Saturday, February 18, 2017

MAHARANA MOKAL -THAKUR SABAL SINGH DODIYA - IMMORTAL RAJPUTS



"महाराणा मोकल के इतिहास"
* पिता :- महाराणा लाखा
* माता :- हंसाबाई जी
* रणमल्ल - ये मंडोवर के राव चूंडा के बड़े पुत्र थे | राव चूंडा ने किसी कारण से नाराज़ होकर रणमल्ल को मंडोवर से निकाल दिया | रणमल्ल 500 सवारों सहित चित्तौड़ आए और यहीं रहने लगे |
* महाराणा लाखा के बड़े पुत्र कुंवर चूंडा ने जिद करके महाराणा को रणमल्ल की बहिन हंसाबाई से विवाह करने के लिए राजी किया
कुंवर चूंडा के एेसा करने के पीछे बहुत से किस्से हैं, जिनमें से एक ये है कि महाराणा लाखा ने एक दिन किसी की बारात को देखकर रणमल्ल से कुछ मजाक किया कि अब हम बूढों से विवाह कौन करे | ये बात कुंवर चूंडा ने सुन ली और अपने पिता की इच्छा पूरी करने की ठानी |
दूसरा किस्सा ये है कि रणमल्ल ने कुंवर चूंडा के लिए अपनी बहिन के विवाह का प्रस्ताव महाराणा के सामने रखा और नारियल पेश किया | महाराणा लाखा ने मजाक में कहा कि ये नारियल मेरे लिए है क्या | कुंवर चूंडा ने तभी इस विवाह से इनकार किया और हंसाबाई का विवाह अपने पिता से करवाने की ठान ली |
* कुंवर चूंडा ने अपने पिता के लिए रणमल्ल से कहा कि वह अपनी बहिन का विवाह महाराणा से कर देवे, पर रणमल्ल ने कहा कि महाराणा की उम्र ज्यादा है और उनके बाद राजगद्दी तो आपको ही मिलनी है |
तब कुंवर चूंडा ने प्रतिज्ञा की कि "हंसाबाई जी और महाराणा का जो भी पहला पुत्र होगा, वही मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठेगा और मैं उसकी सेवा में रहूंगा"
इस प्रतिज्ञा के कारण कुंवर चूंडा को "मेवाड़ का भीष्म पितामह" भी कहा जाता है
* विवाह के 13 माह बाद महाराणा लाखा व हंसाबाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जो मोकल नाम से प्रसिद्ध हुए
* कुंवर मोकल महाराणा लाखा के 8वें पुत्र थे
* 1406-07 ई. में महाराणा लाखा का देहान्त हुआ
(महाराणा लाखा के देहान्त का वर्ष 1397 ई. बताना कर्नल जेम्स टॉड की गलती है व 1420 ई. बताना कवि लोगों की गलती है)
* कुंवर चूंडा ने अपने छोटे भाई मोकल का हाथ पकड़कर उन्हें मेवाड़ की राजगद्दी पर बिठाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की
* रानी हंसाबाई जब सती होने जा रही थीं, तब कुंवर चूंडा ने उनको रोक लिया और कहा कि आपको बाईजीराज बनकर रहना चाहिए
(राज करने वाले शासक की माता को बाईजीराज कहते हैं)
* 1407 ई. में महाराणा मोकल का राज्याभिषेक हुआ
* महाराणा मोकल की उम्र कम होने के कारण राज्य का सारा काम कुंवर चूंडा की देख-रेख में होता देख कुछ सर्दारों ने महाराणा और उनकी माता हंसाबाई के कान भरने शुरु किये
बाईजीराज हंसाबाई ने कुंवर चूंडा से कहा कि आप मेवाड़ छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले जावें, तो ठीक रहेगा
कुंवर चूंडा अपने सभी छोटे भाईयों समेत मेवाड़ से चले गए, सिवाय राघवदास के
राघवदास कुंवर चूंडा के छोटे भाई व महाराणा लाखा के दूसरे बड़े पुत्र थे | कुंवर चूंडा ने राघवदास को महाराणा मोकल का संरक्षक नियुक्त किया | हालांकि महाराणा मोकल के दिमाग पर केवल उनके मामा रणमल्ल की बात ही असर करती थी | राज्य का सारा काम रणमल्ल ही करता था |
* 1410 ई. में मंडोवर के राव चूंडा का देहान्त हुआ और उत्तराधिकार संघर्ष शुरु हुआ
राव चूंडा के बड़े बेटे रणमल्ल ने कई राठौड़ साथियों और महाराणा मोकल की मेवाड़ी फौज लेकर मंडोवर पर अधिकार किया
इस लड़ाई में रणमल्ल के भतीजे नरबद की एक आँख फूट गई | महाराणा मोकल उसे चित्तौड़ ले आए और कायलाणा का पट्टा जागीर में दिया |


