Monday, March 1, 2021

MAHAVIR SINGH RATHORE--AN UNSUNG NATIONAL HERO - IMMORTAL RAJPUTS


आजादी की इबारत लिखने वाले क्रांतिकारियों का बलिदान आधुनिक युग में व्यर्थ जा रहा है। अपनों के बीच बेगाने होकर रह गये हुुतात्मा महावीर सिंह को प्रशासनिक व स्वयंसेवी संगठनों की उदासीनता ने भुला दिया है। 

🕉️अमर बलिदानी महावीर सिंह को कोटि कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि🕉️


आइये परिचित होते हैं अमर बलिदानी महावीर सिंह से। उनका जन्म 16 सितम्बर 1904 को उत्तर प्रदेश के एटा जिले के शाहपुर टहला नामक एक छोटे से गाँव में उस क्षेत्र के प्रसिद्द वैद्य कुंवर देवी सिंह और उनकी धर्मपरायण पत्नी श्रीमती शारदा देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही प्राप्त करने के बाद महावीर सिंह ने हाईस्कूल की परीक्षा गवर्मेंट कालेज एटा से पास की| राष्ट्र -सम्मान के लिए मर-मिटने की शिक्षा अपने पिता से प्राप्त करने वाले महावीर सिंह में अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की भावना बचपन से ही मौजूद थी, जिसका पता उनके बचपन में घटी एक घटना से भी मिलता है।


हुआ ये कि जनवरी 1922 में एक दिन कासगंज तहसील (वर्तमान में ये अलग जिला बन गया है) के सरकारी अधिकारियों ने अपनी राजभक्ति प्रदर्शित करने के उद्देश्य से अमन सभा का आयोजन किया, जिसमें ज़िलाधीश, पुलिस कप्तान, स्कूलों के इंस्पेक्टर, आस -पड़ोस के अमीर -उमरा आदि जमा हुए। छोटे -छोटे बच्चो को भी जबरदस्ती ले जाकर सभा में बिठाया गया, जिनमें से एक महावीर सिंह भी थे। लोग बारी -बारी उठकर अंग्रेजी हुक़ूमत की तारीफ़ में लम्बे -लम्बे भाषण दे ही रहे थे कि तभी बच्चों के बीच से किसी ने जोर से से नारा लगाया–महात्मा गांधी की जय। बाकी लड़कों ने भी समवेत स्वर में ऊँचे कंठ से इसका समर्थन किया और पूरा वातावरण इस नारे से गूँज उठा। देखते -देखते गांधी विरोधियों की वह सभा गांधी की जय जयकार के नारों से गूँज उठी, लिहाजा अधिकारी तिलमिला उठे। प्रकरण की जांच के फलस्वरूप महावीर सिंह को विद्रोही बालकों का नेता घोषित कर सजा दी गयी पर इसने उनमें बगावत की भावना को और प्रबल कर दिया।



1925 में उच्च शिक्षा के लिए महावीर सिंह जब डी. ए. वी. कालेज कानपुर गए तो चन्द्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आने पर उनसे अत्यंत प्रभावित हुए और उनकी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोशिएसन के सक्रिय सदस्य बन गए। इसी के जरिये उनका परिचय भगतसिंह से हुआ और जल्द ही महावीर भगतसिंह के प्रिय साथी बन गए। उसी दौरान उनके पिता जी ने उनकी शादी तय करने के सम्बन्ध में उनके पास पत्र भेजा जिसे पाकर वो चिंतित हो गए| अपने आप को मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए चल रहे यज्ञ में समिधा बना देने का दृढ संकल्प करने के बाद उन्होंने अपने पिता जी को राष्ट्र की आजादी के लिए क्रांतिकारी संघर्ष पर चलने की सूचना देते हुए शादी-ब्याह के पारिवारिक संबंधों से मुक्ति देने का आग्रह किया।

