदद पहुंच पाने की संभावना नहीं थी।



भारतीय टैंक आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। अन्य टुकड़ियां दूसरे मोर्चों पर जंग लड़ रही थीं। कंपनी कमांडर ने एयरफोर्स से मदद मांगी, लेकिन वे उस वक्त ढाका पर बमबारी कर रहे थे। राजपूताना राइफल्स के 38 जवान शहीद हो चुके थे। दुश्मन के टैंक महज 200 फीट की दूरी पर खड़े थे। बाकी सैनिकों के बचने की भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। ऐसे में ब्रिगेड कमांडर ने कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह को इस बारे में सूचना दी। कोर कमांडर सगत सिंह, ब्रिगेड कमांडर ब्रिगेडियर पांडे और कमांडिंग ऑफिसर बरार ने वहां से पीछे हटने के लिए मेजर श्याम सिंह को आदेश दिया।



मेजर श्याम सिंह ने तुरंत मना कर दिया और कहा कि वे जब तक जिंदा हैं ,पीछे नहीं हटेंगे। मेजर भाटी ने कहा कि इस जगह पर हमने बहुत मुश्किल से कब्जा जमाया है। अब पीछे हटते ही सामने खड़े टैंक हमें उड़ा देंगे। दुश्मन के टैंक 200 फीट की दूरी पर खड़े हैं। हम पर गोले बरसा रहे हैं। कर्नल बरार ने कहा कि यदि पीछे नहीं हटे तो यह तुम्हारी जिम्मेदारी मानी जाएगी। मेजर भाटी ने पूरी जिम्मेदारी लेते हुए साफ कर दिया कि वे अपनी जगह नहीं छोड़ेंगे।



लेफ्टिनेंट जनरल ओपी कौशिक ने लिखा है कि बाद में यह साबित हो गया कि मेजर भाटी का फैसला ही सही था। उसी समय हमने एयरफोर्स को रेडियो संदेश भेजा। जवाब मिला कि वे अपने सारे बम ढाका पर गिरा चुके हैं। एक भी बम उनके फाइटर जेट्स में नहीं है। हमने कहा कि वे पाकिस्तानी टैंकों के ऊपर से बहुत नीची उड़ान भर उनमें खौफ पैदा कर दे। भारतीय पायलट्स ने ऐसा ही किया।

उन्होंने दो-तीन बार टैंकों के ऊपर से बहुत नीची उड़ान भर संदेश दिया कि हम पहुंच गए हैं। थोड़ी देर में पाकिस्तानी टैंक ब्रिगेड पीछे हटना शुरू हो गई। इस बीच भारतीय टैंक वहां पहुंच गए और भारतीय सेना ने सामरिक नजरिए से बेहद अहम माने जाने वाले मैनामति पहाड़ी पर अपना कब्जा बरकरार रखा।



सन 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जोधपुर के ओसियां तहसील के तापू गांव के कर्नल श्यामसिंह भाटी जी का गुरुवार देर रात निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार दोपहर जोधपुर में किया गया. कर्नल श्याम सिंह भाटी जी का शुक्रवार दोपहर जोधपुर सेंट्रल स्कूल स्कीम स्थित निवास से 10 पैरा के सैन्य वाहन में शवयात्रा रवाना किया गया. कागा स्थित राजपूत श्मशान घाट पर सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ. भाटी जी के पुत्र विक्रम सिंह जी ने उन्हें मुखाग्नि दी. कर्नल श्याम सिंह जी को 1971 के वार हीरो होने के कारण सैन्य सम्मान व आठ राजपूताना राइफल्स द्वारा कैप्टन तरूण उपाध्याय के नेतृत्व में लास्ट सलामी व गन सैल्यूट सम्मान दिया गया। वे अस्सी वर्ष के थे। 


 इस दौरान सेना के अधिकारी, पूर्व सैन्य अधिकारी, हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एनएन माथुर, मेजर जनरल शेरसिंह और पूर्व कुलपति गुलाब सिंह चौहान सहित कई सैन्य अधिकारी शामिल रहे. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि कर्नल भाटी जी की वीरता की गाथा उन्हें सदा हमारे बीच जीवित रखेगी.


'I AM COMMANDING THIS COMPANY AND I AM NOT LEAVING MY POSITION TILL I DIE'


It was another attack on the Mynamati hills which merits recognition was when our troops captured a little area in the centre of the hill without realising that the whole feature was held by one Pakistani brigade.



We thought it was held by just a company and early in the morning 7 Rajputana Rifles discovered that they were surrounded by Pakistani soldiers and tanks. They had advanced on foot and our tanks had not moved in.

The commanding officer said he needed air support. I had sent a demand for air support a day earlier, but it did not materialise because the entire air force was busy with Dacca.

7 Rajputana Rifles had suffered 38 battle casualties and the colonel commanding Raj Rif asked our permission to withdraw since no air support was coming.

The brigade commander spoke to the Corps Commander General Sagat Singh telling him that 7 Raj Rif were surrounded by Pakistanis troops and tanks.

The corps commander said 'withdraw'; brigade commander Brigadier Pande said 'withdraw'; Commanding Officer Colonel Brar then ordered Major Shyam Singh Bhatti, the officer in the thick of battle, to 'withdraw' -- he said no!



Major Bhatti said, 'The moment I leave these captured trenches everyone of us will be killed. The tanks are 200 yards ahead of me, but haven't come on me. I am firing at the tanks with my platoon anti-tank weapons, but the moment I leave my trenches everyone of us will be killed. I am not leaving.'

Colonel Brar said, 'I will hold you responsible,' and Major Bhatti replied, 'yes hold me responsible. So long as I am commanding this company I am not leaving this position till I die.'

I was listening to this conversation. Tears came into my eyes.

It turned out that the only man whose decision was correct that day was Major Shyam Singh Bhatti.



( He was father of Col Sangram Singh Bhati, Shaurya Chakra, 10 PARA SF who passed away in 2018. )


In the meantime four IAF aircraft emerged from Dacca.

We got in touch with them on the radio and asked if they could support us. They said they had unloaded all their ammunition in Dacca.

I said, 'Can you just fly low?' Maybe the Pakistani tanks will disappear.' They first declined, but agreed on my persuasion.

They asked us to identify the target and flew low. It was a daring act by these pilots because they were flying without any ammunition.

They came, took one round, dove and the Pakistan attack disappeared!

In the meantime, we moved our tanks and the situation over the Myanamati hills was saved.

Major Bhatti survived, but unfortunately did not get recognised.


We salute our hero and with this tribute condolences to his family.  May such Bhati clan legacy keep inspiring billion proud indians 🙏









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