THE CONTRIBUTION OF JAUNPUR IN THE FREEDOM STRUGGLE
Jaunpur of the British period has been a witness to rebellion against the power of the state. A tormenting desire to take part in the revolution of 1857 and secure Independence for India was seen in its every nook and cranny. For the 1857 revolution, posters had been put up everywhere on 31st May. Instructions had been issued to the native soldiers to deposit their arms. The news of the rebellion reached Jaunpur from Benares on the 5th of June, 1857. On September 8, the Gorkha forces arrived in Jaunpur from Azamgarh. On account of this, all the civilian officers who had fled to Benares returned to Jaunpur. The northwest part of Jaunpur was in the flames of the rebellion. The confrontation of the freedom fighters under the leadership of Mata Badal Chauhan with the English Forces took place but fate did not favour them. The English hanged Mata Badal Chauhan and his 13 confederates.
In this conflict, these braves killed one Sergeant Brigade, a legal officer. Thakur Sangram Singh of Nevadhiya village became a Rebel and he defeated the English several times. The English could not cow down the Babu Saltanat Bahadur Singh, the Zamindar of Badlapur. Saltanat Bahadur Singh's son Sangram Singh took on the English on several occasions. Later on, the English tied him to a tree and shot him. Amar Singh, alongwith his 4 sons, attacked the Indigo Godown of Karanja and plundered it. The English attacked his village Adampur during which he was killed fradulently. The Raghuvanshi Rajputs of Dobhi along the Varanasi-Dobhi-Azamgarh highway had never acquiesed to anybody's suzerainity. On hearing of the patriotic uprising against British rule in the surrounding districts of Ghazipur, Azamgarh and Banaras, the proud Rajputs of Dobhi organised themselves into a tough group of armed force and attacked the British and their traitorous Indian collaborators all over the region. During the advance towards Benares, they came face-to-face with the Sikh Army of Taylor. The Rajputs of Dobhi killed the englishmen of the Peshwa's Indigo Godwn. In Senapur village at midnight the English hanged 23 people, while they were asleep, from tree. The English hanged Haripal Singh, Bhikha Singh and Jagat Singh et. al. after a charade of a trial by a kangaroo court.
स्वतंत्रता की धधकती आग में शहीदों का गवाह बना सेनापुर बाग
मेरठ में 1857 में इस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ चिनगारी भड़की तो उसकी आंच जौैनपुर के डोभी में भी महसूस की गई। क्रांति की रोटी यहां पहुंची हो या नहीं लेकिन यहां के रणबांकुरों ने अंग्रेजों से जबरदस्त लोहा लिया। लंबी लड़ाई के बाद सीधे मुकाबले में सफल नहीं होने पर कंपनी के अफसरों ने धोखे से समझौते के लिए सेनपुरा बुलाया बुलाया और 22 रणबांकुरों को फांसी दे दी। उसके बाद उनके सहयोगियों का दमन किया गया।
जौनपुर मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर पूरब केराकत तहसील का सेनापुर गांव हैं। जहां के शहीद बाग में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 22 रणबांकुरों को फांसी दी गई थी। मेरठ में भड़ी चिंगारी पूर्वी उत्तर प्रदेश में आग बनकर धधकने लगी थी। बनारस में जून माह में कंपनी के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ तो उसकी खबर जौनपुर पहुंची तो डोभी और चौदह कोस में फैले कटेहर क्षेत्र के रघुवंशियों ने अपनी सेना गठित कर ली। जौनपुर और वाराणसी की सीमा पर मौजूद दानगंज में दानू अहीर अपने सात पुत्रों के साथ सेनानी बनकर अंग्रेजों पर कहर बनकर टूट पड़ेडोभी के रघुवंशियों ने संगठित होकर सेना का रूप धारण कर लिया। उन्होेंने अंग्रेजों को कई बार खदेड़कर जौनपुर की सीमा से बाहर कर दिया। अंग्रेजी सेना को वाराणसी के बावनबीघा तक खदेड़ने दिया और वाराणसी-आजमगढ़ मार्ग पर कब्जा कर लिया। क्रांतिकारियों ने नील गोदाम पर भी कब्जा कर लिया था। सितंबर माह में गोरखा सेना आई लेकिन उसकी भी एक न चली। बाद में अंग्रेजों ने समझौते के बहाने सेनापुर में पंचायत बुलाई। वहां अंग्रेजों ने डोभी के 22 क्रांतिवीरों को गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी दे दी। फांसी पर लटकाने के बाद अंग्रेजों ने उन पर गोलियां चलाईं। 22 शहीदों में सात लोग कौन थे, इसका पता नहीं चल पाया।
सेनपुरा के शहीद बाग के शिलापट्ट पर 10 गांवों के
ठाकुर यदुबीर सिंह,
ठाकुर दयाल सिंह,
ठाकुर शिवब्रत सिंह,
ठाकुर जयमंगल सिंह,
ठाकुर देवकी सिंह,
ठाकुर रामदुलार सिंह,
ठाकुर अभिलाष सिंह,
ठाकुर जयलाल सिंह,
ठाकुर सिंह,
शिवराम अहीर,
किसुन अहीर,
ठाकुर माधव सिंह,
ठाकुर विश्वेसर सिंह,
ठाकुर छांगुर सिंह
एवं ठाकुर रामभरोस
सहिं सहित केवल 15 बलिदानियों के नाम अंकित हैं।
शहीदों की इस पवित्र भूमि की तरफ शासन और जनप्रतिनिधियों की आज तक नजरे इनायत नहीं हुई। ढाई दशक पूर्व तत्कालीन सांसद राजनाथ सोनकर शास्त्री ने एक एकड़ में फैले शहीद बाग की चहारदीवारी बनवाई थी। गांव के जयप्रकाश सिंह ने बताया कि गेट टूटकर गिर गया है। शहीद बाग में हरे पेड़ो की कटाई और खनन किया जाता रहा, जिसे किसी तरह रोकवाया गया। पूर्व प्रधान डा. राम लौटन विश्वकर्मा ने तालाब खुदवाया था किंतु अब खनन से उसका स्वरूप बिगड़ गया हैं। डा. ईश्वरदत्त सिंह, श्याम कन्हैया सिंह, शारदा और बुझारत के कहने पर पूर्वांचल विश्विद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो. शरत कुमार सिंह 1995 में शिलापट्ट और शहीद स्मारक का सुंदरीकरण कराया था। समाजसेवी जयप्रकाश सिंह ने जिलाधिकारी और कबीना मंत्री तथा इस जिले के प्रभारी रीता बहुगुणा जोशी को पत्र देकर शहीद स्थल के सुंदरीकरण की मांग की है।
REFERENCES:-
PN Chopra, YB Chavan, Who’s Who of Indian Martyrs 2 , Vol 3, p. 137
S A A Rizvi, M L Bhargav, Freedom Struggle in Uttar Pradesh: Eastern & Adjoining districts, 1857-59, p. 955
Jaunpur Gazetteer. p. 47-49
शहीदों को नमन🙏🏻
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