चंद दिनों बाद पिता का उत्तर आया, जिसमें लिखा था–मुझे यह जानकर बड़ी ख़ुशी हुई कि तुमने अपना जीवन देश के काम में लगाने का निश्चय किया है। मैं तो समझता था कि हमारे वंश में पूर्वजों का रक्त अब रहा ही नहीं और हमने दिल से परतंत्रता स्वीकार कर ली है, पर आज तुम्हारा पत्र पाकर मैं अपने को बड़ा भाग्यशाली समझ रहा हूँ। शादी की बात जहाँ चल रही है, उन्हें यथायोग्य उत्तर भेज दिया है। तुम पूर्णतः निश्चिन्त रहो, मैं कभी भी ऐसा कोई काम नही करूंगा जो देशसेवा के तुम्हारे मार्ग में बाधक बने। देश की सेवा का जो मार्ग तुमने चुना है वह बड़ी तपस्या का और बड़ा कठिन मार्ग है लेकिन जब तुम उस पर चल ही पड़े हो तो कभी पीछे न मुड़ना, साथियो को धोखा मत देना और अपने इस बूढ़े पिता के नाम का ख्याल रखना। तुम जहाँ भी रहोगे, मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है।—-तुम्हारा पिता देवी सिंह

क्रांतिकारी गतिविधियों में स्वयं को पूर्णतः संलग्न करने के बाद महावीर सिंह ने कई अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाई और वह दल के मुख्य सदस्यों में गिने जाने लगे। इसी बीच लाहौर में पंजाब बैंक पर छापा मारने की योजना बनी, लेकिन महावीर सिंह को जिस कार द्वारा साथियों को बैंक से सही -सलामत निकाल कर लाना था, वही ऐसी नही थी कि उस पर भरोसा किया जा सकता। अस्तु भरोसे लायक कार न मिलने तक के लिए योजना स्थगित कर दी गयी। तभी लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध लाला लाजपतराय के नेतृत्व में तूफ़ान उठा खड़ा हुआ, जिसमें एक प्रदर्शन में लाला जी पर लाठियों के अंधाधुंध प्रहार ने उनका प्राणान्त कर दिया। यह राष्ट्र के पौरुष को चुनौती थी और क्रान्तिकारियो ने उसे सहर्ष स्वीकार किया। बैंक पर छापा मारने की योजना स्थगित कर लाला जी पर लाठियाँ बरसाने वाले पुलिस अधिकारी को मारने का निश्चय किया गया। उस योजना को कार्यान्वित करने में भगत सिंह, आजाद तथा राजगुरु के साथ महावीर सिंह का भी काफी योगदान था और भगत सिंह और राजगुरु को घटनास्थल से कार द्वारा महावीर सिंह ही भगा ले गए थे।

Veer Savarkar park, Port Blair

साडर्स की हत्या के बाद महावीर सिंह अस्वस्थ रहने लगे क्योंकि लाहौर का पानी उनके स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नही पड़ रहा था, इसलिए सुखदेव ने उन्हें संयुक्त प्रांत अर्थात आज के उत्तरप्रदेश वापस जाने की सलाह दी। चार दिन कानपुर रहने के बाद वे इलाज के लिए अपने गाँव पिता जी के पास चले गये, पर चूँकि पुलिस का डर था इसलिए रोज जगह बदलकर पिताजी से इलाज करवाने में लग गये ताकि जल्द से जल्द स्वस्थ होकर फिर से मोर्चे पर वापस जा सकें। सन 1929 में दिल्ली असेम्बली भवन में भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त द्वारा बम फेंके जाने के बाद लोगों की गिरफ्तारियाँ शुरू हो गयीं और अधिकाँश क्रांतिकारी पकडकर मुकदमा चलाने के लिए लाहौर पहुंचा दिए गये, ऐसे में महावीर सिंह भी पकडे गये।