* नागौर के हाकिम फीरोज़ खां ने मेवाड़ पर चढाई की

महाराणा मोकल भी सामना करने मेवाड़ी फौज के साथ निकले और गाँव जोताई के चौगान में पड़ाव डाला
रात के वक्त फीरोज खां ने हमला कर दिया | 

महाराणा को एेसी धोखेबाजी की बिल्कुल भनक तक न थी |

महाराणा का घोड़ा मारा गया | 

डोडिया धवल के पुत्र सबलसिंह ने अपना घोड़ा महाराणा को दिया और खुद वीरगति को प्राप्त हुए |

महाराणा मोकल पराजित होकर चित्तौड़ आ गए
इस युद्ध में 3000 मेवाड़ी सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए
फीरोज खां कुल मेवाड़ को लूटते हुए मालवा की तरफ निकला

* महाराणा मोकल इस पराजय का जवाब देना जरुरी समझकर मेवाड़ी फौज के साथ निकले
फीरोज़ खां भी सादड़ी और प्रतापगढ़ के पहाड़ों की तरफ आया और जावर में पड़ाव डाला
जावर में दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ, जिसमें फीरोज़ खां बुरी तरह पराजित होकर भाग निकला
(चित्तौड़ के समिद्धेश्वर महादेव मन्दिर पर इस विजय की प्रशस्ति है)
* महाराणा मोकल ने जहांजपुर में दूसरी बार फीरोज़ खां को शिकस्त दी
(महाराणा की इस विजय का उल्लेख एकलिंग जी के मन्दिर के दक्षिणद्वार की प्रशस्ति में है)
1432 ई.
* गुजरात के बादशाह अहमदशाह ने बड़ी फौज के साथ मेवाड़ पर चढाई की
उसने डूंगरपुर, देलवाड़ा, केलवाड़ा वगैरह मेवाड़ी इलाके लूट लिए


1433 ई.महाराणा मोकल भी मेवाड़ी फौज के साथ चित्तौड़ से निकलेमहाराणा के साथ चाचा व मेरा (महाराणा क्षेत्रसिंह की अवैध सन्तानें) भी थे, जो महाराणा को मारने की फिराक में थे* महाराणा मोकल ने बागौर में पड़ाव डालाचाचा व मेरा ने महाराणा के बहुत से आदमियों को अपनी तरफ मिला लिया, 

पर मलसिंह डोडिया ने महाराणा का साथ नहीं छोड़ाचाचा, मेरा व महपा पंवार ने अपने 20-30 आदमियों के साथ महाराणा के खेमे में प्रवेश करना चाहा, 

पर डोडिया मलेसी ने रोकने की कोशिश कीसब लोग महाराणा के खेमे में पहुंचे

महाराणा मोकल, महारानी हाड़ी व मलेसी डोडिया..... 

ये तीनों कुल 19 दगाबाजों को मारकर वीरगति को प्राप्त हुए

चाचा व महपा पंवार जख्मी होकर अपने बाल-बच्चों समेत कोटड़ी चले गए



* निर्माण कार्य - महाराणा मोकल ने चित्तौड़ में द्वारिकानाथ व समिद्धेश्वर मन्दिर बनवाया | कैलाशपुरी में एकलिंग जी के मन्दिर के चारों तरफ की कोट बनवाई | यहीं अपने छोटे भाई बाघसिंह के नाम पर बाघेला तालाब भी बनवाया |
* दान व भेंट - महाराणा मोकल ने पुष्कर तीर्थ पर स्वर्ण का तुलादान किया | महाराणा ने वांघनवाड़ा व रामा गाँव एकलिंग जी के भेंट किए |
* महाराणा मोकल के 7 पुत्र हुए -
1) महाराणा कुम्भा 
2) कुंवर क्षेमकरण
3) कुंवर शिवा
4) कुंवर सत्ता
5) कुंवर नाथसिंह
6) कुंवर वीरमदेव
7) कुंवर राजधर
- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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