जेल में क्रान्तिकारियों द्वारा अपने ऊपर किये जाने वाले अन्याय के विरुद्ध 13 जुलाई 1929 से आमरण अनशन शुरू कर दिया गया। दस दिनों तक तो जेल अधिकारियों ने कोई विशेष कार्यवाही नही की क्योंकि उनका अनुमान था कि यह नयी उम्र के छोकरे अधिक दिनों तक बगैर खाए नही रह सकेंगे, लेकिन जब दस दिन हो गये और एक-एक करके ये लोग बिस्तर पकड़ने लगे तो उन्हें चिंता हुई। सरकार ने अनशनकारियों की देखभाल के लिए डाक्टरों का एक बोर्ड नियुक्त कर दिया। अनशन के ग्यारहवे दिन से बोर्ड के डाक्टरों ने बलपूर्वक दूध पिलाना आरम्भ कर दिया, जिससे बचने के लिए महावीर सिंह कुश्ती भी करते और गले से भी लड़ते। जेल अधिकारी को पहलवानों के साथ अपनी कोठरी की तरफ आते देख वे जंगला रोकर खड़े हो जाते। एक तरफ आठ दस पहलवान और दूसरी तरफ अनशन के कारण कमजोर पड़ चुके महावीर सिंह। पांच दस मिनट की धक्का-मुक्की के बाद दरवाजा खुलता तो काबू करने की कुश्ती आरम्भ हो जाती। 63 दिनों के अनशन में एक दिन भी ऐसा नही गया जिस दिन महावीर सिंह को काबू करने में आधे घंटे से कम समय लगा हो। वह लाहौर षड्यंत्र के सबसे तगड़े आदमियों में से थे ।उनका सीना चौड़ा था ,शरीर भरा -पूरा और उस पर फहराती हुई राजपूती मूँछे ।उन्हें देख कर पुराने ज़माने के परमवीर राजपूतों की याद ताजा हो जाती थी ।ये कहना था उनके एक साथी क्रांतिकारी का ।


लाहौर षड्यंत्र केस के अभियुक्तों की अदालती सुनवाई के दौरान महावीर सिंह तथा उनके चार अन्य साथियों कुंदन लाल, बटुकेश्वर दत्त, गयाप्रसाद और जितेन्द्रनाथ सान्याल ने एक बयान द्वारा कहा कि वे शत्रु की इस अदालत से किसी प्रकार के न्याय की आशा नही करते और यह कहकर उन्होंने इस अदालत को मान्यता देने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने से इनकार कर दिया। महावीर सिंह तथा उनके साथियों का यह बयान लाहौर षड्यंत्र केस के अभियुक्तों की उस समय की राजनैतिक एवं सैद्धांतिक समझ पर अच्छा प्रकाश डालता है और इस बात को स्पष्ट करता है कि आज़ादी के ये मतवाले कोई भटके हुए नौजवान नहीं थे बल्कि एक विचारधारा से प्रेरित जागरूक युवा थे। बयान के कुछ अंश इस प्रकार थे—


हमारा यह दृढ विश्वास है कि साम्राज्यवाद लूटने-खसोटने के उद्देश्य से संगठित किए गये एक विस्तृत षड्यंत्र को छोडकर और कुछ नही है। साम्राज्यवादी अपने लूट-खसोट के मंसूबों को आगे बढाने की गरज से केवल अपनी अदालतों द्वारा ही राजनीतिक हत्यायें नही करते वरन युद्ध के रूप में कत्लेआम, विनाश तथा अन्य कितने ही वीभत्स एवं भयानक कार्यों का संगठन करते हैं। हर मनुष्य को अपनी मेहनत का फल पाने का पूरा अधिकार है और हर राष्ट्र अपने साधनों का पूरा मालिक है। यदि कोई सरकार उन्हें उनके इन प्रारम्भिक अधिकारों से वंचित रखती है तो लोगों का कर्तव्य है कि ऐसी सरकार को मिटा दें। चूँकि ब्रिटिश सरकार इन सिद्धांतों से जिन के लिए हम खड़े हुए हैं, बिलकुल परे है इसलिए हमारा दृढ विश्वास है कि क्रान्ति के द्वारा मौजूदा हुकूमत को समाप्त करने के लिए सभी कोशिशें तथा सभी उपाय न्याय संगत हैं। हम परिवर्तन चाहते हैं–सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक सभी क्षेत्रों में आमूल परिवर्तन। हम मौजूदा समाज को जड़ से उखाडकर उसके स्थान पर एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते हैं, जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण असम्भव हो जाए और हर व्यक्ति को हर क्षेत्र में पूरी आजादी हासिल हो जाए। रही बात उपायों की, शांतिमय अथवा दूसरे, तो हम कह देना चाहते हैं कि इसका फैसला बहुत कुछ उन लोगो पर निर्भर करता है जिसके पास ताकत है। क्रांतिकारी तो शान्ति के उपासक हैं, सच्ची और टिकने वाली शान्ति के, जिसका आधार न्याय तथा समानता पर है, न की कायरता पर आधारित तथा संगीनों की नोक पर बचाकर रखी जाने वाली शान्ति के। हम पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का अभियोग लगाया गया है पर हम ब्रिटिश सरकार की बनाई हुई किसी भी अदालत से न्याय की आशा नही रखते और इसलिए हम न्याय के नाटक में भाग नही लेंगे।

केस समाप्त हो जाने पर सम्राट के विरुद्ध युद्ध और सांडर्स की हत्या में सहायता करने के अभियोग में महावीर सिंह को उनके सात अन्य साथियो के साथ आजन्म कारावास का दंड दिया गया। सजा के बाद कुछ दिनों तक पंजाब की जेलों में रखकर बाकी लोगो को (भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और किशोरी लाल के अतिरिक्त ) मद्रास प्रांत की विभिन्न जेलों में भेज दिया गया| महावीर सिंह और गयाप्रसाद को बेलोरी (कर्नाटक) सेंट्रल जेल ले जाया गया, जहाँ से जनवरी 1933 में उन्हें उनके कुछ साथियो के साथ अण्डमान (काला पानी) भेज दिया गया, जहाँ इंसान को जानवर से भी बदतर हालत में रखा जाता था।

Cellular jail, Port blair


राजनैतिक कैदियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार, अच्छा खाना, पढने -लिखने की सुविधायें, रात में रौशनी आदि मांगो को लेकर सभी राजनैतिक बंदियों ने 12 मई 1933 से जेल प्रशासन के विरुद्ध अनशन आरम्भ कर दिया। इससे पूर्व इतने अधिक बन्दियों ने एक साथ इतने दिनों तक कहीं भी अनशन नही किया था। अनशन के छठे दिन से ही अधिकारियों ने इसे कुचलने के लिए बलपूर्वक दूध पिलाने का कार्यक्रम आरम्भ कर दिया। वो 17 मई 1933 की शाम थी, जब आधे घण्टे की कुश्ती के बाद दस -बारह व्यक्तियों ने मिलकर महावीर सिंह को जमीन पर पटक दिया और डाक्टर ने एक घुटना उनके सीने पर रखकर नली नाक के अन्दर डाल दी। उसने यह देखने की परवाह भी नही की कि नली पेट में न जाकर महावीर सिंह के फेफड़ो में चली गयी है। अपना फर्ज पूरा करने की धुन में पूरा एक सेर दूध उसने फेफड़ो में भर दिया और उन्हें मछली की तरह छटपटाता हुआ छोडकर अपने दल -बल के साथ दूसरे बन्दी को दूध पिलाने चला गया। महावीर सिंह की तबियत तुरंत बिगड़ने लगी। कैदियों का शोर सुनकर डाक्टर उन्हें देखने वापस आया लेकिन उस समय तक उनकी हालत बिगड़ चुकी थी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ रात के लगभग बारह बजे आजीवन लड़ते रहने का व्रत लेकर चलने वाला ये अथक क्रांतिकारी देश की माटी में विलीन हो गया। अधिकारियों ने चोरी -चोरी उनके शव को समुद्र के हवाले कर दिया।


महावीर सिंह के कपड़ों में उनके पिता का एक पत्र भी मिला था, जो उन्होंने महावीर सिंह के अण्डमान से लिखे एक पत्र के उत्तर में लिखा था। इसमें लिखा था कि–”उस टापू पर सरकार ने देशभर के जगमगाते हीरे चुन -चुनकर जमा किए हैं। मुझे ख़ुशी है कि तुम्हें उन हीरों के बीच रहने का मौक़ा मिल रहा है। उनके बीच रहकर तुम और चमको, मेरा तथा देश का नाम अधिक रौशन करो, यही मेरा आशीर्वाद है।” आज के भौतिकवादी युग में जब माँ बाप अपने बच्चों को येन केन प्रकारेण धन ,पद -प्रतिष्ठा और व्यवसायों की ऊंचाइयों पर पहुँचते हुए देखना चाहते हैं और उसके लिए स्वयं या अपने बच्चों द्वारा कुमार्ग अपनाए जाने में भी संकोच नहीं करते, ये सोचना ही असंभव सा हो जाता है कि ऐसे भी माँ बाप हो सकते हैं जो अपने बच्चों को ना केवल देश-धर्म पर बलिदान होने की प्रेरणा दें वरन समय समय पर लक्ष्य प्राप्ति के उनका मार्गदर्शन भी करें।

आज जिस आजादी का उपभोग हम कर रहे है उसकी भव्य इमारत की बुनियाद डालने में महावीर सिंह जैसे कितने क्रान्तिकारियो ने अपना रक्त और माँस गला दिया पर हम कृतघ्न उन्हें भुला बैठे। हालाँकि उनके पैतृक गाँव शाहपुर टहला में स्थित चिकित्सालय का नाम महावीर सिंह मेमोरियल गवर्नमेंट हास्पिटल है, गाँव में हुुतात्मा महावीर सिंह स्मारक भी है, राजा का रामपुर में अमर हुुतात्मा महावीर सिंह स्मारक बालिका विद्यालय है। वर्ष 2009 में हुुतात्मा महावीर सिंह राठौर की प्रतिमा शासन ने पटियाली तहसील परिसर में स्थापित कर एक शाम शहीदों के नाम कार्यक्रम को अंजाम दे अमर शहीद को याद किया था और एटा मुख्यालय में भी महावीर पार्क की स्थापना शासन-प्रशासन द्वारा की गयी है। पर एक बार कार्यक्रम कर लेने के बाद उनके जन्मदिन व पुण्यतिथि पर याद करने की फुरसत न तो प्रशासन को मिली और न ही समाजसेवियों को।


हाँ, दो वर्ष पहले उनके बलिदान दिवस 17 मई पर जयपुर में, जहाँ महावीर सिंह का परिवार वर्तमान में मालवीय नगर में रहता है, उनकी स्मृति में एक विशेष कार्यक्रम अवश्य आयोजित किया गया जिसमे सभवतः पहली बार हुतात्मा महावीर सिंह को सम्मानपूर्वक याद किया गया। स्वातंत्रय समर स्मृति संस्थान के तत्वावधान में इसके संरक्षक एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री गोपाल शर्मा की ओर से आयोजित विकट विप्लवी हुुतात्मा महावीर सिंह के 80 वें बलिदान दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में शहीद महावीर सिंह पर लिखी गई पुस्तक ‘विकट विप्लवी महावीर सिंह’ का भी विमोचन किया गया और उनके प्रपौत्र श्री असीम राठौड़ को सम्मानित भी किया गया। आवश्यकता है कि हम अपने हुतात्माओं को याद रखें और उनसे प्रेरणा लें ताकि असंख्य बलिदानों के दम पर मिली इस आज़ादी को हम फिर से गँवा ना दें। हुुतात्मा की पुण्यतिथि 17 मई को चुपके से निकल गई। इस दिन उनको लेकर कोई भी आयोजन नहीं हुआ।


भारत को अंग्रेजों से लड़कर आजादी दिलाने वालों की अग्रणी पंक्ति के पुरोधा तहसील के ग्राम शाहपुर टहला में 16 सितम्बर 1904 को ठाकुर देवी सिंह के घर जन्मे क्रातिकारी अमर हुुतात्मा महावीर सिंह की 17 मई को पुण्यस्मृति पर किसी को याद तक नहीं आयी। वर्ष 2009 में हुुतात्मा महावीर सिंह राठौर की प्रतिमा शासन ने पटियाली तहसील परिसर में स्थापित कर एक शाम शहीदों के नाम कार्यक्रम को अंजाम दे अमर हुुतात्मा को याद किया था। इस बार स्वतंत्रता सैनानियों का लेखा-जोखा तहसील व जिला मुख्यालय पर सुरक्षित होने के बावजूद अधिकारियों को उनकी आदमकद प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाने की फुर्सत तक नहीं मिली। 




Martyred ON 17th May 1933 The legend of Young Mahavir Singh Rathore might not have made its way into the country's conscience, but it remains alive within Cellular Jail at Andaman. Where this Murti was erected in his memory. 

“Knowing that you are fighting for the country p roves that we have not accepted slavery from our hearts. Now that you are on the path to freedom, don’t look back and never betray your associates.” 



These were the words Kunwar Devi Singh, father of the freedom fighter Mahavir Singh Rathore. Born in Etah, UP, he was first drawn towards the freedom struggle when He was in class 6th. He was just in his early teens when he raised the slogan of “Mahatma Gandhi ki jai” in the Aman Sabha organised by the British. He was punished for his audacity. But seeds of the revolution had been sown. During his studies at DAV College, Kanpur, that was the hub of the revolutionary activities, he joined the freedom struggle in all earnest.It was the gutsy Mahavir who was trained to conduct the secret operations of the Naujawan Bharat Sabha Org. 



He was the one who helped in the escape of Bhagat Singh, Batukeshwar Dutt and Durga Devi from Mauzang House in Lahore. For this he was sentenced for life time imprisonment .His death remains unmentioned, undocumented. “The British government never sent his death certificate, or even a telegram on his death to his family. They could not acknowledge his death, but could not suppress it either. It took some weeks, but the news finally escaped from Port Blair and made its way to mainland India The authorities at Cellular Jail, where he was imprisoned for his part in the John Saunders murder case, had killed him by failed attempts at force-feeding. Due to the poor conditions of jail specially the food was so dirty that even animal were not able to eat that food so he started hunger strike. He was on a hunger strike, demanding human conditions for political prisoners. 


So British authorities tried to break his hunger strike. He choked on the sixth day of his fast as the feeding pipe, directed from his nose to gullet, flooded his lungs instead, with milk. Scared that news of the death would cause a prison revolt, they tied a stone to his body and sank him in the sea...

Yes THEY SANK HIM IN THE SEA WITHOUT A PROPER CREMATION.

The sacrifice of Mahavir Singh has gone unnoticed all along. “While there is a statue in Andaman, his own state has not bothered even to appreciate his sacrifice.” He remains one of the Unsung Heroes of our Country who is lost in just the memory of some.His family, too, had to pay a heavy price for his heroism. They had to shift their residence nine times, as the British government would chase them everywhere. Finally, the family settled in Jaipur with little they could gather while The family’s property was encroached upon.

We pray that the unsung warrior will get his due one day. Om Shanti! Naman

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